हमारे शहर में पत्रिका के संस्‍करण की फीकी शुरूआत, इधर उधर के समाचार पत्रों से उठाकर बना दिया सीहोर संस्‍करण

कहते हैं कि जिसकी ज्‍यादा प्रतीक्षा होती है वो अक्‍सर उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतरता है । भोपाल क्षेत्र में समाचार पत्रों की जो लड़ाई चल रही है उससे पाठको को क्‍या फायदा मिलता है ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा पर अभी तो सभी पेपर युद्ध में लगे हैं । पहले नईदुनिया ने नवदुनिया के नाम से अपना कलेवर बदला और नए रूप में सामने आया और अब राजस्‍थान पत्रिका जो कुछ दिनों पहले भोपाल से प्रारंभ हो चुकी है वो सीहोर में भी आज आ गई । नवदुनिया ने जिस तरह से आते ही पाठकों का मन जीत लिया था वैसा यहां पर नहीं हो पाया एक तो ये कि नव दुनिया की छपाई की क्‍वलिटी सबसे बढि़या आई तो उसको पसंद किया गया लोगों ने जाना क‍ि समाचार पत्रों में इतने अच्‍छे फोटो भी लग सकते हैं । दूसरा इंदौर की नवदुनिया का नियंत्रण आने से समाचार पत्र में पठनीयता बढ़ी । पत्रिका जहां पर मात खा गई है वो दोनों ही क्षेत्र हैं । पहला तो छपाई की क्‍वालिटी उतनी अच्‍छी नहीं है दूसरा समाचारों में भी मात खा गई है । सीहोर के पेज पर वे समाचार लगे हैं जो दूसरे समाचार पत्रों में दस दिन पहले लग चुके हैं । जैसे लीड स्‍टोरी बनाया गया है इछावर के समाचार लड़कों की संख्‍या से ज्‍यादा लड़कियों की संख्‍या को जो कि वहां के संवाददाता के नाम से लगी है । ये समाचार वास्‍तव में दैनिक भास्‍कर का है और इछावर के संवाददाता परवेज मोहम्‍मद के नाम से पंद्रह दिन पहले लग चुका है । उसीको अब पत्रिका ने अपने संवाददाता राजेश शर्मा के नाम से लगा दिया है । ये एक बड़ी चूक है जो पहले ही दिन हुई है इससे पत्रिका के संपादकीय विभाग की क्‍वलिटी का पता चलता है । एसे ही एक समाचार लगा है मिथक को लेकर जो कि इछावर में मुख्‍यमंत्री की यात्रा को लेकर है ये एक ऐसा समाचार है जिसको पढ़ पढ़ के पिछले दस सालों से लोग बोर हो चुके हैं दैनिक भास्‍कर इस समाचार को बीसियों मर्तबा छाप चुका है और वार्ता से भी ये समाचार कई बार जारी हो चुका है । उसी समाचार को अपने पहले अंक में लगाना समझ से परे की बात है और वो भी तब जब इसका कोई औचित्‍य नहीं है ये समाचार इछावर में आने वाले मुख्‍यमंत्रियों से संबंधित है पर अभी  जब ना तो कोई मुख्‍यमंत्री इछावर आ रहा है ना ही आने की संभावना है तब ये समाचार छापना संपादकीय मंडल की एक और भूल है । एक और बात जो कि समाचार पत्र के सीहोर पेज को देखने में आ रही है वो ये कि अधिकतर समाचार शासकीय योजनाओं के आस पास घूम रहे हैं जिनको पढ़ने में आम पाठक की दिलचस्‍पी नहीं होती है । पहले ही पेज पर ऐसे ही समाचार भरे हुए हैं । पठनीयता जिसकी कमी दैनिक भास्‍कर में आने के बाद से पाठक उसकी तलाश में था । पत्रिका को लेकर भी पाठकों में वही उत्‍सुकता थी किन्‍तु पहला ही दिन पाठकों के लिये निराशा का रहा है । पढ़ी पढ़ाई खबरें और दोहराव की खबरों ने उत्‍सुकता पर पानी फेर दिया है । अंग्रेजी की कहावते ''बेस्‍ट बि‍गन इस हाफ डन'' या '' फर्स्‍ट इम्‍प्रेशन इस द लास्‍ट इम्‍प्रेशन'' की मानें तो शुरुआत बिगड़ चुकी है  । दैनिक भास्‍कर से प्रतियोगिता करने आया पत्रिका उसी दैनिक भास्‍कर के पुराने समाचारों को प्रकाशित करके किस तरह की प्रतियोगिता करना चाह रहा है ये समझ से परे बात है ।

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

सुबीर जी
एक ज़माना था जब राजस्थान पत्रिका की राजस्थान में तूती बोलती थी. इसका पत्रिका ने फायदा भी खूब उठाया और पाठकों को जम के लूटा. भास्कर के आने के बाद उसका एक छात्र राज्य खत्म हो गया.साथ ही पाठकों को अखबार सस्तेमें मिलने लगा. प्रतियोगिता में बने रहने के लिए पत्रिका का स्तर नीचे उतरता चला गया. आज भास्कर के पाठकों की संख्या और विस्तार पत्रिका कहीं ज्यादा है. आप ने सही कहा है की अगर स्तर कायम नहीं रहा तो पाठकों की संख्या में गिरावट आएगी.
नीरज

Udan Tashtari said...

लगता है लम्बी इन्तजारी में ज्यादा ही उम्मीद लगा बैठे आप.