मुस्लिम युवक ने दी मुखाग्नि स्‍नेह देने वाली हिंदू मां को

वैसे तो शांति बार्इ को कोई भी नहीं था और उसे निराश्रित ही माना जाता था । वो रहती भी मुस्लिम बहूल इलाके में थी मगर अपनी उम्र भर उसको अहसास नहीं हुआ कि वो निराश्रित है या फिर वो मुस्लिम बहुल इलाके में रह रही है । वो इसलिये क्‍योंकि वहां पर उसको जो स्‍नेह दो मुस्लिम युवको से मिला और उसने उन दोनों मुस्लिम युवकों को जो मातृवत स्‍नेह दिया उसके चलते उसे कभी भी निराश्रित होने का अहसास नहीं हुआ ।

मध्‍य प्रदेश के सीहोर की बात करें तो वैसे यहां पर कई बार फिजा को बिगाड़ने का प्रयास किया गया है पर ये शहर शांत ही रहा है और समय समय पर अपनी पहचान देता रहा है । यहीं की लाल मस्जिद में रहने वाली 85 वर्षिय शांति बाई वैसे तो निराश्रित थी मगर मुस्लिम बहुल इलाके में रहने वाली शांति बाई को कभी भी इसका अहसास नहीं हुआ । 15 साल पहले पति के निधन के बाद से वे अकेली ही रह रहीं थीं । पास में रहने वाले मोहम्‍मद अरशद और अरशद राइन उनके लिये पुत्र बने हुए थे । मोहम्‍मद राइन के अनुसार शांति मां उनको मातृवत स्‍नेह देतीं थीं और वे लोग भी उनके लिये बेटे समान ही थे । 85 वर्षीय शांति बाई को कभी भी अपने परिवार की याद नहीं सताती थी । मोहम्‍मद राइन के अनुसार शांति बाई ने उनुको जीवन भर मां की तरह से स्‍नेह दिया । वे उनके भोजन आदि के लिये मां की तरह से ही चिंतित रहती थीं और अगर उन लोगों को कभी घर आने में देर हो जाए तो चिंतित होकर दरवाजे पर रास्‍ता देखती रहती थीं । माता तुल्‍य शांति बाई के निधन पर इन मुस्लिम युवकों को लगा कि जैसे उनहोंने अपनी मां को ही खो दिया है । इन मुस्लिम युवकों ने न केवल अपनी मां को हिंदू रीति रिवाज से कंधा दिया बल्कि हिंदू रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्‍कार भी किया और उस समय तो लोगों की आंखें नम हों गई जब मुस्लिम बेटे राइन ने अपनी हिंदू मां की चिता को मुखाग्नि देकर अपना फर्ज पूरा कर दिया । शायद ऐसी ही घटनाएं और ऐसे ही लोग अभी देश को सांप्रदायिकता के जहर से बचाए हुए हैं । 

अगर हिन्‍दू भाई हमारे लिये रोज़ा अफ़्तार रख सकते हैं तो हम नवरात्रि में साबूदाने की खिचड़ी क्‍यों नहीं बांट सकते मंदिर के सामने

ऊपर लिखा गया एक वाक्‍य ही वो वाक्‍य है जिसमें भारत की खुशहाली का सारा राज़ छुपा है । और ये वाक्‍य कह रहे हैं दो मुस्लिम मेहबूब और इशाक । ये बात दरअस्‍ल में वो बात है जो भारत की आत्‍मा की आवाज़ है और ये बात अगर गूंज बन कर पूरे भारत की हवाओं में फैल जाए तो फिर भारत को दुनिया का सरताज बनने से कोई भी नहीं रोक सकता ।

मध्‍य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध देवी मंदिर सलकनपुर में है । यहां पर पहाड़ की ऊंची टेकरी पर बीजासन देवी की पिंडी है और हजारों की संख्‍या में श्रद्धालू यहां पर दर्शनों के लिये देश भर से आते हैं विशेषकर नवरात्रि में तो ये संख्‍या काफी बढ़ जाती है । ऊंची पहाड़ी पर चढ़ने के लिये सीढि़यां बनाई गई हैं और ऊपर तक पहुचते पहुचते हालत खराब हो जाती है । मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित ये मंदिर राजधानी भोपाल से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इस बार यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को फलाहार तथा चाय पान की मुफ्त व्‍यवस्‍था कराने का जिम्‍मा दो मुस्लिम युवकों ने उठा कर रखा है । मेहबूब और इशाक देवी मंदिर के रास्‍ते में पंडाल लगा कर बैठे हैं और रास्‍ते में खड़े होरक श्रद्धालुओं को बुला बुला कर अपने पंडाल में ले जाकर साबूदाने की खिचड़ी तथा अन्‍य फलाहार करवा रहे हैं । नवरात्रि पर सलकनपुर आने वाले श्रद्धालुओं के लिये यूं तो रास्‍ते भर में कई सारी संस्‍थाओं ने फलाहार तथा चाय पान की व्‍यवस्‍था कर रखी है पर उसमें से ये पंडाल विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है जहां पर ये दोनों मुस्लिम भाई अपना पंडाल लगा कर सेवाएं दे रहे हैं । इन दोनों से बात करने पर उन्‍होंने बहुत ही सीधे साधे से लहज़े में एक ही बात कही वो बात जो कानों से होकर सीधे दिल में उतर जाती है । इनका कहना है कि जब हमारे हिंदू भाई रमज़ान के महीने में देश में स्‍थान स्‍थान पर रोज़ा अफ़्तार का आयोजन रखते हैं तो फिर क्‍या हम नवरात्रि में मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के लिये साबूदाने की खिचड़ी का फलाहार भी नहीं करवा सकते । एक दूसरे के त्‍यौहारों में शामिल होने से भाई चारा बढ़ता है और ये ही वो बात है जो फिरकापरस्‍ती फैलाने वालों पर आखिरकार भारी पड़ेगी । पता नहीं मेहबूब और इशाक का पैगामे मोहब्‍बत कहां तक पहुचता है और कुछ असर भी करता है या नहीं पर ये तो सच है कि अगर देश के सारे लोग इन दोनों की तरह से सोचने लगें तो शायद बहुत कुछ अपने आप ही सुधर जाएगा । ' मेरा पैग़ाम मोहब्‍बत है जहां तक पहुंचे''

सुनिये एक आदमी की कहानी जिसको शादी का लालच दिखा कर ठगती रहीं मां और बेटी

उस बेचारे को कब पता था कि उसके साथ तो एक खेल खेल रहीं हैं दोनों मां और बेटी । उसे तो बस इतना पता था कि उसको एक दुल्‍हन की ख्‍वाहिश थी और बेटी के शादी की उसे उम्‍मीद बंधाई गई थी । मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के रफीक खां ने एक बड़ा ही विचित्र सा आवेदन सीहोर की पुलिस को दिया है । आवेदन तो ठगी का है पर पुलिस के सामने बड़ी ही अनोखी समस्‍या ये आ रही है कि वो इस मामले में क्‍या करे । मामला दरअस्‍ल में ये है कि शहनाज बी ने रफीक को अपनी बेटी के साथ शादी की स्‍वीकृति देकर कहा कि पैसे जमा करों और जब पैसे जमा हो जाऐंगे तो मैं अपनी बेटी की शादी तुम्‍हारे साथ कर दूंगी । रहा सवाल खर्च का तो तुम हमारे साथ ही रहना हमारा खर्च तुमको ही उठाना पड़ेगा और पैसे जो तुम जमा करवाओगे उससे तुम्‍हारी शादी हो जाएगी । बेचारा रफीक झांसे में आ गया और मां बेटी के साथ्‍ा ही रहने लगा हालत ये हो गई कि आस पास वाले तो उसे उस घर का ही दामाद मानने लगे । 2004 से अब तक ये युवक जो कुछ भी कमाता उसको मां बेटी के हाथ में लाकर रख देता इस तरह से इन तीन सालों में उसने काफी पैसा मां बेटी को दे दिया इस उम्‍मीद में कि अब जल्‍दी ही उसकी शादी हो जाएगी । चार सालों से मां बेटी के घर का खर्च भी वो ही उठा रहा था । मगर हाय री किस्‍मत जब काफी पैसे जमा हो गए तो मां बेटी ने उसको घर से निकाल दिया । बेचारा रफीक तो कहीं का भी नहीं रहा । उसके सपनों में तो दुल्‍हन नज़र आती थी मगर यहां तो दर दर की ठोकर मिल गईं । थक हार कर वो पुलिस के पास पहुच गया और ठगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई । मगर पुलिस अभी तय नहीं कर पा रही है कि ठगी हुई भी या नहीं । मंडी थाना पुलिस का कहना है कि अभी जांच चल रही है कि क्‍या किया जाए । रफीक का वही हाल है कि न खुदा ही मिला न विसाले सनम न इधर के रहे न उधर के रहे ।

और इन रावणों से भी तो मिल लीजिये जो अपने आप में कुछ खास हैं

रावण तो रावण है भला उसमें क्‍या खास है, मगर जान लीजिये कि रावण में भी खास होने लगा है ।

सीमेंट का रावण

जैसे पहले बात करें मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के आष्‍टा में बनने वाले रावण की यहां का रावण पूरा कभी नहीं मरता है । अब ये अधूरा मरना भला क्‍या बला है । जी हां ये रावण पूरा इसलिये मरता नहीं है क्‍योंकि रावण तो दरअसल में एक सीमेंट कांक्रिट का बना हुआ पुतला है । ये पुतला एक सीमेंट के चबूतरे पर परमानेंट बना हुआ है और हर साल होता ये हैं कि इसी पुतले पर डेकोरेशन करके इसको रावण का रूप दे दिया जाता है और इस सजे धजे रावण को राम जी आग लगा देते हैं होता ये है कि राम जी के आग लगाने पर ऊपर का सज धज जो कि कागज और घास से किया जाता है वो तो जल जाता है पर अंदर का रावण वैसा का वैसा ही बचा रह जाता है । वो जल भी कैसे सकता है क्‍योंकि वो तो सीमेंट का है । सही भी है ये परंपरा वास्‍तव में यही बताने के लिये तो शुरू की गई है कि चाहे कुछ भी कर लो पर जब भी जलेगा तो ऊपर का घास फूस ही जलेगा हम सब के अंदर जो सीमेंट का रावण है वो भी कहीं जल सकता है ।

गाजर घास का रावण

ये रावण सीहोर में ही बनाया जाता है और इस रावण को बनाया जाता है बीमारी फैलाने वाली खरपतवार गाजर घास से । सीहोर के हाउसिंग बोर्ड में बनने वाला ये रावण गाजर घास से ही बनाया जाता है । गाजर घास का विशाल पुतला बनाने के लिये पूरी कालोनी के लोग कई दिनों तक मेहनत करके कोलोनी के आस पास उग रही गाजर घास को उखाड़ते हैं और फिर उसको रावण के पुतले के अंदर भर कर दशहरे के दिन जला देते हैं । रावण की साज सज्‍जा भी गाजर घास से ही की जाती है । गाजर घास से सजा धजा रावण जलाने के पीछे दो कारण हैं एक तो कालोनी की सफाई हो जाती है और बीमारी फैलाने वाली गाजर घास से मुक्ति मिल जाती है साथ में खर्चा भी बचता है । वैसे भी रावण का मतलब तो बुराई का प्रतीक ही है और गाजर घास से होने वाले नुकसान की बात की जाए तो इससे बड़ा रावण और कौन होगा । 

मिट्टी का रावण

ये रावण भी मालवा के अंचलों में बनाया जाता है और इसको दशहरे के दूसरे दिन गांव की सीमा के बाहर लेजा कर पत्‍थरों से मार मार कर नष्‍ट किया जाता है । इस रावण को पत्‍थरों से फूट सकने वाला ही बनाया जाता है और फिर उसको लेजाकर गांव की सीमा के बाह खड़ा कर दिया जाता है । इसके बाद पुजारी राम की पूजा करता है और पुजारी का इशारा मिलते ही बच्‍चे बूढ़े हाथ में पत्‍थर लेकर रावण पर बरसाने लगते हैं । देखते ही देखते रावण ढेर हो जाता है ।

तो देखा आपने कैसे कैसे रावण होते हैं । मगर बात तो वही है इतने तरह के रावण हर साल मरते हैं फिर भी रावण खत्‍म नहीं होते । हो भी कैसे रावण तो राम के हाथों ही मरता है और आजकल तो रावण को मारने के लिये बनाए गए मंच पर नेता ही बैठते हैं तो रावण भला रावण के हाथ से ही कैसे मर सकता है ।

भारतीय क्रिकेट टीम पर राष्‍ट्रध्‍वज के अपमान के मुकदमा दर्ज सोमवार को आएगा फैसला

मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में भारत जोड़ो आंदोलन चलाने बाले श्री बलवीर तोमर ने भारत कि 20;20 क्रिकेट टीम पर राष्‍ट्रध्‍वज के अपमान का मुकदमा दर्ज किया है । ये मुकदमा सीजीएक श्री मित्‍तल की अदालत में दर्ज किया गया है श्री मित्‍तल ने श्री तोमर की अर्जी का स्‍वीकार कर उसपर बयान आद‍ि ले लिये हैं तथा सोमवार को वे अपना निर्णय सुनाने जा रहे हैं तथा सूत्रों की मानें तो निर्णया भारत की टीम के खिलाफ आने की संभवना है । श्री तोमर ने 20-20 टीम द्वारा कप जीतने के बाद ध्‍वज संहिता के उल्‍लंघन कर ध्‍वज का अपमान करने का मामला प्रस्‍तुत किया था जिसको स्‍वीकार कर लिया गया तथा अब सोमवार को फैसला आना है ।

इस कहानी को ज़रूर पढ़ें और जान लें कि ये कहानी फिल्‍मी बिल्‍कुल नहीं है ये एक मां बेटी की कहानी है

कभी कोर्ट में काम कर मोटी तनख्वाह कमाने वाली एलएलबी पास साठ वृद्धा अपनी तीस साल बच्ची के साथ दर -दर भटकने को मजबूर है । उसे प्रताड़ित कर भगा दिया गया । वृद्धा अपनी बच्ची का जिला अस्पताल में इलाज करा रही है । रूधे गले से अपनी मुंह जबानी सुनाने वाली वृद्धा लक्ष्मी वर्मा का जीवन चक्र संघषों से घिरी किसी फिल्मी कहानी से साथ वृद्धावस्था आश्रम जाना चाहती है । मूलतः इंदौर निवासी वृद्धा बताती है कि उसके जीवन का संघर्ष जवानी में ही शुरू हो गया था । जब मासूम सी बेटी पुष्पा ओर उसे छोड़ पति ने अन्य महिला का दामन संभाल लिया था । वह कहती कि इसके बाद उसने अपनी छोटी सी बच्ची के साथ नर्स का कोर्स किया और धार अस्पताल में एएनएम के रूप में नियुक्त हो गई । काय्र के साथ पढ़ाई भी जारी रखी तथा एलएलबी कर लिया । इसके बाद वह वापस इंदौर आ गई और इंदौर में ही कोर्ट में काय्र करने लगी । जीवन की गाड़ी अच्‍छी तरीके से चल रही थी । बच्ची पुष्पा भी जवान हो गई थी । उसने ने भी केंद्रीय रिजर्व पुलिस में नौकरी ज्वाइन कर ली । इसके बाद एकाएक ऐसा समय आया कि जहां बच्ची पुष्पा को भी नौकरी छोड़ने पड़ी वहीं उसे भी इंदौर छोड़ने पड़ी वहीं उसे भी इंदौर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा । बच्ची के साथ अज्ञात लोगों द्वारा किए गए हमले ने उसे सीहोर लाकर छोड़ दिया । इस तरह करीब चार साल पहले उसका सीहोर से नाता जुड़ गया । उसने अपने बच्ची का जिला अस्पताल में करीब चार माह इलाज कराया। जैसे -तैसे करीब चार माह इलाज कराया । जैसे -तैसे उसकी बच्ची ठीक हुई और उसे तथा उसकी बच्ची को भोपाल के आसरा वृद्धावस्था आश्रम भिजवा दिया गया भोपाल में भी वह अपनी बच्ची के साथ तीन साल रही । उसके बाद वहां से भी उसकी रवानगी हो गइ्र और उसे रायसेन के महात्मा गांधी वृद्धांश्रम में जगह मिली । रोते हुए वृद्धा ने बताया कि संघषों की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई । रायसेन के वृद्धावस्था आश्रम में भी उसे तथा उसकी बच्ची को प्रताड़ित किया जाने लगा । आश्रम में उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा । आश्रम प्रबंधन  द्वारा आश्रम छोड़ने के लिए मारपीट तक की गई । बच्ची पुष्पा के साथ भी मारपीट की गई। बच्ची की खराब हालत और प्रताड़ना से तंग आकर वह वापस सीहोर आ गई आर अपनी बच्ची को जिला अस्पताल में उसकी बच्ची पिछले २२ सितंबर से भर्ती है । लक्ष्मी कहती है कि वह वृद्धाश्रम में जाना चाहती है ,लेकिन लेकिन तीस वर्षीय लड़की पुष्पा को साथ रखने तीस वर्षीय लड़की पुष्पाको साथ रखने से मना करते है वह कहती है अपनी इकलौती बच्ची कोकहां छोड़े । लक्ष्मी को कोई भी वृद्धाश्रम में रखने को तैयार नहीं है ।

और आदिवासियों के बच्‍चों को दिया सीहोर के स्‍वास्‍थ्‍य विभाग ने एक अनोखा खिलोना, जंगल में जाकर फैंके गए सरकारी मुफ्त वितरण के कंडोम

condom भारत में सारी सरकारी योजनाओं की हालत क्‍या है ये तो सभी को मालूम है पर फिर भी कभी कभी ऐसा कुछ हो जाता है जिसको देखकर सर शर्म से झुक जाता है । सीहोर जिले के स्‍वास्‍थ्‍य विभाग ने ऐसा ही एक कृत्‍य किया है जो शर्मनाक तो है ही साथ ही सरकारी संपत्‍ती के हाल का बयान भी करता है । जनसंख्‍या नियंत्रण के लिये सरकारी अस्‍पतालों में मुफ्त में वितरण के लिये लाखों की संख्‍या में कंडोम भेजे जाते हैं । ये कंडोम उसके बाद स्‍वस्‍थ्‍य विभाग द्वारा स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों के माध्‍यम से लोगों में वितरण करवाए जाते हैं और उसके लिये बाकायदा टारगेट आदि दिया जाता है । मगर सीहोर जिले के स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों ने वितरण का एक अच्‍छा तरीका ये निकाला कि सारे कंडोम लेजाकर नादान के घने जंगलों में फैंक दिये । जंगलों के हवाले करने के परछे एक कारण ये भी था कि जब भी ऊपर से आला अफसर दौरे पर आते हैं तो अस्‍पतालों में लगे हुए कंडोम की पेटियों के ढेर को लेकर आपत्‍ती दर्ज करते हैं कि इनका वितरण क्‍यों नहीं किया जा रहा हे । कंडोम की पेटियों को जंगलों के हवाले करने के बाद ये कर्मचारी निश्चिंत हो गए कि अब तो लग गए ठिकाने सारे कंडोम । मगर जंगल में रहने वाले आदिवासियों के बच्‍चों को तो मानो खिलौना मिल गया और इनको उठाकर इनके साथ खेल करना प्रारंभ कर दिया है । हजारों की संख्‍या में पड़े कंडोम बच्‍चों के खेले का साधन बने हुए हें और वहां से गुजरने वाली यात्री बसों के यात्री जब इन बच्‍चों को देखते हैं तो स्‍वस्‍थ्‍य विभाग की बुद्धी पर तरस खाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते । आदिवासी बच्‍चों ने बताया कि ये पेटियां एक सफेद रंग की गाड़ी फैंक कर गई है और इस तरह की पेटियां अंदर जंगलों में काफी पड़ी हैं । चाहे जो भी इसके लिये जवाबदार हो पर एक बात तो सच है कि भारत में जिस भी चीज के साथ सरकारी लग जाता है फिर उसकी हालत क्‍या होती है ये नादान के जंगलों में पता चल जाता है ।

आइये आपको सैर करवाते हैं एक अनोखे मेले की जी हां ये है 'भूतों का मेला' एक मेला जहां पर पितृमोक्ष अमावस की रात को आते हैं भूत और भूतों के विशेषज्ञ

भारत एक विचित्रताओं से भरा हुआ देश है यहां के रीत रिवाज़ परंपराएं और त्‍यौहार शायद विश्‍व में सबसे अनूठे होते हैं । कुछ लोग अंधविश्‍वास कहते हैं तो कुछ इनको ढोंग धतूरे भी कहते हैं मगर फिर भी ये परंपराएं वर्षों से चली आ रही हैं और बिना किसी परिवर्तन के चली आ रही है । अब जैसे मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में पितृमोक्ष अमावस्‍या को लगने वाले भूतों के मेले की ही बात करें तो ये अपने आप में ही अनोखा मेला है जहां पर केवल भूत और उनके विशेष्‍ज्ञ ही आते हैं और ये मेला भी सबसे बड़ी अमावस्‍या पितृमोक्ष अमावस को लगता है और शायद इस मामले में भी अनूठा है कि ये अपने आप में एक ही मेला है जो आधी रात को शुरू होता है और सुबह होने के पहले खत्‍म हो जाता है । सही भी तो है अगर मेला भूतों का हो तो उसे दिन में लगाया भी कैसे जा सकता है । वो तो रात में ही लगेगा ।

ये मेला जिस जगह पर लगता है वो जगह ही अपने आप में कम सुंदर नहीं है दरअस्‍ल में सीहोर जिले के नादान के पास स्थित कालियादेव स्‍थान पर ये मेला लगाया जाता है । ये स्‍थान काफी सुरम्‍य है । यहां पर सीप नदी चट्टानों के बीच से झरने का रूप लेकर एक गहरे कुंड में गिरती है ऊपर से गिरती हुई सीप नदी का शोर और उस पर भूतों का मेला वाह क्‍या बात है । कुंड का गहरा हरा पानी उसकी गहराई का कुछ कुछ आभास देता है । इस कुंड के बारे में भी कई सारी बातें प्रचलित हैं कुछ लोग कहते हैं कि इस कुंड की गहराई का कोई छोर नहीं मिलता है।  यहीं पर पास की पहाड़ी पर एक गांव के अवशेष भी मिलते हैं तथा ये पुराने गांव मंडलगढ़ के अवशेष हैं जो प्रचलित मान्‍यताओं के अनुसार रूपमती ( एतिहासिक पात्र बाज बहादुर और रूपमती )  के ननि‍हाल के अवशेष हैं । कहा ये भी जाता है कि जब बाज बहादुर का पड़ाव यहां पर डला हुआ था तब ननि‍हाल आई रूपमती को पहली बार बाज बहादुर ने यहीं पर देखा था ।

अब बात करें भूतों के मेले की दरअसल में इसको भूतों का मेला इसलिये कहा जाता है कि यहां पर पितृमोक्ष अमावस की रात को वो सारे लोग बड़ी संख्‍या में पहुंचते हैं जिनको प्रेतबाधा की शिकायत होती है । और साथ में ही पहुंचते हैं प्रेत उतारने वाले विशेषज्ञ और रात भर प्रेतों की पेशियां होती हैं विशेषज्ञों के सामने बहस होती हैं और फिर निर्णय होते हैं इसी बीच बड़ी संख्‍या में आए हुए लोगों के कारण इस स्‍थान पर एक मेला भी रूप ले लेता है जिसको कहा जाता है भूतों का मेला । वो मेला जहां पर भूत आते हैं । सुबह होने से पहले ही ये मेला खत्‍म हो जाता है और सारे भूत अपने घरों को लौट जाते हैं । कुछ को प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है तो कुछ वैसे ही चले जाते हैं । सारी रात यहां पर ग़ज़ब का ड्रामा होता है भूतों की बहस उनको प्रसन्‍न करने के लिये मदिरा और अन्‍य चीजों का चढ़ावा विशेषज्ञों की कोशिशें । इन सब को दम साध कर देखते हैं वे लोग जो भूतों के साथ आए होते हैं । सारी रात का ड्रामा सुबह होने से पहले ही समाप्‍त हो जाता है और सुबह केवल रात के मेले के अवशेष ही रह जाते हैं । तो अगर आप को भी देखना हो ये अनूठा भूतों को मेला तो पांच दिन बाद पड़ रही पितृमोक्ष अमावस को चले आइये मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के कालियादेव में । ( ये लेख अंधविश्‍वास को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से नहीं बल्कि केवल सूचनाप्रद पत्रकारिता के उद्देश्‍य से लिखा गया है लेखक की सहमति इस तरह के आयोजनों के साथ नहीं है )

झोंपड़ी में रहता है, टेलीफोन कभी देखा नहीं मगर बिल आया है पांच हजार का और बिल भी ग़लत नहीं है सही आया है, कैसे

मज़ेदार समाचार कब कहां बन जाएं कोई नहीं कह सकता और उस पर ये नई तकनीक इसकी तो बलिहारी ही है । अब जैसे झुग्‍गी में रहने वाले रामचरण को जब डाक से टेलीफोन का बिल मिला और वो भी पांच हजार का तो उसके तो होश ही उड़ गए । और पूरे मामले में सबसे मजे की बात ये है कि बिल कतई ग़लत भी नहीं है मतलब टेलीफोन विभाग की लापरवाही से आ गया हो ये भी नहीं है तो फिर रहस्‍य क्‍या है इसका ।
रामचरण की झुग्‍गी पर जब डाकिया पांच हजार का टेलीफोन का बिल लेकर पहुचा तो रामचरण के तो होश ही उड़ गए । मध्‍य प्रदेश्‍ा के सीहोर जिला मुख्‍यालय क इछावर खंड के रामचरण ने जब टेलीफोन आफिस जाकर पता किया तो पता चला कि फोन तो उसीके नाम से है और उसके राशन कार्ड की फोटो कापी भी लगी है साथ्‍ा में रामचरण बड़ा हैरान हुआ कि ये क्‍या मामला है । घर जाकर पता किया तो ज्ञात हुआ कि पड़ोस का रहने वाला कमलेश राशन कार्ड पर शक्‍कर दिलाने के लिये राशन कार्ड मांग कर ले गया था और उसने वहीं उसकी फोटो कापी करवा के फोन कनेक्‍शन लेने में उपयोग कर लिया । और वो ही मज़े से एफडब्‍ल्‍यूटी तरंग देलीफोन का मजा ले रहा था बिल विल तो कौन भरता जब फोन ही अपने नाम से नहीं हो और पता चला कि एक माह में ही पांच हजार के ठोंक दिये । मामला पताचलते ही रामचरण पुलिस के पास पहुच गया और फरियाद की कि साब मुझे इंसाफ चाहिये और पुलिस ने भी इंसाफ कर दिया वो ये कि पहले तो कमलेश पूरा बिल भरेगा और फिर फोन रामचरण को दे देगा कि वो उसका चाहे जो करे । मगर रामचरण तो अड़ा है धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज करवाने के लिये ।

एक कलियुगी साधू बाबा की कहानी : प्रेमिका के साथ मिलकर किया आठ साल की लड़की का अपहरण, हत्‍या कर लाश को बहा दिया हरीद्वार की गंगा में और मौज कर रहा था

जिन साधू महात्‍माओं पर लांग विश्‍वास करते हैं वे ही समय आने पर ऐसे ऐसे खेल दिखाते हैं कि चोर डाकू उच्‍क्‍कों को भी मात कर देते हैं । मगर हैरानी की बात है कि फिर भी लोगों की आंखें नहीं खुलतीं हैं और वे पूर्व की तरह से ही इन साधू महात्‍माओं पर विश्‍वास करते रहते हैं । हत्‍या चोरी बलात्‍कार ऐसा कौन सा मामला है जो साधू बाबाओ के साथ नहीं जुड़ा हो फिर भी ये श्रद्धा के पात्र बने ही रहते हैं ।
मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले की नसरुल्‍लागंज तहसील में एक अजीब सा मामला सामने आया है । यहां के ग्राम मंडी स्थित नर्मदा मंदिर में बाबा गोविंद दास के साथ एक अन्‍य बाबा के विवाद होने पर ग्रामीणों की सूचना पर जब पुलिस ने बाबा ग्राविंद दास को गिरफ्तार किया तो उसके पास से एक देसी कट्टा और बारह बोर के जिंदा कारतूस निकले थे । पुलिस की पूछताछ में बाबा ने अपने आप को नक्‍सली होना बताया और कहा कि नक्‍सली होने के कारण ही उसने अपने पास में हथियार रखे हुए थे । नक्‍सली होने की सूचना मिलते ही हड़कंप मच गया और काफी जिलों की पुलिस ने उससे पूछताछ की मगर कोई ठीक परिणाम नहीं सामने आया । जब पुलिस ने बाबा को पकड़ा तो उसके साथ में एक महिला उर्मिला कलाल भी थी । ये बाबा पांच छ: महीनों से मंडी के उस मंदिर में रह रहा था अपनी प्रमिका के साथ में । पंलिस ने इसके साथ जब पूछताछ की तो उसने अपना नाम जीवराखनलाल मालेकर ग्राम मर्दा दुर्ग छत्‍तीसगढ़ का रहने वाला अपने आप को बताया । उसने ये भी बताया कि पैसों के लिये पिछले बीस सालों से वो साधू का भेष रखकर घूम रहा है और उसके दलम नाम के नक्‍सली संगठन के साथ भी संबंध हैं । इंटेलिजेंस की टीम ने जब बाबा के साथ सख्‍ती के साथ पूछतछ की तो एक आठ साल की लड़की के अपहरण की बात भी सामने आ गई और फिर वहीं से सामने आई वो पूरी कहानी जो हैंरत में डालने वाली थी । बाबा ने अम्‍बागढ़ राजनांवदगांव से आठ साल की बालिका कविता का अपहरण किया और उसे दिलली ले गया । दिल्‍ली में कुछ समय रहने के बाद वो कविता को हरीद्वार ले गया और वहीं पर उसने कविता का बेरहमी के साथ कत्‍ल कर दिया । और कविता की लाश को पतित पावनी गंगा में बहा दिया । इसके बाद वो गुजरात चला गया । वहां से वो सीहोर जिले की नसरुल्‍लागंज में पहुचा जहां पर वो पिछले कुछ महीनों से रह रहा था । बाबा पर दुर्ग के एक थाने में मोटर साइकल चोरी का मामला पहले से ही दर्ज है वहीं उसकी प्रमिका उर्मिला कलाल पर बालाघाट में एक पकरण चल रहा है । बाबा के द्वारा हत्‍या का मामला उजागर होने के साथ ही छत्‍तीसगढ़ पुलिस द्वारा उसको ले जाने के लिये प्रोटैक्‍शन वारंट लिया जा रहा हे ताकि उसके खिलाफ हत्‍या का मुकदमा दर्ज करवाया जा सके । नक्‍सली का मामला सामने आने के साथ ही सीहोर के साथ ही कई सारे जिलों की पुलिस ने बाबा के साथ पूछताछ की थी । पुलिस के मुताबिक बाब इतना शातिर है कि वो कब क्‍या बयान दे कुछ कहा नहीं जा सकता । वो हत्‍या के लिये कविता के परिजनों को ही दोषी बता रहा है । बहरहाल बाबाओं और ढोंगियों द्वारा हत्‍या बलात्‍कार के मामले पहले भी आते रहे हैं और आगे भी आते रहेंगें मगर भारत की अंध श्रद्धालू जनता की आंख्‍ें न पहले खुलीं थीं न आगे खुलेंगीं । फिलहाल बाबा की प्रेमिका को बालाघाट पुलिस अपने साथ ले गई है और बाबा नसरुल्‍लागंज पुलिस की मेहमानी कर रहा है और पुलिस बाबा के मोबाइल काल्‍स की डिटेल्‍स से पूरी कहानी सामने लाने का प्रयास कर रही है ।

और इन हजारों रहस्‍मय कव्‍वों से परेशान है हस्‍पताल प्रशासन भगाने के लिये पीपे और घंटियां टांगें जा रहे हैं पेड़ों पर

कव्‍वे भी अब वैसे तो उतने देखने में नहीं आते जैसे पहले आते थे आजकल तो श्राद्ध पक्ष में लोग कववों को खिलाने के लिय उनको ढूंढते रहते हैं कि कहीं कव्‍वा मिल जाए तो उसको खाना खिलाया जा सके पर मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिला मुख्‍यालय की इछावर तहसील के अस्‍पताल में एक ऐसा भी इमली का पेड़ है जिसमें जाने कैसा जादू हैं कि हजारों हजार कव्‍वे रोज यहां पर आते हैं । इन कववों से परेशान हस्‍पताल प्रशासन ने इनको भगाने के लिये काफी प्रयास किये हैं । पेड़ पर घंटियां टांग दी गई हैं खाली कनस्‍तर लटका दिये गए हैं ताकि रात को जब हजारों कव्‍वों का झु़ड इस रहस्‍यमय इमली के पेड़ पर उतरता है तों कनस्‍तर पीट कर या घंटियां बजा कर उनको भगाया जा सके । सूरज ढलते ही कौवों के झु़ड यहां आना शुरू हो जाते हैं । कौवे सुबह कहां जाते हैं कुछ पता ही नहीं चलता मगर ाअगली णाम वापस आ जाते हैं । हस्‍पताल प्रशासन के अनुसार हजारों की संख्‍या में आने वाले कववों के कारण मरीजों को कफी परेशानी होती हैं और साथ ही परिसर में गंदगी भी होती है । इसी के कारण ये कनस्‍तर टांगने और घंटियां बांधने का काम किया गया है । शाम होते ही हस्‍पताल के चपरासी बारी बारी से घंटियां और पीपे बजाने का काम करने लगते हैं और ये सिलसिला रात तक जारी रहता है । पेड़ काफी पुराना हे अत: उसको काटा नहीं जा सकता इसलिये मजबूर होकर ये कदम उठाना पड़ा है । शाम से जो पीपे और घंटियां बजाने का सिलसिला शुरू होता है तो रात दस बजे तक चलता रहता है । इमली का पेड़ जिस पर हजारों कव्‍वे शाम को रहस्‍यमय तरीके से आकर सुबह गायब हो जाते हैं वो इन दिनों घंटियों और पीपों के कारण किसी मंदिर का पेड़ नजर आ रहा है ।