ग़लती हालंकि देखने में तो छोटी सी है लेकिन जब बात नई दुनिया जैसे समाचार पत्र की हो तो फिर उसको बड़ा ही माना जायेगा । ऐसा इसलिये क्योंकि नईदुनिया में समाचारों में ग़लती की संभावना को शून्य माना जाता है और फिर ये भी कि नई दुनिया में हर समाचार को छापने से पहले उसको देखा और परखा जाता है । अब होने को तो ये भी हो सकता है कि नईदुनिया और नवदुनिया के बीच के अंतर को ही ग़लती का कारण मान लिया जाये और ये कह दिया जाये कि जो हुआ है वो नवदुनिया में हुआ है नई दुनिया में नहीं हुआ है । मगर मेरे जैसे खब्तियों का क्या किया जाये जो पिछले पच्चीस सालों से नईदुनिया को पढ़ ही इसलिये रहे हैं कि उसमें ग़लती को ग़लती ही माना जाता है और ये भी कि वहां मापदंडों की परंपरा अभी भी जिंदा है । तो क्या ये माना जाये कि अब नईदुनिया भी उसी राह पर चल पड़ा है जिस पर नईदुनिया के बाद आने वाले समाचार पत्र चले । खैर चलिये बात करते हैं कि ये ग़लती क्या है । दरअस्ल में आपको लगेगा कि बहुत ही छोटी सी बात का मैं बतंगड़ बना रहा हूं । ऐसी कोई घटना नहीं है कि उसको लेकर इतनी चर्चा की जाये । मगर मैं अपनी बात पर कायम हूं कि ये घटना यदि किसी दूसरे पेपर में हुई होती तो मैं उसे नजर अंदाज कर भी देता मगर नईदुनिया में हुई है इसलिये नजरअंदाज करना जरा कठिन है । समाचार बहुत छोटा सा है मध्यांचल के पृष्ठ सोलह पर एक काव्य गोष्ठी की रपट को लीड स्टोरी बना कर लगाया गया है । जैसी की नईदुनिया की स्वस्थ परंपरा रही है कि साहित्यिक समाचारों को उचित स्थान मिलता है वैसा ही किया गया है । लेकिन गोष्ठी की रपट में एक कवि जो कि स्थानीय कवि हैं उनके नाम के पीछे जो संबोधन लगाया गया है वो है अंतर्राष्ट्रीय कवि, अब अंतर्राष्ट्रीय शब्द का अर्थ या तो नवदुनिया के स्थानीय पत्रकार को पता ही नहीं है या फिर भोपाल में बैठे लोगों को भी नहीं पता है कि अंतर्राष्ट्रीय शब्द का अर्थ क्या होता है । शब्दों के चयन में गंभीरता रखने वाली नईदुनिया में ऐसी ग़लती होना खलता है । शब्दों के चयन में गंभीरता रखने से ही ये होता है कि पाठक किसी समाचार पत्र से जुड़ता है । नईदुनिया की जो इतने वर्षों की परंपरा है वो यही तो है कि यदि कहीं कोई शब्द उपयोग हो रहा है तो ये ज़रूर देखा जाये कि वो शब्द वहां उपयोग होने के योग्य है भी अथवा नहीं । मेरे गुरू श्रद्धेय डा विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि एक शब्द कभी कभी पूरी की पूरी रचना का सर्वनाश कर देता है । उनका कहना है कि शब्दों के चयन और उनकी उपयोगिता पर पूरा विमर्श करना चाहिये क्योंकि रचना में आने के बाद यदि शब्द खल रहा है तो उसका अर्थ ये है कि शब्द अवांछित है । खैर आप सब को नव वर्ष की शुभकामनायें ।
क्या समाचार तभी होता है जब पुलिस या प्रशासन उसके होने की पुष्टि कर दें, औरों को इसका जवाब सही तरीके से देने के लिये बधाई नवदुनिया
लोकतंत्र का जो ढांचा तैयार किया गया है उसमें दो एक एक की व्यवस्था है । दो एक एक का अर्थ ये है कि व्यवस्था की जवाबदारी दी गई है दो को दो का अर्थ कार्यपालिका और विधायिका । ये दोनों ही व्यवस्था के लिये जिम्मेदार होते हैं । जो कुछ भी हमारे आस पास हो रहा है उसके लिये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ये ही जिम्मेदार होते हैं । इनमें से भी विधायिका को तो फिर भी पांच साल में एक बार अपने कार्यों की स्वीकृति लेने हमारे पास आना होता है । किन्तु कार्यपालिका के पास तो ऐसी कोई बाध्यता भी नहीं है कि उसको हमारे पास आना है । और शायद यही सोच कर इन दो पर एक न्यायपालिका और एक पत्रकारिता को बैठाया गया । उसमें से भी न्यायपालिका भी व्यवस्था का ही हिस्सा होती है अत: रह जाती है एक पत्रकारिता । केवल और केवल पत्रकारिता ही है जो कि सत्ता के मद में चूर कार्यपालिका और विधायिका रूपी हाथी के मस्तक पर छोटे से अंकुश का कार्य करती है । लेकिन इन दिनों पत्रकारिता में ये हो गया है कि जो संपादक विराजमान हो रहे हैं वे भी लगभग कार्यपालिका के पक्षधर हैं उनका आम जन से कोई लेना देना नहीं होता है । उनका फरमान होता है कि हर समाचार में प्रशासन और पुलिस का नजरिया ज़रूर जाये अन्यथा समाचार नहीं लगेगा । अर्थ ये कि आप किसी भी समाचार के पहले पुलिस और प्रशासन से पहले सर्टिफिकेट लो छापने का तभी वो छपेगा । और अधिकांश मामलों में होता ये है कि प्रशासन और पुलिस उस समाचार को छपने से पहले ही दबा देते हैं । जैसा हमारे शहर में कल हुआ ।
कल हमारे शहर के एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली कक्षा दस की एक छात्रा को वहां की प्रिसीपल ने स्केल से इतना मारा कि उसके हाथ पांव सूज गये और वो लड़की दो घंटे तक बेहोश रही । बात पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गई । लड़की का क़सूर केवल इतना था कि वो कक्षा की मानीटर थी और उसकी कक्षा में शोर शराबा हो रहा था । बात के फैलते ही स्कूल प्रबंधन हरकत में आया और लड़की के परिवार वालों पर बात को वहीं खत्म कर देने का दबाव बनने लगा । सारे समाचार पत्रों को ये बात पता थी लेकिन सब प्रतिक्षा कर रहे थे कि कब लड़की के परिवार वाले पुलिस में रिपोर्ट करते हैं । और आखिरकार ये हुआ कि स्कुल प्रबंधन के दबाव में पीडि़त लड़की के परिवार ने कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाई । इसके साथ ही सारे समाचार पत्रों ने अपने कर्तव्य की इतिश्री भी कर ली । सबका कहना था कि पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हुई तो हम क्या कर सकते हैं । बात भी सही है कि जब पीडि़त परिवार ही हिम्मत नहीं दिखा रहा है तो भला हम क्यों करें । किन्तु बात तो यहीं से पैदा होती है कि हिम्मत करने के लिये ही तो पत्रकारिता है आम अदमी क्यों हिम्मत करेगा । उसमें इतनी हिम्मत होती तो वो पत्रकार ही न बन जाता । खैर बधाई का पात्र है नवदुनिया समाचार पत्र कि उसने हिम्मत दिखाई और साथ ही चुप होकर बैठ गये समाचार पत्रों दैनिक जागरण, पत्रिका और भास्कर को एक करारा जवाब भी दिया । जवाब ये कि ज़रूरी नहीं कि हर बार इस बात की प्रतिक्षा की जाये कि मामले में पुलिस और प्रशासन का क्या कहना है । समाचार यदि है तो उसको लगाया जा सकता है उसके लिये किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं होती है । समाचार इतने अच्छे तरीके से लगा है कि उसे एक मिसाल के रूप में रखा जा सकता है । शायद जनवादी पत्रकारिता यही होती है जहां जन के प्रति समर्पण का भाव हो ना कि अफसरों और नेताओं के प्रति ।
हमको मालूम है ख़बरों की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
मैंने पिछले ही पोस्ट में लिखा था कि आजकल आलोचना को सहना एक मुश्किल काम है । हम जिस दौर में हैं उस दौर में आलोचना को निंदा माना जाता है और हम ये मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि हम भी कुछ ग़लती कर सकते हैं । कुछ दिनों पहले मैंने फोटो को लेकर एक कालम लिखा था कि क्या फोटो पत्रकारिता का अंत हो गया है । और अभी दो दिन पहले ही एक कालम लिखा था जिसमें एक ही पेज पर कई कई फोटो लगाये जाने को लेकर आपत्ती दर्ज की थी । बात इसलिये कर रहा हूं कि उस पोस्ट पर जहां एक और नईदुनिया पत्र समूह के मालिक श्री विनय छजलानी जी का सकारात्मक पत्र मिला वहीं पत्र समूह के किसी श्री हर्ष जी ने मुझे ये समझाने का प्रयास किया है कि मुझे पत्रकारिता के बारे में कोई ज्ञान नहीं है । उनका कहना है कि मैं नई पत्रकारिता से परिचित नहीं हूं आदि आदि । हो सकता है कि उनका कहना सही हो । लेकिन ये ज़रूर कहना चाहूंगा कि फोटो पत्रकारिता से मैं बहुत अच्छी तरह से परिचित हूं । और आपको ये ही बताना चाहता हूं कि फोटो पत्रकारिता का अर्थ ये नहीं है कि आंवले के पेड़ का आधे पेज का फोटो लगा दिया जाये कि देखिये आंवले के पेड़ में आंवले लग रहे हैं (सीहोर में दो तीन दिन पहले आपकी ही नवदुनिया में ) या फिर किसी समाचार में जो कि ढाबे पर शराब बेचने से संबंधित था आप चार कालम में एक शराब की बोतल का फोटो लगा दो (सीहोर में एक डेढ़ माह पूर्व नवदंनिया में ) या कि ये कि एक झूठी डेस्क न्यूज बनाई जाये कि सीहोर में आतंकवाद का खतरा है और उसमें सीहोर के कालेज का फोटो लगा दिया जाये । फोटो पत्रकारिता का अर्थ मैं जानता हूं और ये भी जानता हूं कि फोटो पत्रकारिता का अर्थ है कि कोई ऐसा फोटो जो कि समाचार की कमी को पूरा कर दे । मगर आप यदि चार कालम आधा पेज में आंवले का पेड़ लगा कर लोगों को ये बताना चाह रहे हैं कि देखिये आंवले के पेड़ में आंवले लग रहे हैं तो वो कहां कि फोटो पत्रकारिता है ये मैं ज़रूर जानना चाहूंगा । एक बात और बताना चाहूंगा कि मैं स्वयं फोटोग्राफी का शौकीन हूं और हमेशा अपने पास कैमरा रखता हूं कि कोई दृष्य मिले तो कैमरे में कैद कर सकूं । मगर इसका मतलब ये नहीं है कि अपने समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर मैं किसी समाचार में एक चार कालम की शराब की बोतल का चित्र लगा दूं । ये कौनसी फोटो पत्रकारिता है कम से कम नई दुनिया इंदौर जिसको मैं जानता हूं और पिछले तीस सालों से जिसका पाठक हूं और जिसके द्वारा निकाले गये सरगम का सफर और परदे की परियां जैसे अंक आज मेरे संग्रह के सबसे मूल्यवान ग्रंथ हैं, अजातशत्रु, देवेंद्र जी, श्री चिंचालकर जी, निर्मला भुराडि़या जी, श्रीराम ताम्रकार जी जैसे लेखकों के देश भर में फैले दीवानों में मैं भी हूं , उस नईदुनिया में अगर फोटो पत्रकारिता के नाम पर एक शराब की लम्बी सी बोतल देखता हूं तो कष्ट तो होता है हर्ष जी । खैर आपके लिये आज के ही एक समाचार पत्र का एक फोटो यहां दे रहा हूं जिसमें बताने की कोशिश की गई है कि लड़कियां पढ़ रही हैं ।
फोटो दैनिक भास्कर का है और फोटो में लड़कियों ने जिस प्रकार किताबें पकड़ी हैं और जिस प्रकार वे दिखाई दे रहीं हैं उससे क्या आप को लगता है कि ये फोटो अपने कैप्शन के साथ न्याय कर रहा है । फोटो पत्रकारिता मेरा प्रिय विषय है अत- उस पर मैं लम्बी बहस कर सकता हूं मगर चूंकि बात बढ़ाने से विषय उलझता है अत: मैं अपनी बात को ग़ालिब के साथ विराम देता हूं ।
हमको मालूम है फोटो (खबरों ) की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
आइये आपको मिलाते हैं दैनिक विज्ञापन भास्कर से
दैनिक भास्कर को अब एक समाचार पत्र कहना मतलब ये कि अपनी ही बुद्धि का सार्वजनिक प्रदर्शन करना । दैनिक भास्कर अब केवल एक सूचना पत्र हो कर रह गया है जिसमें समाचारों के लिये कहीं कोई स्थान नहीं होता है । लेकिन आज तो मैं जिस विषय की बात करना चाह रहा हूं वो कुछ दूसरा ही है । दरअसल में दैनिक भास्कर का इन दिनों जो स्वरूप सामने आया है उसको देख कर ये लगता है कि क्या ये वास्तव में एक समाचार पत्र ही है । या फिर एक बड़ा सा यलो पेज है जिसमें यलो पेज के पाठकों के लिये बीच बीच में कुछ समाचार लगा दिये जाते हैं । ये समाचार उसी शैली में होते हैं जिस शैली में टीवी पर विज्ञापनों के बीच बीच में कहीं कहीं आपको कार्यक्रम भी देखने को मिल जाता है । लेकिन कहा जाता है ना कि जो बिकता है वो आलोचनाओं के परे होता है । फिर भी मैंने अपने शहर के हॉकरों और एजेंटों से जानने का प्रयास किया कि आखिर लोग दैनिक भास्कर क्यों खरीद रहे हैं । जबकि उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो इतना आकर्षक हो कि उसका मोह किया जाये । पहले ये बानगी देखिये उसके बाद आपको बताऊंगा कि हॉकरों और एजेंटों का उत्तर क्या था । आज मेरे हाथ में जो दैनिक भास्कर आया है वो 12 पृष्ठों का है उन 12 पृष्ठों की बात हम करते हैं । एक पृष्ठ में आठ कालम होते हैं और एक कालम की चौड़ाई लगभग 4 सेंटीमीटर होती है । अर्थात लगभग 32 सेंटीमीटर की चौड़ाई समाचार पत्र की होती है । ऊंचाई लगभग 50 सेंटी मीटर होती है । अर्थात 1600 स्कवायर सेंटीमीटर की जगह अमूमन एक पृष्ठ में होती है । 12 पृष्ठ अर्थात 19200 स्क्वायर सेंटीमीटर जगह कुल मिलाकर । मेरे हाथ में जो पेपर है उसमें पेज एक पर 480 स्क.सेमी के विज्ञापन हैं । पेज 2 पर 800, पेज तीन पर 1100, पेज चार पर संपादकीय होने के कारण विज्ञापन नहीं हैं, पेज पांच पर 800, पेज छ: पर 800, पेज सात पर 800, पेज आठ पर 1600, पेज नौ पर 640, पेज दस पर खेल पृष्ठ, पेज ग्यारह पर 300 और पेज बारह पर 1600 स्क्वायर सेमी विज्ञापन हैं अर्थात 19200 में से लगभग नौ हजार स्क्वायर सेमी के विज्ञापन हैं । इसके अलावा लगभग 1000 स्क सेमी जगह में पेज का मत्था वगैरह है । मतलब कि पाठक को पढ़ने के लिये मिला केवल नौ हजार सेमी । उसमें से भी बड़े बड़े चित्रों का हिस्सा 4000 सेमी निकाल दें तो बचता है केवल 5000 सेमी । तो भैया पाठक ये है तुम्हारे लिये जाओ पढ़ो और ऐश करों
अब सुनिये क्या कहा हॉकरों ने उनका कहना था कि दैनिक भास्कर को जो भी पाठक ले रहे हैं वे अपनी बीबी, बच्चों से मजबूर होकर ले रहे हैं । क्योंकि भास्कर के साथ आने वाली पत्रिकायें मधुरिमा, नवरंग, रसरंग और बालरंग इस वर्ग में लोकप्रिय हैं । हॉकरों का कहना है कि केवल इनके कारण ही पेपर चल रहा है । इसे कहते हैं कि मूल रह गया पीछे और ब्याज चल रहा आगे ।
खैर कल के पोस्ट पर नईदुनिया ग्रुप के मालिकों में से एक श्री विनय छजलानी जी का कमेंट प्राप्त हुआ है । जानकर अच्छा लगा कि आज भी ऐसे लोग हैं जो आलोचना और निंदा के बीच के अंतर को पहचानते हैं । चलिये मिलते हैं कल किसी और विषय के साथ ।
अब समाचार पत्र वाले शायद पाठकों को मूर्ख समझने लगे हैं ।
कल ही मैंने जागरण के बारे में लिखा था और आज ही अपने दूसरे फेवरेट पर कलम चलानी पड़ रही है । कल नवदुनिया जो कि वास्तव में नई दुनिया है और हमारे यहां पर नाम बदल कर नवदुनिया के नाम से आता है । कुछ दिनों से मैं देख रहा हूं कि कि नवदुनिया में ऐसे समाचार हमारे पृष्ठ पर लगे मिलते हैं जिनका हमारे शहर से कोई लेना देना नहीं होता है । मगर फिर भी उनको हमारे पृष्ठ पर हमारे ही शहर के नाम से लगाया जाता है । पहले तो मैंने सोचा कि ग़लती से लग गया होगा । मगर बाद में पता चला कि ये तो अमा बात है आजकल एक नये तरह की पत्रकारिता चल रही है जिसको कि कहा जाता है टेबल पत्रकारिता । इस पत्रकारिता में होता ये है कि एक समाचार बनाया जाता है और सारे केन्द्रों को भेज दिया जाता है कि इसको अपने अपने पृष्ठ पर अपने शहर की डेट लाइन के साथ लगा लिया जाये । समाचार का भले ही उस शहर से कोई लेना देना हो या नहीं हो लेकिन उसको लगाया जाता है । ये जो टेबल पत्रकारिता है इसमें हमारे इंटरनेट का भी योगदान कम नहीं है । अब जैसे एक खबर किसी संपादक ने नेट पर देखी जिसमें हेडिंग था नये धारावाहिकों का प्रसारण नहीं होने के कारण दर्शकों में निराशा । अब संपादक महोदय क्या करते हैं कि नेट से समाचार को कापी करते हैं और अगर फोंट बदलने की ज़रूरत हो तो बदल कर सारे सेंटरों को भेज देते हैं कि इस समाचार को अपने पृष्ठ पर लगा लो और इसमें लोकल के एक दो लोगों के नाम लगा देना । पता चलता है कि अगले दिन समाचार पत्र के सारे स्थानीय संस्करणों में स्थनीय पृष्ठ पर डेटलाइन बदल बदल कर ये समाचार लगा होता है । अगर आपने सीहोर में ये समाचार पढ़ा था जिसमें डेट लाइन सीहोर लगी थी और आप किसी काम से होशंगाबद उसी रोज गये तो आपको पता लगेगा कि ये समाचार तो होशंगाबाद में भी होशंगाबाद की डेट लाइन के साथ लगा है । ये किस प्रकार की पत्रकारिता है मेरे तो समझ से बाहर की बात है ।
चलिये आज की बात करें कि आज नवदुनिया ने क्या किया है । हां ये बात तो है कि जलसंकट आने वाला है मगर उस जल संकट के चलते आप समाचार पत्र के स्थानीय संस्करण का पूरा पृष्ठ ही समर्पित कर दें । पाठक तो ज्यादा से ज्यादा समाचार चाहता है और आपने एक पूरा पेज ऐ ही समाचार को दे दिया । तिस पर भी ये कि समाचार तो कहीं है ही नहीं वास्तव में तो आपने तीन बड़े बड़े चित्र लगा दिये हैं । एक बड़ी सी परिचर्चा लगा दी है जिसमें छ: ऐसे लोगों के फोटो आपने छाप दिये हैं जिनको जल संकट के बारे में कोई तकनीकी ज्ञान नहीं है । शहर के पांच छ: व्यपारियों को छांट कर उनके नाम से सचित्र परचिर्चा लगा दी है । परिचर्चा का अर्थ होता है उस विषय का ज्ञान रखने वाले लोगों का विचार कि वे क्या सोचते हैं इस बारे में । मगर यहां तो पता नहीं क्या सोचा कर ये नाम छांटे गये हैं । एक लगभग छ: कालम का फोटो और दो अन्य फोटो एक बड़ी सी पांच कालम की परिचर्चा और बीच में एक छोटा सा समाचार, बन गया पेज । अगर ये नवदुनिया कर सकती है तो अब पता नहीं मुझे कौन सा समाचार पत्र ढूंढना होगा पढ़ने के लिये या हो सकता है कि अब समाचार पत्र पढ़ना ही बंद करना पड़े । परिचर्चा को जब तक पठनीय नहीं बनाया जाये तब तक परिचर्चा को केवल दो ही लोग पढ़ते हैं एक तो जिसका फोटो छपा है वो और दूसरा वो जिसने लिखी है । खैर जो भी हो मिथक टूटने के लिये ही बनते हैं और आज एक मिथक और दरक गया है ।
जागरण जैसा समाचार पत्र और चाटुकारिता का ऐसा नमूना, मुझे आज इस बात पर शर्म आ गई कि मैं भी पत्रकार ही हूं ।
कहते हैं कि मिथक कभी न कभी टूट ही जाते हैं । जैसे मेरा बनाया हुआ एक मिथक था कि मैं समाचार पत्रों में दैनिक जागरण को थोड़ा सा अलग तरह का समाचार पत्र मानता था । सहीं बताऊं तो भले ही लोग कहते हैं कि उनका दिन दैनिक भास्कर के बिना प्रारंभ नहीं होता लेकिन मैं अपनी कहूं तो मुझे रोज दो पेपर तो आवश्यक हैं ही एक तो नई दुनिया और दूसरा दैनिक जागरण । मगर अब लगता है कि दैनिक जागरण भी औरों की ही राह पर चल पड़ा है । आज मेरे यहां के पृष्ठ पर एक स्तंभ लगा है जिसका नाम है ''कलेक्टोरेट हलचल '' उसको पढ़ने के बाद एकबारगी तो ऐसा लगा कि अपने सर के सारे बाल नोंच कर सड़क पर कूद कूद कर कहूं कि मैं पत्रकार नहीं हूं कोई भी मुझे इस नाम से बुला कर गाली मत देना । स्तंभ हमने काफी पढ़े हैं और जिस स्तंभ के नाम से ये छापा गया है कलेक्ट्रेट हलचल वो भी हमने काफी पढ़े हैं मगर ऐसा ... ये तो कभी नहीं पढ़ा । प्रशासनिक हलचल के नाम पर पहले जो कुछ छापा जाता था उसको पढ़कर आनंद आ जाता था । अंदर की ऐसी ऐसी खबरें निकाली जातीं थीं कि बस । मगर आज ये क्या हो रहा है । किस प्रकार की पत्रकारिता की जा रही है ये ।
क्या हम पत्रकार बस केवल प्रशासनिक अधिकारियों के चारण भाट ही रह गये हैं और हमारा बस एक ही मकसद रहा गया है कि हम शब्दों से अधिकारियों के चरण पखारते रहें । हम उस व्यवस्था के तलवे चाटने के काम में लग जायें जिससे संघर्ष करने के लिये हमने पत्रकारिता में प्रवेश किया था । हम क्यों भूल रहे हैं कि हमारी जवाबदारी तो जनता के प्रति है । हम तो उसके वकील हैं । मगर ये हमें क्या होता जा रहा है कि हम अदालत में खड़े होकर अपनी जनता की बात करने की बजाय प्रतिपक्ष का डंका पीटने में लग जाते हैं । हम नेताओं और अधिकारियों के तलवे केवल इसलिये चाटते हैं कि वे हमारे कुछ क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ती कर देते हैं । और स्वार्थ भी कैसे हमें शासकीय आवास आवंटित कर देते हैं या किसी शासकीय कार्यक्रम का मंच संचालन हमसे करवा कर हमें उपकृत कर देते हैं । हम लौट कर उसी दौर में आ गये हैं जब कलम का काम केवल एक ही होता था कि वो लोगों को महान बनाने का काम किया करती थी । कलम में उस समय रीढ़ की हड्डी नहीं हुआ करती थी । उस पर सोने की मोहरें रख कर उससे चाहे जैसा लिखवाया जा सकता था । बीच में ये हुआ कि कलम ने झुकना बंद कर दिया था उसने विरदावली गाना बंद कर दिया था । मगर आज हम फिर वहीं हैं।
आइये आपको पढ़वाऊं कि किस प्रकार का लेख वहां पर प्रकाशित किया गया है । सबसे पहले तो आपको ये बता दूं कि हमारे जिले में श्री डी पी आहूजा कलेक्टर हैं, भावना बालिम्बे अतिरिक्त कलेक्टर हैं, चंद्रमोहन मिश्रा एसडीएम हैं और राजेश शाही तहसीलदार हैं । जो स्तंभ छापा गया है उसमें वीरगाथाकाल के कवियों की ही तरह से इन चारों की आल्हा ऊदल वाली स्टाइल में यशोगाथा गाई गई है । मेरा अनुरोध है कि आप भी पूरा पढ़ें लेख की भाषा को देखें उसके शिल्प को देखें और बतायें कि ये किस दिशा में जा रही है पत्रकारिता । इसे भड़ास पर भी देखें यहां ये लेख लगा है ।
कलेक्ट्रेट हलचल
विधानसभा चुनाव से छा गये आहूजा : मुख्यमंत्री का गृह जिला होने के नाते इस जिले में विधानसभा चुनाव निष्पक्षता और शांतिपूर्ण तरीके से करवाना तलवार की धार पर चलने के समान था । इस चुनौती को कलेक्टर डीपी आहूजा ने न केवल स्वीकारा बल्कि संपूर्ण चुनाव के दौरान निष्पक्षता ने जनता को हमेशा उत्साहित किया । शायद यही वजह रही कि इस बार जिले की चारों विधानसभा क्षेत्रों में रिकार्ड मतदान देखने को मिला । सबसे अच्छी बात यह रही कि आदर्श आचरण संहिता के पालन में कलेक्टर आहूजा ने समन्वित तरीके से समस्त चुनाव प्रक्रिया का पालन किया । उन्होंने गलती किये जाने पर किसी को नहीं बख्शा । यही कारण था कि जिले में चुनाव ऐतिहासिक संदर्भ में यादगार बन पड़े हैं । चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी रमेश सक्सेना के नामांकन के दौरान और मतगणना के दिन कांग्रेस प्रत्याशी महेश राजपूत के मामलों में प्रशासन ने कठोरता से कार्रवाई कर अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दिया है ।
भावना ने की जमकर मेहनत : अतिरिक्त कलेक्टर भावना बालिम्बे ने विधानसभा चुनावों के दौरान उप जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में पूरा चुनाव समन्वित किया । मतदान से पहले मतदान दलों की रवानगी हो या फिर मतगणना के बाद ईवीएम मशीनों की वापसी हो । पूरा काम प्रक्रियाबद्ध तथा समय अनुसार चला । इस काम के प्रभावी निष्पादन में एडीएम भावना बालिम्बे की भूमिका सराहनीय रही । पूरा चुनाव कार्यक्रम व्यवस्थित तरीके से चला । सबे अच्छी बात यह रही कि अधिकारियों और कर्मचारियों को वरिष्ठ अधिकारियों का पूरा सहयोग मिला ।
एसडीएम ने बहाया पसीना : विधानसभा चुनावों के दौरान इस बार एस डी एम को रिटर्निंग आफिसर के रूप में एक नई जवाबदारी मिली । इस जवाब दारी में एसडीएम चंद्रमोहन मिश्रा ने प्रभावी भूमिका का निर्वहन किया । वाहनों की धर पकड़ में एसडीएम का कार्य प्रशासन के लिये सकारात्मक रहा । वहीं ईवीएम मशीन के जमा करने की प्रक्रिया को जिस तरीके से एसडीएम ने इस बार व्यवस्थित किया उसी के चलते मतगणना की रात्रि 12 बजे तक 90 प्रतिशत ईवीएम स्ट्रांग रूम में पहुंच चुकी थी । इस बार कर्मचारियों ने इस प्रक्रिया के बाद राहत की सांस ली ।
शाही पूरे समय घूमते रहे : विधानसभा चुनावों के दौरान तहसीलदार राजेश शाही चुनाव कार्य को अमलीकृत करने के लिये पूरे समय मेहनत करते देखे गये । मतगणना स्थल पर राजेश शाही हमेशा ही पैदल घूम घूम कर काम का निष्पादन करते रहे । मिडिल मेनेजमेंट का समन्वय इस बार तहसीलदार राजेश शाही के कंधे पर था । उन्होंने अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ बेहतर तालमेल बिठाकर कार्य किया ।
पत्रिका समाचार पत्र के अनुसार काश्मीर भारत का अंग नहीं है
आज का पत्रिका समाचार पत्र देखा तो उसके साथ आया रविवारीय हम लोग भी देखा । उसमें श्री अजय सेतिया जी का लेख सुद्री सीमा कितनी सुरक्षित प्रकाशित हुआ है । लेख सामयिक है और तथ्यों के आधार पर काफी अच्छी जानकारी देने का प्रयास किया है । किन्तु ऐसा लगता है कि पत्रिका के संपादकीय में ऐसे लोग हैं जो भारत के नक्शे के बारे में या तो जानते ही नहीं हैं या फिर वे अपने ही समाचार पत्र में प्रकाशित होने वाले चित्रों को देखने का प्रयास ही नहीं करते । यहां पर भारत का जो नक्शा छापा गया है वो वहीं नक्शा है जो कि पाकिस्तान द्वारा बताया जाता है और जिसमें कि काश्मीर को भारत का अंग नहीं बताया जाता है । इस नक्शे में भारत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ दिखाया जाता है । दरअस्ल में पाक अधिकृत काश्मीर को भारत अपने नक्शे में दिखाता है जबकि पाक उसको नहीं दिखाता है । आज के पत्रिका समाचार पत्र में जो भारत का नक्शा प्रकाशित किया गया है । उसमें भी पाक अधिकृत काश्मीर को नहीं दिखाया गया है । इसके क्या मायने निकाले जायें, क्या पत्रिका समाचार पत्र भी ये मानता है कि पाक अधिकृत काश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है । क्या पत्रिका समाचार पत्र से इस मामले में जवाब तलब नहीं होना चाहिये । क्या ऐसे समाचार पत्रों पर आपराधिक या देशद्रोह का मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये । किन्तु बात वही है कि हमारे देश में समाचार से जुड़े लोगों के अपराध माफ होते हैं । जैसे अभी मुबई में हुई घटनाओं में समाचार चैनल भी बराबर के दोषी हैं, क्या उन पर भी आतंकी लोगों की मदद करने का मामला नहीं दर्ज होना चाहिये । क्योंकि उन्होंने भी लाइव दिखा दिखा कर आतंकियों और उनके आकाओं की मदद की थी ।
पत्रिका द्वारा प्रकाशित भारत का नक्शा जिसमें पाक अधिकृत काश्मीर नहीं है ।
भारत का वो नक्शा जिसमें पाक अधिकृत काश्मीर भी शामिल है ।
पास से देखें दोनों को
पत्रिका ने फिर की एक भूल, आंकड़ों को उल्टा सीधा कर दिया
पत्रिका अपनी शुरूआत के साथ ही गलतियों को करने में आगे रहा समाचार पत्र है । मजे की बात ये है कि इस समाचार पत्र ने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया और ग़लतियों पर ग़लतियां करते जो रहे हैं । यही कारण है कि पत्रिका को भोपाल में आने के बाद जो स्थान मिल जाना था वो नहीं मिल पाया है । पत्रिका ने 31 अक्टूबर के जागो जनमत में सीहोर के आंकड़े दिये हैं इन आंकड़ों में निर्दलीय प्रत्याशी जसपाल अजीत सिंह अरोरा को सपा का उम्मीदवार बताया गया है जबकि जसपाल अरोरा निर्दलीय चुनाव ''बल्ला'' निशान लेकर लड़े थे । दूसरी ग़लती ये की गई है कि अरोरा को मिले मतों की संख्या बताई गई है 15995 ये आंकड़ा असल आंकडे के कहीं आस पास भी नहीं है ये उससे बहुत दूर का आंकड़ा असल आंकड़ा है 4613 । लगभग पांच हजार को लगभग सोलह हजार बताना एक ऐसी भूल है जिसको लेकर पत्रिका चाहे भी तो कोई सफाई नहीं दे सकती है । एक और मजे की बात ये है कि नए दावेदार में जो नाम दिये गये हैं उनमें कांग्रेस की सूची में वे दोनों ही नाम नहीं हैं जिनका नाम सबसे ऊपर चल रहा है ये नाम हैं सुरेंद्र सिंह ठाकुर और अखिलेश राय ।
कुल मिलाकर स्थिति ये है कि आंकड़ों को लेकर ग़लतियों को दोहराने में एक बार फिर पत्रिका वहीं खड़ी है ।
आचार संहिता के बाद भी लाल बत्ती में घूमे मंत्री जी, पत्रकार ने खबर उठाई तो दी जान से मारने की धमकी
भाजपा सरकार के मंत्री श्री करण सिंह वर्मा को शायद पता नहीं है कि प्रदेश में आचार संहिता लग चुकी है । शायद समाचार पत्र पढ़ने का उनको समय ही नहीं मिलता है । खैर जो भी हो बात ये है कि मंत्री महोदय इस बात से बेखबर कि आचार संहिता लग चुकी है धड़ल्ले से अपनी कार पे लाल बत्ती लगा कर घूम रहे थे । एक दो ने टोका तो उनका जवाब था कि आचार संहिता का मतलब ये थोड़े ही है कि मंत्री की भी लाल बत्ती हटा दो । खैर मंत्री जी भूल गये कि अब तो इलेक्ट्रानिक मीडिया का युग है हर चीज कैमरे की आंख पर चढ़ी हुई है । ईटीवी के संवाददाता अंकुर तिवारी ने पूरे मामले को कैमरे में कैद कर लिया और बात की बात में मंत्री जी का मामला सुर्खियों में आ गया । टीवी पर जब मंत्री जी के आचार संहिता के उल्लंघन के दृष्य आने लगे तब मंत्री जी को लगा के ग़लती हो गई । समाचार रुकवाने का प्रयास किया गया मगर जितना प्रयास किया उतना ही समाचार आने लगा । बस फिर क्या था मंत्री जी के चमचों ने धमकी वाली भाषा अपना ली और अंकुर तिवारी को कहा कि यदि समाचार बंद नहीं हुआ तो जान से मार कर फैंक देंगें । खैर फिलहाल तो अंकुर तिवारी ने कोतवाली में अज्ञात दूरभाष से आई धमकी को लेकर रिपोर्ट दर्ज करवा दी है । अब मामला चुनाव आयोग के पाले में चला गया है ।
इस ऐतिहासिक विमोचन में अपनी भी भागीदारी दें ''स्वागत करें अंधेरी रात का सूरज का
सजीव जी ने जो कार्य किया है वह अद्भुत है उसके लिये मैं प्रशंसा में कुछ भी नहीं कह सकता बस ये ही कह सकता हूं कि एक बार वहां ज़रूर जायें और अपनी टिप्पणी ज़रूर छोड़ें । आपकी कही हुई बात सजीव जी के लिये पारीश्रमिक होगी एक ऐसे काम का जिसकी कोई कीमत ही नहीं लगाई जा सकती है । आप भी http://podcast.hindyugm.com/2008/10/andheri-raat-ka-sooraj-vimochan-online.html यहां ज़रूर जायें और अपने हाथों से विमोचन करें राकेश जी की पुस्तक का ।
क्या सचमुच राजनीतिक पत्रकारिता का अंत हो गया है
साहित्यिक पत्रिका हंस के अगस्त 2008 के अंक में पृष्ठ 82 पर श्री मुकेश कुमार का एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्षक है ''राजनीति को बाहर करने की राजनीति''। वैसे तो मुकेश जी के जो लेख यहां पर प्रकाशित होते हैं वे पत्रकारिता पर आधारित होते हैं और पठनीय होते हैं किन्तु इस लेख ने विशेष कर इसलिये ध्यान खींचा है कि ये राजनीति को केन्द्र में रखकर लिखा गया है । इसमें पीड़ा व्यक्त की गई है कि किस तरह से समाचार चैनल राजनीति के समाचारों को लगभग समाप्त करते जा रहे हैं । जब समाचार ही नहीं आ रहे हों तो विश्लेषण तो दूर की बात है । मुझे लगता है कि जो बात मुकेश कुमार जी ने उठाई है वही बात समाचार पत्रों के साथ भी हो रही है । समाचार पत्रों में भी राजनीति लगभग ग़ायब है । आज इस स्तंभ को पुन: प्रारंभ करने के पीछे कई सारे मित्रों का स्नेह है जो मैं इसको पुन: प्रारंभ कर रहा हूं । आज पुन: प्रारंभ करने के समय अपने समाचार पत्रों की चर्चा एक ही विषय पर करना चाहूंगा ।
दो दिन पहले की बात है पूरे प्रदेश की ही तरह हमारे शहर में भी भारतीय जनता पार्टी ने अमरनाथ मामले को लेकर ज्ञापना सौंपा और धरना दिया । भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष सहित पूर्व विधायक भी उपस्थित थे । अब आप कहेंगें कि इसमें क्या बात है । तो चलिये बात की बात करें । सत्ताधारी दल के प्रमुख मुद्दे पर होने वाले प्रदर्शन में जो कि चुनावों की पूर्व संध्या पर हो रहा था और जिला स्तर पर हो रहा था । और जिला भी कौन सा मुख्यमंत्री का अपना जिला । और इस जिले में प्रदर्शन में कितने लोग थे कुल बीस । सात मंच पर थे और तेरह सामने । धरने को कवर करने लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकार और छायाकार आये पर ये किसीने नहीं देखा कि हालत क्या है ( या शायद देखना ही नहीं चाहा )। दूसरे दिन सभी ने धरने के चित्र लगाये जिसमें पढ़ने वालों ने भी देखा कि ज्ञापन देते समय भी संख्या तेरह से बमुश्किल पच्चीस तक ही पहुच पाई थी । परंतु किसी ने भी ये समाचार नहीं लगाया कि प्रदेश स्तर पर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम की हवा सीहोर में क्यों निकल गई । पाठक सुबह चाहता था कि राजनैतिक विश्लेषण आये कि ऐसा क्यों हुआ पर लगता है कि मुकेश जी की बात ही सही है । और इसके पीछे शायद ये तथ्य भी है कि जन्मदिन तो नेताओं के ही मनते हैं जिन पर विज्ञापन दिये जाते हैं । तो कड़वी बात ये है कि या तो भौंक लो या फिर हड्डी ले लों । ये तो नहीं हो सकता कि आप हम पर भौंकते भी रहो और हमीसे हड्डी की उम्मीद भी करो । शायद यही कारण है कि मेरे शहर में भी कोई नहीं भौंका वो भी नहीं जिन्होने कुछ ही दिनों पूर्व भारी भरकम प्रचार के साथ अपने समाचार पत्र लांच किये थे कि हम करेंगें जनता की बात । आज की राजनीति दुम हिलाने वालों को पसंद करती है भौंकने वालों को नहीं सो सब दुम हिला रहे हैं । यद्यपि नवदुनिया ने ये लिखकर पूर्ती करने का प्रयास जरूर किया है कि 173 भाजपा कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी पर मौके पर मौजूद पुलिस के जवान अधिकारी और पत्रकारों को भी जोड़ लें तो भी 100 नहीं हो रहे तो 173 ने गिरफ्तारी कैसे दी । खैर विज्ञापन के दौर में सब चलता है ।
ख़बरदार अगर बिजली का बिल जमा किया तो 1000 रुपये का जुर्माना भरना होगा
आपको लग रहा होगा कि ये कहां का समाचार है कि बिजली का बिल भरने पर 1000 का जुर्माना भरना पड़ रहा है पर जनाब ये सच है और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के अपने ही जिले का ये समाचार है । समाचार है सीहोर जिले के इछावर विकासखंड के ब्रिजिसनगर ग्राम का जहां पर लगातार की बिजली कटौती से तंग आकर गांव वालों ने पूरे गांव में ही ये डोंडी पिटवा दी है कि कोई भी बिजली का बिल नहीं भरेगा और जो कोई भी बिजली का बिल भरने का जुर्म करेगा उस पर ये जुर्माना लगा दिया जाएगा । मज़े की बात तो ये है कि बुधवार से ये डोंडी ग्राम में पिटवाई जा रही है और बाकायदा ग्राम के कोटवार के हाथों ही पिटवाई जा रही है । ये मुनादी ग्राम की पंचायत के द्वारा करवाई जा रही है । ग्राम के लोगों का कहना है कि गांव में कुल मिलाकर 2 ये तीन घंटे ही बिजली मिलती है और उसका भी कोई भरोसा नहीं होता है कि मिलेगी कि नहीं । काम काज सब चौपट हो गया है और कोई कोई दिन तो ऐसा भी होता है कि पूरे पूरे चौबीस घंटे ही अंधेरे में काटने होते हैं । ऐसे में गांव वालों ने ये निर्णय सामूहिक रूप से लिया है कि जब बिजली ही नहीं मिल रही है तो फिर बिल काहे का । और ऐसी ही एक मुनादी गांव की पंचायत की ओर से गांव में करवा दी गई है और करवाई जा रही है कि अब जो भी ग्रामीण बिजली का बिल भरता है उस पर एक हजार रुपये का जुर्माना लग जाएगा । ब्रिजिस नगर के जेई राजकुमार गुप्ता का कहना है कि ग्रामीणों ने पूरे गांव में कोटवार से बिजली का बिल नहीं भरने की मुनादी करवाई तो है और साथ ही उनको भी गांव की सरपंच सुमन बाई ने पत्र दिया है कि बिजली विभाग के द्वारा बिजली नहीं दी जा रही है अत: गांव के लोग अब बिल नहीं भरेंगें । तो ये हालत चुनाव के साल में उस भाजपा के शासन की है और मुख्यमंत्री के अपने ही जिले की है जो कि बिजली को ही आधार बना के सत्ता में आई थी । पांच साल पहले जब कांग्रेस की सरकार गिरी थी तो मुख्य मुद्दा बिजली का ही था और मजे की बात तो ये है कि कांग्रेस की सरकार के दौरान भी मई जून से बिजली की हालत खराब होना प्रारंभ हुई थी तो बिगड़ती ही गई थी । अभी भी वैसा ही हो रहा है पूरे प्रदेश में बिजली को लेकर आंदोलन हो रहे हैं । और ऐसे में अगर कुछ और गांवों ने यदि ब्रिजिस नगर की तरह से निर्णय ले लिये तो सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं ।
चुनाव वाले साल में समाचार पत्रों की शुरुआत होना किस बात की ओर संकेत करता है
मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में ही विधान सभा के चुनाव होने हैं और जैसे कि संकेत मिल रहे हैं कि इस बार के चुनाव बहुत ही रोचक होने हैं । पिछले चुनावों में तो दो बातें सीधे सीधे ही भाजपा के पक्ष में थीं पहली तो ये कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री से जनता नाराज थी और दूसरे भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती ने प्रचार की कमान संभाली थी । परिणाम भाजपा के लिये सुखद रहा । इस बार बात दूसरी है । भाजपा के मुख्यमंत्री तो बहुत ज्यादा अलोकप्रिय नहीं हुए हैं पर उनके मंत्रीगण खुलकर खेल रहे हैं । कहा जा रहा है कि इन दिनों मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है । तो हो सकता है कि भाजपा के मंत्री ही भाजपा को ले डूबें । कांग्रेस की अगर बात करें तो कांग्रेस तो ऐसा लग रहा है मानो चुनाव को लेकर अभी मन ही नहीं बना पाई है कि चुनाव इसी साल होने हैं । टूटी और बिखरी कांग्रेस के लिये ये चुनाव बहुत मुश्किल साबित होने हैं । उमा भारती की भाजश की अगर बात करें तो उसका काम एक ही होगा भाजपा को कितना नुकसान पहुंचाया जाए और दरअसल में ये ही भाजपा के लिये चिंता का विषय है क्योंकि पिछले चुनावों में 70 सीटें ऐसी थीं जहां पर फैसला 3 से 4 हजार के अंतर से हुआ था वो भी भाजपा की मजबूत लहर में तो इस बार भाजश ने अगर उतने ही वोट काट दिये तो । उधर मायावती के कारण बुदेलखंड में बसपा मजबूत है । कुलमिलाकर एक त्रिशंकु विधानसभा के संकेत मिल रहे हैं और इसी खेती को काटने के लिये आ रहे हैं नए नए समाचार पत्र । पत्रिका आ गया हिन्दुस्तान आ रहा है और विजय द्वार आने को है । दरअसल में जहां हरियाली दिखाई देती है सारे सांड चरने के लिये उसी तरफ दौड़ते हैं और अज के समचार पत्रों के मालिक भी ये ही हो गए हैं सारी हरियाली को चर जाना चाहते हैं और जब एक पहले से चर रहे सांड के इलाके में नया सांड आता है तो जाहिर सी बात है लड़ाई तो होगी ही ।
नवदुनिया :- रेटिंग ****
आज नवदुनिया की बात पहले की जाए क्योंकि आज इसने अच्छे समाचार लगा कर बाजी मार ली है । सबसे पहले तो बिल्कुल जनता की और पाठकों की रुचि का समाचार आज लीड किया है । जिसमें सीहोर जिले के दो हिस्से हो जाने की संभावना और नए जिले के गठन की बात कही गई है । नसरुल्लागंज जो कि मुख्यमंत्री का क्षेत्र है का नया जिला बनने का समाचार आज खूब पढ़ा भी जाएगा और देर रात को सजने वाले पटियों पर बहस का विषय भी बनने वाला है । समाचार समग्र है । शहर में सटाम्प पेपरों का टोटा होने का समाचार भी अच्छा है और एक सुंदर सा खजूर का पेड़ का फोटो भी पेज का आकर्षण बढ़ा रहा है । प्री मानसून का समाचार चित्रों के साथ अच्छा लगा है । बरसात में सरकारी मकानों को लेकर भी एक समाचार लगा है । अंदर के पृष्ठों में दुकानों के अतिक्रमण हटाने का पुलिसिया कार्यवाई का समाचार मुख्य है ।
भास्कर :- रेटिंग **
भास्कर का पेज आज कमजोर है आइये अब एक मूर्खता का नमूना देखें । समाचार है बाढ़ का खतरा और सब हेडिंग है बाढ़ से घिर जाते हैं सौ गांव पूरे समाचार में उन गांवों का जिक्र है जो कि बाढ़ से घिर जाते हैं संसाधनों का जिक्र है और सरकारी तैयारियों का भी जिक्र किया गया है । मगर उसमें फोटो लगा है सीहोर के बस स्टैंड का कि यहां पर बरसात में कीचड़ हो जाता है । समझ में नहीं आता कि समाचार पत्रों के लोग क्या पाठक को मूर्ख समझ कर काम कर रहे हैं । बाढ़ के समाचार में सीहोर का बस स्टैंड क्यों लगा है जहां पर नदी तो छोड़ो किसी नाले या नाली का पानी भी नहीं आता । पुलिस द्वारा अतिक्रमण हटाये जाने का समाचार भी यहीं लगा है । अंदर के पृष्ठों में रातों रात झोंपड़े बन जाने, बोवनी के शुरू होने और पिछले साल के पौधरोपण में तीस प्रतिशत पौधे बचने के समाचार इछावर से लगे हैं जो कि रोचक हैं ।
पत्रिका :- रेटिंग *
पत्रिका ने आज एक समाज द्वारा चल रहे आयोजनों में हो रही प्रतियोगिता में बन रहे बेसन और आटे के गहनों को लीड लगाया है ......( नो कमेंट) । अब आप ही तय करें कि जिले को तोड़े जाने की संभावना के रोचक समाचार ( नवदुनिया) और बाढ़ का खतरा जैसे सूचनाप्रद समाचा( भास्कर) के सामने बेसन और आटे के गहनों का समाचार ( पत्रिका) भला कौन पढ़ना चाहेगा । मगर पत्रिका के बारे में एक बात ही कही जा सकती है कि गलतियों से सबक लेने की आदत शायद यहां के लोगों में नहीं है । पत्रिका के बारे में एक और बात जो प्रारंभ से देखने में आ रही है वो ये कि इसके समाचार सरकारी कार्यालयों के आसपास ही घूमते हैं । बिना प्राचार्यों के शिक्षण सत्र शुरू होने का एक समाचार सैकेंड लीड है जो कि हेडिंग से रोचक तो लगता है पर पढ़ने पर केवल आंकड़े ही आंकडें हैं । कहीं कोई समाचार नहीं है कितने स्कूल कितनों में नहीं प्राचार्य जैसे आंकड़े फाइलों के लिये तो अच्छे होते हैं लेकिन पाठक तो कुछ और ही चाहता है । अंदर के पृष्ठों में एक समाचार इछावर से रोचक लगा है ये भी हालंकि है तो सरकारी विभाग का ही समाचार आठ पटवारियों पर दो दो हल्कों का वजन समाचार में इछावर के संवाददाता ने बता दिया है कि सरकारी विभागों के समाचारों को भी किस प्रकार पठनीय बनाया जा सकता है । आंकड़ों को अलग एक टेबल बना कर लगा दिया है और समाचार में आंकडे कहीं नहीं आते हैं समाचार समाचार की तरह ही चलता है । सीहोर के जिला कार्यालय के रिपोर्टर शैलेष तिवारी का भी एक ऐसा ही समाचार बिना प्राचार्यों के स्कूल में आंकड़े ही आंकड़े हैं समचार है ही नहीं । जबकि इछावर के समाचार में समाचार अलग है आंकडे अलग हैं ।
खैर जैसा कि पत्रिका के शुरू होने के बाद ही पाठक कह रहा है कि पेपर की छपाई अच्छी है डिजाइनिंग अच्छी है पर समाचार कहां हैं । पाठक को तो समाचार चाहिये । उसी तरह के समाचार जैसे भोपाल से आ रहे पत्रिका के पृष्ठों पर हैं । पहले भी इस स्तम्भ में कहा जा चुका है कि नवदुनिया भोपाल से आ रहे पृष्ठों की कमजोरी के कारण कमजोर हो रहा है जबकि उसके सीहोर के पृष्ठ बहुत मजबूत हैं । जबकि पत्रिका के मामले में उल्टा है इसके भोपाल से आ रहे पृष्ठ बहुत मजबूत हैं पर सीहोर के पृष्ठ तो अभी राज एकस्प्रेस जैसे समाचार पत्रों से भी कहीं पीछे और कमजोर है नवदुनिया और भास्कर से टक्कर की बात तो अभी सोची भी नहीं जा सकती । आज एक श्रेष्ठ समाचार पत्र यदि बनाना हो तो भोपाल से आ रहे पत्रिका के 1,2,3,4,5,6,11,12,13,14,15,16 पेजों में सीहोर की नवदुनिया के 9,10,11 और 16 नंबर के पेज लगा दिये जाएं।
पत्रकारिता क्या सचमुच ही सूचनाओं को इधर से उधर पहुंचाने का ही नाम है
आजकल पत्रकारिता को सूचनाप्रद पत्रकारिता बना दिया गया है । जैसे मुख्यमंत्री आए, कलेक्टर ने ऐसा कहा, अमुक पार्टी ने धरना दिया, फलाने नेता ने ऐसा का । मतलब कि कुलमिलाकर बात वही है कि सूचनाएं ही सूचनाएं हैं । पाठकों का समामान्य ज्ञान बढ़ाए रखने की पूरी कोशिश की जा रही है । कोई ये बताने की कोशिश नहीं करता कि अगर अमुक ने ऐसा कहा तो क्यों कहा उसके पीछे का कारण् क्या है । कुछ सालों पहले तक जिला स्तर से हर सप्ताह एक स्तंभ प्रकाशित होता था जो जिले की चिट्ठी जैसा कुछ होता था । इसमें जिले का संवाददाता खबरों के पीछे की खबरें निकालने का प्रयास करता था । ये स्तंभ आज किसी भी समाचार पत्र में देखने को नहीं मिलता । समाचार पत्र के प्रधान कार्यालयों के संपादकों के इशारे पर ये स्तंभ सारे पेपरों ने बंद करवा दिये । हैरत की बात ये है कि ये स्तंभ प्रधान कार्यालय में बैठे संपादक स्वयं तो लिख रहे हैं पर दूसरों के लिये मनाही है । खबरों के पीछे की खबरे अब कोई नहीं बताता अब तो केवल सूचनाएं हैं केवल सूचनाएं । पाठक सूचनाओं को ही समाचार मान लेता है उसके लिये विज्ञप्तियां ही खबरें हैं । विश्लेषण करने वाले समाचारों को पाठक आज भी रुचि के साथ पढ़ता है क्योंकि वो जानना चाहता है कि यही होता है तो फिर ऐसा ही होता क्यूं है ।
आज मुख्यमंत्री की जावर यात्रा और जावर को तहसील का दर्जा देने को सभी समाचार पत्रों ने प्रमुखता से छापा है ।
भास्कर ने आज जावर में मुख्यमंत्री द्वारा जावर को तहसील का दर्जा देने की घोषणा को लीड बनाया है । और उसी के अंदर बाक्स लगाया है कांग्रेस के धरने को । इछावर के रिपोर्टर मोहम्म्द परवेज के समाचार पंचायते करेंगी पानी की जांच आज की प्रथम लीड है रोचक समाचार है तो सही किन्तु लीड बन जाए ऐसा भी नहीं है । सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण शिविर में 236 शिक्षकों के गायब रहने का समाचार आज लगा है ।
पत्रिका के बारे में लिख लिख कर अब तो ऐसा लगने लगा है कि मानो अब थक गए हैं । यहां भी जावर तहसील घोषित समाचार लगा है । शिक्षक शिक्षिकाओं को प्रशिक्षण में नहीं आने पर नोटिस मिलने का समाचार यहां पर भी लगा है और साथ में कांग्रेस का धरना भी लगा है । आज पत्रिका पर कोई कमेंट नहीं ( कोई कब तक एक ही बात कहे)।
राज एक्सप्रेस ने भी जावर को तहसील बनाने का समाचार प्रमुखता से छापा है । वहीं नगरीय प्रशासन आयुक्त से नगरपालिका के एक करोड़ के घोटाले की जांच कराने की मंत्री रुस्तम सिंह के आदेश का एक समाचार आज सेकैंड लीड है ये समाचार बाकी के समाचार पत्र नहीं उठा पाए हैं । कांग्रेस का धरना यहां पर भी है और साथ में एक समाचार विवाह बंद होने में चार दिन शेष होने का लगा है शायद समाचार लिखने वाले को ये जानकारी नहीं है कि इस वर्ष शुक्रास्त होने के कारण मई के प्रारंभ में ही विवाह बंद हो गए थे । ये ही वो समाचार होते हैं जो कि पत्रकार के सामान्य ज्ञान को दर्शा देते हैं ।
नव दुनिया ने भी जावर को तहसील बनाने का समाचार लगाया है और साथ में ढाबों पर हो रही मयकशी को लेकर भी एक समाचार सैकेंड लीड है । समाचार में लगा हुआ शराब की बोतल का बड़ा सा चित्र अत्यंत भद्दा लग रहा है और नईदुनिया इंदौर के मानदंडों की अगर बात करें तो ये चित्र यहां नहीं होना चाहिये था । समाचार अच्छा है किन्तु बात वही है कि अगर आप कह रहे हैं कि ढाबों में जाम टकरा रहे हैं तो उनका चित्र लगा कर प्रमाण तो दीजिये शराब की बोतल का लम्बा सा चित्र लगाकर क्या कहना चाह रहे हैं । बोवनी का समाचार भी आज फोटो के साथ लगा है ।
कुल मिलाकर आज के सारे समाचार पत्रों में एक ही बात है जावर को तहसील बना दिया गया । अब आईयेबात करें इसकी कि समाचार पत्रों ने क्या गलत किया है सबने छापा है कि जावर तहसील बना । जबकि तहसील बनने की केवल घोषणा की है मुख्यमंत्री ने बनने में तो अभी लम्बा समय लगना है ।
जिला स्तर की पत्रकारिता और पत्रकार कलेक्टर के खास बन जाने और बने रहने तक सीमित हो गई है
पहले ऐसा होता नहीं था लेकिन अब तो ऐसा ही हो रहा है कि जिले स्तर की पत्रकारिता का मतलब अब हो गया है जिला कलेक्टर की गुड लिस्ट में स्थान पाना और उस लिस्ट में बने रहने का भरसक प्रयास करना । दरअसल में कलेक्टर पद अंग्रेजों के जमाने से ही सबसे शक्तिसंपन्न पद है जिले का मालिक वही होता है । और ऐसे में जाहिर सी बात है कि उसके आस पास रहना मतलब शक्ति के केन्द्र के आस पास रहना । पत्रकारिता एक ऐसी शै: है जिससे अंग्रेजों को भी खतरा था और अंग्रेजों की पद्धति पर ही काम करने वाले कलेक्टरों को भी रहता है । असल में तो सच्चाई को ना तो अंग्रेज सुनते थे और ना ही कलेक्टर सुनना पसंद करते हैं । कलेक्टर एक ऐसा पद है जो कि हमें याद दिलाता है कि हिटलरशाही का मतलब क्या होता है । पत्रकारिता का काम होता है मदमस्त गजराज के माथे पर एक छोटे से अंकुश के रूप में कार्य करना । मगर जैसा अंग्रेज करते थे वैसा ही करते हैं कलेक्टर भी पत्रकारिता को पंगू बना दो । और उस पर आज की पत्रकारिता जिसमें किसी भी नामालूम से समाचार पत्र की 10 कापियां बांटने वाला व्यक्ति पत्रकार हो जाता है उसमें तो ये और भी आसान काम है । अंग्रेज जानते थे कि विद्रोह की शुरूआत हमेशा ही कलम करती है और इसीलिये वे सबसे पहले कलम को मीत बना लेते थे । यद्यपि उस दौर में जो कि दादा माखनलाल जी और विद्यार्थी जी जैसे पत्रकारों का दौर था उसमें अंग्रेजों को बिकाऊ माल कम मिल पाता था मगर आज तो खूब है । राजस्व विभाग का ये मुखिया जिसे कि वास्तव में राजस्व एकत्र करने के कारण कलेक्टर कहा गया वो आज डीएम बन कर कितना शक्तिशाली हो गया है उसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते । और फिर आज का दौर जहां पर जिला स्तर की पत्रकारिता येन केन प्रकरेण कलेक्टर के आस पास रहना चाहती है उस दौर में जनता के हित की बात कौन उठाएगा । खैर ये बात तो बात मे निकल आई अब चलिये आज की समीक्षा पर ।
दैनिक भास्कर को समझ में आने लगा है कि अब हम एकाधिकार वाली हालत में हैं और अब अब तो अब हवाएं ही करेंगी रोशनी का फैसला जिस दिये में जान होगी वो दिया रह जाएगा वाली बात हो गई है । आज सीहोर का पेज मेहनत करके बनाया गया है और आज की विशेष्ता ये है कि आज भास्कर ने दो फोटो अच्छे लगाए हैं । आज का लीड बोवनी में बीज का टोटा एक अच्छा समाचार है जो कि समय पर लगा है । और उसीमें एक हल जोतते हुए किसान का अच्छा फोटो लगा है । कुल मिलाकर समाचार अच्छा बन पड़ा है । वहीं सैकेंड लीड में स्कैटिंग रैली का समाचार है जिसमें बच्चों को जल संरक्ष के लिये स्कैटिंग करते दिखाया है इस समाचार में एक बेहतरीन फोटो लगाया जा सकता था मगर नहीं लग पाया । कलेक्टर के स्थानांतरण और दो लीटर कैरोसिन के लिये घंटों इंतजार का समाचार भी लगा है । कुल मिलाकर आज भास्कर ने अपने को सुधारने के संकेत दिये हैं । मगर अभी बहुत लम्बा सफर बाकी है ।
नवदुनिया में आज मुख्यमंत्री के जावर आने का समाचार लीड है । जिसमें जावर को तहसील बनाने के संकेत दिये गए हैं । किताबें खोल देंगीं पोल एक रोचक समाचार है जिसमें बच्चों को बंटने वाली पुस्तकें यदि कबाड़ में बेची जाती हैं तो पकड़ में आ जाऐंगी एक रोचक जानकारी है । बरसते पानी में ट्रेन का इंतजार करने का रेवले स्टेशन की समस्या का अच्छा समाचार है तो सही पर उसमें जो फोटो लगा है वो समाचार की कहानी को पूरा नहीं कर पा रहा है अच्छा होता के खाली प्लेटफार्म की जगह पे पानी में भीगते यात्रियों का फोटो लगाया जाता । पटवारी के चयन का एक समाचार भी सही समय पर सही तरीके से लग गया है । कलेक्टर के स्थानांतरण को लेकर एक सचित्र समाचार कड़वे और मीठे पहलुओं को समेटते हुए लगा है जो कि आज के दिन की मांग था । कुल मिलाकर नवदुनिया ने आज अपने टैम्पो का बरकरार रखा है ।
पत्रिका में उसकी लांचिंग के बाद आज पहली बार कोई समाचार ठीक लगा है रिपोर्टर संजय धीमान की रिपोर्ट जिसमें बिजली कर्मचारियों द्वारा जान पर खेल कर काम किये जाने और खस्ताहाल सुविधाओं की बात है आज लीड है । और ये समाचार आंकड़ों के हिसाब से भी समृद्ध है । फोटो लेकिन अपने ही समाचार का समर्थन करता नज़र नहीं आता । मौत के साये में जी रहे लाइनमेन पहले तो ये हेडिंग ही गलत है होना था मौत के साये में काम कर रहे लाइनमेन और फिर फोटो में एक खुली डीपी का फोटो लगा है उससे लाइनमेन को खतरा नहीं है उससे तो आम जनता को खतरा है । होना ये था कि काम करते हुए किसी लाइनमेन का ।फोटो लगना था । फोटो और हेडिंग को छोड़ दें तो रिपोर्टर संजय धीमान ने अच्छी मेहनत की है । नीचे एक समाचार में पुन: गड़बड़ है हेडिंग लगा है शुजालपुर के समाचार मुआवजे का और फोटो लगा है बैंक आफ इंडिया में प्रमाणपत्र वितरण का, लगता है पत्रिका में ग़लतियों पर निगरानी रखने वाला कोई व्यक्ति नहीं रखा गया है । पत्रिका ने आज एक बड़ी चूक फिर की है और वो है सीहोर कलेक्टर के स्थानांतरण का उल्लेख सीहोर पेज पर नहीं होना । नवदुनिया ने जिस तरह का समाचार लगाया है वो पाठकों की पसंद होती है । हर पाठक सुबह जागते ही अपने पेज पर चाहता है कि जाने वाले कलेक्टर के कार्यकाल की समीक्षा पढ़े और आने वाले के बारे में जानकारी देखे ये दोनों ही काम पत्रिका नहीं कर पाया है । ये बड़ी चूकें पत्रिका अपने शुरू होने के बाद से ही कर रहा है और ये ही ग़लतियां उसे लक्ष्य से दिन ब दिन दूर करती जा रहीं हैं । लगता है पत्रिका का स्टाफ टेबुल न्यूज बनाने और लगाने में ज्यादा विश्वास रखता है ।
खैर आज फिर भास्कर और नवदुनिया कांटे की टक्कर में हैं और ये नहीं कहा जा सकता कि कौन 20 है और कौन 19 है । पत्रिका के बारे में कहा जा सकता है कि उसका सीहोर का पेज दिन ब दिन हो रही गलतियों के कारण दोड़ में नहीं आ पा रहा है ।
वो एक व्यक्ति जो कि संपादक कहलाता था उसे प्रबंधक में बदल दिया गया है ऐसे में उम्मीद न रखें समाचारों की
संपादक एक एसा व्यक्ति जो कि अपने समाचार पत्र या पत्रिका की धुरी होता था । मालिक भी उसके सामने बौना होता था । समाचारों के चयन में मालिक से ज्यादा चलती थी संपादक की । मालिक को भी अनुरोध करना होता था संपादक से किसी समाचार को लेकर । संपादक का अर्थ होता था अपनी ही धुन में रमा रहने वाला एक आदमी जो कि कब उखड़ पड़े मालूम नहीं । जब मौज में आकर कोई अग्रलेख लिख दे तो ऐसा कि दिन भर चर्चाओं में वो लेख बना रहे । इन्हीं संपादकों में से निकलते थे संपादकाचार्य ( एक विलुप्त प्रजाति ) । किन्तु आज संपादक कहीं नहीं है आज हर जगह पर प्रबंधक हैं जिनसे कहा जा रहा है कि आप प्रबंधन करो कलम वलम से हाथ लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है । अपनी इस नई भूमिका में ये संपादक भी प्रसन्न हैं । मध्य प्रदेश में पांच छ: साल पहले प्रारंभ हुए एक समाचार पत्र ने कलम का जितना नुकसान किया है वो किसी ने नहीं किया । अब कहीं कोई संपादक के अग्रलेख नहीं होते और अगर होते भी हैं तो वे उस तरह के तेवर लिये हुए नहीं होते जैसे लोग चाह रहे हैं । मेर गुरू वरिष्ठ आलोचक श्रद्धेय डॉ विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि राजनीति में कोई सत्ता पक्ष या विपक्ष नहीं होता है जो भी राजनीति में है वो वास्तव में सत्ता पक्ष ही है, क्योंकि वो उसी का हिस्सा है । ऐसे में जो भी जनता के पक्ष में होगा वो ही होगा विपक्ष जो जनता की बात करेगा वो ही होगा विपक्ष और जनता की बात करती है कलम जनता की बात करते हैं शब्द अत: वास्तव में कलम ही हर दौर में विपक्ष में होती है । डॉ विजय बहादुर सिंह की बात के अनुसार तो देश भर में फैले हजारों पत्रकार वास्तव में विपक्ष हैं । और इसी विपक्ष की धार को कुंद करने का काम कर रहे हैं मालिक, मालिक जो कि सत्ता पक्ष का ही हिस्सा हैं । खैर हर अंधेरी रात के बाद सुबह होती है और दुनिया इसी उम्मीद में जीती है ।
दैनिक भास्कर को जितना भय नए समाचार पत्रों से है उतना किसी दूसरे को नहीं है तभी तो ये भी खरबूजे को देख कर रंग बदल रहा है । भास्कर में भी वही तरीका अपनाया जा रहा है जोकि दूसरे कर रहे हैं । मगर भास्कर को फिर भी एक शेर हमेशा जेहन में रखना चाहिये जिन में हो जाते हैं अंदाज़े ख़ुदाई पैदा हमने देखा है वो बुत तोड़ दिये जाते हैं । आज भास्कर ने बस हड़ताल का समाचार लीड किया है तो वहीं पैसे मांग रहे पटवारी को निलम्बित करने का समाचार सेकैंड लीड है मगर ये समाचार रेहटी का है । रिपोर्टर बलजीत ठाकुर ने शिक्षा विभाग का रोचक समाचार निकाला है कि अब छात्राओं को दो सौ रुपये की यूनीफार्म मिलेगी और साथ में चप्पलें भी दी जाएंगीं । सड़कों पर हो रहे कीचड़ का समाचार आज नीचे लगा है । कुल मिलाकर आज का भास्कर पठनीय है ।
नवदुनिया की अगर बात करें तो यहां भी बसों की हड़ताल लीड है मगर आज छपाई की त्रुटी के कारण फोटो खराब हो गए हैं । नवदुनिया ने एक काम जो अच्छा किया है वो ये कि एक दो दिन छोड़कर मौसम का समाचार दिया जा रहा है । ये वो समाचार है जिसे लगाना समाचारपत्रों ने छोड़ दिया है । आज भी मौसम वैज्ञानिक के हवाले से अच्छा समाचार लगा है । पेयजल संकट को लेकर भी एक समाचार लगा है । एक और बात जो नवदुनिया ने की है वो है फालोअप । आजकल समाचारपत्र समाचार तो लगा देते हैं पर दूसरे दिन जब पाठक ये जानने के लिये पेपर देखता है कि कल के बाद आज क्या है तो कुछ नहीं मिलता । आज नवदुनिया ने कल के हत्याकांड का फालोअप लगाया है । वहीं शहर के खेल मैदानों की दुर्दशा और एक खेल मैदान पर होस्टल बनने का समाचार भी लगा है ।
पत्रिका ने आज देर से जागते हुए पेट्रोल पम्पों से सादा पैट्रोल डीजल गायब होने का समाचार लीड किया है जिसको कि दूसरे समाचार पत्र पूर्व में लगा चुके हैं । समाचार की एक कमजोरी ये है कि इसमें समाचार कम है और पैट्रोल पम्प के मालिकों के बयान ज्यादा हैं । इसके अलावा एक समाचार खरीफ फसलों का रकबा बढ़ने का भी लगा है । पत्रिका ने अब ये मान लिया है कि उसको दूसरे स्थान के लिये ही संघर्ष करना है पहले स्थान के लिये उसका दावा उसने खुद ही कमजोर कर लिया है । कोई भी समचार पत्र जब लांच होता है तो उसको नशा बेचने वालों की तर्ज पर काम करना होता है । जिस प्रकार नशा बेचने वाले पहले किसी व्यक्ति को मुफ्त में नशा देते हैं ताकि उसको लत लग जाए और बाद में वो ही पैसे से खरीद कर नशा करे । समाचारपत्र जब लांच होता है तब वो भी मुफ्त में बांटा जाता है ताकि लोगों को उसकी आदत हो जाए और बाद में वो ही लोग उसको खरीद कर भी पढ़ें । मगर पत्रिका ये भूल रही है कि आदत डालने के लिये आपके उत्पाद में जान होना चाहिये लत तभी लगती है जब स्वाद आता है आनंद आता है रस आता है । नीरस चीजों की लत नहीं लगती ये प्रकृति का सिद्धांत है । पत्रिका मुफ्त में बंट रही है तो उसमें रस होना ही चाहिये नहीं तो कुछ नहीं होने का ।
राज एक्सप्रेस के बारे में ये तो कहना होगा कि भले ही महासंग्राम को देखकर भास्कर ने अपने हथियारों पर धार नहीं की है पर राज ने तो की है और उसमें एक परिवर्तन दिख रहा है । लेकिन राज के साथ समस्या ये है कि वहां पर समाचारों को लेकर कहा जाता है कि कोई जरूरत नहीं है समाचारों को लाने की जितनी देर में आप एक समाचार को तैयार करेंगें उतने में आप चार विज्ञापन ला सकते हैं । दरअसल में पत्रकारों को विज्ञापन लाने की जिम्मेदारी देकर समाचार पत्रों ने कलम को बंधक बना दिया है । फिर भी आज का राज सबसे पठनीय है बसों की हड़ताल लीड है तो पुराने गोली कांड को लेकर रोचक समाचार लगा है कि जो कट्टा पुलिस ने उस गोली कांड में जब्त किया था उससे गोली नहीं चली थी । पुलिस द्वारा 70 हजार का एल्युमीनियम तार एक कार से बरामद होने का एक समाचार भी लगा है । वहीं नगर पालिका में एक करोड़ के घोटाले का समाचार भी लगा है जो कि पार्षद द्वारा लोकायुक्त को दिये गए शपथ पत्र को आधार मान कर लगा है ।
कुलमिलाकर आज के समाचार पत्रों में राजएक्सप्रेस का पेज सबसे पठनीय है । पत्रिका चारों समाचार पत्रों में अभी भी सबसे पीछे खड़ी है और उसे शायद अपनी स्थिति से संतोष भी हो गया है । भास्कर, नवदुनिया और अब राज एक्सप्रेस ये तीनों समाचारों के मामले में कांटे की टक्कर में हैं पत्रिका मैदान से बाहर बैठकर देख रही है ।
फोटो पत्रकारिता का स्वर्णिम युग क्या बीते ज़माने की बात हो गया है ।
एक ज़माना था जब फोटो को लेकर भी समाचार पत्रों में विश्ोष रूप से लोगों को नियुक्त किया जाता था और फोटो को लेकर एक विशेष प्रभाग होता था । फोटो का चयन करना और उसके नीचे की पंक्तियां लिखना फोटो का शीर्षक लगाना ये भी एक कला हुआ करती थी । दरअसल में फोटो अपने आप में ही पूरा समाचार होता है जो शब्दों के बिना ही मूक भाषा में अपनी बात कह जाता है । फोटो को लेकर अब कोई समाचार गंभीर है ऐसा लगता नहीं है । किन्तु कुछ दिनों से नवदुनिया और पत्रिका ने फोटो पत्रकारिता के स्वर्णिम युग की याद दिला दी है । दरअलस में ये दोनों ही समाचार पत्र तस्वीरों का इतनी खूबी के साथ उपयोग कर रहे हैं कि आनंद ही आ जाता है । तस्वीरें अपनी ही एक ज़ुबान रखती हैं जो कि शब्दों की मोहताज नहीं होती है । कहते हैं कि पृथ्वी गोल है इसलिये घूम फिर कर सब कुछ वापस आता है । हो सकता है शब्द की शक्ति के सुनहरे दिनों की वापसी के साथ छायाचित्रों की भी वापसी हो । आज की बात इसलिये क्योंकि परीक्षा परिणाम आने पर समाचार पत्रों के संपादक छायाचित्रों को लेकर बहुत मेहनत करते थे कि कैसे करके आज एक छायाचित्र ऐसा लगे जो कि बस आनंद आ गया कहलवा दे । और आज ये हालत है कि पत्रिका, नवदुनिया और भास्कर तीनों के मुखपृष्ठ पर लगे फोटो समान हैं बल्कि वे बच्चे भी वही हैं । इसका ही अर्थ है कि अब समाचार पत्रों में छायाचित्रों को लेकर कितनी संवेदनशीलता रही है । कोई भी छायाचित्र ऐसा नहीं है जिसको देखकर आनंद आ जाए ।
बात सीहोर की भास्कर आज बड़ी चूक कर गया है ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है क्योंकि घटना ऐसी नहीं है जो चूक कही जाए पूरे शहर को जो घटना मालूम थी वो भास्कर को नहीं मालूम थी ऐसा नहीं माना जा सकता है । मगर हुआ यही है नजदीकी गांव कचनारिया में गोली चलने और एक की मौत होने साथ ही कई घायल होने का समाचार भास्कर में नहीं लगा है हैरत की बात है कि जिस समाचार को सभी ने लीड बनाया है उसको भस्कर ने लगाना भी उचित नहीं समझा है । और उसके पीछे भी कारण है भास्कर की विज्ञापन की मानसिकता । भस्कर में आज विज्ञापन ही विज्ञापना लगे हैं और इन विज्ञपनों के चक्कर में ही भास्कर भूल गया कि कल के अंक में पाठक को समाचार भी देना हैं । आज भास्कर ने दसवीं के परिणामों पर समाचार लीड लगाया है शेष विज्ञापन हैं । एक पाठक की ये टिप्पणी बहुत सामयिक है अगले महीने से हॉकर से कह दूंगा कि भास्कर की जगह नवदुनिया या पत्रिका डाल दे । पाठक को मूर्ख बनाने का गणित अब नहीं चलने का ।
पत्रिका ने आज एक ऐसी मूर्खता की है जिसे पत्रकारिता की दृष्टि से भी और पाठकों के नजरिये से भी क्षम्य नहीं किया जा सकता है । पहला तो ये कि दसवीं के परिणाम को लेकर कोई मेहनत नहीं की है जहां भास्कर, नवदुनिया ने जिले में अव्वल आने वाले विद्यार्थियों के फोटो लगाए हैं और उनका परिचय दिया है वहीं पत्रिका ने केवल एक औपचारिक सा समाचार लगा कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली है । अब बात मूर्खता की, जहां दूसरे समाचार पत्रों ने बाकायदा सफल होने पर प्रसन्न हो रहे विद्यार्थियों के चित्र लगाए हैं मेरिट में आने वालों के पासपोर्ट फोटो लगाए हैं वहीं पत्रिका ने कलेक्टर का फोटो लगाया है अब इस मानसिक दीवालियेपन की उम्मीद राजस्थान के नंबर वन पेपर से तो नहीं की जा सकती । उन बच्चों का हक बनता है जिन्होंने मेहनत करके मेरिट में स्थान बनाया है कि कल लोग उनको जाने, कलेक्टर का फोटो छापने के लिये तो और भी मौके होते हैं । जहां दूसरे पेपरों ने मेहनत करके ना केवल जिले की प्रावीण्य सूची बल्कि विद्यार्थियों के फोटो और परिचय भी छाप दिया है वहीं पत्रिका केवल शासकीय विज्ञप्ति को लगाकर अपने कर्तव्य को पूरा कर गया है और करेला नीम चढ़ा की स्थिति बनी है शासकीय विज्ञप्ति में कलेक्टर का फोटो लगाने से । पत्रिका जोर शोर से ये नगाड़ा पीटते हुए आई है कि वो चाटुकारिता वाली पत्रकारिता को खत्म कर जनता की बात करेगी, मगर ये क्या है । इस पत्रकारिता की उम्मीद पत्रिका से पाठकों को नहीं है ।
नवदुनिया ने फोटो के मामले में और दसवीं के समाचारों के मामले में बाजी फिर मारी है । जीतेंगें हम बाजी हर ..... शीर्षक से एक ऐसा समाचार लगा है जो परिणाम आने के दूसरे दिन हर पाठक पढ़ना चाहता है । उस पर रिजल्ट देखते उत्सुक विद्यार्थियों और जश्न मनाते सफल विद्यार्थियों का अच्छा चित्र लगा है । साथ ही मेरिट में आए बच्चों के पासपोर्ट फोटो भी लगे हैं जिससे पता चलता है कि समाचार में मेहनत की गई है । युवक की हत्या के बाद तनाव का समाचार यहां पर लीड लगा है ।
राज एक्सप्रेस की अगर बात की जाए तो यहां पर आज जमीन विवाद का समाचार लीड है और दसवीं के परिणाम नीचे लगे हैं । दोनों ही समाचार जो आज के मुख्य समाचार हैं उनको पत्र ने ठीक तरीके से लगाया है हां जितनी मेहनत क्राइम के समाचार पर की गई है उतनी मेहनत दसवीं के बच्चों के समाचार नहीं की गई है । ये आज के समाचार पत्रों की दशा और दिशा को बताता है ।
कुल मिलाकर आज का दिन मिला जुला रहा है भास्कर ने जहां दसवीं के परिणाम को ठीक तरीके से उठा लिया तो वो जमीन विवाद में पिट गया । पत्रिका ने जमीन विवाद को लगा लिया तो दसवीं के परिणाम में वो बुरी तरह से पिटा । नव दुनिया और राज एक्सप्रेस दोनों ही दोनो समाचारों में सफल रहे हैं ।
पत्रिका समाचार पत्र का मुखपृष्ठ दूसरों से बाजी मारता तो दिखता है लेकिन स्थानीय पृष्ठ पर आकर बात टांय टांय फिस्स हो जाती है ।
समाचार पत्रों के लिये ये एक ऐसा समय है जब कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के चलते पाठकों के लिये हर तरह का ललचाऊ प्रलोभन दिया जा रहा है । दरअसल में एकाधिकार एक ऐसा शब्द है जिसको तोड़ने के लिये समय समय पर प्रयास होते हैं और एकाधिकार भले ही किसी भी क्षेत्र का हो वो लोगों को भाता नहीं है । लेकिन एकाधिकार को तोड़ने के लिये आवश्यक है कि एकाधिकार करने वाले से भी जोरदार प्रयास हो । अब जैसे भोपाल या यूं कहें कि मध्यप्रदेश में एकाधिकार दैनिक भास्कर का है और उस पर तुर्रा ये कि भास्कर ने अपना प्रदेश छोड़कर उन प्रदेशों में भी हाथ मारा जहां कोई और छत्रप था । बस फिर क्या था बात की बात में दूसरे छत्रप मध्य प्रदेश में लड़ाइ लड़ने आ गए । कहा जाता है कि प्रतिस्पर्धा का लाभ ही होता है प्रतिस्पर्धा हमेशा ही गुणवत्ता बढ़ाने का काम करती है । और ऐसा ही कुछ हुआ है समाचार पत्रों की इस प्रतिस्पर्धा के चलते भी । पाठकों को बेहतर समाचार मिल रहे हैं और साथ ही बेहतर गुणवत्ता का समाचार पत्र भी । अब जैसे पत्रिका को ही कहें तो पत्रिका के आने के बाद भास्कर को भी अपनी रणनीति को पुन: बनाना पड़ा क्योंकि पत्रिका ने वो सब कुछ किया जो कि पाठकों को चाहिये । भास्कर का जब तक एकाधिकार था तब तक उसने पाठाकों के बारे में कभी भी नहीं सोचा कि पाठक को भी कुछ चाहिये उसने तो केवल विज्ञापनों के बारे में ही सोचा हालत ये हो गई थी कि पूरे पूरे पेज के विज्ञापनों के अलावा भास्कर में कुछ भी नहीं होता था । पर अब हालात बदल रहे हैं । आज पत्रिका में मुखपृष्ठ पर लगे भुवनेश जैन के लेख ने भास्कर के उस दौर की याद ताजा कर दी जब प्रदेश के श्रेष्ठ संपादक श्री महेश श्रीवास्तव के अग्रलेख दिन में कई कई बार पढ़े जाते थे । किन्तु बाद में ना काहू से दोस्ती नो काहू से बैर की तर्ज पर भास्कर ने ये सब बंद कर दिया और जनता की आवाज उठाने वाला कोई भी नहीं रहा । अब लगता है पाठकों के पुराने दिन वापस आ रहे हैं ।
लगता है कि इन दिनों समचारों को लेकर कुछ टोटा चल रहा है तभी तो आज भास्कर में एक भी समाचार नहीं है । खेलकूद प्रशिक्षण का समापन, को लीड स्टोरी बना कर कुछ प्रेस विज्ञप्तियों से पेज बना दिया गया है जिसमें पठनीय कुछ भी नहीं है । दरअसल में भास्कर की ये ही तो वो कमी है जिसपर पत्रिका वार करना चाह रही है । भास्कर ने अपने पत्रकारों को पत्रकार से ज्यादा कर्मचारी बना कर रखा है । और उस पर भी जनहित का कोई समाचार जिसमें किसी के विरुद्ध कुछ हो उसे स्थान नहीं मिलता है । ये सब बातें ही तो पत्रिका को देखनी हैं ।
पत्रिका की अगर बात करें तो ये तो तय है कि स्थानीय पृष्ठ को छोड़कर बाकी का पूरा पत्रिका पठनीय आ रहा है जैसे आज ही भुवनेश जैन का आलेख पठनीय है । सीहोर पृष्ठ पर आज बरसात होने की लीड स्टोरी है । खली के भतीजे का समाचार आज पत्रिका ने लगाया है जो कि कल के समाचार पत्रों में भास्कर और नवदुनिया पहले ही लगा चुके हैं । बस यही मात खा रही है पत्रिका एक दिन छोड़कर समाचार लगाना या दूसरे पत्रों के समाचार लगाना ये ही वो बात है जो कि पाठक पसंद नहीं करते । रिपोर्टर सूर्यमणी शुक्ला ने आज फिर किसी गांव की कहानी को दिया है । ऐसे समय में जब कि पत्रिका सीहोर में जमने के प्रयास में लगी है उस समय ग्रामों की कहानियां सीहोर पृष्ठ पर लगाना पत्रिका के लिये घातक सिद्ध हो सकता है । सीहोर के संस्करण पर पाठक सीहोर की ही खबरें चाहता है कोई बड़ी घटना हो गई हो तो और बात है ।
नवदुनिया की अगर बात करें तो इसके मामले में उल्टा हो रहा है । इसका सीहोर पृष्ठ पठनीय आ रहा है मगर बाकी के पृष्ठ जो भोपाल से आ रहे हैं उनमें कुछ भी नहीं होता । अगर पत्रिका के भोपाल से आ रहे पृष्ठों में सीहोर के नव दुनिया के चार पेज लगा दिये जाएं तो एक ऐसा समाचार पत्र बनेगा जिसको भास्कर छू भी नहीं पाएगा मगर बात वही है कि पत्रिका का ये अच्छा है तो नवदुनिया का वो । आज नवदुनिया ने परिसीमन में स्थानांतरित हुए मतदाताओं का समचार प्रकाशित किया है ये मुख्यमंत्री के क्षेत्र के वे मतदाता हैं जो कि अब दूसरे क्षेत्र में नदी के कारण स्थानांतरित कर दिये गए हैं । हालंकि आज नवदुनिया का मुंबई न बन जाए समाचार ठीक नहीं बन पड़ा है । पहले तो शीर्षक ही गलत लग गया है । स्थानीय पृष्ठ पर कैसे शीर्षक लगने हैं उसमें अगर नवदुनिया ही ग़लती करेगा तो लोग किसे देखेंगें । आंकड़ों में भी गलतियां हैं सीहोर में भारी वर्षा 2006 में हुई थी जिसको 2007 में लिखा गया है और दो बार लिखा गया है । हंसी की बात ये है कि शुरुआत में ही लिखा गया है कि नगर पालिकाओं ने गंभीरता के साथ अभियान नहीं छेड़ा । शायद समाचार लिखने वाले को पता नहीं है कि शहर में एक ही नगर पालिका होती है और वो इसलिये क्योंकि नीचे पूरा का पूरा समाचार सीहोर का ही है । मजे की बात ये है कि लिखा गया है कि प्री मानसून की पहली ही बारिश में नाले जाम हो गए और पानी सड़कों से होता हुआ घरों में घुस गया ये बात कहां की है ये तो लिखने वाला ही बात सकता है क्योंकि सीहोर में तो ऐसा नहीं हुआ जहां का ये समाचार बताया जा रहा है । आज की गलतियां नवदुनिया के लिये सरदर्द हो सकती हैं ।
राज एक्सप्रेस ने आज नागरिक बैंक के चुनाव होने का समाचार लगाकर बाजी मार ली है क्योंकि जनरुचि का ये समाचार किसी भी समाचार पत्र में नहीं लगा है । उललेखनीय है कि नागरिक बैंक में 2001 के बाद चुनाव नहीं हुए हैं और ये समाचार आम जनता के लिये रोचक है । रिपोर्टर श्रवण मावई ने थानेदार से हवलदार तक बनेंगें वैज्ञानिक शीर्षक से अच्छा समाचार बनाया है ये समाचार भी दूसरे चूक गए हैं ।
कुल मिलाकर बात वही है कि नवदुनिया और पत्रिका के पृष्ठों को मिलाकर तो एक सम्पूर्ण समाचार पत्र बन रहा है लेकिन अलग अलग में दोनों ही भास्कर से पीछे रहेंगें ।
क्या हिंदी की पीड़ा के बारे में बात करना सनसनी फैलाना है और नाग नागिन भूत प्रेत दाऊद की बात करना समाचार दिखाना है
कल के मेरे पोस्ट पर एक टिप्पणी मिली है जिसमें मुझे निर्देशित किया गया है कि मैं सनसनी फैलाने का काम नहीं करूं । निर्देशित करने वाले कोई जालिम जी हैं । मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि हिंदी की पीड़ा की बात करने का मतलब सनसनी फैलाना कहां से हो रहा है और मीडिया वाले जो भूत प्रेत नाग नागिन दिखा रहे हैं क्या वे जनहित के मुद्दे उठा रहे हैं अगर ऐसा ही है तो क्ष्मा करें मैं वैसा नहीं कर सकता हूं ।
चलिये बात करें इन दिनों पत्रकारों के अच्छे दिन आ गए हैं उसकी । मेरे ही शहर में अब पत्रकारों की सेलेरी भी पांच अंकों में पहुंच गई है । आज से पांच साल पहले कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा होगा । उस पर हो ये भी रहा है कि पत्रकारों के भी थोक में स्थानांतरण हो रहे हैं । मेरे शहर में तीन माह पहले जो जिसे पेपेर में था उनमें से एक दो को छोड़कर सब कहीं और हो गए हैं । ऐसा नहीं है कि श्री आलोक मेहता ही आउटलुक से नवदुनिया में आए हैं हमारे पत्रकार भी इधर से उधर हो रहे हैं दो माह पहले शैलेष तिवारी जागरण में थे अब वे पत्रिका में हैं वसंत दासवानी अपना साप्ताहिक सीहोर एक्सप्रेस निकाल रहे थे अब वे नव दुनिया में हैं । संजय धीमान जागरण से पत्रिका और सूर्यमणी शुक्ला भास्कर से पत्रिका में आ गए हैं । नवदुनिया के ओम मोदी और महेंद्र सिंह ठाकुर अब अक्षर विश्व में हैं । योगेश उपाधयाय नव भारत से जागरण में चले गए हैं तो सुनील शर्मा राज एक्सप्रेस से जागरण में आए हैं । जय उपाध्याय नव भारत भोपाल से सीहोर आ गए हैं । जो नहीं बदले हैं उनमें स्तंभ लेखक भी हैं जो कि अभी भी क्षितिज किरण से जुड़े हैं।
खैर तो बात आज के समाचार पत्रों की भास्कर ने आज सीहोर में 15 दिनों का पानी शेष होने का लीड लगाया है और कोई विशेष या पठनीय समाचार भास्कर के चार पेजों में कहीं नहीं है । भास्कर को अभी भी गंभीरता से सोचना होगा कि यदि समाचार छापने प्रारंभ नहीं किये तो केवल विज्ञापन से चार पेज भर कर पाठक को मूर्ख बनाने का काम अब नहीं चलने वाला है । उस पर जो पूरे रंगीन पेज करने की घोष्णा की गई थी वो भी छलावा सिद्ध हुई है । तो बात वही है कि यदि भास्कर नहीं चेता तो उसके हिस्से की खीर नव दुनिया और पत्रिका बांट ले जाऐंगें ।
पत्रिका ने विदेशी समाचार पत्रो को बड़े फोटो छापने का जो पेटर्न लिये है वो कुछ खलता है क्योंकि पाठक समाचार पत्र को पढ़ने के लिये ले रहा है देखने के लिये नहीं । उस पर भी पत्रिका के समाचार शासकीय विभागों के आस पास ही ज्यादा घूम रहे हैं । आज भी कौन खा रहा है बच्चों का भोजन शीर्षक से जो समाचार लगा है वो कमोबेश यही है । प्रधानमंत्री सड़क योजना का समाचार जो लगा है वो भी उसी पृष्ठभूमि पर है । पत्रिका के साथ जो अभी दिक्कत आ रही है वो ये है कि पत्रिका में पठनीयता नहीं आ पा रही है । बात वही है कि केवल दर्शनीयता से पेपर नहीं चलता पेपर में पठनीयता होना ही चाहिये ।
नवदुनिया ने आज हवा में पेड़ और पोल उखड़ने का समाचार लीड किया है तो ब्रांडेड पैट्रोल को लेकर भी एक समाचार लगा है साथ ही बस जब्त होने पर पुलिस वालों के बीच हुई झूमा झटकी का समाचार भी चित्र के साथ लगा है जिसमें दो पुलिस वालों के बीच हो रही झूमा झटकी साफ दिख रही है । ये चित्र समाचार की जान बन पड़ा है । छत्तीस गढ़ के गृहमंत्री रामविचार नेताम जिनके पुत्र की पिछले माह दुर्घटना में मौत हो गई थी उनके सपत्नीक दुर्घटना स्थल पर आने और उनके भावुक हो जाने का समाचार नवदुनिया ने ठीक प्रकार लगाया है ये समचार नवदुनिया के अलावा केवल भास्कर और जागरण में ही लगा है पर वहां सूचनाप्रद ही लगा है । पत्रिका आज के इस महत्वपूर्ण समाचार में चूक गई है ।
राज एक्सप्रेस में भी आज जल संकट को लेकर ही लीड समाचार लगा है जिसमें शहर के जल संकट को लेकर हाहाकार मचने को लेकर फोटो समाचार लगा है शहर में 350 लीटर केरासिन एक कार से जब्त होने का समाचार वो समाचार है जो कि भास्कर, पत्रिका और नवदुनिया तीनों से ही चूक गया है जबकि राज ने फोटो के साथ शहर के मेन बाजार में जब्त कार का समाचार छापा है । हैरानगी की बात है कि मेन रोड पर कार में 350 लीटर कैरोसिन जब्त होने का समाचार तीन प्रमुख समाचार पत्रों को नहीं मिल पाया है ।
जागरण ने छत्तीस गढ़ के गृह मंच्ी के समाचार को फोटों के साथ लीड में लगाया है । इसके अलावा महाराणा प्रताप जयंती पर निकली शोभायात्रा को भी काफी प्रमुखता के साथ छापा है जिसमें यात्रा के दो चित्र भी लगे हैं । उसके अलावा सभी सामान्य प्रेस विज्ञप्तियां ही लगी हुईं हैं ।
कुल मिलाकर आज के पेजों की बात करें तो आज जब गृहमंत्री की आंखें नम हो गईं छत्तीस गढ़ के राज्य मंत्री का समाचार लगा कर नव दुनिया ने बाजी मारी है वहीं राज एक्सप्रेस ने भी मेन रोड पर 350 लीटर केरोसिन जब्ती का समाचार लगा कर आगे निकलने का प्रयास किया है मुख्य बात ये है कि मुख्य बाजार में हुई इस घटना को लेने में भास्कर नवदुनिया और पत्रिका तीनों चूके हैं जबकि राज ने फोटो के साथ छापा है ।
हिंदी भाषा से अरबपति बनने वाले श्री अमिताभ बच्चन जब अंग्रेजी में अपना ब्लाग लिखते हैं तो क्या आपको शर्म नहीं आती कि हमने किस दोहरे चरित्र वाले को सर पर बैठा रखा है
हिंदी इन दिनों अपने सबसे संकट के दौर गुजंर रही है और शायद ये ही वो दौर होता है जिसको किसी भी भाषा के लिये क्रांतिक काल कहा जाता है । वो समय जब ये तय होता है कि कोई भाषा अपने आप को बचा कर रख पाएगी अथवा नहीं । और अगर भारत का इतिहास देखा जाए तो यहां पर तो युगों से होता आ रहा है आक्रमणकारियों की भाषा ने शनै: शनै : यहां की मूल भाषा को खत्म करने का काम किया है । संस्कृत गई खड़ी बोली गई और अब हिंदी की बारी है । शर्म तो तब आती है जब श्री अमिताभ बच्चन जिन्होंने हिंदी भाषियों का ही खून चूस चूस कर अरबों कमाए हैं वे भी अवसर आने पर अंग्रेजी में ही अपना ब्लाग प्रारंभ करते हैं । मेरे मित्र और पुलिस महानिरीक्षक श्री पवन जैन इन सारे लोगों को काले अंग्रेज कहते हैं । खैर ये तो बात हुई हिंदी की, हिंदी जिसको बचाने के लिये हर तौर पर प्रयास किये जा रहे हैं । मगर हिंदी फिल्मों से करोंड़ों की कमाई करने वाले शाहरुख खान और सैफ अली जब मंच पर हिंदी की हंसी उड़ाते हैं तो क्या आपको रोना नहीं आता । मातृभाषा की हंसी उड़ाने और मां की हंसी उड़ाने में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता ।
खैर ये तो विचार मैंने छोड़ दिये अब चले 6 जून के समाचार पत्रों की समीक्षा पर । भास्कर आज से अपने पूरे पेज रंगीन कर तो दिये हैं पर ये रंगीन कुछ समझ से परे की बात है क्योंकि रंगीन करने के नाम पर एक रंगीन पट्टी कुछ पेजों पर दे दी है । आज के पेज पर ट्रांस्फार्मर पर इनर्जी मीटर लगने का एक समाचार लगा है और साथ ही बरसात का समाचार और फोटो लीड में लगा है । राज एक्स्प्रेस ने आज न मैं कहूं तेरी न तू कहे मेरी शीर्षक से एक रोचक परिचर्चा लगाई है जिसमें सीहोर में राजनैतिक दलों द्वारा जन हित के मुद्दों पर चुप्पी साधे रहने पर जनता की प्रतिक्रियाएं लगाई हैं । साथ ही जल समस्या का एक फोटो आज लीड में लगा है । निर्मल ग्राम सरकारी योजना की जानकारी का समाचार रिपोर्टर श्रवण मावई के नाम से लगा है नाम से क्यों लगा है ये समझ से परे बात है । पत्रिका का टैम्पो अभी भी नहीं बन पा रहा है और ये समाचार पत्र अब ये जानने के बाद कि पाठक उसकी ओर रुख नहीं कर रहे हैं हॉकरों को सेट करने की स्कीम लाने में लग गया है जिसके अंतर्गत छ: माह तक पेपर की वसूली का पूरा पैसा 45 रुपये एजेंट और हॉकर ही रखेंगें की योजना आई है । आज निकटस्थ ग्राम थूनाकलां में जल संकट का समाचार आधे पेज में लगा है पत्रिका को ये समझना होगा कि पाठक लीड पेज पर अपने ही शहर का समाचार चाहता है ना कि ग्रामीण अंचल का । नवदुनिया ने आज लाइन मार गई शीर्षक से रोचक समाचार लगाया है जिसमें पानी की लाइन, बेराजगारों की लाइन, बैंके में चालान की लाइन, और घांसलेट की लाइन को लगकर अच्छी फोटो स्टोरी डवलप की है । वहीं एक और अन्य समचार में किराए पर चल रहे सरकारी भवनों का आंकडों से भरपूर समाचार लगा है ।
कुल मिलाकर समाचार पत्रों के इस महासंग्राम में चारों समाचार पत्र अपने अपने हिसाब से युद्ध को जीतनें का प्रयास कर रहे हैं । ग्राफिक्स और डिजाइनिंग में पत्रिका और नवदुनिया में कांटे की टक्कर है तो समाचारों के मामले में नवदुनिया और भास्कर में टक्कर है । पत्रिका को यदि भास्कर से टक्कर लेनी है तो उसको समाचारों का स्तर सुधारना होगा ।
समाचार पत्रों का महासंग्राम पाठकों को मिल रहीं है बाल्टियां बैग और जाने क्या क्या किन्तु कहां हैं समाचार
कुछ दिनों पहले तक तो ऐसा लग रहा था कि अब न्यूज चैनलों के दौर में समाचार पत्र दम तोड़ देंगे लेकिन कहा जाता है ना कि नया नौ दिन पुराना सौ दिन और वहीं हुआ भी । उधर समाचार चैनल भूत प्रेत दाऊद नागिन पुष्पक विमान, स्वर्ग की सीढ़ी टाइप की मूर्खताओं में उलझे और इधर पाठक जो कुछ दिनों के लिये दर्शक हो गया था वो पुन: ऊब कर पाठक ही हो गया । समाचार चैनलों की हालत तो अब ये हो गई है कि जब कोई रोचक कार्यक्रम नहीं आ रहा होता है तब लोग समाचार चैनल पर रिमोट को लाते हैं और कुछ ही देर बाद समाचार चैनल से हट कर किसी दूसरे उबाऊ प्रोगाम को देखने लगते हैं ये सोच कर कि कितना ही उबाऊ होगा पर समाचार चैनलों से तो अच्छा ही होगा । मंगल पर जीवन, पृथ्वी खतरे में है यूएफओ जैसे ##यापे अब आम बात हो गए हैं और दिखाने वाले भी जान रहे हैं कि इनको कोई नहीं देखेगा पर क्या करें । अभी एक चैनल में सबसे घृणित कार्यक्रम आ रहा था जिसमें राजू श्रीवास्तव ( पक गई मक्का) महिलाओं के अंत:वस्त्र पहन कर कार्यक्रम दे रहा था ( अब इससे ज्यादा चैनलों का मानसिक दीवालियापन और क्या कहा जाए ) । खैर तो समाचार पत्रों के सुहाने दिन लौट आए हैं और इसी के कारण समाचार पत्रों की संख्या भी बढ़ रही है ।
चलिये बात करें हमारे शहर में आज बंटे प्रमुख समाचार पत्रों के स्थानीय पेजों की । दैनिक भास्कर को शायद समझ में आ गया है कि यदि आगे रहना है तो पेपर में समाचार देने होंगें । आज सभी समाचार पत्रों ने वट सावित्री के फोटो चार कालम में लगाए हैं लेकिन भास्कर का फोटो सर्वश्रेष्ठ है । वहीं इछावर से रिपोर्टर परवेज खान का समाचार कुपोषित बच्चों को दूध और अंडा मिलेगा भी रोचक है । भास्कर के रिपोर्टर बलजीत ठाकुर ने दो घंटे का सीन में तहसील कार्यालय का दो घंटे का हाल बताने का प्रयास किया है किन्तु समाचार कुर्सी से गायब कर्मचारियों का बचाव करता नजर आता है । आर टी ओ में आन लाइन जमा होगा टैक्स और 15 जून को आएगा मानसून रोचक समाचार हैं । पत्रिका अभी स्टोरी पर खेल खेल रही है आज की लीड स्टोरी बंगले छोड़ झोंपडि़यों की ओर रईस जा रहे हैं समाचार रोचक है मगर एक बात जो समाचार को कमजोर बना रही है वो ये कि हेडिंग में लिखा है बंगले छोड़ रईस झोंपडियों की ओर मगर अंदर वैसी कोई जानकारी नहीं है कि कौन कौन से रईसों ने ऐसा किया है । रिपोर्टर शैलेष तिवारी ने आज रोजगार गारंटी योजना को लेकर एक स्टोरी दी है जो आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो ठीक है । चढ़ता पारा बढ़ते मरीज और बंजर जमीनों के दोगुने दाम जैसे समाचार भी सीहोर पृष्ठ पर लगे हैं । जागरण का सीहोर पृष्ठ कुछ दिनों से कमजोर चल रहा है लेकिन आज प्रेम विवाह करने वालों के सरकारी आंकड़ों पर आधारित एक समाचार को यहां लीड स्टोरी बना कर पेपर की पुरानी पठनीयता को लौटाने का प्रयास किया गया है साथ ही कानाफूसी कालम के द्वारा समाचारों के पीछे के रोचक तथ्य तलाशने की कोशिश की है ये विधा आजकल कम होती जा रही है । राज ने आज इछावर के एसडीएम तूफान सिंह अहिरवार पर आपराधिक प्रकरण दर्ज होने की संभावना का एक रोचक समाचार लगाया है साथ ही शहर में कम हो रहे खेल मैदानों का समाचार लीड बना है शनि मंदिर को लेकर भी एक समाचार लगाया गया है । नवदुनिया आज के मुख्यपृष्ठ पर एक भी विज्ञप्ति न लगाकर पूरे समाचार ही लगाए हैं उनमें से विद्युत मंडल पर सरकारी विभागों की लाखों की राशि बकाया होने का समाचार लगा है और वहीं मुहलले की बिजली चोरी होने पर पता लगाने की तकनीक की रोचक जानकारी है । सीहोर से भोपाल बायपास को जोड़ने वाले मार्ग के बन जाने का समाचार पहली बार किसी पेपर में प्रकाशित हुआ है । वट सावित्रि का चार कालम में लगा फोटो और बेहतर हो सकता था । नव भारत ने आज जल संकट का एक समाचार तथा अन्य विज्ञप्तियां अपने पृष्ठ पर दी हैं । कुल मिलाकर समाचार पत्रों की भिड़ंत में पाठकों को समाचार मिलने लगे हैं । जों एक शुभ संकेत है ।
समाचार पत्रों के महासंग्राम में पत्रिका दूसरे दिन भी कमजोर सिद्ध हुई भास्कर और नवदुनिया में कांटे की टक्कर
भोपाल क्षेत्र के पाठक इन दिनों ले रहे हैं समाचार पत्रों के महा संग्राम का मज़ा और इस मज़े के उनको कई लाभ भी मिल रहे हैं । हालंकि ये बात तो अभी भी तय नहीं हो पाई है कि पाठकों को समाचार मिल पा रहे हैं या नहीं । नवदुनिया, भास्कर, राज एक्सप्रेस और पत्रिका में घोषित रूप से महासंग्राम चल रहा है । कल राजधानी से सटे जिला मुख्यालय सीहोर में इस महासंग्राम का असर सुबह दिखाई दिया जब कल पत्रिका की लांचिंग तो हुई पर उसके साथ एक बात और भी हुई और वो ये हुई कि सुबह सुबह चार बजे दैनिक भास्कर के बंडल गायब हो गए और हाकरों में हड़कंप मच गया । अब ये क्या मामला है ये तो समाचार पत्र वाले ही जानें लेकिन हुआ ये ही कि कल जब पत्रिका बंट रहा था तो सीहोर में भास्कर के काफी पाठकों को भास्कर नहीं मिल पाया । खैर ये तो हुई अंदर की बात अब बात करते हैं समाचार पत्रों के सीहोर के पृष्ठ की । नवदुनिया ने आज जहां नौतपे को लकर एक आकर्षक डिजायनिंग का समाचार दिया है जिसमें नौतपे को लेकर पूरे नौ दिनों की स्थिति को बताया है और साथ में शिलान्यास के पूर्व पानी की टंकी ढहने के कारण हुई मौत और उसमें ठेकेदार पर मामला दर्ज होने का मामला भी प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है ये समाचार आज किसी अन्य समाचार पत्र ने प्रकाशित नहीं किया है । उधर दैनिक भास्कर ने अपने रिपोर्टर हरि विश्वकर्मा का समाचार गेंहू खरीदी से गोदाम फुल को प्रमुखता से लगाया है जिसके साथ एक फोटो और कैप्शन भी लगा है । समाचार रोचक नहीं है और केवल आंकड़ों से ही भरा है इसके अलावा भास्कर ने कोई और समाचार नहीं लगाया है बाकी विज्ञप्तियां ही हैं । हालंकि अंदर के पृष्ठ पर कृषि विसतार अधिकारी कार्यालय का इछावर से लगा समाचार रोचक है और चित्र के साथ होने के कारण प्रभावी है । फिर भी दैनिक भास्कर के साथ जो शिकायत पाठको को है कि इसमें समाचार नहीं होते वो आज के पत्र से ही पता चल रहा है । गेंहू खरीदी का समाचार मुख्य समाचार बन गया है जो कि उबाऊ है । पत्रिका ने आज ग्राफिक्स का खेल दिखाने का प्रयास तो किया है पर उसमें भी समाचार कम चित्र ज्यादा हो गए हैं छ: कालम में लीड स्टोरी लगी है जिसमें कुल मिलाकर बीस लाइनें हैं अब इसी से समझा जा सकता है कि क्या स्थिति है छ: कालम में लगभग पचास साइज में हेडिंग और दो स्टाक के फोटो के साथ केवल बीस लाइन का समाचार है जो रिपोर्टर शैलेष तिवारी के नाम से लगा है । उसमें भी दिक्कत है कि समाचार सप्ताह भर पहले हिन्दुस्तान टाइम्स के रिपोर्टर एम हैदर के नाम से एचटी में लग चुका है । पत्रिका को अब ये समझना होगा कि समाचार दूसरे पेपरों से लेने से काम नहीं चलेगा । नीचे क्रासर में फिर पांच कालम का एक फोटो है जिसके साथ में फिर केवल बीस लाइनों का समाचार है दीवरों पर बच्चों द्वारा बनाई गई पेंटिगों का । बड़े फोटो लगा कर छोटे समाचार लगाने की ये टेक्नीक पाठकों को कब तक बहला सकेगी ये समय बताएगा । दौड़ में पीछे चल रहा नव भारत आज शनि जयंती का रोचक समाचार लगा कर कुछ बाजी मार गया है जिसमें सीहोर के शनि मंदिर के चित्र के साथ तीन कालम का समाचार लीड बना है ये समाचार अन्य किसी समाचार पत्र में नहीं है । वहीं राज एक्सप्रेस की यदि बात करें तो राज में भी अब रोचकता की कमी हो गई है किन्तु आज टाउन हाल की जमीन को लेकर एक रोचक समाचार वहां पर लगा है जिसमें रवीन्द्र भवन की जमीन के दान पत्रों का उल्लंघन करने और वो जमीन छीने जाने का जिक्र है । बाकी समाचार ना होकर विज्ञप्तियां ही हैं । तो ये था आज का दिन, पत्रिका को लेकर उठा झाग बैठ गया है । ऐसा लग रहा है कि अब पत्रिका को भास्कर से नहीं बल्कि राज नव भारत और जागरण के साथ मुकाबला करना है । ऊपर के लिये नवदुनिया और भास्कर में ही संग्राम होगा ।
हमारे शहर में पत्रिका के संस्करण की फीकी शुरूआत, इधर उधर के समाचार पत्रों से उठाकर बना दिया सीहोर संस्करण
कहते हैं कि जिसकी ज्यादा प्रतीक्षा होती है वो अक्सर उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है । भोपाल क्षेत्र में समाचार पत्रों की जो लड़ाई चल रही है उससे पाठको को क्या फायदा मिलता है ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा पर अभी तो सभी पेपर युद्ध में लगे हैं । पहले नईदुनिया ने नवदुनिया के नाम से अपना कलेवर बदला और नए रूप में सामने आया और अब राजस्थान पत्रिका जो कुछ दिनों पहले भोपाल से प्रारंभ हो चुकी है वो सीहोर में भी आज आ गई । नवदुनिया ने जिस तरह से आते ही पाठकों का मन जीत लिया था वैसा यहां पर नहीं हो पाया एक तो ये कि नव दुनिया की छपाई की क्वलिटी सबसे बढि़या आई तो उसको पसंद किया गया लोगों ने जाना कि समाचार पत्रों में इतने अच्छे फोटो भी लग सकते हैं । दूसरा इंदौर की नवदुनिया का नियंत्रण आने से समाचार पत्र में पठनीयता बढ़ी । पत्रिका जहां पर मात खा गई है वो दोनों ही क्षेत्र हैं । पहला तो छपाई की क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं है दूसरा समाचारों में भी मात खा गई है । सीहोर के पेज पर वे समाचार लगे हैं जो दूसरे समाचार पत्रों में दस दिन पहले लग चुके हैं । जैसे लीड स्टोरी बनाया गया है इछावर के समाचार लड़कों की संख्या से ज्यादा लड़कियों की संख्या को जो कि वहां के संवाददाता के नाम से लगी है । ये समाचार वास्तव में दैनिक भास्कर का है और इछावर के संवाददाता परवेज मोहम्मद के नाम से पंद्रह दिन पहले लग चुका है । उसीको अब पत्रिका ने अपने संवाददाता राजेश शर्मा के नाम से लगा दिया है । ये एक बड़ी चूक है जो पहले ही दिन हुई है इससे पत्रिका के संपादकीय विभाग की क्वलिटी का पता चलता है । एसे ही एक समाचार लगा है मिथक को लेकर जो कि इछावर में मुख्यमंत्री की यात्रा को लेकर है ये एक ऐसा समाचार है जिसको पढ़ पढ़ के पिछले दस सालों से लोग बोर हो चुके हैं दैनिक भास्कर इस समाचार को बीसियों मर्तबा छाप चुका है और वार्ता से भी ये समाचार कई बार जारी हो चुका है । उसी समाचार को अपने पहले अंक में लगाना समझ से परे की बात है और वो भी तब जब इसका कोई औचित्य नहीं है ये समाचार इछावर में आने वाले मुख्यमंत्रियों से संबंधित है पर अभी जब ना तो कोई मुख्यमंत्री इछावर आ रहा है ना ही आने की संभावना है तब ये समाचार छापना संपादकीय मंडल की एक और भूल है । एक और बात जो कि समाचार पत्र के सीहोर पेज को देखने में आ रही है वो ये कि अधिकतर समाचार शासकीय योजनाओं के आस पास घूम रहे हैं जिनको पढ़ने में आम पाठक की दिलचस्पी नहीं होती है । पहले ही पेज पर ऐसे ही समाचार भरे हुए हैं । पठनीयता जिसकी कमी दैनिक भास्कर में आने के बाद से पाठक उसकी तलाश में था । पत्रिका को लेकर भी पाठकों में वही उत्सुकता थी किन्तु पहला ही दिन पाठकों के लिये निराशा का रहा है । पढ़ी पढ़ाई खबरें और दोहराव की खबरों ने उत्सुकता पर पानी फेर दिया है । अंग्रेजी की कहावते ''बेस्ट बिगन इस हाफ डन'' या '' फर्स्ट इम्प्रेशन इस द लास्ट इम्प्रेशन'' की मानें तो शुरुआत बिगड़ चुकी है । दैनिक भास्कर से प्रतियोगिता करने आया पत्रिका उसी दैनिक भास्कर के पुराने समाचारों को प्रकाशित करके किस तरह की प्रतियोगिता करना चाह रहा है ये समझ से परे बात है ।
पच्चीस साल से नहीं खाया है उन्होंने अन्न का दाना और 20 साल के युवक जैसी है तंदुरुस्ती
अन्न के बारे में कहा जाता है कि वो हमारे जीने के लिये सबसे आवश्यक चीज है और उसके बिना जीने की कल्पना ही कम से कम आज के समय में तो नहीं की जा सकती है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उसके बिना जी रहे हैं बल्कि स्वस्थ जिंदगी को जी रहे है । जैसे मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय सीहोर के कृषी महाविद्यालय में प्रोफेसर के के मिश्रा को ही लें तो वे भी कुछ ऐसी ही जिन्दगी को जी रहे हैं । 50 वर्षीय श्री मिश्रा जब 25 वर्ष के थे तब एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे और उसी समय जाने किस कारण से उन्होंने संकल्प ले लिया कि अब वे अन्न नहीं खाएंगें । और दूध तथा फल के आधार पर ही अपना आने वाला जीवन व्यतीत करेंगें । और तब से लेकर आज तक श्री मिश्रा केवल दूध तथा फल के ही सहारे पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इस बीच में कई बार उनको अपने संकल्प के कारण परेशानियां भी आईं लेकिन वे अपने संकल्प पर डटे रहे और उसी पर चलते रहे। बीते पच्चीस सालों में वे कभी डाक्टर के पास भी नहीं गए ऐसा उनका कहना है । उधर डाक्टरों का कहना है कि शरीर की जो जरूरतें हैं उनके लिये अन्न की आवश्यकता तो होती है ऐसे में श्री मिश्रा केवल दूध और फल के सहारे ही किस तरह से अपने आप को स्वस्थ रखे हुए हैं ये विश्लेषण की बात है । 1983 में अन्न का त्याग करने वाले और तब से ही केवल फलों पर जीवन व्यतीत करने वाले श्री मिश्रा को अब 25 साल फलाहार पर हो चुके हैं आज वे 50 साल के हैं लेकिन उनकी चुस्ती फुर्ती ऐसी है जो किसी नौजवान को भी मात कर दें । 50 साल में उनकी चुस्ती फुर्ती किसी 20 साल के नौजवान की तरह है वे अपने सारे काम स्वयं ही करते हैं और कभी डाक्टर के पास नहीं जाते हैं । उनके घर में बाकी लोगों के लिये तो बाकायदा भोजन बनता है लेकिन श्री मिश्रा के लिये फलाहार की व्यवस्था की जाती है और ऐसा पिछले 25 सालों से हो रहा है ।
आई पी एल का वार और एकता कपूर का परिवार
बहुत दिनों से मैं सोच रहा था कि कोई तो ऐसा कार्यक्रम आए जो इन एकता कपूर के धारावाहिकों से मुक्ति दिलवाए । कहते हैं कि ईश्वर से सच्चे दिल से जो कुछ भी मांगों वो मिल जाता है और हुआ भी आखिरकार आईपीएल के रोमांच के आगे एकता कपूर के लिजलिजे पात्रों ने दम तोड़ ही दिया और आई पी एल ने अपने आप को स्थापित कर लिये हालंकि ये कुछ ही दिन के लिये हुआ हे पर मैं तो अपनी कह रहा हूं कि मेरे घर में ऐसा शायद कई सालों बाद हो रहा है कि महिलाएं अब कुछ घर के काम पर भी रात के समय ध्यान दे रहीं हैं । अब रात को मुझे गर्म खाना मिलने लगा है । मनुहार कर कर के खाना खिलाया जा रहा है कि एक तो और लो कितने दुबले हो गए हो । ऐसा इसलिये क्योंकि टीवी पर बच्चों ने कब्जा कर लिया है । पहले तो ये होता था कि आखिरकार बच्चे हार जाते थे पर इस आई पी एल ने तो खेल ही बदल दिया है । एक तो ये कि बच्चों की छुट्टियां चल रहीं हैं और दूसरे आईपीएल का रोमांच दोनों ने एकता कपूर की तुलसी पार्वती और अजीब अजीब सी शक्लों वाली खलनायिकाओं की धुलाई कर दी है । कभी तो होना ही था तो अब हो गया है । अब कुछ लोग कह रहे हैं कि ये तो तात्कालिक रूप से हो रहा है आईपीएल जाने के बाद क्या होगा । तो मेरा कहना ये है कि ठीक है ये तात्कालिक रूप से हो रहा है पर हुआ तो है । और एक बात जो मुझे अच्छी लग रही है इन मैचों में वो ये कि टेंशन नहीं है केवल उल्लास है । पहले मैंचों को देखने में भारत के हार जाने का टेंशन ( जो अक्सर होता भी था ) लगा रहता का पर अब तो कोई नृप होए हमें क्या हानि वाली बात है । अपन तो देखते रहो । कोई भी जीते या हारे अपने को क्या फर्क पड़ता है । मतलब ये कि दिन भर आफिस में सर खपाने के बाद जब घर लौटो तो तुलसी का और पार्वती का टेंशन या फिर ये कि आखिरकार ये पत्नी है किसकी अनुराग बसु की या मिसटर बजाज की । और फिर ये कि आखिरकार ये जो बच्चा है ये है किसका पार्वती और ओम का या पार्वती और उसके दूसरे पति का या ओम और उसकी दूसरी पत्नी का । मुझे तो कभी कभी लगता है कि एकता कपूर के बारे में भी ..................... । खैर और उस पर ये कि वो कौन सी दवा है जिसको खाने के बाद पार्वती जब बीस साल बाद लौटती है तो पहले से ज्यादा जवान हो जाती है ( ये सब बातें उन अनुभवों के आधार पर कह रहा हूं जो खाना खाने के दौरान सामने चल रहे टीवी को जबरन देखने के दौरान मिले हैं ।) एक बात बता दूं मैं अपने समय में अपने शहर की क्रिकेट टीम का कप्तान रह चुका हूं और क्रिकेट का दीवाना रहा हूं पर काफी समय से क्रिकेट देखना बंद कर दिया था कारण ये था कि मैं भारत को हारते हुए देख नहीं पाता था । दूसरे ये कि पूरा दिन भर अब क्रिकेट पर खराब करने की उम्र भी नहीं रही । इसीलिये मैं इस 20;20 का समर्थक हुं जितना समय एक फिल्म देखने में लगता है उतना समय क्रिकेट में लगाओ और निकल लो । और आईपीएल तो इसलिये भी अच्छी है क्योंकि वहां पर तो केवल खेल देखना है जीत हार का तो कोई टेंशन ही नहीं है । और एक बात ये भी कि अलग अलग देशों के खिलाड़ी जब एक ही टीम में खेलेंगे तो मैत्री की भावना मजबूत होगी ही । खैर मैं प्रसन्न हूं और एकता कपूर की इस पहली हार पर दिल से प्रसन्न हूं । अंत में एक बात सच बताइये जब आप दिन भर के थके हारे घर लौटते हैं तो क्या चाहते हैं यही ना कि कुछ ऐसा देखें जो दिन भर के तनाव को दूर कर दे और उसमें सब आता है आपके बच्चों की मुस्कुराहट भी कोई अच्छी हास्य फिल्म भी और आईपीएल भी, मगर एकता कपूर ना बाबा ना ..............।
मध्य प्रदेश सरकार को योजनाओं के प्रचार के लिये लेना पड़ रहा है मुन्ना भाई का सहारा
वैसे भले ही सब ये कहते हैं कि सिनेमा एक दोयम दर्जे की चीज है पर हकीकत ये है कि उसका सहारा सभी को लेना ही पड़ता है अब मध्य प्रदेश की सरकार को ही ले लें जब उसको अपनी योजनाओं के प्रचार की ज़रूरत पड़ी ( चुनाव जो आ गए हैं ) तो उसको भी सबसे पहले याद आई मुन्ना भाई की ही । सरकार ने अपनी योजनाओं के प्रचार के लिये विकास रथ बनाएं हैं जों कि गांव गांव में घूम कर सरकार की योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं । अब इसमें भी ख़ास बात ये है कि योजनाओं की जानकारी तो बाद में दी जाती है पहले तो गांव वालों को एकत्र करने के लिये प्रोजेक्टर पर मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई जैसी फिल्में दिखाई जाती हैं । और ऐसा भी नहीं है कि ये योजना में शामिल नहीं है ये भी बाकायदा योजना में शामिल है कि गांव वालों को पहले ये फिल्में दिखाई जाएंगीं और बीच बीच में विज्ञापन के ब्रेक की तरह योजनाओं का प्रचार किया जाता है । मतलब ये कि अब सरकारें भी टीवी वालों की तरह हो गईं हैं । प्रचार करना है तो फिल्में दिखाओ और बीच बीच में अपना विज्ञापन कर लो । मजे की बात ये है कि फिल्में दिखाई जाएंगी ऐसा कहा गया है सरकार के प्रचार तंत्र जिला जनसंपर्क द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में कि सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिये जो योजना विकास रथ गांव गांव में जा रहा है उसमें मुन्ना भाई सीरिज की फिल्में दिखाई जाएंगीं । सही बात भी है अगर आपकी योजनाओं में दम है तो प्रचार खुद ही हो जाता है पर अगर दम ना हो तो फिर तो मुन्ना भाई का सहारा लेना ही पड़ता है ।
सुकवि मोहन राय स्मृति गीतांजली समारोह संपन्न प्रो. डॉ. भागचन्द जैन को शिवना सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया
सीहोर शहर की अग्रणी साहित्यिक प्रकाशन संस्था शिवना प्रकाशन ने सुकवि मोहन राय की प्रथम पुण्य तिथि पर गीतांजली समारोह का आयोजन कर उनको अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की । इस अवसर पर शिक्षाविद् प्रो. डॉ. भागचन्द जी जैन को शिवना सारस्वत सम्मान से समादृत किया गया ।
सुकवि मोहन राय की प्रथम पुण्यतिथि पर शहर के साहित्यकारों तथा बुध्दिजीवियों ने शिवना प्रकाशन के आयोजन में उनको अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की । कार्यक्रम का अध्यक्षता पूर्व विधायक श्री शंकरलाल जी साबू ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में मुम्बई से पधारे श्री केशव राय उपस्थित थे । विशेष अतिथि के रूप में सारणी से पधारे गीतकार श्री सजल मालवीय और सहकारी बैंक के प्रबंधक श्री अजय चंगी उपस्थित थे तथा कार्यक्रम के सूत्रधार शिवना प्रकाशन के प्रकाशक पंकज सुबीर थे । कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने तथा मां सरस्वती तथा सुकवि श्री राय के चित्र पर माल्यर्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । युवा कवि जोरावर सिंह ने मां सरस्वती की वंदना का सस्वर पाठ किया । शिवना की ओर से डॉ. कैलाश गुरू स्वामी, बृजेश शर्मा, अनिल राय ने पुष्प हारों से तथा ओम राय ने बैज लगाकर अतिथियों का स्वागत किया । वरिष्ठ कवि श्री रमेश हठीला तथा हरीओम शर्मा दाऊ ने स्व. श्री राय के गीतों का सस्वर पाठ करे उनको गीतांजलि अर्पित की। तत्पश्चात शिवना प्रकाशन की ओर से दिया जाने वाला सुकवि मोहन राय स्मृति शिवना सारस्वत सम्मान कन्या महा विद्यालय के प्राचार्य तथा शहर के वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो. डॉ. भागचन्द जी जैन को दिया गया । अतिथियों ने शाल श्रीफल तथा सम्मान पत्र भेंट कर श्री जैन को ये सम्मान प्रदान किया । इस अवसर पर बोलते हुए श्री केशव राय ने कहा कि धन्यवाद के पात्र होते हैं वे लोग जो किसी साहित्यकार को उसके जाने के बाद भी इतनी शिद्दत के साथ याद करते हैं । प्रो. डॉ. भागचन्द जैन ने सीहोर के साथ अपने अट्ठाईस साल पुराने रिश्तों का जिक्र करते हुए कहा कि इतने वर्षों में इस शहर ने मुझे इतना कुछ दिया है कि मुझे कभी भी अपने गृह नगर सागर लौट कर वापस जाने का विचार भी नहीं आया । उन्होंने सीहोर की साहित्यिक चेतना की भी प्रशंसा की । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व विधायक श्री शंकरलाल साबू ने कहा कि मोहन राय के साथ पूरे शहर के लोगों को नेह का नाता था सभी के साथ उनके आत्मीय संबंध थे । सुकवि मोहन राय अपनी कविताओं अपने साहित्य के कारण हमेशा हमारे दिलों में रहेंगें वे कभी हमसे जुदा नहीं हो पाएंगें । सजल राय ने मोहन राय को गीतों का राजकुमार निरूपित करते हुए उनको गीतों के माध्यम से अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की । अंत में आभार व्यक्त करते हुए डॉ. मोहम्मद आजम ने सभी को आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के पत्रकार, साहित्यकार, सुधि श्रोता उपस्थित थे ।
मुख्यमंत्री के क्षेत्र के एक गांव के पूरे ग्रामीणों ने रखा उपवास, बच्चों ने नहीं लगाया मिड डे मील को हाथ
चार साल पहले प्रदेश में बिजली पानी और सड़क को लेकर बनी सरकार की हालत क्या है ये बात इसी से पता चल जाती है कि मुख्यमंत्री के क्षेत्र में पड़ने वाले एक गांव के ग्रामीण उन्हीं को सदबुद्धि देने के लिये उपवास कर रहै हैं और वो भी एक सड़क को लकर ही ।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुदनी के रेहटी के समीप के गांव मांजरकुई के ग्रामीणो ने उपवास रखा और आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया है । उपवास की स्थिति ये थी कि पूरे गांव में किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला और तो और स्कूल जाने वाले बच्चों ने भी उपवास में अपने माता पिता का साथ दिया । इस प्रकार से कि उन्होंने स्कूल में बनने वाले मिड डे मील को हाथ भी नहीं लगाया और पूरा का पूरा खाना शाम तक वैसा ही पड़ा रहा । दरअस्ल में गांव को लेकर मुख्यमंत्री ने कई बार सड़क निर्माण की घोषण कर दी है पर ग्रामीणों का कहना है कि घोषणा के वल घोष्णा ही रहती है और अभी तक तो कोई भी कार्यवाही नहीं हो पाई है । और अब चुनाव का साल भी आ गया पर कुछ नहीं हो पाया । बार बार मुख्यमंत्री के पास फरियाद लगाते लगाते ग्रामीण थक गए तो आखिरकार उन्होंनें । उपवास का रास्ता अपनाया । पूर्व घोषणा के अनुसार गुरूवार से ये ग्रामीण अनशन पर बैठ गए । पहले दिन पूरा गांव जुट गया और पूरे के पूरे गांव ने ही उपवास रखा । और उसके साथ दो लोग अनशन पर बैठ गए तथा पांच लोगों ने भूख हड़ताल प्रारंभ करदी है । 65 साल के बाबूलाल अनशन पर बैठे हैं । एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने सड़क टारगेट अधूरा रहने को लेकर अधिकारियों का फटकार लगाई है और लगाएं भी क्यों न जब स्थिति ये बन रही हो कि उनके ही क्षेत्र की जनता को सड़क के लिये अमरण अनशन करना पड़ रहा हो तो पूरे प्रदेश ही हालत क्या होगी अनुमान लगाया जो सकता है