टाटा बिड़ला डालमिया तो गोद में लेटे हैं, क्या हम भारत माता के सौतेले बेटे हैं बत्‍तीस साल से चल रहा एक अनोखा कार्यक्रम सुकवि पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँजलि समारोह

टाटा बिड़ला डालमिया तो गोद में लेटे हैं, क्या हम भारत माता के सौतेले बेटे हैं
बत्‍तीस साल से चल रहा एक अनोखे कार्यक्रम सुकवि पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँजलि समारोह
सीहोर () ये बहुत ही हैरत की बात है कि कोई कार्यक्रम किस प्रकार से बत्तीस वर्षों से लगातार आयोजित होता आ रहा है । इसके लिये वास्तव में वे सभी लोग धन्यवाद के पात्र हैं जो इस कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं । आज के दौर में ये किसी को भी अविश्वसनीय बात लगेगी कि इस प्रकार से एक कार्यक्रम लगातार होता चला आ रहा है, और वो भी ऐसे कवि की याद में जो इस शहर में अकेला था जिसका कोई परिजन नहीं था ।

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मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी ने पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँतलि समारोह में उक्त आशय के उद्गार व्यक्त किये । कार्यक्रम में देश के वरिष्ठ शायर श्री राम मेश्राम, श्री अनवारे इस्लाम तथा श्री वीरेन्द्र जैन  अतिथि के रूप में उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर डॉ. कैलाश गुरू स्वामी ने की ।
स्थानीय ब्ल्यू बर्ड स्कूल के सभागार में आयोजित पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँजलि समारोह का शुभारंभ अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, तथा दीप प्रज्‍जवलित कर किया । अतिथियों ने पंडित जनार्दन शर्मा के चित्र पर अपनी पुष्पाँजलि भी समर्पित की । गायिका शिरोनी पालीवाल ने माँ सरस्वती की वंदना तथा राष्ट्र की वंदना गाकर काव्याँजलि को प्रारंभ किया । सर्वश्री रामनारायण ताम्रकार, वसंत दासवानी, डॉ. पुष्पा दुबे, जनसंपर्क अधिकारी श्री एल आर सिसौदिया, श्री ओमदीप, श्री जयंत शाह ने पुष्पहार से सभी अतिथियों का स्वागत किया । इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. प्रेम गुप्ता को उनकी सेवाओं के लिये सम्मनित किया गया । श्री शैलेश तिवारी ने पंडित जनार्दन शर्मा के व्यक्तिव तथा कृतित्व पर प्रकाश डालने के साथ साथ पंडित जनार्दन शर्मा काव्याँजलि समारोह पर भी विस्तार से प्रकाश डाला । जिले के वरिष्ठ पत्रकार श्री अम्बादत्त भारतीय की इस समारोह में भूमिका की भी उन्होंने चर्चा की, जो परिजन का निधन हो जाने के कारण इस बार कार्यक्रम में अनुपस्थित थे ।
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काव्याँजलि समारोह का शुभारंभ युवा शायर डॉ. मोहम्मद आजम ने जनार्दन शर्मा को श्रध्दाँजलि देते हुए कुछ इस अंदाज़ में की तुझको जनार्दन न कभी हम भुलाएंगे, गाएंगे तेरे गीत ग़ज़ल गुनगुनाएँगे । उन्होंने अपनी कई ग़ज़लों का पाठ किया ।

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सीहोर के वरिष्ठ शायर श्री रियाज़ मोहम्मद रियाज़ ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए अपनी ग़ज़लें तरीका अब ये अपनाना पड़ेगा, दबे शोलों को भड़काना पड़ेगा और देश का हम क्या हाल सुनाएँ, अंधे पीसें कुत्ते खाएँ, सुनाकर समां बांध दिया ।

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वरिष्ठ शायर तथा साहित्यिक पत्रिकार सुंखनवर के संपादक श्री अनवारे इस्लाम कई ग़ज़लें पढ़ीं, तन पर लिबास मुँह में निवाला नहीं रहा, लेकिन मेरा ज़मीर तो काला नहीं रहा, जो थोड़ी देर गाना चाहता है वो अपना दुख सुनाना चाहता है, इन ग़ज़लों को श्रोताओं ने खूब पसंद किया । 

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कार्यक्रम का संचालन कर रहे युवा साहित्यकार पंकज सुबीर ने ग़ज़ल अजब जादू है अपने मुल्क के थानों में यारों, यहां गूंगा भी आ जाए तो वो भी बोलता है और अपना गीत दर्द बेचता हूं मैं का सस्वर पाठ किया ।

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वरिष्ठ कवि श्री वीरेंद्र जैन ने गई सारे गीत प्रस्तुत किये, टाटा बिड़ला अंबानी तो गोद में लेटे हैं, क्या हम भारत माता के सौतेले बेटे हैं, ये उत्सव के फूल शीघ्र ही मुरझा जाएँगे और खूब अच्छी फसल हुई गीतों पर श्रोता देर तक दाद देते रहे तथा फिर फिर सुनते रहे ।

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मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी ने कहा कि किसी के लिये भी ये बात हैरानी में डालने वाली हो सकती है कि कोई कार्यक्रम लगातार इतने वर्षों से होता आ रहा है । श्रोताओं के अनुरोध पर उन्होंने तरन्नुम में कई गीत तथा ग़ज़ल सुनाए उनकी ग़ज़ल कतरा के जिंदगी से गुज़र जाऊँ क्या करूँ, रुसवाइयों के खौंफ से मर जाऊँ क्या करूँ और तरन्नुम में गाये गये गीत जिंदगी हमको ढूँढ़ेगी तेरी नजर जब तेरे गाँव से हम चले जाएँगे ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

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देश के वरिष्ठ शायर श्री राम मेश्राम ने अपने विशिष्ट शैली में कई गीत और ग़ज़लें प्रस्तुत किये । मुगालते ही मुगालते हैं, ये हंस हम मन में पालते हैं, हमीं ने फैंके गटर में हीरे, हमीं ये दुनिया खंगालते हैं,  तुम्हारे चम्पू जनम जनम से, हमें भी गुरुवर महान करना  गीतों को खूब पसंद किया गया । 

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर डॉ. कैलाश गुरू स्वामी ने जो वफा खुद बेवफा हो उस वफा का क्या करूँ, तुझको भी भुलाया था खुदको भी भुलाया था, यूँ भी तेरी याद आई, यूँ भी तेरी याद आई सहित कई सारी ग़ज़लें पढ़ीं । एक चोट इधर खाई एक चोट इधर खाई जैसे अशआरों पर श्रोता झूमते रहे । कार्यक्रम के अंत में शिक्षाविद् प्रो. बी. सी. जैन, जिला शिक्षा अधिकारी धर्मेंद्र शर्मा,  श्री जयंत शाह,  श्री नरेश मेवाड़ा,  तथा श्री  शैलेष तिवारी ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किये ।

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अंत में आभार वरिष्ठ पत्रकार श्री वसंत दासवानी के व्यक्त किया । देर रात तक चले कार्यक्रम का संचालन वसंत दासवनी तथा मुशायरे का संचालन पंकज सुबीर ने किया ।

और हंसते-हंसते सीने पर गोली खाई 356 क्रांतिकारियों ने

सीहोर। सन 1857 व इससे पूर्व गुलाम भारतवर्ष पर जिन अंग्रेजों ने अपना शासन जमा रखा था उन अंग्रेजों की एक सैनिक छावनी सीहोर के सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर सीवन नदी के किनारे पर स्थित थी। 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन (गदर) का शंखनाद जब पूरे देश में फैलने लगा तो सीहोर के सैनिकों ने पूरे देश का सबसे व्यवस्थित आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होने सारे अंग्रेजों को खदेड़-खदेड़ कर सीहोर से भगा दिया और सीहोर में अंग्रेजों के समानान्तर सरकार ''सिपाही बहादुर सरकार'' का गठन कर दिया। इस सरकार के ही कई कार्यालय थे, पुलिस फौज भी थे, सारी व्यवस्था थी। लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनी की भोपाल की बेगम के सहयोग से ''सिपाही बहादुर सरकार'' के सैनिकों को अंग्रेजो ने पकड़ लिया और उसी सैकड़ाखेड़ी स्थित चाँदमारी के स्थान पर सामुहिक रुप से गोली मार दी। वंदे मारतम, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते यह 356 शहीद सैनिक भारत माता की स्वतंत्रता के लिये 14 जनवरी 1858 को शहीद हो गये...।
यह समृध्द इतिहास मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित किताब ''सिपाही बहादुर'' में स्पष्ट रुप से उल्लेखित है
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन (गदर) 1857 का प्रारंभ 10 मई को मेरठ के खूनी हंगामे से हुआ था। 11 मई 1857 को बागी सिपाहियों ने लाल किला और दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। इन्होने मुगल बादशाह शहंशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता बनाकर देशभर के राजाओं-नवाबों से अंग्रेजों को बाहर निकाल देने की अपील की। ये अपील देश में आग की तरह फैल गई। जिसका प्रभाव मालवा और मध्य भारत में सर्वाधिक रहा। यहाँ की फौजों ने अंग्रेजों से लोहा लेना शुरु कर दिया।
इन्दौर से महावीर कोठा के आते ही सीहोर में भी खड़ा हुआ आंदोलन और सारे अंग्रेज भाग गये
सीहोर की फौज के जो सिपाही इन्दौर वह महू में तैनात किये गये थे। उनमें से 14 बागी सिपाही क्रांतिकारी विचारों वाले सिपाही महावीर कोठ के नेतृत्व में वापस सीहोर आ गये थे। महावीर कोठ इन्दौर में रहकर अंग्रेजो की रक्षा करना देशद्रोह मानते थे, उन्होने दिलेरी से इसका विरोध किया और अपने साथ सिपाहियों को भी वापस सीहोर ले आये यह लोग 7 जुलाई को सीहोर आये। यहाँ आते ही सीहोर सैनिक छावनी में बगावत की तैयारी शुरु कर दी गई। सीहोर सैनिक छावनी के तेवर बिगड़ने से पॉलिटिकल एजेंट मेजर हेनरी विलियम रिकार्डरस घबरा गये। इन्होने सिकन्दर बेगम से बातचीत के बाद होशंगाबाद जाने का निर्णय लिया और 3 दिन के अंदर ही घबराकर 10 जुलाई 1857 को पॉलिटिकल एजेन्ट और उनके सभी अंग्रेज अपने परिवार (पत्नि-बच्चे) सहित होशंगाबाद चले गये। उस समय जाने के पहले 9 जुलाई को सीहोर फौज का पूर्ण चार्ज भोपाल रियासत को दे दिया था। सीहोर फौज का चार्ज भोपाल आर्मी के कमांडर इन चीफ बख्शी मुरव्वत मोहम्मद खॉ ने लिया था। इस प्रकार 10 जुलाई के बाद डर के मारे सीहोर छावनी में एक भी अंग्रेज बाकी नहीं रहा था। इसके तत्काल बाद सीहोर फौज के बगावती सैनिकों ने सरकारी खजाने लूट लिये, जेल और मेगजीन की इमारतों को तोड़ डाला। इसके तत्काल बाद अपनी एक सरकार ''सिपाही बहादुर'' के नाम से स्थापित कर दी गई। उन्होने जगह-जगह इस नई सरकार के झण्डे गाड़ दिये और मुसलमानो-हिन्दुओं से अपील की कि वे इस नई सरकार के हाथ मजबूत करें। उन्होने अपनी सरकार के तहत विभिन्न प्रशासनिक कार्यालय भी स्थापित करना प्रारंभ कर दिये।
सीहोर सैनिकों की बगावत मध्य भारत और पूरे मालवा की लड़ाई से अलग थी। यहाँ सबसे व्यवस्थित, मजबूत और सलक्ष्य आंदोलन की समझदार कोशिश की गई थी। यह एक क्रांतिकारी कदम था जिसमें हिन्दुस्तान से अंग्रेजों को निकालकर शासन की बागडोर भी संभाली गई हिन्दुस्तानी जनता के हाथों में यह व्यवस्था दी गई।
सुअर-गाय की चर्बी के कारतूस नष्ट किये
मेरठ की तरह सीहोर के फौजियों की भी एक शिकायत यह थी कि जो नये कारतूस फौज में उपयोग किये जा रहे हैं, उनमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। सिपाहियों का विचार था कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के दीन-ईमान को खराब कर देना चाहते हैं। इस अवसर पर किसी ने फौज में यह अफवाह फैला दी कि सिकन्दर बेगम अंग्रेजों को खुश करने के लिये छुपकर ईसाई हो गई है। इस अफवाह से फौज में रोष व्याप्त हो गया। जब यह अफवाह सिकन्दर बेगम तक पहुँची तो उन्होने अपने वकील मुंशी भवानी प्रसाद से बातचीत की लेकिन उन्होने शांत रहने की सलाह दी। कारतूसों में चर्बी के उपयोग की शिकायत की जांच फौज के बख्शी साहब की उपस्थिति में सीहोर के हथियार थाने में की गई। इस जांच में 6 पेटी में से 2 पेटी संदेहास्पद पाई गई, जिन्हे अलग कर दिया गया और ये आदेश दिये गये कि संदेह वाले कारतूसों को तोड़कर तोपों के गोला बारुद में उपयोग में लाया जायेगा। परन्तु इस आदेश के पश्चात भी हिन्दुस्तार के वीरे सिपाहियों में रोष्ज्ञ रहा उन्हे विश्वास था कि नये कारतूसों में अवश्य ही गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग किया जा रहा है इस प्रकार फौज के बड़े वर्ग में बगावत फैल गई।
वो बहादुर देशभक्त
इस सिपाही बहादुर सरकार शासन को स्थापित करने वाले सीहोर फौज के चार देशभक्त बहादुर अफसर थे। भोपाल राय में यह पहली समानान्तर सरकार थी जो अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्थापित हुई थी। इस सरकार की स्थापना के समय बागी फौजियों को रियासत भोपाल के पॉलिटिकल एजेंट (जो वर्तमान कलेक्ट्रेट निवास में रहता था) के कार्यालय के पास जमा करने के बाद उनके सामने एक जोशीला भाषण रिसालदार वली शाह ने दिया था। जिनके साथ महावीर कोठा, रमजूलाल और आरिफ शाह भी शामिल थे।
उस समय भोपाल रियासत की कानूनी सत्तासीन शाहजहां बेगम (1939-1901) थीं परन्तु उनके कम उम्र होने के कारण एक समझौते के अन्तर्गत जिसको अंग्रेज सरकार की स्वीकृति थी उनकी माँ सिकन्दर बेगम को रियासत का प्रमुख घोषित कयिा गया था। इस प्रकार सिकन्दर बेगम ही वास्तवित रुप से शासक थी। 1857 में रियासत की सैना की तादाद कुल 4265 थी जिसमें 580 घुड़सवार थे। तोपखाना अलग था। जिनमें हल्की और भारी कुल 80 तोपे थीं। जिनके नाम भी विचित्र थे जैसे लीहू-दीहू, कड़क बिजली, जलपुकार, अंगड़ी-बंगड़ी, लैला-मजनू, धूल-धानी, फतह, दौलत आदि।
सीहोर में रहते थे सैनिक
1848 से ही भोपाल की एक फौज को सीहोर में अंग्रेजी सैनिकों की कमान में प्रशिक्षण दिया जाता था (यह प्रशिक्षण केन्द्र चाँदमारी कहलाता था, जो सैकड़ाखेड़ी मार्ग अरोरा अस्पताल के पीछे सीवन नदी के किनारे-किनारे स्थित था) सीहोर में रहने वाली फौज का नाम भोपाल कन्टिनजेंट था। ये फौज सिकन्दर बेगम के पति नवाब नजर मोहम्मद खां और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुए एक समझौते के अन्तर्गत गठित की गई थी। इसका पूरा व्यय भोपाल रियासत वहन करती थी। फौज के कर्मचारियों को भर्ती के समय बाण्ड भी प्रस्तुत करना होता था कि वो अंग्रेज सरकार के वफादार रहेंगे। इस फौज के कर्मचारियों को 3-4 रुपया महिना वेतन दिया जाता था, जबकि उस समय सिंधिया, होल्कर रियासत में 7-8 रुपये वेतन दिया जाता था।
और वह हसंते-हसंते शहीद हो गये
14 जनवरी 1858 को इन राष्ट्रवादी सैनिकों को सजा-ए-मौत दी गई। देशभक्ताें ने भारत माता की आजादी के लिये सरकार से समझौता करने के बजाय अत्याधिक दिलेरी से मौत को गले लगाया और अपने सीने पर गोलियाँ खाकर देश के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। किताब हयाते सिकन्दरी के अनुसार 14 जनवरी 1858 को 356 शहीद सैनिकों को जनरल ह्यूरोज के आदेश के बाद गोलियाँ से उड़ा दिया गया। उस वर्ष सीहोर में खूनी संक्राति मनी थी।
दुर्भाग्य से आज तक सीहोर के इन शहीदों का स्मरण न तो सीहोर ने किया और ना ही मध्य प्रदेश शासन ने इस व्यवस्थित इतिहास को आवश्यक रूप से शिक्षा विभाग के पाठय पुस्तकों में ही कोई स्थान दिलाया। आज भी इन शहीदों के समाधियाँ सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर स्थित हैं जहाँ विगत कुछ वर्षों से बसंत उत्सव आयोजन समिति द्वारा एक पुष्पांजली कार्यम भर ही किया जाता है जबकि शासन द्वारा न तो इन अवशेषों के संरक्षण के लिये कोई प्रयास किया जा रहा है न ही इस दिन विशेष छुट्टी आदि रखी जाती है।

शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित दीपक चौरसिया मशाल के काव्‍य संग्रह 'अनुभूतियां' का विमोचन सिटी सेंटर उरई में हुआ- बुंदेलखंड टुडे से डॉ. कुमारेंद्र सिंह सेंगर की रपट साभार ।

anubhutiyan 2दीपक चौरसिया मशाल का काव्‍य संग्रह अनुभूतियां : मूल्‍य 250 रुपये, 104 पृष्‍ठ, हार्ड बाइन्डिंग, आइएसबीएन978-81-909734-0-3, प्रथम संस्‍करण 2010, प्रकाशक शिवना प्रकाशन

बुन्देलखण्ड टुडे से डॉ. कुमारेंद्र सिंह सेंगर की रपट साभार  ।
http://bundelkhandtoday.blogspot.com
http://bundelkhandtoday.blogspot.com/2010/01/blog-post_05.html
"जीवन मूल्य सास्वत होते हैं। इनमें परिवर्तन यदि होते हैं तो हमारे पहनावे, विचारों और रहन सहन के कारण होते हैं। समाज में जीवन मूल्यों का निर्धारण व्यक्ति के आचार विचार और पठन पाठन से होता है। इस प्रक्रिया में पुस्तकें अपना योगदान देतीं हैं।" उक्त विचार सामाजिक संस्था दीपशिखा द्वारा सिटी सेन्टर उरई में आज दिनांक 05 जनवरी 2010 को आयोजित विचार गोष्ठी, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया ने व्यक्त किये।

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(मुख्य अतिथि - नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया)

बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर आयोजित गोष्ठी तथा काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ के विमोचन कार्यक्रम में जे0 पी0 चौरसिया ने आगे कहा कि "समाज के बदलते परिवेश में साहित्य में भी बदलाव आते रहे और साहित्य के इसी बदलते स्वरूप से विभिन्न कालों और धाराओं का प्रतिपादन होता रहा है। वर्तमान काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ नई पीढ़ी को एक दिशा प्रदान करेगी।"

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(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ का विमोचन कार्यक्रम)

काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ जनपद के कोंच के युवा साहित्यकार दीपक ‘मशाल’ की प्रथम कृति है। युवा साहित्यकार वर्तमान में ग्रेट-ब्रिटेन में जैव-प्रौद्योगिकी विषय में अपने शोध कार्य को पूरा करने में लगे हैं। विज्ञान पृष्ठभूमि और बिलायती परिवेश के बाद भी दीपक का हिन्दी साहित्य प्रेम कम नहीं हुआ। वर्तमान में वे इण्टरनेट पर ब्लाग के माध्यम से लेखन कार्य में रत हैं।

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(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते डॉ0 आदित्य कुमार)

काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते हुये दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ0 आदित्य कुमार ने कहा कि "दीपक की कवितायें समाज को दिशा प्रदान करने वालीं दिखाई देतीं हैं। इनकी कविताओं में आम जीवन में घटित हाने वाली घटनाओं की जो अनुभूति है उसे प्रत्येक मनुष्य एहसास तो करता है किन्तु उसे शब्द देने का कार्य बखूबी किया गया है। कविताओं को पढ़ते हुये आम जीवन के चित्र आँखों के सामने बनते दिखाई पड़ते हैं। विषय की गहराई बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग भाव बोध तथा तत्व विधान आदि दीपक को तथा उनकी कविताओं को प्रौढता प्रदान करते हैं जो जनपद के युवा साहित्यकारों के लिये सुखद सन्देश है।"

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(काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’)

काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’ ने अपनी काव्य यात्रा और इस काव्य संग्रह के बारे में बताते हुये कहा कि "मेरी कवितायें जीवन की परिस्थितियों और पीडा से उपजी हैं। मेरा प्रयास है कि जीवन की सत्यता को सरल और भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त करता रहूँ।"

संस्था दीपशिखा द्वारा इस वर्ष से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों को सम्मानित करने की दृष्टि से दो सम्मानों-धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान तथा महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान- को प्रारम्भ किया है। धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान 2009 जागेश्वर दयाल 1 विकल को देने का निर्णय लिया गया है। इस अवसर पर कोंच के श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत किया गया।

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(श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत)

श्री चौरसिया जनपद में स्टिल फोटोग्राफी को स्थापित करने वालों में हैं। ज्ञात जानकारी के अनुसार जनपद का पहला तथा झाँसी मण्डल का दूसरा फोटो स्टूडियो नटराज स्टूडियो के नाम से उन्हीं ने खोला था। एस0 आर0 पी0 इण्टर कालेज कोंच में प्रवक्ता पद पर अपनी सेवायें देने के बाद वर्तमान में भी वे फोटोग्राफी से सम्बन्धित तकनीकी ज्ञान देते रहते हैं।

इससे पूर्व बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत तीतरा खलीलपुर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 डी0 सी0 द्विवेदी के वक्तव्य से हुई। डॉ0 द्विवेदी ने कहा "सत्य घटनाओं से नहीं वरन स्थितियों से निर्मित होता है। यही सत्य जब साहित्य में प्रदर्शित होता है तो मूल्यों के रूप में मनुष्य के जीवन में दिखाई देता है। जीवन मूल्य साहित्य को विशेष गरिमा प्रदान करते हैं। वर्तमान भोगवादी संस्कृति में सत्य का निष्पादन कठिन होता प्रतीत हो रहा है। इससे मूल्यों की शाश्वतता भी परिवर्तन आने शुरू हुये हैं। इन्हीं बदलावों के कारण जिस साहित्य को समाज का दर्पण अथवा समाज का निर्माता कहा जाता रहा है उसमें भटकाव आना शुरू हुआ।"

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(वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी)

गोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी ने जीवन मूल्यों को मनुष्य के विकास से जोड़ते हुये कहा कि "आधुनिक विकासवादी प्रवृति मनुष्य को जीवन मूल्यों से परे ले जा रही है। भौतिकवादी संस्कृति और भौतिकतावादी सोच ने सबसे उच्च शिखर पर बैठे मनुष्य को रसातल की ओर ले जाने का कार्य किया है। संसार के समस्त जीवों मे श्रेष्ठ जीवधारी मनुष्य अपने कृत्यों से समाज और साहित्य दोनों से दूर होता जा रहा है इस कारण से जीवन मूल्यों में बदलाव देखने को मिलते हैं।"

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(लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद)

लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद ने जीवन मूल्यों को लोक संस्कृति से सम्बद्ध करते हुये कहा कि "अपनी संस्कृति से विमुख होने के कारण व्यक्ति जीवन मूल्यों को विस्मृत कर रहा है। साहित्य के द्वारा समाज को दिशा देने का कार्य साहित्यकारों द्वारा किया जाता रहा है परन्तु वर्तमान साहित्य से लोक संस्कृति का लोप होना जीवन मूल्यों को स्वतः ही विघटित कर रहा है। परिवार में आपसी सामन्जस्य और मूल्यों की स्थापना को लेकर भी आज नये नये स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। जीवन मूल्यों के शाश्वत स्वरूप में इन विघटन और बदलाव का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।"

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(डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी)

गांधी महाविद्यालय उरई के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी ने जीवन के क्रिया कलापों और व्यक्ति की सक्रियता को जीवन मूल्य की परिभाषा दी उनका कहना था कि "वर्तमान में साहित्य के द्वारा जो भी रचनात्मक कार्य किये जा रहे हैं वे किसी न किसी तरह के मूल्यों का निर्माण करते हैं। उन मूल्यों को किसी भी स्थिति में जीवन मूल्य नहीं कहा जा सकता जो व्यक्ति और समाज को दिशा प्रदान न कर सकें।"

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(डॉ0 हरिमोहन पुरवार)

दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई की प्रबन्धकारिणी कमेठी के उपाध्यक्ष डॉ0 हरिमोहन पुरवार ने कहा कि "जीवन मूल्य व्यक्ति से जुडी शब्दावली है केवल साहित्य की नहीं। साहित्य से इतर व्यक्ति भी अपने क्रिया कलापों से मूल्यों का निर्माण करता है। सकारात्मक मूल्य समाज को दिशा देते हुये अपने आप में जीवन मूल्य के रूप में परिभाषित होते हैं।"

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(डॉ0 आर0 के0 गुप्ता)

दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के वनस्पति विभाग के डॉ0 आर0 के0 गुप्ता ने कहा कि "व्यक्ति के कार्य और आचरण में निरन्तर बदलाव आ रहे हैं। जीवन मूल्यों को व्यक्ति के आचरण की पवित्रता से जोड कर देखा जाना चाहिये। आचरण और कार्य की पवित्रता का विरोधाभास अपने आप ही जीवन मूल्यों का क्षरण है। जीवन मूल्यों की स्थापना के लिये व्यक्ति को अपने कार्य और आचरण में सामन्जस्य स्थापित करना चाहिये।"

इसके साथ ही गोष्ठी में डॉ0 रामप्रताप सिंह, डॉ0 सुरेन्द्र नायक, डॉ0 भास्कर अवस्थी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में गोष्ठी का संचालन डॉ0 अनुज भदौरिया, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का संचालन डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ0 राजेश पालीवाल ने किया। समारोह में संस्था के संरक्षक डॉ0 अशोक कुमार अग्रवाल, संस्था उपाध्यक्ष अलका अग्रवाल, डॉ0 सतीश चन्द्र शर्मा, डॉ0 अभयकरन सक्सेना, डॉ0 अलका रानी पुरवार, डॉ0 नीता गुप्ता, डॉ0 बबिता गुप्ता, डॉ0 नीलरतन, डॉ0 सुनीता गुप्ता, डॉ0 ममता अग्रवाल, डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव, प्रकाशवीर तिवारी, डॉ0 प्रवीण सिंह जादौन, धर्मेन्द्र सिंह, सलिल तिवारी, आशीष मिश्रा, सन्त शिरोमणि, डॉ0 राजवीर, डॉ0 के0 के0 निगम, सुभाष चन्द्रा, डॉ0 मनोज श्रीवास्तव, के साथ साथ कोंच से लोकेश चौरसिया, लक्ष्मण चौरसिया, आगरा से स्वामी चौधरी सहित जनपद के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

मुंतज़ार अल ज़ैदी की तरह हिम्‍मत वाला क्‍या कोई पत्रकार वहां नहीं था जो विधु विनोद चोपड़ा को जूता मारने की हिम्‍मत करता ।

( ये लेख केवल पत्रकारों के लिये है क्‍योंकि गैर पत्रकार लेख की कई बातों से असहमत हो सकते हैं )

स्‍वयं पत्रकार होने के कारण अक्‍सर इस बात से दुखी होता हूं कि अब पत्रकारिता में वह पहले जैसा साहस नहीं बचा । उसके पीछे भी एक कारण ये है कि अब तो पत्रकार कहीं हैं ही नहीं । अब जो हैं वे तो कर्मचारी हैं । कर्मचारी जो जैसा आदेश मिलेगा वैसा ही प्रस्‍तुत करेंगें । ऊपर बैठे लोग जैसा तय करते हैं वैसा ही काम करना होता है । मेरे छोटे से शहर सीहोर में आज की तारीख में कोई पत्रकार नहीं है । सब के सब कर्मचारी हैं । किसी न किसी समाचार पत्र के कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारी । इन कर्मचारियों को सब कुछ करना होता है । समाचार के लिये विज्ञापनों की व्‍यवस्‍था भी करनी होती है, सुब्‍ह चार बजे आकर के समाचार पत्र के वितरण की व्‍यवस्‍था देखनी होती है और उसके बाद यदि समय बचता है तो समाचार भी लिखने होते हैं । समाचार लिखने होते हैं कुछ इस प्रकार के कि आज ठंड बढ़ गई है, कलेक्‍टर ने एक मीटिंग ली, नेता जी ने अपना जन्‍मदिन मनाया, फलां प्रवचन कार ने आज अपने प्रवचन में ये कहा । ये ही लिखा जा रहा है । यदि आप इनको ही समाचार मानो तो मानते रहो ।  दरअसल में ये किसी पत्रकार द्वारा लिखा जा रहा समाचार नहीं है बल्कि कर्मचारियों द्वारा अपनी नौकरी को सुरक्षित रखने के लिये किया जा रहा प्रयास है ।

खैर तो बात करते हैं विधु विनोद चोपड़ा की  पत्रकार वार्ता की ।   क्‍या वहां कोई ऐसा पत्रकार नहीं था जो मुंतज़ार अल ज़ैदी की तरह अपने जूते उतार कर उस बदतमीज़ आदमी पर मारने का साहस कर पाया । कल जब वह दृष्‍य देखा तो मन खिन्‍न हो गया । चोपड़ा जिस प्रकार से पत्रकार की तरफ उंगली उठा कर शटअप कह रहा था । निश्चित रूप से उसका जवाब जूते से ही दिया जा सकता था । कुछ लोग कहते हैं कि नहीं पत्रकार को ये सब नहीं करना चाहिये उसकी क़लम ही जवाब देती है । मेरा मानना है कि हर जगह क़लम जवाब दे ये ज़रूरी नहीं है । क्‍योंकि चौपड़ा जैसे लोग तो चाहते ही हैं कि उनके खिलाफ लिखा जाए और उनको प्रचार मिले । ठीक है हम उस बात को लेकर रात भर चैनलों पर दिखाते रहे कि किस प्रकार से उस चौपड़ा ने बदतमीजी की और क्‍या क्‍या किया । लेकिन उससे तो चौपड़ा और आमिर दोनों का स्‍वार्थ ही सिद्ध हो रहा था । वे तो चाहते ही यही थे । मेरे विचार में तो चोपड़ा की जूतों से कुटाई की जानी थी और उस घटना का प्रचार होना था । कि आपको प्रचार चाहिये न तो ठीक है ये लीजिये प्रचार । हम पत्रकार हैं हमें टेकन एस ग्रंटेड न समझें ।

कुछ दिनों पहले की बात है पत्रिका समाचार पत्र ने हमारे यहां पर एक सेमीनार का आयोजन किया था । उसमें शहर भर के लोग बुलाए गये थे । उसमें पत्रिका के श्री गुलाब कोठारी जी भी थे । उस ही आयोजन में जब एक नेताजी को बोलने का मौका मिला तो उसमें उन्‍हानें फरमाया कि आजकल की पत्रकारिता तो ऐसी है कि पत्रकार एक बोतल दारू में बिक जाते हैं । नेताजी के बाद एक समाज सेविका जी की बारी आई तो वे बोलीं कि पत्रकारों को पढ़ने की ज़रूरत है आजकल गंवार लोग पत्रकारिता कर रहे हैं । ध्‍यान दें ये बातें कहां हो रही हैं एक समाचार पत्र के सेमीनार में समाचार पत्र के प्रधान संपादक के सामने । हम स्‍वयं ही अपनी खिल्‍ली उड़वा रहे हैं और बाकायाद आयोजन करवा के उड़वा रहे हैं । क्‍या ज़रूरी नहीं था कि श्री गुलाब कोठारी जी उन नेताजी को टोकते कि महोदय आप कम से कम संयमित भाषा को तो उपयोग करें । किन्‍तु बात वही है कि विज्ञापन भी तो वही नेताजी देते हैं । कहावत है कि दूध देने वाली गाय की लात तो खानी ही पड़ेगी ।

मेरे ही शहर का एक समाचार है कि यहां पर साई ( स्‍पोर्टस अथारिटी आफ इंडिया ) द्वारा लाखों खर्च करके एक ट्रेक बनाया गया था कुछ दिनों पहले ही । लाखों का ये फिगर करोड़ के नजदीक का ही था । अब किसी सिरफिरे को सूझा कि उसी स्‍थान पर गर्ल्‍स होस्‍टल बना दिया जाये । ( सूझा ठेकेदार को जिसे गर्ल्‍स होस्‍टल बनाने का ठेका मिला था, क्‍योंकि बेस तो बना बनाया मिल रहा था ) तो उस लाखों के ट्रेक को खोद कर वहां पर हॉस्‍टल बना दिया गया । जबकि उसके पास ही ढेर सारी सरकारी जमीन थी । ट्रेक का पूरा मलबा ठेकेदार के काम आ गया । ये समाचार कहीं किसी ने नहीं लिखा । क्‍यों क्‍योंकि ठेकेदार समचार पत्रों को विज्ञापन देने वाली एक बड़ी पार्टी है ।

अभी भी पत्रकारिता ही है जो राजनेताओं और अफसरों पर कुछ अंकुश रखे है किन्‍तु यदि ये अंकुश ही कमजोर हो गया तो समाज को कमजोर होते समय नहीं लगेगा ।