और अब आया एक नया अंधविश्‍वास धनिक परिवारों की महिलाएं मांग रहीं है भीख और वो भी केवल सात रुपयों की ताकि पहन सकें चूडि़यां।

वैसे तो हमारा भारत अफवाहों को और अंधविश्‍वासों को ही देश है यहां पर कब कौन सी अफवाह फैल जाए कोई कुछ नहीं कह सकता । और अफवाहें भी ऐसी वैसी नही कभी मूर्तियां दूध पीने लगती हैं तो कभी दीवार में सांई बाबा बन जाते हैं । अब एक ऐसी ही अफवाह मध्‍य प्रदेश के कस्‍बों में फैली हुई है जिसके चलते अच्‍छे अच्‍छे परिवारों की महिलाएं भी भिखारिनों की तरह से घर घर जाकर भीख मांग रहीं हैं और भीख्‍ा भी केवल इतनी कि सात रुपये हो जाएं ताकि वे उन सात रुपयों की चूडि़यां पहन सकें । ये जि म्‍मा वैसे भी हमेशा से महिलाओं का ही होता है कि वे घर और परिवार की खुशहाली के लिये व्रत, तीज, त्‍योहार और समय समय पर फैलने वाले अंधविश्‍वासों के अनुसार काम करें । और उनको शायद इसको करने में प्रसन्‍नता भी ह‍ोती है । ऐसी ही एक अफवाह के कारण संपनन परिवारों की महिलाएं भी इन दिनों भीख मांग रहीं हैं फ जानकारी के अनुसार हरितालिका तीज केदिन ये प्रदेश के सीहोर जिले में ये अफवाह फैली है कि महिलाओं को अपने सुहाग की रक्षा के लिये भीख मांग कर चुडि़यां पहननीं हैं और ये भीख भी सात रुपये की मांगनी है सात घरों से । महिलाओं को एक एक करके सात घरों में जाना है और बाकायदा एक रुपये की भीख मांगनी है और जब सात रुपये हो जाएं तो उन रुपयों की हरे रंग की चूडि़यां जाकर पहननीं हैं । घर परिवार की सुरक्षा और पति की लंबी उम्र के लिये ये करना बताया गया है इसके पीछे कुछ हरितालिका तीज का दूषित होना बताया जा रहा है । अपने परिवार को बचाने के लिये ये महिलाएं या तो मर्जी से या अपनी सास के जोर देना पर घर घर जाकर जाकर भीख मांग रहीं हैं । और इसी के कारण बाज़ार में हरे कांच की चूड्रियों की कमी आ गई है । चूड़ी दुकानदारों के अनुसार उनके यहां पर केवल हरे रंग की चूडि़यों की ही मांग आ रही है । कारण चाहे जो भी हो मगर एक बार फिर ये बात तो सिद्ध हो रही है कि भारत में अफवाहें वाक काम करवा लेती हैं जो सरकारें भी नहीं करवा सकतीं।

लता मंगेशकर महोत्‍सव : और ये हैं लता जी के पसंद के गीत 1965 से लेकर 1998 तक ।

और ये है लता जी के पसंद के गीत जो उन्‍होंने 1965 से 1998 तक के गीतों में से लिये हैं । 1998 के बाद से उन्‍होंने गाना बहुत कम कर दिया है ।

1966
1दुनिया करे सवाल तो हम : बहू बेगम (रोशन)
2 रहें न रहें हम : ममता (रोशन)
3 सपनों में अगर मेरे : दुल्‍हन एक रात की ( मदन मोहन)
4 ये रात भी जा रही है : सौ साल बाद ( लक्ष्‍मीकांत प्‍यरेलाल)
5 कुछ दिल ने कहा : अनुपमा (हेमंत कुमार)
6 न छेड़ो कल के अफसाने : रात और दिन ( शंकर जयकिशन)
7 नैनों में बदरा छाए : मेरा साया ( मदन मोहन)
1967
1क्‍या जानू सनम : बहारों के सपने ( आर डी बर्मन)
2 जीवन के दौराहे परे खड़े : छोटी सी मुलाकात ( शंकर जयकिशन)
1968
1 चलो सजना जहां तक घटा चले : मेरे हमदम मेरे दोस्‍त (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
2 शर्म आती है मगर : पड़ोसन ( आरडी बर्मन)
3 निगाहें क्‍यों भटकती हैं : बहारों की मंजिल (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
1969
1 तेरे बचपन को जवानी की दुआ : मुझे जीने दो (जयदेव)
2 गीत तेरे साज का : इंतकाम (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
1970
1 माई री मैं कासे कहूं पीर : दस्‍तक ( मदनमोहन)
2 ओ मेरे बैरागी : इश्‍क पर जोर नहीं ( एसडी बर्मन)
1971
1 चलते चलते : पाकीजा ( गुलाम मोहम्‍मद)
2 जाने क्‍यों लोग : मेहबूब की मेंहदी (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
1972
1 रातों के साए घने : अन्‍नदाता ( सलिल चौधरी)
2रैना बीती जाए : अमर प्रेम ( आर डी बर्मन)
1973
1 ये दिल और उनकी : प्रेम पर्वत ( जयदेव)
2 है तेरे साथ मेरी वफा : हिन्‍दुस्‍तान की कसम ( मदन माेहन)
3 आज सोचा तो आंसू भर आए : हंसते जख्‍म ( मदन मोहन)
4 बांहों मे चले आओ : अनामिका ( आर डी बर्मन)
5 रस्‍मे उल्‍फत को : दिल की राहें ( मदन मोहन)
6 तेरा मेरा साथ रहे : सौदागर ( रविन्‍द्र जैन)
1974
1चाला वाही देस : गैर फिल्‍मी मीरा भजन (ह्रदयना‍थ)
1975
1 आप यूं फासलों से : शंकर हुसैन ( खयाम)
2 अपने आप रातो में : शंकर हुसैन ( खयाम)
1976
1ये रातें नई पुरानी : जूली ( राजेश रोशन)
2 मेरे नैना सावन भादों : महबूबा ( आर डी बर्मन )
1977
1मुश्किल है जीना : साहब बहादुर ( मदन मोहन)
2 अबके ना सावन बरसे : किनारा ( आर डी बर्मन)
3 तेरे लिये पलकों की झालर बुनूं : हरजाई ( आर डी बर्मन )
1978
1सत्‍यम शिवम सुंदरम : सत्‍यम शिवम सुंदरम ( लक्ष्‍मी कांत प्‍यारे लाल)
1979
1980
1सांलह बरस की : एक दूजे के लिये ( लक्ष्‍मीकांत प्‍यारे लाल)
1981
1 दर्द की रागिनी : प्‍यास ( बप्‍पी लहरी)
2 दिखाई दिये यूं : बाजार ( खयाम)
1982
1ए दिले नादान : रजिया सुल्‍तान (खयाम)
2 तुझसे नाराज नहीं : मासूम ( आरडी बर्मन)
1983
1तुम आशा विश्‍वास हमारे : सुबह ( ह्रदयनाथ)
1984
1 श्री राम चंद्र कृपालु भजमन : गैर फिल्‍मी
1985
1सुन साहिबा सुन : राम तेरी गंगा मैली ( रिवन्‍द्र जैन)
2 श्‍याम घन घन श्‍याम : गैर फिल्‍मी
1986
1987
1988
1989
1 हो राम जी : राम लखन ( लक्ष्‍मीकांत प्‍यारे लाल)
2 दिल दीवाना : मैंने प्‍यार किया ( राम लक्ष्‍मण)
1990
1 यारा सीली सीली : लेकन ( ह्दयनाथ)
2 चिठिये दर्द : हिना ( रविन्‍द्र जैन)
1991
1 मोरनी बागां मां : लम्‍हे ( शिवहरी)
1992
1इस दिल में बस कर देखो : माया मेमसाब ( ह्रदयनाथ)
2 दिल हुम हुम करे : रुदाली ( भूपने हजारिका)
1993
1 सीली हवा छू गई : लिबास ( आर डी बर्मन)
1994
1कुछ ना कहो : 1942 ए लव स्‍टोरी ( आर डी बर्मन)
1995
1 मेरे ख्‍वाबों मे जो : दिलवाले दुल्‍हनियां ले जाऐंगें ( जतिन ललित)
1996
1 पानी पानी रे : माचिस (विशाल)
1997
1 तुम मेंरे हो : बेताबी (विशाल)
1998
1 जिया जले जां जले : दिल से ( ए आर रहमान )
2 गीला गीला पानी : सत्‍या (विशाल)

लता मंगेशकर महोत्‍सव : ये हैं लता जी की पसंद के गीत जो उनहोंने खुद ही पसंद किये हैं कि ये उनके फेवरेट हैं । ये पहली किश्‍त है अगली थोड़ी देर में

ये गीत वे गीत हैं जो लती जी ने 1949 से लेकर 1965 तक अपनी पसंद में शामिल किये हैं ये पहली कड़ी है इसके बाद मैं 1965 से अभी तक की उनकी पसंद प्रस्‍तुत करुंगा । संगीतकारों के नाम मैंने अपने स्‍वयं के ज्ञान के आधार पर दिये हैं हो सकता है एकाध नाम मैं कहीं दे न पाया हूं या कहीं भूल कर गया हूं ।

वे गाने जो लता जी ने स्‍वयं ही छांटे हैं
ये गीत उन्‍होनें वर्षों के हिसाब से लिये हैं मैं भी उसी आधार पर ले रहा हूं
1949
1आएगा आने वाला आएगा : फिल्‍म महल (खेमचंद प्रकाश)
2 तुम्‍हारे बुलाने को जी चाहता है : लाड़ली (अनिल विश्‍वास)
1950
1 दिल ही तो है तड़प गया : आधी रात
1951
1आज मेरे नसीब ने मुझको रुला दिया : हलचल (सज्‍जाद हुसैन)
2 वो दिन क‍हां गए बता : तराना (अनिल विश्‍वास)
1952
1 वो तो चले गए ए दिल : संगदिल (सज्‍जाद हुसैन)
2 ए री मैं तो प्रेम दीवानी : नौ बहार (अनिल विश्‍वास)
1953
1मुझसे मत पूछ : अनारकली ( सी रामचंद्र)
2 आ आ री निंदिया तू आजा : दो बीघा जमीन (सलिल चौधरी )
1954
1 ना मिलता ग़म तो बरबादी के : अमर (नौशाद)
1955
1 फैली हुईं हैं चाहत की बांहें : हाउस नं 44 ( एसडी बर्मन)
1956
1 रसिक बलमा हाय रे : चोरी चोरी ( शंकर जयकिशन)
2 गुजरा हूआ जमाना : शीरी फरहाद (मोहिंदर)
3 मैं पिया तेरी तू माने : बसंत बहार ( शंकर जयकिशन)
1957
1 ए मालिक तेरे बंदे हम : दो आंखें बारह हाथ ( वसंत देसाई)
1958
1आजा रे परदेसी मैं तो : मधुमती ( सलिल चौधरी)
1959
1 दिल का खिलौना हाय टूट गया : गूंज उठी शहनाई ( रामलाल)
1960
1 ओ सजना बरखा बहार : परख (सलिल चौधरी)
2 कैसे दिन बीतें कैसे बीतीं : अनुराधा (पं रविशंकर)
1961
1अल्‍लाह तेरो नाम : हम दोनों (जयदेव)
1962
1 कहीं दीप जले कहीं दिल : बीस साल बाद ( हेमंत कुमार)
2 जुर्मे उल्‍फत पे हमें लोग : ताज महल ( रोशन)
1963
1 तेरे बचपन को जवानी की दुआ : मुझे जीने दो ( जयदेव)
2 खेलो ना मेरे दिल से : हकीकत ( मदन मोहन)
3 वो चुप रहें तो मेरे : जहां आरा ( मदन मोहन)
4 ए दिलरुबा : रुस्‍तमे सोहराब ( सज्‍जाद हुसैन)
1964
1 लग जा गले : वो कौन थी ( मदन मोहन)
2 नगमा ओ शेर की : ग़ज़ल (मदन मोहन)
3 ए री जाने न दूंगी : चित्रलेखा (रोशन)
1965
1 दिल का दिया जला के : आकाशदीप ( चित्रगुप्‍त)

लता मंगेशकर महोत्‍सव : मैं नहीं जानता कि मेरा वो दोस्‍त दस्‍तक फिल्‍म के उस गाने को सुनते समय रो क्‍यों पड़ता था ।

लता मंगेशकर, एक अमृतधारा की तरह, विभिन्न संगीतकारों के संगीत में समाती हुई, गुजरजाती हैं, इसे एक संयोग ही कहा जायेगा, कि जो संगीतकार लता के साथ शीर्ष पर थे, वह लता के साथ मन मुटाव होने के बाद, कुछ भी अच्छा नहीं कर पाये, और गुमनामी के अंधेरो में खो गये, इनमें सी. रामचन्द्र, शंकर-जयकिशन, कल्याण जी-आनन्दजी, प्रमुख हैं। अपवाद रहे बर्मन दादा जो लता से अपने अल्पकालिक मनमुटाव के समय भी, बेहतरीन रचनायें देते रहे, परन्तु इन दो बड़ों की जब वापस सुलह हुई, तो संगीत प्रेमियों को अभिमान, आराधना, गाइड, ज्वैलथीफ और प्रेम पुजारी जैसी श्रेष्ठतम सौगातें मिलीं, इनमें विशेषतः गाइड और अभिमान के लता जी के तीन-तीन एकल गीत तो दुर्लभ हैं। उल्लेखनीय है कि लताजी और बर्मन दादा के मनमुटाव के दौरान आर. डी. बर्मन अपनी पहली फिल्म छोटे नवाब का संगीत देने जा रहे थे, और लता जी से ही गवाना चाहते थे, अब बर्मन दादा से मन मुटाव था, सो लता जी उनके घर में तो जा नहीं सकती थीं, अतः घर की सीढ़ियों पर बैठकर ही रिहर्सल पूरी की।
कालेज के दिनों में मेरा एक मित्रा था, वो अक्सर शाम को मेरे घर आता और कहता ''वो ही गाना सुना'' जैसे ही मैं गाना लगता, वो लाइटें बन्द कर अंधेरे में वो गाना पूरा सुनता, गाना पूरा होता और मैं लाइटें जलाता, तो उसकी आंखे भरी होती, हालांकि उसके जीवन में ऐसी कोई परेशानी नहीं थी, पर वो कहता था ''यार ये आवाज+, और ये गाना, जाने क्यूं मुझे रूला देते हैं'' बाद मैं वह लड़का एक सफल धारावाहिक निर्देशक बना, परन्तु वह इस रहस्य को नहीं समझ पाया, कि फिल्म दस्तक के उस गीत माई री में कासे कहूं को सुन कर, वो रोने क्यों लगता है।
किसी भी गायक के लिये सबसे बड़ी चुनौती होता है गैर फिल्मी प्रयास क्योंकि उसमें सब कुछ उस पर ही निर्भर होता है। लता जी ने इन पचास वर्षो में, बहुत ज्यादा गैर फिल्मी एलबम नहीं निकाले, परन्तु जितने भी निकाले, वो बेहतरीन थे, ऐ मेरे वतन के लोगों से वन्देमातरम ९८ तक कई गैर फिल्मी एलबम निकाले, चाला वाही देस, मीरा के भजन, लता सिंग्स गुरूवाणी, लता सिंग्स ग़ालिब, राम श्याम गुणगान, रामरतन धन पायो, सज+दा, जगराता, अटल छत्रा सच्चा दरबार, प्रेम भक्ति मुक्ति, श्रीमद् भागवत गीत और श्रद्धांजली भाग-१ व २ आदि। सजदा में जगजीत सिंह के साथ गायी गई उनकी ग़ज+लें, दूसरी दुनिया की सैर करा देती हैं, रामरतन धन पायो को ३ प्लेटिनम डिस्क मिली थीं, जो अपने आप में रिकार्ड है। पं. भीमसेन जोशी के साथ राम श्याम गुणगान में, इन दो बड़ों का संगम अद्भुत नजर आता है। लता जी ने श्री भगवद् गीता के श्लोकों का भी एक एलबम निकाला था, अनुराधा पोडवाल ने एक बार स्वीकार किया था, कि उन्हें उसी कैसेट को सुनकर संस्कृत सीखने की प्रेरणा हुई थी। लता जी के दो कैसेट, सुपर कैसेट पर भी रिलीज हुये थे, उनमें एक प्रेम भक्ति मुक्ति तो अनूठा था, विशेषतः उसका गीत मै केवल तुम्हारे लिये गा रही हूँ परन्तु किसी वजह से इन कैसेटो को प्रचार नहीं दिया गया, आज ये बाजार में उपलब्ध भी नहीं है। श्रद्धांजली भाग एक और भाग दो में कुछ गीत, लता जी का पारस पाकर विलक्षण हो गये थे, हालांकि मूल रूप में भी ये गीत उतने ही मधुर थे, परन्तु लता जी को पंकज मलिक का गीत तेरे मन्दिर का हूँ दीपक गाते हुये सुनना एक निराला अनुभव था। लता जी की हालिया रिलीज सादगी में भी वही कहानी है ।

लता मंगेशकर महोत्‍सव : आज दिन भर आपको मिलती रहेंगी लता जी के बारे में रोचक जानकारियां और हां वो 50गीत भी जो लता जी ने स्‍वयं छांट कर सूचीबद्ध किये हैं

मैं नहीं जानता कि मेरी जिंदगी में लता जी की आवाज़ न‍हीं होती तो क्‍या होता, मैं नहीं जानता कि अगर मैंने 'बेताब दिल की तमन्‍ना यही है ' और 'लग जा गले के फिर ये हंसीं रात हो न हो ' जैसे गीत न सुने होते तो मैं कवि या शाइर बना भी होता या न होता । पर इतना जानता हूं कि अगर सरस्‍वती के बारे में कोई मुझसे पूझे तो मैं यही कहूंगा ' लता जी को नहीं जानते क्‍या ' । ये मेरे लेख कादम्बिनी, दैनिक भास्‍कर आदि में प्रकाशित हो चुके हैं आज उन्‍हीं में से कुछ संपादित अंश आपको मिलते रहेंगें ।
१४ वर्ष की उम्र में लताजी ने पार्श्वगायन शुरू कर दिया था, पहले २.३ वर्षो तक उन्होंने मराठी फिल्मों में ही पार्श्वगायन किया, हिन्दी फिल्मों में उस समय नास्टेल्जिया गायिकाओं का बोल बाला था, नूरजहाँ, सुरैया, शमशाद बेगम, पार्श्व गायन में शीर्ष पर थीं। प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद किसी फिल्म का संगीत दे रहे थे, उस समय लता जी ने हिन्दी फिल्मों में पार्श्व गायन प्रारंभ ही किया था। एक सेट पर नौशाद जी ने लता जी का परिचय दिलीप कुमार से करवाया, कि ये नई लड़की लता मंगेशकर हमारी फिल्म में गा रही है, दिलीप कुमार छूटते ही बोले ''इनके गानों में तो मराठी हिन्दी मिलेगी'', बात चुभ गई, और लता ने उर्दू सीखना प्रारंभ कर दिया, और इतनी गहराई से सीखी, कि जब उनके उर्दू गीत युसुफ साहब ने सुने, तो चमत्कृत रह गये। आज तक दिलीप कुमार लता जी को अपनी छोटी बहन मानते हैं, लता जी कि उर्दू जुबान सुनना हो, तो हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत में जारी उनका कैसेट लता सिंग्स्‌ गालिब सुनिये, आप पहचान नही पायेंगे, कि गाने वाली एक महाराष्ट्रीयन महिला है।
एक बार कहीं संगीत की महफिल सजी हुई थी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब गा रहे थे, सारी महफिल तनमय होकर सुन रही थी, अचानक कहीं से, लता जी का एक गीत बजने की आवाज आई कदर जाने ना ओ कदर जाने ना, खाँ साहब ने अपना गाना बन्द कर दिया, और आंखे बन्द कर बैठ गये, जब गीत खत्म हुआ तो बोले ''अजीब लड़की है, कमबख्त कभी बेसुरी ही नहीं होती''। लता जी ने अपने जीवन में ढेरों पुरस्कार और इनाम लिये हैं, परन्तु शायद यह उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था।
कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर पर एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने लता मंगेशकर को चित्रापट संगीत की अनभिषिक्त साम्राज्ञी घोषित किया था, उन्हीं के शब्दो में ''ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है, ऐसा कलाकार आज हम सभी के बीच है, उसे अपनी आँखो के सामने घूमता फिरता देख पा रहे हैं, कितना बड़ा है हमारा भाग्य'' फिल्म महल के गीत आयेगा आने वाला को सुनकर गंधर्व साहब ने कहा था - '' तानपुरे से निकलने वाले गांधार को, शुद्ध रूप में सुनना चाहते हो, तो लता को सुन लो''। सचमुच गांधार पर जितनी अच्छी पकड़, लता जी की रही है, कम से कम फिल्मी पार्श्व संगीत मे तो किसी की नहीं रही।
२९ जनवरी १९६३ को, लाल किले की प्राचीर पर, एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, एक घरेलू सी, सीधी सीधी नजर आने वाली गायिका, एक गीत गा रही थी, सामने देश का प्रधानमंत्राी बैठा हुआ, बच्चों की तरह सुबक कर रो रहा था, यह अपने आप में एक ही मिसाल है, जब किसी गायिका ने अपनी आवाज से देश के प्रधानमंत्री को रूला दिया। वह कार्यक्रम था, १९६२ के युद्ध में शहीद सैनिकों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम, वह गीत था ऐ मेरे वतन के लोगों वो गायिका थी लता मंगेशकर और रोने वाले प्रधानमंत्री थे पं. जवाहरलाल नेहरू। बहते हुये आंसू लता मंगेशकर के जीवन की सबसे अमूल्य निधि थे।
ख़य्याम साहब से एक दफ़ा किसी ने पूछा था, कि आपने उमराव जान में, लता जी से गाने क्यूं नहीं गवाए ? ख़य्याम साहब ने जवाब दिया था, कि उमराव जान में सभी मुजरे ही थे और फिल्म पाकिजा में भी सभी मुजरे थे, और लगभग सभी गीत लता मंगेशकर ने ही गाए थे, गुलाम मोहम्मद की बनाई हुई धुनों पर, लता मंगेशकर ने जो परफारमेंस दिया है, वह सर्वश्रेष्ठ है, इससे ऊपर कुछ भी नहीं है। यदि मैं उमराव जान में लता से गवाता, तो लोग सबसे पहले पाकिजा से उसकी तुलना करते, और लता और पाकिजा जैसा संगम-शताब्दियों में एक बार होता है। कितना सच कहा था ख़य्याम साहब ने। लेखक के मामा, जो कि चित्रापट संगीत के करोड़ों भारतीय शौकीनों में से एक हैं, का कहना है ÷÷चलते-चलते सुन लो, तो फिर एक सप्ताह तक कुछ और सुनना अच्छा नही लगता''।

वो भारत की हॉकी टीम के लिये अपनी आधी तनख्‍वाह देना चाहता है उसका कहना है कि वो भी तो देश के लिये खेले और जीते फिर उनका सम्‍मान क्‍यों नहीं

भले ही कर्नाटक में हॉकी खिलाड़ी धमकी दे रहे हैं कि उनको मुख्‍यमंत्री के घर के सामने भूख हड़ताल करनी पड़ेगी तो वे ये भी करेंगें । मगर मध्‍यप्रदेश के शुजालपुर के रहने वाले 48 वर्षीय प्रफुल्‍ल चौबे का तो ये मानना है कि वे तो अपनी आधी तनख्‍वाह ही भारत की हॉकी टीम को पुरुस्‍कार के रूप में देने को तैयार हैं । श्री चौबे जनपद पंचायत में सब इंजीनियर हैं और वैसे वे हॉकी के खिलाड़ी भी नहीं है बल्कि वे क्रिकेट के ही खिलाड़ी रहे हैं किंतु उनका मानना है कि देश ने एशिया कप जीतने वाली हॉकी टीम के साथ दोयम व्‍यवहार करके अच्‍छा नहीं किया है । देश्‍ा और सरकार द्वारा की गई ग़लती की भरपाई वे स्‍वयं करना चाहते हैं और वे स्‍वयं ही भारत की हॉकी टीम को पुरुस्‍कार देना चाहते हैं । पर उनका कहना है कि वे चूंकि इतने समर्थ नहीं हैं कि वे लाखों रुपये दे पाएं फिर भी वे इतना तो कर ही सकते हैं कि वे अपने वेतन का आधा हिस्‍सा भारत की हॅकी टीम को पुरुस्‍कार के रूप में दे दें । वे अक्‍टूबर माह में मिलने वाली अपनी तनख्‍वाह का आधा हिस्‍सा भारत की हॉकी टीम को भेज देंगे । उनका मानना है कि इससे शायद एक मुहिम चालू हो जाए और सरकारों को भी होश आ जाए कि हॉकी की टीम ने भी देश का नाम बढ़ाया है । उनका कहना है कि अभी आस्‍ट्रेलिया की टीम आई है उससे एक दो मैच हारे कि फिर वही शुरू हो जाएगा आलोचना आलोचना । श्री चौबे के अनुसार भारत के क्रिक्रेट विश्‍व कप में खराब प्रदर्शन के बाद अन्‍य खेलों को बढ़ावा मिलना चालू हुआ था । पर अब वापस वही हो रहा है । वे एक संदेश की तरह अपनी आधी तनख्‍वाह देकर एक मुहिम को चालू करना चाहते है और चाहते हैं कि पूरा देश उन हॉकी के खिलाडि़यों के लिये पुरुस्‍कार एकत्र करे जिनकी सुध सरकारें नहीं ले रहीं हैं । वे कहते हैं कि भले ही ये एक बड़ी राशि नहीं है जो मैं भेज रहा हूं पर फिर भी ये मेरी भावना है और मेरी भावना उन हॉकी खिलाडि़यों से जुड़ी हैं जो बिना किसी प्रोत्‍साहन के भी देश के लिये कप जीत कर ला रहे हैं ।

आपने हंस का मीडिया विशेषांक तो पढ़ा ही होगा, कई सारी बातें भी उस पर हो चुकी हैं, अब उसी तरह का एक और प्रयोग हो रह है आप वहां अपनी रचना भेज सकते हैं ।

हंस का ख़बरिया चैनलों की कहानियां काफी चर्चित रहा है और उसको लेकर काफी बहस की जा चुकी हैं । अब उसी तरह का एक प्रयोग साहित्‍य की एक और प्रतिष्ठित पत्रिका 'कथादेश' द्वारा भी किया जा रहा है । दिल्‍ली से श्री हरिनारायण जी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका कथादेश का साहित्‍य के क्षेत्र में अपना एक स्‍थान है । सहयात्रा प्रकाशन के बैनर तले निकलने वाली पत्रिका कथादेश 28 वर्षों से अनवरत प्रकाशित हो रही है । कथादेश ने अब कथादेश का मीडिया विशेषांक निकालने का निर्णय लिया है। इस के लिये कथादेश ने मीडिया से जुड़े लोगों से अपने अनुभव टिप्‍पणी या किसी भी रूप मे आमंत्रित किये हैं । साथ में समाचार पत्रों के पाठकों, रेडियों के श्रोताओं और टेलीविज़न के दर्शकों से भी आलेख मांगें हैं । अधिकतम 500 शब्‍दों के ये आलेख आमंत्रित किये गए हैं । साथ ही मीडिया के सच को दिखाने वाली कहानियां, कविताएं संस्‍मरण भी प्रकाशन के लिये आमंत्रित किये गए हैं । कथादेश के अनुसार इस अंक में मीडिया के सभी पहलुओं पर ध्‍यान देन की कोशिश की जाएगी । अगर आप भी मीडिया से जुड़े हैं और आपके पास भी कोई कहानी या कविता या संस्‍मरण है तो आप भी वहां भेज सकते हैं । जिन सवालों को कथादेश के इस विशेषांक के माध्‍यम से उठाया जा रहा है वो इस प्रकार होंगे
1:- मीडिया क्‍या लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ रह गया है ।
2:- जिसे राष्‍ट्रवादी कहा गया वह मीडिया बाज़ार का हथियार कैसे बना ।
3:- पत्रकारिता संस्‍थान समाज के लिये पत्रकार निर्मित कर रहे हैं या फिर बाजार के बिचौलिये।
4:- राष्‍ट्रीय भाषाओं के साथ गांव ज्‍वार की कमजोर लुगाई की तरह व्‍यवहार किया जा रहा है ।
5:- सचुमच क्‍या युवाओं के लिये मीडिया में नौकरी की अपार संभावनाएं हैं या फिर सस्‍ते श्रमिक पैदा करने की योजना का हिस्‍सा है ये ।
6:- अपवाद को आम बताने जैसी मीडिया की कलाबाजी का रहस्‍य क्‍या है ।
इन सारी बातों को लेकर ही एक विशेषांक की योजना बनी है और इस में शामिल होंगें पत्रकार भी और वे भी जो समाचार चॅनलों या अखबारों के पाठक अथवा श्रोता हैं । उनमें से आप भी हो सकते हैं अगर आप भी पत्रकार हैं और आपके पास भी कहानी या संस्‍मरण हैं ( कहानी के लिये 500 शब्‍दों की बाध्‍यता नहीं हैं ) तो आप उन्‍हें कलम बद्ध करके कथादेश को भेज दें । अगर श्रोता हैं दर्शक हैं और कुछ कहना चाहते हैं तो अपनी बात कथादेश तक पहुंचाएं ।
बात केवल इसलिये क्‍योंकि हंस का विशेषांक आने के बाद कई लोगों को लगा कि अरे हमारे पास भी तो कुछ था हम तो चूक ही गए । अगर आप को कथादेश में कुछ भेजना है तो कृपया ब्‍लाग पर दिये गए मेरे ई मेल पते पर मुझे ई पत्र लिख दें मैं आपको कथादेश का पता रचना भेजने की अंतिम तिथी आदि के बारे में जानकारी प्रेषित कर दूंगा पर जल्‍दी करें क्‍योंकि विशेषांक को लेकर कार्य प्रारंभ हो चुका है । subeerin@gmail.com ये मेरा ई मेल पता है आप मुझे और जानकारी प्राप्‍त करने के लिये मेल कर सकते हैं ।

और उन बातों के बीच ये बातें भी थीं जो चुभ जाती थीं रह रह कर, हम कब मुसलमानों को इस देश का नागरिक मानेंगें आखिर

क्रिकेट अपने रोमांच पर था और चारों तरफ सन्‍नाटा छाया हुआ था । ऐसे समय में कुद बातें ऐसीं भी चल रहीं थीं जो रह रह कर दिल में चुभ जा रहीं थीं बानगी आप भी देखिये
'' सराय ( मेरे शहर का मुस्लिम बहुल इलाका ) में तो आज मातम हो रहा होगा, आखिरकार उनकी टीम हार जो गई है । ''
'' क़स्‍बे (मेरे शहर का एक और मुस्लिम बहुल इलाका ) में तो टी वी फोड़ दिये होंगें लोगों ने । अभी जाओं तो कोई भी बाहर नहीं दिखेगा । ''
'' रमज़ान है पाकिस्‍तान की जीत के लिये दुआ मांगने में जुटे होंगें। लेकिन हमारे भी गणपति चल रहे हैं ''
और भी इस तरह की बातें जो मुझे इस कारण सुननी पड़ रहीं थीं कि मैं एक सार्वजनिक स्‍थान पर खड़े होकर मैच देख रहा था ।बातें चुभ रहीं थीं और मन कर रहा था कि कोई जवाब दूं मगर भीड़ और भेड़ कब किसीकी सुनती है । खैर खरामा खरामा मैच चलता रहा और बातें होतीं रहीं । मैं नहीं जानता कि उस भीड़ में क्‍या कोई मुसलमान भी खड़ा था या नहीं और यदि था तो उसके मन में क्‍या चल रहा होगा । मेरे मन में घूम रहे थे मेरे दोस्‍त डॉ मोहम्‍मद आज़म और मेरे प्रिय छात्र अब्‍दुल कादिर के चेहरे जो हर बार एक ही प्रश्‍न पूछते हैं हमें ये देश कब अपना मानेगा । हमारे पूर्वजों ने इस्‍लामिक देश की जगह पर भारत को स्‍वीकार कर कौनसा अपराध किया था जिसकी सजा हमें मिल रही है । इन सवालों को मेरे पास कोई जवाब नहीं होता है । मैं उस भीड़ को भी कोई जवाब नहीं दे पा रहा था और मानता हूं क‍ि मैं इस कारण अपराधी की श्रेणी में ही गिना जाऊंगा
समर क्षेत्र है नहीं पाप का भागी केवल व्‍याध
जो तटस्‍थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
तो उन्‍हीं कड़वी बातों के बीच में मैंने वो मैच देखा । यक़ीन जानिये मन बिल्‍कुल नहीं लग रहा था । मगर कमबख्‍़त मैच इतना दिलचस्‍प था किछोड़ा भी नहीं जा सकता था । सो खड़ा रहा वहां पर उसी तरह की और भी अनर्गल बातों को सुनता हुआ ।
मैच ख़त्‍म हुआ और मन में उत्‍सुकता जागी कि क्‍या सचमुच कस्‍बे में या सराय में मातम मन रहा होगा । मन में एक सवाल लिये अपनी मोटर बाइक को उस ओर मोड़ दिया । मित्रों ये पंक्तियां लिखते समय मेरी आंख में सचमुच आंसू हैं मैं झूठ नहीं बोल रहा । मेरी बाइक धीरे धीरे सराय की ओर बढ़ रही थी । मन में कुछ अजीब सा लग रहा था कि मैं भी उनको परख रहा हूं । बाइक सराय के जोड़ पर पहुंची और रोकनी पड़ गई ( मेरी आंखों में तब भी आंसू थे और आज भी हैं ) रोकने का कारण, दरअस्‍ल में एक विशाल विजय जुलूस वहां से चला आ रहा था, मैं समझ गया कि ये जानबूझकर उस इलाके में निकाला जा रहा जुलूस है । बाइक खड़ी कर के मैं एक तरफ हो गया । जुलूस में सबके हाथों में तिरंगे थे । और जोर शोर से हिंदुस्‍तान जिंदाबाद के नारे लग रहे थे । जुलूस पास आया ( उफ ये कम्‍बख्‍़त आंसू ) सैंकड़ों मुसलमानों का जुलूस था वो सबके हाथों में तिरंगें थे और लबों पर हिंदुस्‍तान जिंदाबाद के नारे । मन किया चीख चीख कर कहूं सबसे कि देखो ये देखों ये है तुम्‍हारे सवालों का जवाब । सबसे बड़ी बात ये थी कि पूरे जुलूस में बीस से पच्‍चीस साल के बीच के लड़के ही थे, मैं समझ गया कि अब युवा पीढ़ी ने सांप्रदायिकता को जवाब देने का अपना तरीका ढूंढ लिया है ।कुछ देर तक बाइक रोक कर मैं भी उस जुलूस में चला फिर घर आ गया । आकर देखा तो इरफान पठान को मैन आफ मैच घो‍षित किया गया था । और शाहरुख खान क्रिक्रटरों के बीच थे । मन कुछ हल्‍का हुआ मगर वो प्रश्‍न तो अब भी वहीं खड़ा है कि हम कब मुसलमानों को भारतीय मानने के लिये दिल से तैयार होगें ।
फिर भी मुझ जैसे नपुंसक भीष्‍म पितामह का सलाम मेरे शहर के सराय और कस्‍बे में रहने वाले मुसलमानों को, इरफान पठान को और शाहरुख खान को भी ।

मुर्दे ने कहा सरकार मुझे आय, जाति और मूल निवासी प्रमाण पत्र चाहिये

सीहोर मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले की इछावर तहसील का कार्यालय इन दिनों एक बड़ी ही विचित्र परेशानी में उलझ गया है और ये परेशानी है एक मुर्दे द्वारा प्रमाण पत्र मांगा जाना। पिछले साल मर चुके एक व्‍यक्ति ने बाकयदा आवेदन पत्र देकर तहसील कार्यालय से अनुरोध किया है कि उसको आय जाति और मूल निवासी का प्रमाण पत्र चाहिये । अब जाति तक तो ठीक है पर तहसील कार्यालय के लोग परेशान हैं कि उस मुर्दे को कहां का मूल निवासी बताएं स्‍वर्ग का या फिर नर्क को और उसकी आय क्‍या बताई जाए क्‍योंकि स्‍वर्ग या नर्क में वो क्‍या कर रहा है ये तो तहसील वालों को पता ही नहीं है ।इछावर के नायब तहसीलदार को ग्राम उमरखाल के दतार सिंह पुत्र कन्‍हैयालाल के नाम से उनके पुत्र सीरेन ने आय, जाति तथा मूल निवासी प्रमाण पत्र बनाने का आवेदन मिला है । इस आवेदन के साथ ही दतार सिंह का हस्‍ताक्षर युक्‍त शपथ पत्र भी लगा है । इसके अलावा पटवारी गोविंद सिंह और ग्राम पंचायत का प्रमाण पत्र भी आवेदन के साथ लगा हुआ है । अब हकीकत ये है कि दतार सिंह की मौत दो साल पहले ही हो चुकी है । ग्राम के पंचायत सचिव अजब सिंह के अनुसार तो दतार सिंह दो साल पहले ही मर चुका है ।उधर दतार सिंह के पुत्र सीरेन ने बताया कि उसने लखन सिंह निवासी गोयलखेड़ी को प्रमाण पत्र संबंधी सभी कागज तैयार करने के दौ सौ रुपये दिये हैं और उसने लखन सिंह को पहले ही बता दिया था कि दतार सिंह की मौत दो साल पहले ही हो चुकी है । जिस पर लखन सिंह ने कहा था कि उससे कुछ नहीं होता मैं सब करवा दूंगा । और उसीने ही सारे कागज जिसमें दो साल पहले मर चुके दतार सिंह का नोटरी का शपथ पत्र भी शामिल है तैयार करवा के आवेदन नायब तहसीलदार को दिया है ।उध आवेदन तैयार करवानें वाले लखन सिंह का कहना है कि उसे नहीं पता था कि दतार सिंह की मौत हो चुकी है । तथा सीरेंन ने ख़ुद ही अपने पिता के स्‍थान पर हस्‍ताक्षर कर दिये थे शपथ पत्र पर । उसका इसमें कोई कसूर नहीं है ।कुल मिलाकर बात वही आ रही हे कि बाकायदा एक मरे हुए व्‍यक्ति के नाम से न केवल आवेदन दिया गया हे बल्कि उसके साथ में शपथ पत्र भी दिया गया है और ये सभी को मालूम है कि शपथ पत्र के लिये नोटरी के सामने उपस्थित होना पड़ता है । खैर बात चाहे जो भी हो पर फिलहाल तो तहसील के कर्मचारी इस अलग तरह की परेशानी में पड़ ही गए हैं कि उस मरे हुए व्‍यक्ति को कहां का मूल निवासी बताएं और उसकी आय क्‍या बताई जाए । उधर मुर्दा भी इंतेजार में है कि देखें उसको कहां का मूल निवासी घोषित किया जाता है स्‍वर्ग का या फिर नर्क का । सुबीर संवाद सेवा के लिये पंकज सुबीर

शवों को सम्मान पूर्वक विदा करना ही उसका शौक है

समाजसेवा की वास्तव में क्या परिभाषा है यह आज तक कोई तय नहीं कर पाया फिर भी यह बात मानी जाती है कि वह कार्य जो गहन पीड़ा के दौरान मरहम का कार्य करे उसे समाज सेवा या मानव सेवा कहा जा सकता है,जैसा इछावर के होल्कर सिंह का कार्य है । हो सकता है होल्कर सिंह को अपने जीवन पर्यंत कोई विशेष सम्मान नहीं मिले । हो सकता है उसके कार्य गुमनाम रह जाऐं ,लेकिन इससे उसे कोई मतलब नहीं है , क्योंकि वह तो अपने काम में जुटा रहता है । सत्तर वर्षीय होल्कर सिंह हम्माल है तथा ठेला चलाकर अपना जीवन यापन करता है । जब वह पन्द्रह सोलह वर्ष का था तब से ही उसने शवयात्राओं में जाना प्रारंभ कर दिया था , धीरे धीरे उसने शव को नहलाना , बाजार से सामान खरीद कर लाना ,अर्थी तैयार करना , शवयात्रा में जाना और श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था जुटाना जैसे पूरे काम करना प्रारंभ कर दिये । उसे इस काम में आत्मिक संतोष मिलने लगा ,फिर उसने कोई भी शवयात्रा नहीं छोड़ी। इछावर में कहीं भी मृत्यु हो ,किसी भी जाती में हो , होल्कर तुरंत पहुंच जाता है और सारी जिम्मेदारी संभाल लेता है , पिछले कई वषोर्ं से उसने एक भी शवयात्रा नहीं छोड़ी है। लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का काम भी वह ही संभालता है। होल्कर वैसे तो अनपढ़ है फिर भी हरेक मृत्यु को वह अपने पास लिखवा के रख लेता है । नगर पालिका के जन्म मृत्यु विभाग के पास भले जानकारी न हो पर होल्कर के पास इछावर में वर्ष भर में हुई मौतों की पूरी जानकारी रहती है ,तभी तो धुलेंडी के दिन जब इछावर में पारंपरिक रूप से गमी वाले घरों में लोग गुलाल लगाने जाते हैं तो होल्कर के साथ जाते हैं , क्योंकि उसे वर्ष भर में हुई पूरी मौतों की जानकारी रहती है । पिछले कई वषोर्ं की जानकारी होल्कर के पास सुरक्षित है । होल्कर के अनुसार उसे पूर्वाभास हो जाता है कि कहां पर उसकी जरूरत है और वह पहुंच जाता है । एक बार इछावर में चार मौतें एक दिन में हो गई थीं ,वह दिन होल्कर का भारी व्यस्तता में गुज+रा था । शव को स्नान करवाना, अर्थी बनाना , कफन की व्यवस्था, शव को अर्थी पर रखना, शव यात्रा में जाना ,श्मशान घांट पर जाकर अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करना यह काम किसी का भी शौक नहीं हो सकता पर होल्कर का है, । इसमें उसे इतना आत्मिक सुख मिलता है कि वह इसके लिए ठेले चलाने का अपना काम छोड़कर चल देता है।