बहुत अच्छा खेले लड़कों (पंकज सुबीर)

बहुत अच्छा खेले लड़कों  (पंकज सुबीर)

खेलों का आविष्कार मानव ने जीत या हार के लिए नहीं किया था, अपने मनोरंजन के लिए किया था। और यह बात एकदम सच है कि बीते 46 दिनों में सभी टीमों ने मिल कर दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया। रोहित, गिल, विराट, श्रेयस और राहुल ने बल्ले से तो शामी, बुमराह, सिराज, कुलदीप और जडेजा ने गेंद से हम लोगों को रोमांचित बनाये रखा। आप क्यों 19 अक्टूबर को ही स्मृतियों में बनाये रखना चाहते हैं ? उससे पहले के मैचों को क्यों नहीं याद रखना चाहते ? याद रखिए शामी, सिराज और बुमराह द्वारा बोल्ड होते, स्लिप पर कैच होते और पगबाधा होते बल्लेबाज़, रोहित, विराट, गिल, राहुल और श्रेयस द्वारा लगाये गये लम्बे-लम्बे छक्के, शतक और अर्धशतक। लेकिन इसमें हमारी ग़लती नहीं है, हमारी कंडिशनिंग की ग़लती है। हमारी फ़िल्मों में हमें दिखाया जाता है कि फ़िल्म के अंत में नायक विजयी रहता है और नायक के विजय भाव को अपने अंदर बसा कर हम सिनेमा हॉल से बाहर निकलते हैं। असल में फ़िल्म देखते समय हम नायक के साथ एकाकार हो जाते हैं, जब अंत में नायक जीतता है, तो हमें ऐसा लगता है कि नायक नहीं हम ही जीते हैं। यदि किसी फ़िल्म में नायक अंत में जीतता नहीं है, तो वह फ़िल्म फ़्लाप हो जाती है। भले ही फ़िल्म ने पूरे समय दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया हो। श्रीदेवी और कमल हासन की फ़िल्म "सदमा" को याद कीजिए। फ़िल्म कमाल की थी, मगर दर्शकों को यह पसंद नहीं आया कि अंत में कमल हासन को बिना पहचाने श्रीदेवी रेल में बैठ कर चली जाती है, कमल हासन स्टेशन पर अपने आपको याद दिलाने के लिए बंदर की तरह नाचता रह जाता है। 19 अक्टूबर के अंत से पूरे विश्वकप के उल्लास को कम मत कीजिए, हमारी टीम ने हमारा भरपूर मनोरंजन किया है बाक़ी मैचों में, यह बात याद रखिए।

हर दिन हर किसी का नहीं होता, कल भारतीय टीम का दिन नहीं था। अब दिन होता तो ये 240 रन भी बहुत थे डिफेंड करने के लिए। तब, जब आपके पास सारे विश्वस्तरीय गेंदबाज़ हों। मुझे याद आ रहा है कि जब मैं इछावर में रहता था और अपनी क्रिकेट टीम "प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र इछावर" का कप्तान भी था। तब हम 20-20 मैच ही खेलते थे। एक बार हम इछावर के पास गाँव ब्रजेश नगर में टूर्नामेंट का फाइनल खेल रहे थे और पहले बैटिंग करते हुए हम 18 रन पर आल आउट हो गये थे। गेंद ज़मीन पर पड़ने के बाद ज़मीन से चिपकती हुई आ रही थी। हमने सोचा कि अब तो क्या जीतेंगे, मगर हमारे स्पिन बॉलर मनीष ने मुझसे कहा- "छुट्टू (मेरा घर का नाम, इछावर के दोस्त आज भी मुझे पंकज सुबीर नाम से नहीं जानते, सब छुट्टू नाम से ही जानते हैं ) चिंता की बात नहीं है, उनकी गेंदें सुर्रा (ज़मीन से चिपकती हुई) जा रही हैं, तो हमारी भी जायेंगी।" मनीष सुर्रा विशेषज्ञ था और दिन हमारा था और सामने खेल रही सीहोर की मज़बूत टीम को हमारी छोटे क़स्बे इछावर की टीम ने 9 रन पर आल आउट कर ट्रॉफ़ी जीत ली थी। कल भारत का दिन नहीं था, कल का दिन ऑस्ट्रेलिया का था। होता तो बुमराह, शामी, सिराज पहले पन्द्रह ओवर में ही मैच को हमारे पक्ष में निर्णायक रूप से झुका देते। कोई भी हारने के लिए नहीं खेलता, सभी जीतने के लिए ही खेलते हैं, मगर खेल का नियम है कि जीतेगा कोई एक ही।

अति महत्त्वाकांक्षी माता-पिता के बच्चे जब प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होते हैं, तो वह असल में माता-पिता की असफलता होती है। माता-पिता जब अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों के कंधों पर रख देते हैं तो बच्चों के क़दम लड़खड़ा जाते हैं। कल की हार टीम की हार नहीं है, हम क्रिकेट प्रेमियों की हार है, जिन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ टीम पर रख दिया। हमें पागलों की तरह केवल और केवल जीती ही चाहिए थी। भारत में मैच, सवा लाख से अधिक पगलाए हुए दर्शकों की स्टैंड्स में उपस्थिति, इतने कारण थे कि यह तो होना ही था। एक और घटना सुनाता हूँ, एक बार हमारी टीम इछावर की प्रतिष्ठित "मुरलीधर जोशी स्मृति प्रतियोगिता" के फाइनल में पहुँच गयी थी। मैच इछावर में ही था, पापा की पोस्टिंग वहाँ ब्लॉक मेडिकल ऑफ़िसर के रूप में थी। टीम में हम सब अस्पताल कैम्पस के ही बच्चे थे, जिनके पिता या माँ पापा के अधीनस्थ कार्यरत थे। पापा हौसला अफ़ज़ाई के लिए मैच देखने पहुँच गये। हम दोनों भाइयों के लिए पापा और बाक़ी बच्चों के लिए बड़े साहब दर्शकों में आ चुके थे। हम इतने नर्वस हुए कि जीतने की पूरी संभावनाओं के बाद भी हार गये। सवा सौ करोड़ से ज़्यादा लोगों की उम्मीदों का बोझ ग्यारह लड़कों पर था, यह तो होना ही था।

मैंने अभी तक जितने भी विश्वकप देखे हैं उनमें यह सबसे रोमांचक और सबसे दर्शनीय था। (जबकि मैं आईपीएल के कारण क्रिकेट देखना लगभग छोड़ चुका था।) इसकी बहुत सी बातें यादों में बनी रहेंगी और उनकी बातें हम करते रहेंगे। आइए इंतज़ार करते हैं 2027 के विश्व कप का। शायद उसमें विराट, रोहित, शामी और बुमराह नहीं हों, लेकिन उनकी जगह दूसरे होंगे। 'कल और आयेंगे नग़्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले', खिलाड़ी असफल होने के बाद जब मैदान पर रोता है, तब वह असफलता पर नहीं रो रहा होता है, वह असल में हम दर्शकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने की निराशा के कारण रो रहा होता है। हमें ही बढ़ कर कहना होगा "कोई बात नहीं बच्चों, कप हाथ में नहीं आया कोई बात नहीं, पर हमारे लिए तुम ही विजेता हो।" आइए अपने खिलाड़ियों द्वारा किये गये उत्कृष्ट प्रदर्शन का उल्लास मनाते हैं। इनमें से बहुत से खिलाड़ियों का यह अंतिम विश्वकप है, आइए उनको कहते हैं कि खेल का अर्थ आनंद होता है और इस विश्वकप में आपके कारण हमने भरपूर आनंद लिया। 2027 में जब हम विश्वकप देख रहे होंगे तब आपको बहुत मिस करेंगे। बहुत अच्छा खेले लड़कों, बहुत अच्छा खेले। हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है। कुछ दिन आराम करो, फिर मिलते हैं।  - पंकज सुबीर

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वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका विभोम-स्वर का वर्ष : 8, अंक : 31, अक्टूबर-दिसम्बर 2023 अंक

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शोध, समीक्षा तथा आलोचना की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका शिवना साहित्यिकी का वर्ष : 7, अंक : 28, त्रैमासिक : जनवरी-मार्च 2023 अंक

मित्रों, संरक्षक एवं सलाहकार संपादक, सुधा ओम ढींगरा, संपादक पंकज सुबीर, कार्यकारी संपादक, शहरयार, सह संपादक शैलेन्द्र शरण, आकाश माथुर के संपादन में शोध, समीक्षा तथा आलोचना की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका शिवना साहित्यिकी का वर्ष : 7, अंक : 28, त्रैमासिक : जनवरी-मार्च 2023 अंक अब उपलब्ध है। इस अंक में शामिल हैं-  आवरण कविता / डॉ. वंदना शर्मा। संपादकीय / शहरयार। व्यंग्य चित्र / काजल कुमार। शोध आलोचना- एब्सर्ड नाटक और 'तीन अपाहिज’, संज्ञा उपाध्याय, वंचितों के प्रवक्ता- डॉ. सचिन गपाट। केंद्र में पुस्तक- ज़िंदगी की सबसे सर्द रात, डॉ. राकेश शुक्ल / कल्पना मनोरमा, कृष्ण बिहारी। पुस्तक समीक्षा- मेरी माँ में बसी है, सत्यम भारती / डॉ.भावना, सूखे पत्तों पर चलते हुए- राज बोहरे / शैलेन्द्र शरण, मन की तुरपाई- अदिति सिंह भदौरिया / सुधा ओम ढींगरा, अपने समय के साक्षी- रितु सिंह वर्मा / नंद भारद्वाज, पेड़ तथा अन्य कहानियाँ- अंतरा करवड़े / अश्विनीकुमार दुबे, सफ़ह पर आवाज़- कैलाश मंडलेकर / विनय उपाध्याय, बन्द कोठरी का दरवाज़ा- अनिता रश्मि / रश्मि शर्मा, सामाजिक अध्ययन नवचार- गोविन्द सेन / प्रकाश कान्त, बुद्धिजीवी सम्मेलन- गोविन्द सेन / पंकज सुबीर, दुनिया मेरे आसपास- प्रकाश कान्त / एकता कानूनगो बक्षी, नक़्क़ाशीदार केबिनेट- कमल चंद्रा / सुधा ओम ढींगरा, काला सोना- डॉ. एस. शोभना / रेनू यादव, धापू पनाला- अखतर अली / कैलाश मंडलेकर, पोटली- दीपक गिरकर / सीमा व्यास, एक गधा चाहिए- प्रो.नव संगीत सिंह / डॉ. दलजीत कौर, पाँचवाँ स्तंभ- ब्रजेश कानूनगो / जयजीत ज्योति अकलेचा। शोध आलेख- राजनारायण बोहरे के उपन्यासों में ग्राम्य जीवन- डॉ. पद्मा शर्मा, मधु कांकरिया की कहानी कला और उनका वैचारिक संसार- डॉ. इंदू कुमारी, संजीव के 'फाँस' उपन्यास में किसान जीवन- श्वेता जायसवाल, शिवानी की कहानियों में नारी-चरित्र- महेन्द्री कुमारी, किन्नर समाज : तीसरी दुनिया की तीसरी ताली- डॉ. अर्जुन के. तडवी, प्रवासी और भारतीय साहित्य सृजन में गांधीवाद की प्रासंगिकता- अविनाश कुमार वर्मा- आंजणा चौधरी जाति का समाज जीवन, पटेल आकाश कुमार संजय भाई, आधुनिक हिन्दी उपन्यासों में कृषि संस्कृति- गौरव सिंह, कक्षा 12 में अर्थशास्त्र विषय के पाठ्यक्रम का विश्लेषणात्मक अध्ययन- शोध श्रीमती शक्ति साहू, ओरछा के भित्ति चित्रों का चित्रात्मक अध्ययन, भक्ति अग्रवाल, संत दरियाव की वाणी : वर्तमान प्रासंगिकता, मनीष सोलंकी, कुबेरनाथ राय के निबंधों में वर्णित राम- सुजाता कुमारी, राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भागीदारिता- एवं गाँधीजी का प्रभाव, डॉ. कोमल आहिर, मास मीडिया का समाज में प्रभाव- पटेल धाराबेन पी., श्रीमद्भागवत में योग-साधना की आध्यात्मिक महत्ता- डॉ. ज्योत्सना सी रावल, सल्तनतकाल में भारतीय संस्कृति का मूल्यांकन, संदीप कुमार राजपूत, Diabetes, test, Diagnosis Diabetes Risk & Care- Dr. Chhayaben R. Suchak, Programme To Increase The Aptitude For English- Katara Sejalbahen Nathubhai, Social Value of Parents and Children in Joint and Nuclear Families- Dr. Harshadkumar R. Thakkar, Exploring Indian Mythology in Modern Scenario- Patel Sitaben Kalubhai, Freedom Of The Press And The Human Rights- Dr Manishkumar Ramanlal Pandya, People In The Raj Quartet- A Study- JyotiYadav, Public-Private Sector Composition In Indian Economy- Nidhi Tewatia, Impact of Goods and Services Tax in Retail Sector- VVV. Satyanarayan डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी, सुनील पेरवाल, शिवम गोस्वामी। आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्करण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
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वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका विभोम-स्वर का वर्ष : 7, अंक : 28, जनवरी-मार्च 2023 अंक

मित्रो, संरक्षक तथा प्रमुख संपादक सुधा ओम ढींगरा एवं संपादक पंकज सुबीर के संपादन में वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका विभोम-स्वर का वर्ष : 7, अंक : 28, जनवरी-मार्च 2023 अंक अब उपलब्ध है। इस अंक में शामिल है- संपादकीय। मित्रनामा। साक्षात्कार- नए कवियों में स्थापना की हड़बड़ी और अपने पुरखों-पूर्वजों-अग्रजों के लिखे को अनदेखा करने की प्रवृत्ति है, वरिष्ठ कवि वसंत सकरगाए से शिवना साहित्यिकी के सह-संपादक आकाश माथुर की बातचीत। विस्मृति के द्वार से- किस्सा, किस्सों और उसके पीछे- पीछे मैं, गीताश्री। कथा कहानी- बा-इज़्ज़त बरी, रेनू यादव, रुके क़दम, यूँ आगे बढ़ें...- उषा राजे सक्सेना, जॉन की गिफ़्ट- पुष्पा सक्सेना, चबूतरा- विनीता राहुरीकर, खामोशी का साझापन- डॉ. अमिता प्रकाश, एक बूँद समंदर- मीनाक्षी दुबे, मैं मधु नहीं- राजकुमार सिंह, वसीयत- अनुजीत इकबाल। भाषांतर- ज़ख़्मी पंखों की फड़फड़ाहट, पंजाबी कहानी, मूल लेखक : अजमेर सिद्धू, अनुवादकः सुभाष नीरव, सौदा- मराठी कहानी, मूल कथाकार: रा. रं. बोराडे, अनुवादक : डॉ. सचिन गपाट। ललित निबंध- नव पर नव स्वर दे.., विनय उपाध्याय, अनंत, फेसबुक और मेटावर्स- डॉ. गरिमा संजय दुबे। शहरों की रूह- स्रेत्येंका-सदियों को समेटते चंद रास्ते, प्रगति टिपणीस। व्यंग्य- मठ हाउस, दिलीप कुमार, साहित्यकार बनने के नुस्खे- चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव, कुत्ते की मौत- हनुमान मुक्त, बीमार रहने के शौकीन लोग- उर्दू व्यंग्य, मूल रचना – कृष्ण चंदर, अनुवाद - अखतर अली, बस एक चुप-सी लगी है..- कमलेश पांडेय। लघुकथा- मेरा बेटा, मेरा लाल- डॉ. वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज, योगदान- टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"। संस्मरण- डॉ. राजेंद्र मिश्र : पॉलीटिक्स से बेख़बर- ब्रजेश श्रीवास्तव। आलेख- हिन्दी ग़ज़ल में समकालीनता, डॉ. भावना। आख़िरी पन्ना। आवरण चित्र- पंकज सुबीर, डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी,  शहरयार अमजद ख़ान,  सुनील पेरवाल, शिवम गोस्वामी, आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्क़रण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
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