अन्न के बारे में कहा जाता है कि वो हमारे जीने के लिये सबसे आवश्यक चीज है और उसके बिना जीने की कल्पना ही कम से कम आज के समय में तो नहीं की जा सकती है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उसके बिना जी रहे हैं बल्कि स्वस्थ जिंदगी को जी रहे है । जैसे मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय सीहोर के कृषी महाविद्यालय में प्रोफेसर के के मिश्रा को ही लें तो वे भी कुछ ऐसी ही जिन्दगी को जी रहे हैं । 50 वर्षीय श्री मिश्रा जब 25 वर्ष के थे तब एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे और उसी समय जाने किस कारण से उन्होंने संकल्प ले लिया कि अब वे अन्न नहीं खाएंगें । और दूध तथा फल के आधार पर ही अपना आने वाला जीवन व्यतीत करेंगें । और तब से लेकर आज तक श्री मिश्रा केवल दूध तथा फल के ही सहारे पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इस बीच में कई बार उनको अपने संकल्प के कारण परेशानियां भी आईं लेकिन वे अपने संकल्प पर डटे रहे और उसी पर चलते रहे। बीते पच्चीस सालों में वे कभी डाक्टर के पास भी नहीं गए ऐसा उनका कहना है । उधर डाक्टरों का कहना है कि शरीर की जो जरूरतें हैं उनके लिये अन्न की आवश्यकता तो होती है ऐसे में श्री मिश्रा केवल दूध और फल के सहारे ही किस तरह से अपने आप को स्वस्थ रखे हुए हैं ये विश्लेषण की बात है । 1983 में अन्न का त्याग करने वाले और तब से ही केवल फलों पर जीवन व्यतीत करने वाले श्री मिश्रा को अब 25 साल फलाहार पर हो चुके हैं आज वे 50 साल के हैं लेकिन उनकी चुस्ती फुर्ती ऐसी है जो किसी नौजवान को भी मात कर दें । 50 साल में उनकी चुस्ती फुर्ती किसी 20 साल के नौजवान की तरह है वे अपने सारे काम स्वयं ही करते हैं और कभी डाक्टर के पास नहीं जाते हैं । उनके घर में बाकी लोगों के लिये तो बाकायदा भोजन बनता है लेकिन श्री मिश्रा के लिये फलाहार की व्यवस्था की जाती है और ऐसा पिछले 25 सालों से हो रहा है ।
आई पी एल का वार और एकता कपूर का परिवार
बहुत दिनों से मैं सोच रहा था कि कोई तो ऐसा कार्यक्रम आए जो इन एकता कपूर के धारावाहिकों से मुक्ति दिलवाए । कहते हैं कि ईश्वर से सच्चे दिल से जो कुछ भी मांगों वो मिल जाता है और हुआ भी आखिरकार आईपीएल के रोमांच के आगे एकता कपूर के लिजलिजे पात्रों ने दम तोड़ ही दिया और आई पी एल ने अपने आप को स्थापित कर लिये हालंकि ये कुछ ही दिन के लिये हुआ हे पर मैं तो अपनी कह रहा हूं कि मेरे घर में ऐसा शायद कई सालों बाद हो रहा है कि महिलाएं अब कुछ घर के काम पर भी रात के समय ध्यान दे रहीं हैं । अब रात को मुझे गर्म खाना मिलने लगा है । मनुहार कर कर के खाना खिलाया जा रहा है कि एक तो और लो कितने दुबले हो गए हो । ऐसा इसलिये क्योंकि टीवी पर बच्चों ने कब्जा कर लिया है । पहले तो ये होता था कि आखिरकार बच्चे हार जाते थे पर इस आई पी एल ने तो खेल ही बदल दिया है । एक तो ये कि बच्चों की छुट्टियां चल रहीं हैं और दूसरे आईपीएल का रोमांच दोनों ने एकता कपूर की तुलसी पार्वती और अजीब अजीब सी शक्लों वाली खलनायिकाओं की धुलाई कर दी है । कभी तो होना ही था तो अब हो गया है । अब कुछ लोग कह रहे हैं कि ये तो तात्कालिक रूप से हो रहा है आईपीएल जाने के बाद क्या होगा । तो मेरा कहना ये है कि ठीक है ये तात्कालिक रूप से हो रहा है पर हुआ तो है । और एक बात जो मुझे अच्छी लग रही है इन मैचों में वो ये कि टेंशन नहीं है केवल उल्लास है । पहले मैंचों को देखने में भारत के हार जाने का टेंशन ( जो अक्सर होता भी था ) लगा रहता का पर अब तो कोई नृप होए हमें क्या हानि वाली बात है । अपन तो देखते रहो । कोई भी जीते या हारे अपने को क्या फर्क पड़ता है । मतलब ये कि दिन भर आफिस में सर खपाने के बाद जब घर लौटो तो तुलसी का और पार्वती का टेंशन या फिर ये कि आखिरकार ये पत्नी है किसकी अनुराग बसु की या मिसटर बजाज की । और फिर ये कि आखिरकार ये जो बच्चा है ये है किसका पार्वती और ओम का या पार्वती और उसके दूसरे पति का या ओम और उसकी दूसरी पत्नी का । मुझे तो कभी कभी लगता है कि एकता कपूर के बारे में भी ..................... । खैर और उस पर ये कि वो कौन सी दवा है जिसको खाने के बाद पार्वती जब बीस साल बाद लौटती है तो पहले से ज्यादा जवान हो जाती है ( ये सब बातें उन अनुभवों के आधार पर कह रहा हूं जो खाना खाने के दौरान सामने चल रहे टीवी को जबरन देखने के दौरान मिले हैं ।) एक बात बता दूं मैं अपने समय में अपने शहर की क्रिकेट टीम का कप्तान रह चुका हूं और क्रिकेट का दीवाना रहा हूं पर काफी समय से क्रिकेट देखना बंद कर दिया था कारण ये था कि मैं भारत को हारते हुए देख नहीं पाता था । दूसरे ये कि पूरा दिन भर अब क्रिकेट पर खराब करने की उम्र भी नहीं रही । इसीलिये मैं इस 20;20 का समर्थक हुं जितना समय एक फिल्म देखने में लगता है उतना समय क्रिकेट में लगाओ और निकल लो । और आईपीएल तो इसलिये भी अच्छी है क्योंकि वहां पर तो केवल खेल देखना है जीत हार का तो कोई टेंशन ही नहीं है । और एक बात ये भी कि अलग अलग देशों के खिलाड़ी जब एक ही टीम में खेलेंगे तो मैत्री की भावना मजबूत होगी ही । खैर मैं प्रसन्न हूं और एकता कपूर की इस पहली हार पर दिल से प्रसन्न हूं । अंत में एक बात सच बताइये जब आप दिन भर के थके हारे घर लौटते हैं तो क्या चाहते हैं यही ना कि कुछ ऐसा देखें जो दिन भर के तनाव को दूर कर दे और उसमें सब आता है आपके बच्चों की मुस्कुराहट भी कोई अच्छी हास्य फिल्म भी और आईपीएल भी, मगर एकता कपूर ना बाबा ना ..............।
मध्य प्रदेश सरकार को योजनाओं के प्रचार के लिये लेना पड़ रहा है मुन्ना भाई का सहारा
वैसे भले ही सब ये कहते हैं कि सिनेमा एक दोयम दर्जे की चीज है पर हकीकत ये है कि उसका सहारा सभी को लेना ही पड़ता है अब मध्य प्रदेश की सरकार को ही ले लें जब उसको अपनी योजनाओं के प्रचार की ज़रूरत पड़ी ( चुनाव जो आ गए हैं ) तो उसको भी सबसे पहले याद आई मुन्ना भाई की ही । सरकार ने अपनी योजनाओं के प्रचार के लिये विकास रथ बनाएं हैं जों कि गांव गांव में घूम कर सरकार की योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं । अब इसमें भी ख़ास बात ये है कि योजनाओं की जानकारी तो बाद में दी जाती है पहले तो गांव वालों को एकत्र करने के लिये प्रोजेक्टर पर मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई जैसी फिल्में दिखाई जाती हैं । और ऐसा भी नहीं है कि ये योजना में शामिल नहीं है ये भी बाकायदा योजना में शामिल है कि गांव वालों को पहले ये फिल्में दिखाई जाएंगीं और बीच बीच में विज्ञापन के ब्रेक की तरह योजनाओं का प्रचार किया जाता है । मतलब ये कि अब सरकारें भी टीवी वालों की तरह हो गईं हैं । प्रचार करना है तो फिल्में दिखाओ और बीच बीच में अपना विज्ञापन कर लो । मजे की बात ये है कि फिल्में दिखाई जाएंगी ऐसा कहा गया है सरकार के प्रचार तंत्र जिला जनसंपर्क द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में कि सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिये जो योजना विकास रथ गांव गांव में जा रहा है उसमें मुन्ना भाई सीरिज की फिल्में दिखाई जाएंगीं । सही बात भी है अगर आपकी योजनाओं में दम है तो प्रचार खुद ही हो जाता है पर अगर दम ना हो तो फिर तो मुन्ना भाई का सहारा लेना ही पड़ता है ।