साधन की शुचिता और साध्‍य की शुचिता का जब तक ध्‍यान नहीं रखेंगे तब तक यही होगा

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भ्रष्‍टाचार को लेकर हम सब जो कि देश के प्रति भावना रखते हैं, हम सब चिंतित हैं, लेकिन हम किन शर्तों पर इस भ्रष्‍टाचार से लड़ेंगें । साधन और साध्‍य दोनों की पवित्रता ज़ुरूरी है । चाणक्‍य ने कहा है ‘पिशाच हुए बिना संपत्ति अर्जित नहीं होती’’ । और मैंने तो स्‍वयं देखा कि मेरे शहर  में बाबा रामदेव  एक विवादास्‍पद ठेकेदार के घर न केवल रात रुके बल्कि उसके ही घर भोजन किया क्‍योंकि उसने  बाबा के ट्रस्‍ट को थैली समर्पित की थी । ये क्‍या है, ये तो पहले राजा महाराजाओं के जमाने में तवायफें करतीं थीं कि जो सबसे ज्‍यादा रकम देगा उसके घर ही रुकेंगीं । कृष्‍ण जब संधि का प्रस्‍ताव लेकर गये थे तो दुर्योधन के घर नहीं रुके थे विदुर के घर रुके थे, क्‍यों, क्‍योंकि उनके लिये साधन और साध्‍य दोनों की शुचिता महत्‍वपूर्ण थी । फिर चाणक्‍य पर आता हूं कि पिशाच हुए बिना संपत्ति अर्जित नहीं होती । अन्‍ना हजारे के पास व्‍यक्तिगत शुचिता है, मुझे लगता है कि अन्‍ना हजारे पर विश्‍वास किया जा सकता है । बाबा रामदेव अपने संबोधन में बीसियों बार कहते हैं ‘अपने मीडिया के भाइयों से मैं कहना चाहूंगा ‘’ ये सब क्‍या है । किस बात की भूख है प्रचार की । एक बार गौर से देखें कि भारत में पब्लिसिटी के भूखे नौटंकी बाजों  और रामदेव में क्‍या फर्क है ।  पांच हजार करोड़ की संपत्ति का मालिक, जिसकी 35 कंपनियां हों, जिसके पास स्‍काटलैंड के पास अपना द्वीप हो, जो जेट विमान से घूम रहा हो, क्‍या वो क्रांति लायेगा ? इस देश में जब भी क्रांति आई है तो लाने वाले कौन थे,  गांधी, जयप्रकाश, भगत सिंह, इन सबने कबीर को ध्‍येय मान कर क्रांति का सूत्रपात किया कि जो घर फूंके आपना चले हमारे संग, तो बाबा भी क्‍यों नहीं फूंकते पहले अपनी 5 हजार करोड़ की संपत्ति को ।

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नि:संदेह आधी रात में की कई कार्यवाही निंदनीय थी घोर शर्मनाक थी, लोकतांत्रिक प्रक्रिया का घोर अपमान थी, जिसकी जितनी निंदा की जाये कम है । ये सरकार की बर्बर कार्यवाही थी लेकिन उसकी तुलना हम 1942 या 1975 से नहीं कर सकते कभी नहीं कर सकते । और फिर ये सत्‍याग्रह था या फिर सत्‍ताग्रह । सत्‍याग्रह का अर्थ होता है कि लाठियां खाकर भी नेतृत्‍व करने वाला डटा रहे । लेकिन बाबा की बदहवासी अगर रात को मंच पर देखी हो, तो वो क्‍या थी । क्‍यों महिलाओं के कपड़े पहन कर भागे । मार डालती न सरकार ?  तो मरने से क्‍यों डर रहे थे ? सफदर हाशमी तो मौत से नहीं डरा, गांधी तो नहीं डरे, भगत सिंह तो नहीं डरे । लेकिन बाबा जिस प्रकार घबराहट में मंच पर इधर से उधर भाग रहे थे उस समय मौत का डर उनके चेहरे पर साफ था । बाद में मंच से कूदना और माइक पर चिल्‍ला चिल्‍ला कर कहना कि माता बहनें मेरे चारों तरफ सुरक्षा घेरा बना लें । क्‍यों ?  क्‍या माता बहनें मरने के लिये हैं ?  बाबा रामदेव का ये कहना कि उनकी हत्‍या की साजिश थी, अगर उसको सही भी माना जाये तो भी बाबा उससे क्‍यों डरे । मौत से डरने वाले कभी क्रांति नहीं लाते । बाबा के पार्टनर बालकृष्‍ण का कहना है कि मैं कुछ देख नहीं पाया क्‍योंकि मेरी आंखें कमजोर हैं, अच्‍छा !  दुनिया भर की सारी बीमारियों का इलाज करने वाले बाबा अभी तक अपने पार्टनर की ही आंखें ठीक नहीं कर पाये । अपनी संपत्ति की घोषणा करते समय बाबा और बालकृष्‍ण उन 35 कंपनियों के सवाल पर क्‍यों झुंझला रहे थे, क्‍यों उन पर गोलमोल जवाब दे रहे थे ।  तो कैसे विश्‍वास किया जाये । इन सारी बातों का मतलब ये कतई नहीं है कि मैं 4 जून की रात की सरकार की कार्यवाही का हामी हूं । मैं उसका घोर विरोधी हूं । लेकिन उसका सबसे अच्‍छा प्रतिकार बाबा लाठी खा कर ही कर सकते थे । यदि बाबा भागने की बजाय लाठी खा लेते तो आज देश में माहौल ही कुछ और होता, लेकिन आज तो ये हाल है कि 30 मई को 10000 लोगों ने बाबा का स्‍वागत यहां सीहोर में किया था और यहीं दो दिन से चल रहे अनशन में 10 लोग भी नहीं है । क्‍यों, हो रहा है ऐसा । बाबा यदि लाठी खा लेते तो देश को लाला लाजपत राय वाला मार्ग फिर से मिल जाता और देश उसी दिशा में मुड़ जाता । लेकिन साधन की शुचिता और साध्‍य की शुचिता का जब तक ध्‍यान नहीं रखेंगे तब तक यही होगा । फिर एक प्रश्‍न  कि संत, साधु, संन्‍यासी, गुरू, प्रवचनकार, प्रशिक्षक और महात्‍मा क्‍या से सब एक ही हैं, क्‍या ये अलग अलग नहीं हैं ।   संत,  कबीर से गांधी, गांधी से विनोबा, विनोबा से जयप्रकाश, जयप्रकाश से बाबा आमटे, तक की परंपरा का नाम है, किसी भी भगवा वस्‍त्र वाले को संत कहने से पहले ये देख लो कि ऊपर की परंपरा में किसी ने भगवा वस्‍त्र नहीं पहने । संत वो होता है जो जिनकी सेवा के लिये निकला है उनके जैसा ही हो जाता है । संत तीसरी श्रेणी के रेल के डब्‍बे में चलता है जेट प्‍लेन में नहीं ।  संन्‍यास का अर्थ होता है विरक्त, त्‍याग , छोड़ना, और 5000 हजार करोड़ के मालिक की विरक्ति कितनी है ये तो सब जानते हैं । अब रही साधु की परिभाषा तो उसकी परिभाषा के दायरे में कम से बाबा को तो हम नहीं लेंगे, मसखरी करने वाला व्‍यक्ति और साधु ? गुरू वो होता है जो हमें जीवन जीने का सही तरीका बताता है, जिसके पास हमारे प्रश्‍नों के उत्‍तर होते हैं, इसके लिये वो हमसे पैसे नहीं लेता । प्रवचनकार जो किसी धर्मग्रंथ के किसी विषय की व्‍याख्‍या कर सकता है । आखिर में आता है प्रशिक्षक जो बाबा रामदेव हैं एक विशेष कला को सिखाने के प्रशिक्षक । जिस काम के लिये वो हमसे पैसे भी लेते हैं । प्रशिक्षक पैसे लेता है और गुरू नहीं लेता, प्रशिक्षक के पास एक ही विषय की विशेषज्ञता होती है गुरू के पास हर विषय की होती है । तो कुल मिलाकर कर ये कि न संत, न साधु, न महात्‍मा, न संन्‍यासी, न गुरू, केवल और केवल योग प्रशिक्षक । योग प्रशिक्षक बाबा रामदेव । योग प्रशिक्षक रामदेव जो प्रशिक्षण के लिये बाकायदा पैसे लेते हैं ।

पंकज सुबीर ( सीहोर म.प्र. )  09977855399

लेखक भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्‍कार से सम्‍मानित कहानीकार हैं

एक बार देखिये इस मासूम से चेहरे को ये ईशांत का चेहरा है ।

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जब ईशांत लापता हुआ तो उसके माता पिता सकते में पड़ गये । सकते में पड़ने वाली बात थी भी सही । चौदह साल के इस मासूम को भला क्‍यों उठाया गया है । शाम ढले तक फोन आ गया कि चालीस लाख की फिरौती की व्‍यवस्‍था कर लो । हैरान माता पिता भागे पुलिस के पास । लेकिन पुलिस को कोई जिम्‍मेदार अधिकारी होता तो मिलता । सारा का सारा पुलिस और प्रशासन तो लगा हुआ था सवा सौ किलोमीटर दूर मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री के गृह गांव में चल रही ग्रेंड राम कथा में । ग्रेंड राम कथा इसलिये कि इसके लिये पांच करोड़ का पंडाल लगाया गया था । हवाई जहाज से अतिथि आ जा रहे थे । पूरा आयोजन 10 से 15 करोंड़ का था । 5 स्‍टार कथा वाचक अवधेशानंद गिरी वहां कथा कर रहे थे ।

पंडाल क्‍या था किसी महंगी फिलम का सेट था मानो । और ये सब हो रहा था उस प्रदेश में जहां रोज तीन चार किसान आत्‍म हत्‍या कर रहे हैं । और जहां के जिम्‍मेदार मंत्री इसके लिये पीपली लाइव फिल्‍म को जिम्‍मेदार ठहरा रहे हैं । और जहां के मुख्‍यमंत्री किसानों की आत्‍महत्‍या रोकने के लिये अपने गृह गांव में 10 से 15 करोड़ के राम कथा करवा रहे हैं । जहां के जिम्‍मेदार अधिकारी आत्‍महत्‍या करने वाले किसान की विधवा से जोर जबरदस्‍ती कर रहे हैं ये कहलाने को कि कह दो कि तुम्‍हारा पति तो पागल था ।

kisanतो हुआ ये कि रात भर ईशांत के माता पिता भागते रहे इधर उधर ताकि कहीं से कुछ मदद मिल सके । लेकिन कोई होता तो मिलता । कलेक्‍टर से ले जिले के सारे अधिकारी तो वहां जैत में ग्रेंड राम कथा करवा रहे थे । ईशांत के माता पिता को जो कुछ करना पड़ा वो अपने ही सोर्स से करना पड़ा । रात भर की भाग दौड़ के बाद कहीं कोई परिणाम नहीं मिला । ग्राम जैत में ग्रेंड राम कथा उसी प्रकार चल रही थी, किसान उसी प्रकार  आत्‍महत्‍या कर रहे थे, और वहां हत्‍यारा आराम के साथ ईशांत के गरदन पर छुरी फेर रहा था । उसके सर को पत्‍थरों से कुचल रहा था । ग्रेंड राम कथा उसी प्रकार चल रही थी । और गणतंत्र दिवस के ठीक पांच दिन पहले 21 जनवरी को ईशांत की लाश मिल गई । 21 को ही राम कथा का समापन भी हो गया मुख्‍यमंत्री के गृह गांव जैत में और 21 को ही प्रदेश में 2 और किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली ।

कहानी खत्‍म होती है तालियां बजाइये और अपने अपने घर जाइये 26 जनवरी को तिरंगा फहराइये और नारा लगाइये स्‍वर्णिम मध्‍यप्रदेश की जय ।

( लेखक पंकज सुबीर - वर्ष 2010 हेतु भारतीय ज्ञानपीठ युवा पुरस्‍कार से सम्‍मानित कथाकार )

पंडित जर्नादन एवं गीतकार रमेश हठीला को याद किया गया

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सीहोर। कवि एवं साहित्यकार कभी नहीं मरता है उसकी सशक्त रचनाओं एवं उच्च साहित्य के कारण सदा जिंदा रहकर समाज का मार्ग प्रशस्त करता रहता है। यह बात ब्ल्यू बर्ड स्कूल में आयोजित 33 वें जर्नादन शर्मा पुण्य स्मरण तथा गीतकार रमेश हठीला की श्रध्दाजंलि समारोह को संबोधित करते हुए देश के ख्यातनाम कवि शशिकांत यादव ने कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता क्षेत्रीय विधायक रमेश सक्सेना ने की। इस अवसर पर विशेष अतिथि के रुप में नगर पालिका अध्यक्ष नरेश मेवाड़ा भी उपस्थित थे।

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श्री यादव ने कहा कि समाज की कुंठा और वेदना को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कवि द्वारा किया जाता है उसकी साहित्य साधना तब और भी सफल हो जाती है जब लोग उसे अपने जीवन में उतारते है। उन्होंने कहा कि सीहोर शहर के वे लोग निश्चित रुप से बधाई के पात्र है जिन्होंने एक ऐसे कवि साथी का नाम 33 साल तक जिन्दा रखा है जिसका सीहोर में कोई नहीं रहता है। ऐसे आयोजन में शामिल होना एक तीर्थ के समान है जहां पूर्वजों को इतनी श्रध्दा के साथ याद किया जाता है। गीतकार रमेश हठीला के श्रध्दाजंलि अर्पित करते हुए श्री यादव ने कहा कि उनके गीतों में दूसरों के दर्द दिखाई देता था उनकी कमी साहित्य जगत को सदा खलेगी। विधायक रमेश सक्सेना ने कहा कि पंडित जर्नादन शर्मा ने सदा ही अपने जीवन में संघर्ष किया उनका कहना रहता था कि संघर्ष के समय अपना रास्ता खोजने वाला कभी नाकाम नहीं रहता है। विधायक श्री सक्सेना ने गीतकार रमेश हठीला को जीवट व्यक्ति की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्होेंने अपनी रचनाओं से सदा लोगों को सीख देने का प्रयास किया सादगी से रहकर उन्होंने अपने कार्य क्षेत्र के साथ साथ जिस प्रकार से साहित्य सेवा की उसे आज की पीढ़ी को भी सबक लेने की जरुरत है।

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कार्यक्रम के विशेष अतिथि नपा अध्यक्ष नरेश मेवाड़ा ने कहा कि कवि जर्नादन शर्मा और गीतकार रमेश हठीला ने सदा साहित्य का अलख जगाए रखा जिसे सीहोर के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। कवि साहित्यकार पंकज  सुबीर ने कहा कि जर्नादन शर्मा और रमेश हठीला दोनों ने अपनी सशक्त रचनाओं के कारण अलग पहचान बनाई थी और यह दोनों सदा ही अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों के दिलों में राज करते रहेंगे। कार्यक्रम को कन्या महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डा.बीसी जैन और साहित्यकार हरिओम शर्मा दाऊ ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में उपस्थित सभी लोगों ने दोनों दिवगंत आत्माओं के चित्रों के समक्ष पुष्प अर्पित किए और अंत में दो मिनिट का मौन धारण कर श्रध्दाजंलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार बसंत दासवानी ने किया तथा आभार  शैलेष तिवारी ने व्यक्त किया।

गीतों के बंजारे कवि रमेश हठीला का हैदराबाद में निधन

आज साजन का संदेसा आ गया है

ये निमंत्रण मुझको भी तो भा गया है

आओ सब मिलकर बधावें गीत गाओ

और दुल्हन की तरह डोली सजाओ

                                     - श्री रमेश हठीला

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सीहोर के यशस्वी कवि तथा साहित्यकार रमेश हठीला का लम्बी बीमारी के बाद हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया । सीहोर के साहित्य जगत ने उनके निधन के साथ ही एक महत्वपूर्ण कवि को खो दिया । बंजारे गीत पुस्तक के माध्यम से राष्ट्रीय साहित्यिक परिदृश्य पर अपनी पहचान छोड़ने वाले श्री हठीला इकसठ वर्ष के थे ।
देश भर के कवि सम्मेलनों में अपने ओज के गीतों से अपनी अलग पहचान स्थापित करने वाले गीतकार तथा सीहोर की साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु रहने वाले गीतकार श्री रमेश हठीला का हैदराबाद में कल शाम दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया । वे पिछले तीन माह से वहां इलाज हेतु गये हुए थे । काल के भाल पर गीत मैंने लिखा / मौत आई अगर उसका भी मन रखा / हार मानी नहीं काल हारा स्वयं / एक पल को मुझे क्यों हुआ ये भरम / जिंदगी के लिये गीत मैं गाऊँगा / मैं हँ बंजारा बादल, भटकता हुआ / प्यासी धरती दिखी तो बरस जाऊँगा। जैसे गीतों से जाने वाले गीतकार रमेश हठीला सीहोर की सभी साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे । शिवना साहित्यिक संस्था के वे संस्थापक सदस्य थे, सीहोर में पिछले तीस बरसों से लगातार आयोजित हो रहे जनार्दन शर्मा पुण्य स्मरण संध्या तथा सम्मान समारोह से वे सक्रियता से जुड़े हुए थे  । तीन वर्ष प्रकाशित होकर आया उनका काव्य संग्रह बंजारे गीत राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चित रहा था । एक और जहां वे अपने ओज के स्वारथ के अंधों ने कैसा हश्र किया बलिदान का / लहूलुहान नजर आता है नक्शा हिन्दुस्तान का जैसे गीतों के लिये जाने जाते थे वहीं कोमल श्रंगार के सांस तुम, मधु आस तुम, श्रंगार का आधार तुम / तुम ही उद्गम, अंत तुम ही, कूल तुम मझधार तुम जैस गीतों को अपनी सुमधुर आवाज में प्रस्तुत करने में भी उनका कोई सानी नहीं था । ढलते देखा है सूरज को, चंदा देखा गलते / काल चक्र की चपल चिता में देखा सबको जलते/ अपना जीवन पूरा करके टूट गया हर तारा/ नियती के इस कड़वे सच क्यों हम आंख चुराएँ, जैसे जीवन दर्शन के गीत भी उनकी सशक्त लेखनी से जन्म लेते थे । श्री हठीला अपनी कुंडलियों के लिये भी खासे लोकप्रिय थे जो वे लगभग हर समाचार पत्र के लिये सम सामयिक घटनाओं पर आठ पंक्तियों वाली चुटीली कुंडलियां लिखा करते थे जो बहुत पसंद की जाती थीं, इस प्रकार की कुंडलियां उन्होंने लगभग दो हजार से भी अधिक लिखीं थीं । पिछले कुछ दिनों से साहित्यिक पुस्तकों  की समीक्षा लिखने से भी जुड़ गये थे, उनकी समीक्षाएं देश की सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रहीं थीं । वाशिंगटन हिंदी समिति तथा शिवना प्रकाशन द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित भारतीय मूल के पांच हिंदी लेखकों की महत्वपूर्ण पुस्तक धूप गंध चांदनी की भूमिका भी उन्होंने लिखी थी जो अंतर्राष्ट्रीय हिंदी जगत में काफी सराही गई थी । निधन से कुछ ही दिन पूर्व उन्होंने उजला आसमान नामक पुस्तक की भूमिका अस्पताल में ही लिखी थी ।  वे पत्रकारिता से भी जुड़े हुए थे तथा ऐतिहासिक तथा धार्मिक समाचार नियमित रूप से लिखा करते थे जिला पत्रकार संघ के संस्थापक सदस्यों में भी वे थे  । शहर के इतिहास की उनको अच्छी खासी जानकारी थी । होली के अवसर पर उनके द्वारा निकाले गये विशेष समाचार पत्र का पूरे शहर को इंतजार रहता था । उनकी चुटीली तथा गुदगुदाने वाली काव्यमय उपाधियां कई दिनों तक शहर में चर्चा का केन्द्रबिन्दु रहती थीं ।  होली के विशेष अंक में हास्य समाचार तथा अन्य सामग्रियां भी वे स्वयं जुटाते थे । श्री हठीला को प्रतिष्ठित जनार्दन सम्मान सहित कई सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त हो चुके थे । हिंदी कवि सम्मेलन के मंचों की प्रतिष्ठित कवयित्री मोनिका हठीला के वे पिता थे ।  उनके निधन से सीहोर के साहित्य आकाश का एक चमकीला सितारा टूट गया है । देर रात उनके निधन का समाचार मिलते ही शहर के साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ गई । श्री हठीला का अंतिम संस्कार हैदराबाद में ही किया जायेगा । तीन दिन बाद उनका अस्थि कलश हैदराबाद से सीहोर लाया जायेगा । प्यार से तेरा अभी परिचय नहीं है  ये समर्पण है कोई विनिमय नहीं है / मात्र मोहरे हैं सभी शतरंज के हम / मौत कब हो जाये ये निश्चय नहीं है / जो मिला उनमुक्त हाथों से लुटाओ / अर्थ जीवन का कभी संचय नहीं है, जैसी पंक्तियों का गीतकार सब कुछ उन्मुक्त हाथों से लुटा कर बिना कुछ संचय किये सीहोर से सैंकड़ों किलोमीटर दूर दकन के हैदराबाद में गहरी नींद सो गया ।