रेडियो मास्‍टर साहब की कक्षा में सीख रहे हैं स्‍कूल के बच्‍चे अंग्रेजी बोलना

एक साल पहले रेडियो के द्वारा सरकारी स्‍कूलों में बच्‍चों को अंग्रेजी सिखाने का प्रयास की शुरूआत की गई थी हालंकि उस समय तो इसको गंभीरता से नहीं लिये गया था पर आज उसके परिणाम सामने आने लगे हैं । मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के स्‍वामी विवेकानंद स्‍कूल में सुबह दस बजे छात्रों के समूह को रेडियो के सामने बिठाकर उनको अंग्रेजी सीखने का प्रोग्राम सुनाया जाता है उसी समय ये बच्‍चे रेडियो पर बोले गए वाक्‍यों को साथ में दोहराते हैं और कार्यक्रम खत्‍म होने के बाद सीखे गए वाक्‍यों को दोहराते हैं  । इस अभ्‍यास से बच्‍चों को काफी फायदा मिल रहा है और अब ये बच्‍चे अंग्रेजी में दक्ष होते जा रहे हैं । अब ये बच्‍चे अंग्रेजी के वाक्‍यों को बहुत अच्‍छी तरह से बोल लेते हैं । विवेकानंद स्‍कूल के टीचर बताते हैं कि रेडियो को सुनते सुनते ये बच्‍चे आसानी से अंग्रेजी सीख रहे हैं और ये प्रोग्राम भी इतना मनोरंजक होता है । कि बच्‍चे इसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहते हैं । वहीं बच्‍चों को कहना है कि रेडियो प्रोग्राम सुनते हुए सीखना उनको अच्‍छा लगता है उसमें ना तो डांट होती हे और नही कुछ कठिन शब्‍द होते हैं । पिछले साल चालू की गई इस योजना को अभी तो कक्षा छ: से शुरू किया जाता है पर आने वाले साल में इसको कक्षा पहली से ही प्रारंभ किया जाएगा । कक्षाओं का दृष्‍य बड़ा मज़ेदार होात है कक्षा टीचर की टेबल पर रेडियो मास्‍टर साहब को बिठाया जाता है और कक्षा टीचर पीछे खड़े होते हैं और फिर चालू होती है रेडियो गुरूजी की कक्षा । अच्‍छा प्रयोग है पर ये तो बड़ी मुश्किल है कि आने वाले टीचर्स डे पर ये बच्‍चे किसको फूल भेंट करेंगें टीचर को या रेडियो को ।

भारत के प्रधानमंत्री का नाम बाबूलाल गौर है

चौंकिये मत ये एक बात ही वो हें जो देश में शिक्षा के नाम पर करोंड़ों के खर्चे की सारी कलई खोल कर रख देती  है । और इससे ही पता चलता है कि वास्‍तव में हम तो जहां से चले थे वहीं पर खड़े हैं और बड़े बड़े अभियानों से कुछ भी नहीं बदल पाया है ।
दरअसल में ये बात कही है एक स्‍कूली छात्र ने जिसको शिक्षा विभाग ने बड़े शान का साथ प्रश्‍न पूछने के लिये कलेक्‍टर के सामने प्रस्‍तुत किया था ।  मध्‍यप्रदेश सरकार द्वारा कलेक्‍टरों के गांव में रात्रि विश्राम की योजना चलाई जा रही है और इसके तहत ही प्रदेश के सीहोर जिले के कलेक्‍टर ग्राम कठोटिया में रात्रि विश्राम के लिये पहुंचे । वहां पहुंचनें के बाद उन्‍होंनें ग्राम वासियों की समस्‍याओं की जानकारी ली और उसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने सरकारी स्‍कूलों के विद्यार्थियों के कलेक्‍टर के सामने प्रस्‍तुत कर दिया । कलेक्‍टर राघवेंद्र सिंह ने उनसे समान्‍य ज्ञान के प्रश्‍न पूछने प्रारंभ कर दिये और बहुत ही शीघ्र जिला शिक्षा अधिकारी को लग गया कि उन्‍होंने एक बड़ी ग़लती कर दी है क्‍योंकि बच्‍चे बहुत ही मजेदार उत्‍तर दे रहे थे । कलेक्‍टर ने पूछा कि बच्‍चों बताओं गंगा कहां से निकलती है बच्‍चों ने कुछ देर सोचा और फिर उत्‍तर दिया ' सर गंगा नदी में से निकलती है '' । संभवत: बच्‍चे गंगा का मतलब किसी लड़की या महिला से समझे होंगें जिसको उन्‍होंने नदी में से निकलते देखा होगा । सबसे मज़ेदार उत्‍तर कलेक्‍टर को मिला इस प्रश्‍न पर कि बताओं भारत का प्रधानमंत्री कौन है । बच्‍चों ने तपाक से उत्‍तर दिया '' बाबूलाल गौर'' । कलेक्‍टर और शिक्षा अधिकारी सब उत्‍तर से हतप्रभ रह गए । और तुरंत ही शिक्षक पर कार्यवाही करने के निर्देश जारी कर दिये गए । मगर बात तो  वहीं पर है कि आखिर करोड़ों फूंकने के बाद भी अगर बच्‍चों को ये ही पता है कि भारत का प्रधानमंत्री बाबूलाल गौर हैं तो फिर मतलब क्‍या है ऐसे शिक्षा अभियानों का ।

मैं कहीं सांप्रदायिक न हो जाऊं मुझे बचाओं मेरे मुस्लिम भाइयों

मित्रों मैं नहीं जानता कि मैं ऐसा क्‍यों लिख रहा हूं या कि ऐसा सोचने के पीछे मेरा क्‍या कारण हो रहा हे पर मेरी सोच में इन दिनों कुछ ग़लत बातें आ रहीं हैं ओर ये बातें बाकायदा आरही हैं । मैं मूलत: एक कहानीकार हूं और अपनी ज्‍यादातर कहानियां मैंने सांप्रदायिकता के खिलाफ ही लिखी हैं उसमें से भी कादम्बिनी में प्रकाशित कहानी तुम लोग और वागर्थ में प्रकाशित घेराव तो वो कहानियां हैं जिन्‍होंने मुझे पहचान दी है एक और मेरी कविता है मैं शर्मिंदा हूं मोदी जी ये कविता भी काफी सराही गई है पर ये रचनाएं लिखने वाला मैं ही इन दिनों एक अलग तरह के विचारों से जूझ रहा हूं । और उसके पीछे दो कारण हैं पहला कारण तो ये है कि पिछले दिनों मैंने एक उर्दू मुशायरे का संचालन किया था और उस मुशायरे में मेरे अलावा सभी शायर मुस्लिम थे मैं उर्दू पर शायद थोड़ा सा अधिकर रखत हूं और आयोजक चाहते थे कि मैा ही संचालन करूं सो मैं संचालन करने लगा मगर मैं हैरत में रहा गया कि सारे शायरों की नाक भौं सिकुड़ गईं कि एक हिंदूं करेगा मंच का संचालन । गंगा जैसी नज्‍म लिखने वाले रहबर जौनपुरी ने मेरे खिलाफ बाकायदा टिप्‍पणी भी की । हां उर्दू के विद्वान जनाब इशरत कादरी साहब ने जरूर मेरी पीठ ठौंकी और कहा खूब अच्‍छा संचालन किया भई मजा आ गया । दूसरी घटना ये हैं कि कुछ दिनों पहले जब ईद आई थी तो मैंने सुबह से करीब पचास फोन किये 100 एसएमएस किये और शाम को सपत्‍नीक करीब 10 जगहों पर मिलने गया मगर हैरान तब रह गया जब दीवाली के दिन ना तो किसी मुस्लिम भाई का फोन आया न एसएमएस और मिलने आने की तो बात ही दूर रही । ये बातें मुझे उद्वेलित किये हुए हैं और मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं ग़लत दिशा में सोच रहा हूं जो मुझे नहीं सोचना चाहिये । मगर क्‍या करूं मेरा सोच मुझे परेशान किये हुए है मैं धर्म को लगभग नहीं के बराबर मानने वाला इंसान हूं और मैं ये भी मानता हूं कि धर्म ने इंसानियत का जितना नुक्‍सान किय है उतना किसी और चीज ने नहीं किया । फिर भी मैं ऐसा सोच रहा हूं तो मुझे लगात है कि वो गलत है कृपया मेरा मार्गदर्शन करें ।

हास्य कवि सम्मेलन आज, देश भर के दिग्गज हास्य और व्यंग्य के कवि आज सीहोर आऐंगें ओम व्यास ओम के संचालन में बहेगी हास्य और व्यंग्य की बयार


लीसा टॉकीज़ पर हर साल की तरह होने वाले हास्य कवि सम्मेलन की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं तथा शनिवार 17 नवंबर की रात को कवि सम्मेलन के मंच पर देश के दिग्गज हास्य कवियों के द्वारा हास्य व्यंग्य का जादू जगाया जाएगा । कार्यक्रम  की अध्यक्षता सीहोर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष श्री राकेश राय करेंगें, हेंडीक्राफ्ट बोर्ड के राष्ट्रीय संचालक श्री अक्षत कासट विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगें ।  
आयोजन के संयोजक राजकुमार जायसवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि हास्य कवि सम्मेलन को लेकर व्यापक स्तर पर तैयारियां की जा रहीं है । लीसा टॉकीा के मैदान पर होने वाले  हास्य कवि सम्मेलन में आस पास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रोताओं के आने की संभवना को देखते हुए ये तैयारियां की जा रही हैं । उन्होंने बताया कि हास्य के सबसे बड़े सम्मान काका हाथरसी सम्मान से विभूषित श्री ओम व्यास ओम के संचालन में देश भर के कवि कविता पाठ करेंगें ।  श्री ओम व्यास का नाम पिछले कुछ वर्षों में हास्य के क्षेत्र में तेजी के साथ उभर कर आया है और अब संचालन के क्षेत्र में भी वे एक स्थापित नाम हैं वे अपनी चुटकियों से श्रोताओं को रात भर जागृत रखते हैं तथा कवि सम्मेलन में ऊर्जा बनाए रखते हैं । उनके अलावा वरिष्ठ कवि श्री माणिक वर्मा भी आ रहे हैं जो समूचे भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी विशिष्ट शैली के कारण जाने जाते हैं । हिंदी के ही एक और विशिष्ट शैली के कवि श्री सांड नरसिंहपुरी भी अपनी गुदगुदाने वाली शैली में श्रोताओं को भरपूर मनोरंजन करेंगें। हिंदी व्यंग्य के कवि और पुलिस महानिरीक्षक श्री पवन जैन भी कवि सम्मेलन में आ रहे हैं । राजस्थान के कवि बलवंत बल्लू जो देश भर के मंचों पर हास्य   कवि के रूप में एक जाना पहचाना नाम हैं वे भी कवि सम्‍मेलन में पधार रहे हैं । इनके अलावा चुटीली व्यंग्योक्तियों के लिये मशहूर कवि श्री अशोक भाटी, हास्य के क्षेत्र में तेजी के साथ उभर कर सामने आ रहे कवि  दिनेश याज्ञिक और हास्य व्यंग्य के क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर श्री संतोष इंकलाबी जैसे हास्य कवि भी इस मंच पर काव्य पाठ करेंगें । आयोजन में मोनिका भोजक कवियित्री भुज कच्छ से पधार रहीं हैं और सूत्रधार सीहोर  के ही युवा कवि पंकज सुबीर हैं । श्री जायसवाल ने बताया कि आयोजन में  शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सीहोर के वरिष्ठ गीतकार श्री रमेश हठीला के काव्य संग्रह बंजारे गीत का विमोचन भी किया जाएगा । इस अवसर पर सीहोर और प्रदेश को गौरवान्वित करने वाली कुछ शख्सियतों का सम्मान भी मंच से किया जाएगा जिनमें विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयार्क में वक्ता तथा कवि  के रूप में भाग लेकर लौटे श्री पवन जैन, भारत सरकार के हेंडीक्राफ्ट बोर्ड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए श्री अक्षत कासट और बंजारे गीत के रचयिता श्री रमेश हठीला शामिल हैं । उन्होंने बताया कि पिछले वर्षों में लीसा टॉकी पर हुए कवि सम्मेलनों को भरपूर सफलता मिली है और सीहोर के कवि सम्मेलनों की गौरवशाली परंपरा को जारी रखने का कार्य इन आयोजनों द्वारा किया जा रहा है उसी कड़ी में इस बार हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन कर एक नया प्रयास किया जा रहा है, इस बार प्रयास ये किया जाएगा कि ये आयोजन दो दौर में सुबह की पहली किरण तक चले ताकि उपस्थित श्रोता देश भर से पधारे इन दिग्गज हास्य कवियों का भरपूर आनंद ले सकें   ।

क्‍या आपने दूध की नदी बहते देखी है , नहीं देखी तो आइये सीहोर जिले के बार‍हखंभा में जहां दीवाली के दूसरे दिन बहती है सचमुच दूध की नदी

आज के इस युग में जहाँ पानी की नदी ही मुश्किल से बह पा रही हो वहाँ इस बात पर विश्वास करना जरा मुश्किल लगता है कि कभी दूध की नदियाँ भी बहती थीं । लेकिन सीहोर के बारह खंबा में यह दृष्य साल में एक बार दीपावली के दूसरे दिन साकार हो उठता है ।
सीहोर से लगभग पैंतीस किलोमीटर दूर स्थित दस पंद्रह मकानों का छोटा सा गाँव देवपुरा दीपावली के दूसरे दिन जीवंत हो उठता है । कितने लोग यहाँ पहुंचते हैं  यह अनुमान लगाना तो मुश्किल है लेकिन चारों तरफ नज़र डालने पर एक जन समुद्र लहराता नज़र आता है । यहाँ पर स्थित बारह खंबा देव स्थल पर इस दिन विशाल मेला भरता है । यह मेला वास्तव में किसानों का मेला है । आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में किसान यहाँ पहुंचते हैं । यह मेला दुधारू पशुओं से जुड़ी मान्यताओं का मेला है । न केवल सीहोर जिले बल्कि आसपास के जिलों के किसान भी अपने दुधारू पशुओं के बीमार होने पर मनौती मानते हैं कि यदि पशु स्वस्थ हो गया तो वे बारह खंभा मेला में दूध तथा नारियल चढ़ाऐंगें । वे किसान वर्ष में एक बार यहाँ दीपावली के दूसरे दिन दूध तथा नारियल चढ़ाने आते हैं । कुछ किसान यहाँ दूध तथा नारियल केवल इसलिये चढ़ाने आते हैं कि उनके पशु साल भर स्वस्थ रहें । हजारों की संख्‍या में आए ये ग्रामीण उस दिन का अपने दुधारू पशुओं का पूरा दूध यहां पर चढ़ाते हैं अब आप सोच ही सकते हैं कि दूध कितना हो जाता होगा । 
मंदिर में स्थित अनगढ़ पत्थर की प्रतिमा पर जब हजारों ग्रामीण दूध तथा नारियल चढ़ाते हैं तो मंदिर के पीछे बहने वाले नाले में दूध की बाढ़ आ जाती है ये नाला ऐसा लगता है जैसे कि दूध की नदी बह रही हो और पुरानी कहावत याद आ जाती है कि भारत में दूध की नदियां बहा करती थीं । कितने लीटर दूध यहां बह जाता है ये तो कोई भी नहीं बता सकता है पर नाले में उफान मारता दूध देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और ये ही लगता है कि उस देश में जहां पर कई बच्‍चे भूख के कारण मर रहे हों वहां पर ये होना कितना ठीक हे ।  और मंदिर में लग जाता है फूटे हुए नारियलों का पर्वताकार ढेर । दीपावली के दूसरे दिन आस पास के सारे गांव के ग्रामीण केवल एक ही दिशा में यात्रा करते हैं बारह खंभा की दिशा में ।  इस देव स्थल से जुड़ी कई जनश्रुतियां भी हैं। बारह खंबा के इस मेले में नज़र आता है एक विशाल जन समुद्र और दूध की उफनती हुई नदी जो इस कल्पना को साकार करती है कि कैसे प्राचीन भारत में दूध की नदियाँ बहतीं थीं ।

'' किंग कोबरा हनुमान जी की अदालत में हाजिर हो..........! ''

          '' किंगकोबरा हनुमान जी की अदालत में हाजिर हो .........! '' ऐसी कोई आवाज़ सीहोर से आठ किलोमीटर दूर स्थित लसुड़िया परिहार के मंदिर में लगती तो नहीं है ,लेकिन फिर भी यहाँ उस रोज़ हनुमान जी की अदालत में साँपों की पेशी होती है । दीपावली की पड़वाँ ( अगले दिन ) के दिन लसुड़िया परिहार के मंदिर में उन लोगों की भीड़ जुटती है जिन्हें पिछले दिनों में साँप ने काटा था तथा जिन्होनें इस मंदिर में आकर ज़हर उतरवाया था । पूर्व में यहाँ छोटा सा मंदिर था लेकिन अब यहाँ भव्य मंदिर है , साँप के काटने पर ग्रामीण लोग पीड़ित व्यक्ति को लेकर यहाँ आते हैं । यहाँ साँप का ज़हर उतर जाने के बाद एक धागा बाँध दिया जाता है , जिसे आने वाली दीपावली की पड़वां  पर यहाँ आकर खोलना होता है ।
        जब यहाँ सर्पदंश से पीड़ित लोग धागा खोलने आते हैं तो उनके शरीर में साँपों की पेशी भी होती है । ये साँप पीड़ित व्यक्ति के शरीर में आकर स्वयं बताते हैं कि उन्होंने इस व्यक्ति को क्यों काटा था। एक दिलचस्‍प बात ये होती है कि पीडि़त व्‍यक्ति का व्‍यवहार भी उस दौरान सांप की तरह का ही हो जाता है वो बाकयदा सांप की तरह लहरा कर चलता है जबान निकालता है और वैसा ही करता है जैसा कोई सापं करता है । कई दिलचस्प बातें भी होती हैं जैसे कोई बताता है कि मैं इनका पूर्वज हूँ इन्होंने मेरा ध्यान नहीं रखा इसलिये मैने काटा । कोई कहता है कि इन्होंने मेरे स्थान पर लघुशंका कर दी थी इसलिये काटा ,कोई पूँछ पर पाँव रख देने का सामान्य कारण बताता है । उस दौरान उस व्यक्ति का व्यवहार भी साँप की तरह ही हो जाता है । पीड़ित व्यक्ति के परिजन गलती की क्षमा माँगते हैं और साँप जी चले जाते हैं । पृथम दृष्टया ये बात कोरा अंधविश्वास लगती है लेकिन प्रत्यक्षदर्शी एसा नहीं मानते । दो सालों से यहाँ समाचार पत्रों तथा टी वी समाचार चैनलों के संवाददाताओं की भीड़ भी जुटने लगी है ।

मुस्लिम युवक ने दी मुखाग्नि स्‍नेह देने वाली हिंदू मां को

वैसे तो शांति बार्इ को कोई भी नहीं था और उसे निराश्रित ही माना जाता था । वो रहती भी मुस्लिम बहूल इलाके में थी मगर अपनी उम्र भर उसको अहसास नहीं हुआ कि वो निराश्रित है या फिर वो मुस्लिम बहुल इलाके में रह रही है । वो इसलिये क्‍योंकि वहां पर उसको जो स्‍नेह दो मुस्लिम युवको से मिला और उसने उन दोनों मुस्लिम युवकों को जो मातृवत स्‍नेह दिया उसके चलते उसे कभी भी निराश्रित होने का अहसास नहीं हुआ ।

मध्‍य प्रदेश के सीहोर की बात करें तो वैसे यहां पर कई बार फिजा को बिगाड़ने का प्रयास किया गया है पर ये शहर शांत ही रहा है और समय समय पर अपनी पहचान देता रहा है । यहीं की लाल मस्जिद में रहने वाली 85 वर्षिय शांति बाई वैसे तो निराश्रित थी मगर मुस्लिम बहुल इलाके में रहने वाली शांति बाई को कभी भी इसका अहसास नहीं हुआ । 15 साल पहले पति के निधन के बाद से वे अकेली ही रह रहीं थीं । पास में रहने वाले मोहम्‍मद अरशद और अरशद राइन उनके लिये पुत्र बने हुए थे । मोहम्‍मद राइन के अनुसार शांति मां उनको मातृवत स्‍नेह देतीं थीं और वे लोग भी उनके लिये बेटे समान ही थे । 85 वर्षीय शांति बाई को कभी भी अपने परिवार की याद नहीं सताती थी । मोहम्‍मद राइन के अनुसार शांति बाई ने उनुको जीवन भर मां की तरह से स्‍नेह दिया । वे उनके भोजन आदि के लिये मां की तरह से ही चिंतित रहती थीं और अगर उन लोगों को कभी घर आने में देर हो जाए तो चिंतित होकर दरवाजे पर रास्‍ता देखती रहती थीं । माता तुल्‍य शांति बाई के निधन पर इन मुस्लिम युवकों को लगा कि जैसे उनहोंने अपनी मां को ही खो दिया है । इन मुस्लिम युवकों ने न केवल अपनी मां को हिंदू रीति रिवाज से कंधा दिया बल्कि हिंदू रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्‍कार भी किया और उस समय तो लोगों की आंखें नम हों गई जब मुस्लिम बेटे राइन ने अपनी हिंदू मां की चिता को मुखाग्नि देकर अपना फर्ज पूरा कर दिया । शायद ऐसी ही घटनाएं और ऐसे ही लोग अभी देश को सांप्रदायिकता के जहर से बचाए हुए हैं । 

अगर हिन्‍दू भाई हमारे लिये रोज़ा अफ़्तार रख सकते हैं तो हम नवरात्रि में साबूदाने की खिचड़ी क्‍यों नहीं बांट सकते मंदिर के सामने

ऊपर लिखा गया एक वाक्‍य ही वो वाक्‍य है जिसमें भारत की खुशहाली का सारा राज़ छुपा है । और ये वाक्‍य कह रहे हैं दो मुस्लिम मेहबूब और इशाक । ये बात दरअस्‍ल में वो बात है जो भारत की आत्‍मा की आवाज़ है और ये बात अगर गूंज बन कर पूरे भारत की हवाओं में फैल जाए तो फिर भारत को दुनिया का सरताज बनने से कोई भी नहीं रोक सकता ।

मध्‍य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध देवी मंदिर सलकनपुर में है । यहां पर पहाड़ की ऊंची टेकरी पर बीजासन देवी की पिंडी है और हजारों की संख्‍या में श्रद्धालू यहां पर दर्शनों के लिये देश भर से आते हैं विशेषकर नवरात्रि में तो ये संख्‍या काफी बढ़ जाती है । ऊंची पहाड़ी पर चढ़ने के लिये सीढि़यां बनाई गई हैं और ऊपर तक पहुचते पहुचते हालत खराब हो जाती है । मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित ये मंदिर राजधानी भोपाल से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इस बार यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को फलाहार तथा चाय पान की मुफ्त व्‍यवस्‍था कराने का जिम्‍मा दो मुस्लिम युवकों ने उठा कर रखा है । मेहबूब और इशाक देवी मंदिर के रास्‍ते में पंडाल लगा कर बैठे हैं और रास्‍ते में खड़े होरक श्रद्धालुओं को बुला बुला कर अपने पंडाल में ले जाकर साबूदाने की खिचड़ी तथा अन्‍य फलाहार करवा रहे हैं । नवरात्रि पर सलकनपुर आने वाले श्रद्धालुओं के लिये यूं तो रास्‍ते भर में कई सारी संस्‍थाओं ने फलाहार तथा चाय पान की व्‍यवस्‍था कर रखी है पर उसमें से ये पंडाल विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है जहां पर ये दोनों मुस्लिम भाई अपना पंडाल लगा कर सेवाएं दे रहे हैं । इन दोनों से बात करने पर उन्‍होंने बहुत ही सीधे साधे से लहज़े में एक ही बात कही वो बात जो कानों से होकर सीधे दिल में उतर जाती है । इनका कहना है कि जब हमारे हिंदू भाई रमज़ान के महीने में देश में स्‍थान स्‍थान पर रोज़ा अफ़्तार का आयोजन रखते हैं तो फिर क्‍या हम नवरात्रि में मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के लिये साबूदाने की खिचड़ी का फलाहार भी नहीं करवा सकते । एक दूसरे के त्‍यौहारों में शामिल होने से भाई चारा बढ़ता है और ये ही वो बात है जो फिरकापरस्‍ती फैलाने वालों पर आखिरकार भारी पड़ेगी । पता नहीं मेहबूब और इशाक का पैगामे मोहब्‍बत कहां तक पहुचता है और कुछ असर भी करता है या नहीं पर ये तो सच है कि अगर देश के सारे लोग इन दोनों की तरह से सोचने लगें तो शायद बहुत कुछ अपने आप ही सुधर जाएगा । ' मेरा पैग़ाम मोहब्‍बत है जहां तक पहुंचे''

सुनिये एक आदमी की कहानी जिसको शादी का लालच दिखा कर ठगती रहीं मां और बेटी

उस बेचारे को कब पता था कि उसके साथ तो एक खेल खेल रहीं हैं दोनों मां और बेटी । उसे तो बस इतना पता था कि उसको एक दुल्‍हन की ख्‍वाहिश थी और बेटी के शादी की उसे उम्‍मीद बंधाई गई थी । मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के रफीक खां ने एक बड़ा ही विचित्र सा आवेदन सीहोर की पुलिस को दिया है । आवेदन तो ठगी का है पर पुलिस के सामने बड़ी ही अनोखी समस्‍या ये आ रही है कि वो इस मामले में क्‍या करे । मामला दरअस्‍ल में ये है कि शहनाज बी ने रफीक को अपनी बेटी के साथ शादी की स्‍वीकृति देकर कहा कि पैसे जमा करों और जब पैसे जमा हो जाऐंगे तो मैं अपनी बेटी की शादी तुम्‍हारे साथ कर दूंगी । रहा सवाल खर्च का तो तुम हमारे साथ ही रहना हमारा खर्च तुमको ही उठाना पड़ेगा और पैसे जो तुम जमा करवाओगे उससे तुम्‍हारी शादी हो जाएगी । बेचारा रफीक झांसे में आ गया और मां बेटी के साथ्‍ा ही रहने लगा हालत ये हो गई कि आस पास वाले तो उसे उस घर का ही दामाद मानने लगे । 2004 से अब तक ये युवक जो कुछ भी कमाता उसको मां बेटी के हाथ में लाकर रख देता इस तरह से इन तीन सालों में उसने काफी पैसा मां बेटी को दे दिया इस उम्‍मीद में कि अब जल्‍दी ही उसकी शादी हो जाएगी । चार सालों से मां बेटी के घर का खर्च भी वो ही उठा रहा था । मगर हाय री किस्‍मत जब काफी पैसे जमा हो गए तो मां बेटी ने उसको घर से निकाल दिया । बेचारा रफीक तो कहीं का भी नहीं रहा । उसके सपनों में तो दुल्‍हन नज़र आती थी मगर यहां तो दर दर की ठोकर मिल गईं । थक हार कर वो पुलिस के पास पहुच गया और ठगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई । मगर पुलिस अभी तय नहीं कर पा रही है कि ठगी हुई भी या नहीं । मंडी थाना पुलिस का कहना है कि अभी जांच चल रही है कि क्‍या किया जाए । रफीक का वही हाल है कि न खुदा ही मिला न विसाले सनम न इधर के रहे न उधर के रहे ।

और इन रावणों से भी तो मिल लीजिये जो अपने आप में कुछ खास हैं

रावण तो रावण है भला उसमें क्‍या खास है, मगर जान लीजिये कि रावण में भी खास होने लगा है ।

सीमेंट का रावण

जैसे पहले बात करें मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के आष्‍टा में बनने वाले रावण की यहां का रावण पूरा कभी नहीं मरता है । अब ये अधूरा मरना भला क्‍या बला है । जी हां ये रावण पूरा इसलिये मरता नहीं है क्‍योंकि रावण तो दरअसल में एक सीमेंट कांक्रिट का बना हुआ पुतला है । ये पुतला एक सीमेंट के चबूतरे पर परमानेंट बना हुआ है और हर साल होता ये हैं कि इसी पुतले पर डेकोरेशन करके इसको रावण का रूप दे दिया जाता है और इस सजे धजे रावण को राम जी आग लगा देते हैं होता ये है कि राम जी के आग लगाने पर ऊपर का सज धज जो कि कागज और घास से किया जाता है वो तो जल जाता है पर अंदर का रावण वैसा का वैसा ही बचा रह जाता है । वो जल भी कैसे सकता है क्‍योंकि वो तो सीमेंट का है । सही भी है ये परंपरा वास्‍तव में यही बताने के लिये तो शुरू की गई है कि चाहे कुछ भी कर लो पर जब भी जलेगा तो ऊपर का घास फूस ही जलेगा हम सब के अंदर जो सीमेंट का रावण है वो भी कहीं जल सकता है ।

गाजर घास का रावण

ये रावण सीहोर में ही बनाया जाता है और इस रावण को बनाया जाता है बीमारी फैलाने वाली खरपतवार गाजर घास से । सीहोर के हाउसिंग बोर्ड में बनने वाला ये रावण गाजर घास से ही बनाया जाता है । गाजर घास का विशाल पुतला बनाने के लिये पूरी कालोनी के लोग कई दिनों तक मेहनत करके कोलोनी के आस पास उग रही गाजर घास को उखाड़ते हैं और फिर उसको रावण के पुतले के अंदर भर कर दशहरे के दिन जला देते हैं । रावण की साज सज्‍जा भी गाजर घास से ही की जाती है । गाजर घास से सजा धजा रावण जलाने के पीछे दो कारण हैं एक तो कालोनी की सफाई हो जाती है और बीमारी फैलाने वाली गाजर घास से मुक्ति मिल जाती है साथ में खर्चा भी बचता है । वैसे भी रावण का मतलब तो बुराई का प्रतीक ही है और गाजर घास से होने वाले नुकसान की बात की जाए तो इससे बड़ा रावण और कौन होगा । 

मिट्टी का रावण

ये रावण भी मालवा के अंचलों में बनाया जाता है और इसको दशहरे के दूसरे दिन गांव की सीमा के बाहर लेजा कर पत्‍थरों से मार मार कर नष्‍ट किया जाता है । इस रावण को पत्‍थरों से फूट सकने वाला ही बनाया जाता है और फिर उसको लेजाकर गांव की सीमा के बाह खड़ा कर दिया जाता है । इसके बाद पुजारी राम की पूजा करता है और पुजारी का इशारा मिलते ही बच्‍चे बूढ़े हाथ में पत्‍थर लेकर रावण पर बरसाने लगते हैं । देखते ही देखते रावण ढेर हो जाता है ।

तो देखा आपने कैसे कैसे रावण होते हैं । मगर बात तो वही है इतने तरह के रावण हर साल मरते हैं फिर भी रावण खत्‍म नहीं होते । हो भी कैसे रावण तो राम के हाथों ही मरता है और आजकल तो रावण को मारने के लिये बनाए गए मंच पर नेता ही बैठते हैं तो रावण भला रावण के हाथ से ही कैसे मर सकता है ।

भारतीय क्रिकेट टीम पर राष्‍ट्रध्‍वज के अपमान के मुकदमा दर्ज सोमवार को आएगा फैसला

मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में भारत जोड़ो आंदोलन चलाने बाले श्री बलवीर तोमर ने भारत कि 20;20 क्रिकेट टीम पर राष्‍ट्रध्‍वज के अपमान का मुकदमा दर्ज किया है । ये मुकदमा सीजीएक श्री मित्‍तल की अदालत में दर्ज किया गया है श्री मित्‍तल ने श्री तोमर की अर्जी का स्‍वीकार कर उसपर बयान आद‍ि ले लिये हैं तथा सोमवार को वे अपना निर्णय सुनाने जा रहे हैं तथा सूत्रों की मानें तो निर्णया भारत की टीम के खिलाफ आने की संभवना है । श्री तोमर ने 20-20 टीम द्वारा कप जीतने के बाद ध्‍वज संहिता के उल्‍लंघन कर ध्‍वज का अपमान करने का मामला प्रस्‍तुत किया था जिसको स्‍वीकार कर लिया गया तथा अब सोमवार को फैसला आना है ।

इस कहानी को ज़रूर पढ़ें और जान लें कि ये कहानी फिल्‍मी बिल्‍कुल नहीं है ये एक मां बेटी की कहानी है

कभी कोर्ट में काम कर मोटी तनख्वाह कमाने वाली एलएलबी पास साठ वृद्धा अपनी तीस साल बच्ची के साथ दर -दर भटकने को मजबूर है । उसे प्रताड़ित कर भगा दिया गया । वृद्धा अपनी बच्ची का जिला अस्पताल में इलाज करा रही है । रूधे गले से अपनी मुंह जबानी सुनाने वाली वृद्धा लक्ष्मी वर्मा का जीवन चक्र संघषों से घिरी किसी फिल्मी कहानी से साथ वृद्धावस्था आश्रम जाना चाहती है । मूलतः इंदौर निवासी वृद्धा बताती है कि उसके जीवन का संघर्ष जवानी में ही शुरू हो गया था । जब मासूम सी बेटी पुष्पा ओर उसे छोड़ पति ने अन्य महिला का दामन संभाल लिया था । वह कहती कि इसके बाद उसने अपनी छोटी सी बच्ची के साथ नर्स का कोर्स किया और धार अस्पताल में एएनएम के रूप में नियुक्त हो गई । काय्र के साथ पढ़ाई भी जारी रखी तथा एलएलबी कर लिया । इसके बाद वह वापस इंदौर आ गई और इंदौर में ही कोर्ट में काय्र करने लगी । जीवन की गाड़ी अच्‍छी तरीके से चल रही थी । बच्ची पुष्पा भी जवान हो गई थी । उसने ने भी केंद्रीय रिजर्व पुलिस में नौकरी ज्वाइन कर ली । इसके बाद एकाएक ऐसा समय आया कि जहां बच्ची पुष्पा को भी नौकरी छोड़ने पड़ी वहीं उसे भी इंदौर छोड़ने पड़ी वहीं उसे भी इंदौर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा । बच्ची के साथ अज्ञात लोगों द्वारा किए गए हमले ने उसे सीहोर लाकर छोड़ दिया । इस तरह करीब चार साल पहले उसका सीहोर से नाता जुड़ गया । उसने अपने बच्ची का जिला अस्पताल में करीब चार माह इलाज कराया। जैसे -तैसे करीब चार माह इलाज कराया । जैसे -तैसे उसकी बच्ची ठीक हुई और उसे तथा उसकी बच्ची को भोपाल के आसरा वृद्धावस्था आश्रम भिजवा दिया गया भोपाल में भी वह अपनी बच्ची के साथ तीन साल रही । उसके बाद वहां से भी उसकी रवानगी हो गइ्र और उसे रायसेन के महात्मा गांधी वृद्धांश्रम में जगह मिली । रोते हुए वृद्धा ने बताया कि संघषों की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई । रायसेन के वृद्धावस्था आश्रम में भी उसे तथा उसकी बच्ची को प्रताड़ित किया जाने लगा । आश्रम में उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा । आश्रम प्रबंधन  द्वारा आश्रम छोड़ने के लिए मारपीट तक की गई । बच्ची पुष्पा के साथ भी मारपीट की गई। बच्ची की खराब हालत और प्रताड़ना से तंग आकर वह वापस सीहोर आ गई आर अपनी बच्ची को जिला अस्पताल में उसकी बच्ची पिछले २२ सितंबर से भर्ती है । लक्ष्मी कहती है कि वह वृद्धाश्रम में जाना चाहती है ,लेकिन लेकिन तीस वर्षीय लड़की पुष्पा को साथ रखने तीस वर्षीय लड़की पुष्पाको साथ रखने से मना करते है वह कहती है अपनी इकलौती बच्ची कोकहां छोड़े । लक्ष्मी को कोई भी वृद्धाश्रम में रखने को तैयार नहीं है ।

और आदिवासियों के बच्‍चों को दिया सीहोर के स्‍वास्‍थ्‍य विभाग ने एक अनोखा खिलोना, जंगल में जाकर फैंके गए सरकारी मुफ्त वितरण के कंडोम

condom भारत में सारी सरकारी योजनाओं की हालत क्‍या है ये तो सभी को मालूम है पर फिर भी कभी कभी ऐसा कुछ हो जाता है जिसको देखकर सर शर्म से झुक जाता है । सीहोर जिले के स्‍वास्‍थ्‍य विभाग ने ऐसा ही एक कृत्‍य किया है जो शर्मनाक तो है ही साथ ही सरकारी संपत्‍ती के हाल का बयान भी करता है । जनसंख्‍या नियंत्रण के लिये सरकारी अस्‍पतालों में मुफ्त में वितरण के लिये लाखों की संख्‍या में कंडोम भेजे जाते हैं । ये कंडोम उसके बाद स्‍वस्‍थ्‍य विभाग द्वारा स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों के माध्‍यम से लोगों में वितरण करवाए जाते हैं और उसके लिये बाकायदा टारगेट आदि दिया जाता है । मगर सीहोर जिले के स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों ने वितरण का एक अच्‍छा तरीका ये निकाला कि सारे कंडोम लेजाकर नादान के घने जंगलों में फैंक दिये । जंगलों के हवाले करने के परछे एक कारण ये भी था कि जब भी ऊपर से आला अफसर दौरे पर आते हैं तो अस्‍पतालों में लगे हुए कंडोम की पेटियों के ढेर को लेकर आपत्‍ती दर्ज करते हैं कि इनका वितरण क्‍यों नहीं किया जा रहा हे । कंडोम की पेटियों को जंगलों के हवाले करने के बाद ये कर्मचारी निश्चिंत हो गए कि अब तो लग गए ठिकाने सारे कंडोम । मगर जंगल में रहने वाले आदिवासियों के बच्‍चों को तो मानो खिलौना मिल गया और इनको उठाकर इनके साथ खेल करना प्रारंभ कर दिया है । हजारों की संख्‍या में पड़े कंडोम बच्‍चों के खेले का साधन बने हुए हें और वहां से गुजरने वाली यात्री बसों के यात्री जब इन बच्‍चों को देखते हैं तो स्‍वस्‍थ्‍य विभाग की बुद्धी पर तरस खाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते । आदिवासी बच्‍चों ने बताया कि ये पेटियां एक सफेद रंग की गाड़ी फैंक कर गई है और इस तरह की पेटियां अंदर जंगलों में काफी पड़ी हैं । चाहे जो भी इसके लिये जवाबदार हो पर एक बात तो सच है कि भारत में जिस भी चीज के साथ सरकारी लग जाता है फिर उसकी हालत क्‍या होती है ये नादान के जंगलों में पता चल जाता है ।

आइये आपको सैर करवाते हैं एक अनोखे मेले की जी हां ये है 'भूतों का मेला' एक मेला जहां पर पितृमोक्ष अमावस की रात को आते हैं भूत और भूतों के विशेषज्ञ

भारत एक विचित्रताओं से भरा हुआ देश है यहां के रीत रिवाज़ परंपराएं और त्‍यौहार शायद विश्‍व में सबसे अनूठे होते हैं । कुछ लोग अंधविश्‍वास कहते हैं तो कुछ इनको ढोंग धतूरे भी कहते हैं मगर फिर भी ये परंपराएं वर्षों से चली आ रही हैं और बिना किसी परिवर्तन के चली आ रही है । अब जैसे मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले में पितृमोक्ष अमावस्‍या को लगने वाले भूतों के मेले की ही बात करें तो ये अपने आप में ही अनोखा मेला है जहां पर केवल भूत और उनके विशेष्‍ज्ञ ही आते हैं और ये मेला भी सबसे बड़ी अमावस्‍या पितृमोक्ष अमावस को लगता है और शायद इस मामले में भी अनूठा है कि ये अपने आप में एक ही मेला है जो आधी रात को शुरू होता है और सुबह होने के पहले खत्‍म हो जाता है । सही भी तो है अगर मेला भूतों का हो तो उसे दिन में लगाया भी कैसे जा सकता है । वो तो रात में ही लगेगा ।

ये मेला जिस जगह पर लगता है वो जगह ही अपने आप में कम सुंदर नहीं है दरअस्‍ल में सीहोर जिले के नादान के पास स्थित कालियादेव स्‍थान पर ये मेला लगाया जाता है । ये स्‍थान काफी सुरम्‍य है । यहां पर सीप नदी चट्टानों के बीच से झरने का रूप लेकर एक गहरे कुंड में गिरती है ऊपर से गिरती हुई सीप नदी का शोर और उस पर भूतों का मेला वाह क्‍या बात है । कुंड का गहरा हरा पानी उसकी गहराई का कुछ कुछ आभास देता है । इस कुंड के बारे में भी कई सारी बातें प्रचलित हैं कुछ लोग कहते हैं कि इस कुंड की गहराई का कोई छोर नहीं मिलता है।  यहीं पर पास की पहाड़ी पर एक गांव के अवशेष भी मिलते हैं तथा ये पुराने गांव मंडलगढ़ के अवशेष हैं जो प्रचलित मान्‍यताओं के अनुसार रूपमती ( एतिहासिक पात्र बाज बहादुर और रूपमती )  के ननि‍हाल के अवशेष हैं । कहा ये भी जाता है कि जब बाज बहादुर का पड़ाव यहां पर डला हुआ था तब ननि‍हाल आई रूपमती को पहली बार बाज बहादुर ने यहीं पर देखा था ।

अब बात करें भूतों के मेले की दरअसल में इसको भूतों का मेला इसलिये कहा जाता है कि यहां पर पितृमोक्ष अमावस की रात को वो सारे लोग बड़ी संख्‍या में पहुंचते हैं जिनको प्रेतबाधा की शिकायत होती है । और साथ में ही पहुंचते हैं प्रेत उतारने वाले विशेषज्ञ और रात भर प्रेतों की पेशियां होती हैं विशेषज्ञों के सामने बहस होती हैं और फिर निर्णय होते हैं इसी बीच बड़ी संख्‍या में आए हुए लोगों के कारण इस स्‍थान पर एक मेला भी रूप ले लेता है जिसको कहा जाता है भूतों का मेला । वो मेला जहां पर भूत आते हैं । सुबह होने से पहले ही ये मेला खत्‍म हो जाता है और सारे भूत अपने घरों को लौट जाते हैं । कुछ को प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है तो कुछ वैसे ही चले जाते हैं । सारी रात यहां पर ग़ज़ब का ड्रामा होता है भूतों की बहस उनको प्रसन्‍न करने के लिये मदिरा और अन्‍य चीजों का चढ़ावा विशेषज्ञों की कोशिशें । इन सब को दम साध कर देखते हैं वे लोग जो भूतों के साथ आए होते हैं । सारी रात का ड्रामा सुबह होने से पहले ही समाप्‍त हो जाता है और सुबह केवल रात के मेले के अवशेष ही रह जाते हैं । तो अगर आप को भी देखना हो ये अनूठा भूतों को मेला तो पांच दिन बाद पड़ रही पितृमोक्ष अमावस को चले आइये मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले के कालियादेव में । ( ये लेख अंधविश्‍वास को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से नहीं बल्कि केवल सूचनाप्रद पत्रकारिता के उद्देश्‍य से लिखा गया है लेखक की सहमति इस तरह के आयोजनों के साथ नहीं है )

झोंपड़ी में रहता है, टेलीफोन कभी देखा नहीं मगर बिल आया है पांच हजार का और बिल भी ग़लत नहीं है सही आया है, कैसे

मज़ेदार समाचार कब कहां बन जाएं कोई नहीं कह सकता और उस पर ये नई तकनीक इसकी तो बलिहारी ही है । अब जैसे झुग्‍गी में रहने वाले रामचरण को जब डाक से टेलीफोन का बिल मिला और वो भी पांच हजार का तो उसके तो होश ही उड़ गए । और पूरे मामले में सबसे मजे की बात ये है कि बिल कतई ग़लत भी नहीं है मतलब टेलीफोन विभाग की लापरवाही से आ गया हो ये भी नहीं है तो फिर रहस्‍य क्‍या है इसका ।
रामचरण की झुग्‍गी पर जब डाकिया पांच हजार का टेलीफोन का बिल लेकर पहुचा तो रामचरण के तो होश ही उड़ गए । मध्‍य प्रदेश्‍ा के सीहोर जिला मुख्‍यालय क इछावर खंड के रामचरण ने जब टेलीफोन आफिस जाकर पता किया तो पता चला कि फोन तो उसीके नाम से है और उसके राशन कार्ड की फोटो कापी भी लगी है साथ्‍ा में रामचरण बड़ा हैरान हुआ कि ये क्‍या मामला है । घर जाकर पता किया तो ज्ञात हुआ कि पड़ोस का रहने वाला कमलेश राशन कार्ड पर शक्‍कर दिलाने के लिये राशन कार्ड मांग कर ले गया था और उसने वहीं उसकी फोटो कापी करवा के फोन कनेक्‍शन लेने में उपयोग कर लिया । और वो ही मज़े से एफडब्‍ल्‍यूटी तरंग देलीफोन का मजा ले रहा था बिल विल तो कौन भरता जब फोन ही अपने नाम से नहीं हो और पता चला कि एक माह में ही पांच हजार के ठोंक दिये । मामला पताचलते ही रामचरण पुलिस के पास पहुच गया और फरियाद की कि साब मुझे इंसाफ चाहिये और पुलिस ने भी इंसाफ कर दिया वो ये कि पहले तो कमलेश पूरा बिल भरेगा और फिर फोन रामचरण को दे देगा कि वो उसका चाहे जो करे । मगर रामचरण तो अड़ा है धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज करवाने के लिये ।

एक कलियुगी साधू बाबा की कहानी : प्रेमिका के साथ मिलकर किया आठ साल की लड़की का अपहरण, हत्‍या कर लाश को बहा दिया हरीद्वार की गंगा में और मौज कर रहा था

जिन साधू महात्‍माओं पर लांग विश्‍वास करते हैं वे ही समय आने पर ऐसे ऐसे खेल दिखाते हैं कि चोर डाकू उच्‍क्‍कों को भी मात कर देते हैं । मगर हैरानी की बात है कि फिर भी लोगों की आंखें नहीं खुलतीं हैं और वे पूर्व की तरह से ही इन साधू महात्‍माओं पर विश्‍वास करते रहते हैं । हत्‍या चोरी बलात्‍कार ऐसा कौन सा मामला है जो साधू बाबाओ के साथ नहीं जुड़ा हो फिर भी ये श्रद्धा के पात्र बने ही रहते हैं ।
मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले की नसरुल्‍लागंज तहसील में एक अजीब सा मामला सामने आया है । यहां के ग्राम मंडी स्थित नर्मदा मंदिर में बाबा गोविंद दास के साथ एक अन्‍य बाबा के विवाद होने पर ग्रामीणों की सूचना पर जब पुलिस ने बाबा ग्राविंद दास को गिरफ्तार किया तो उसके पास से एक देसी कट्टा और बारह बोर के जिंदा कारतूस निकले थे । पुलिस की पूछताछ में बाबा ने अपने आप को नक्‍सली होना बताया और कहा कि नक्‍सली होने के कारण ही उसने अपने पास में हथियार रखे हुए थे । नक्‍सली होने की सूचना मिलते ही हड़कंप मच गया और काफी जिलों की पुलिस ने उससे पूछताछ की मगर कोई ठीक परिणाम नहीं सामने आया । जब पुलिस ने बाबा को पकड़ा तो उसके साथ में एक महिला उर्मिला कलाल भी थी । ये बाबा पांच छ: महीनों से मंडी के उस मंदिर में रह रहा था अपनी प्रमिका के साथ में । पंलिस ने इसके साथ जब पूछताछ की तो उसने अपना नाम जीवराखनलाल मालेकर ग्राम मर्दा दुर्ग छत्‍तीसगढ़ का रहने वाला अपने आप को बताया । उसने ये भी बताया कि पैसों के लिये पिछले बीस सालों से वो साधू का भेष रखकर घूम रहा है और उसके दलम नाम के नक्‍सली संगठन के साथ भी संबंध हैं । इंटेलिजेंस की टीम ने जब बाबा के साथ सख्‍ती के साथ पूछतछ की तो एक आठ साल की लड़की के अपहरण की बात भी सामने आ गई और फिर वहीं से सामने आई वो पूरी कहानी जो हैंरत में डालने वाली थी । बाबा ने अम्‍बागढ़ राजनांवदगांव से आठ साल की बालिका कविता का अपहरण किया और उसे दिलली ले गया । दिल्‍ली में कुछ समय रहने के बाद वो कविता को हरीद्वार ले गया और वहीं पर उसने कविता का बेरहमी के साथ कत्‍ल कर दिया । और कविता की लाश को पतित पावनी गंगा में बहा दिया । इसके बाद वो गुजरात चला गया । वहां से वो सीहोर जिले की नसरुल्‍लागंज में पहुचा जहां पर वो पिछले कुछ महीनों से रह रहा था । बाबा पर दुर्ग के एक थाने में मोटर साइकल चोरी का मामला पहले से ही दर्ज है वहीं उसकी प्रमिका उर्मिला कलाल पर बालाघाट में एक पकरण चल रहा है । बाबा के द्वारा हत्‍या का मामला उजागर होने के साथ ही छत्‍तीसगढ़ पुलिस द्वारा उसको ले जाने के लिये प्रोटैक्‍शन वारंट लिया जा रहा हे ताकि उसके खिलाफ हत्‍या का मुकदमा दर्ज करवाया जा सके । नक्‍सली का मामला सामने आने के साथ ही सीहोर के साथ ही कई सारे जिलों की पुलिस ने बाबा के साथ पूछताछ की थी । पुलिस के मुताबिक बाब इतना शातिर है कि वो कब क्‍या बयान दे कुछ कहा नहीं जा सकता । वो हत्‍या के लिये कविता के परिजनों को ही दोषी बता रहा है । बहरहाल बाबाओं और ढोंगियों द्वारा हत्‍या बलात्‍कार के मामले पहले भी आते रहे हैं और आगे भी आते रहेंगें मगर भारत की अंध श्रद्धालू जनता की आंख्‍ें न पहले खुलीं थीं न आगे खुलेंगीं । फिलहाल बाबा की प्रेमिका को बालाघाट पुलिस अपने साथ ले गई है और बाबा नसरुल्‍लागंज पुलिस की मेहमानी कर रहा है और पुलिस बाबा के मोबाइल काल्‍स की डिटेल्‍स से पूरी कहानी सामने लाने का प्रयास कर रही है ।

और इन हजारों रहस्‍मय कव्‍वों से परेशान है हस्‍पताल प्रशासन भगाने के लिये पीपे और घंटियां टांगें जा रहे हैं पेड़ों पर

कव्‍वे भी अब वैसे तो उतने देखने में नहीं आते जैसे पहले आते थे आजकल तो श्राद्ध पक्ष में लोग कववों को खिलाने के लिय उनको ढूंढते रहते हैं कि कहीं कव्‍वा मिल जाए तो उसको खाना खिलाया जा सके पर मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिला मुख्‍यालय की इछावर तहसील के अस्‍पताल में एक ऐसा भी इमली का पेड़ है जिसमें जाने कैसा जादू हैं कि हजारों हजार कव्‍वे रोज यहां पर आते हैं । इन कववों से परेशान हस्‍पताल प्रशासन ने इनको भगाने के लिये काफी प्रयास किये हैं । पेड़ पर घंटियां टांग दी गई हैं खाली कनस्‍तर लटका दिये गए हैं ताकि रात को जब हजारों कव्‍वों का झु़ड इस रहस्‍यमय इमली के पेड़ पर उतरता है तों कनस्‍तर पीट कर या घंटियां बजा कर उनको भगाया जा सके । सूरज ढलते ही कौवों के झु़ड यहां आना शुरू हो जाते हैं । कौवे सुबह कहां जाते हैं कुछ पता ही नहीं चलता मगर ाअगली णाम वापस आ जाते हैं । हस्‍पताल प्रशासन के अनुसार हजारों की संख्‍या में आने वाले कववों के कारण मरीजों को कफी परेशानी होती हैं और साथ ही परिसर में गंदगी भी होती है । इसी के कारण ये कनस्‍तर टांगने और घंटियां बांधने का काम किया गया है । शाम होते ही हस्‍पताल के चपरासी बारी बारी से घंटियां और पीपे बजाने का काम करने लगते हैं और ये सिलसिला रात तक जारी रहता है । पेड़ काफी पुराना हे अत: उसको काटा नहीं जा सकता इसलिये मजबूर होकर ये कदम उठाना पड़ा है । शाम से जो पीपे और घंटियां बजाने का सिलसिला शुरू होता है तो रात दस बजे तक चलता रहता है । इमली का पेड़ जिस पर हजारों कव्‍वे शाम को रहस्‍यमय तरीके से आकर सुबह गायब हो जाते हैं वो इन दिनों घंटियों और पीपों के कारण किसी मंदिर का पेड़ नजर आ रहा है ।

और अब आया एक नया अंधविश्‍वास धनिक परिवारों की महिलाएं मांग रहीं है भीख और वो भी केवल सात रुपयों की ताकि पहन सकें चूडि़यां।

वैसे तो हमारा भारत अफवाहों को और अंधविश्‍वासों को ही देश है यहां पर कब कौन सी अफवाह फैल जाए कोई कुछ नहीं कह सकता । और अफवाहें भी ऐसी वैसी नही कभी मूर्तियां दूध पीने लगती हैं तो कभी दीवार में सांई बाबा बन जाते हैं । अब एक ऐसी ही अफवाह मध्‍य प्रदेश के कस्‍बों में फैली हुई है जिसके चलते अच्‍छे अच्‍छे परिवारों की महिलाएं भी भिखारिनों की तरह से घर घर जाकर भीख मांग रहीं हैं और भीख्‍ा भी केवल इतनी कि सात रुपये हो जाएं ताकि वे उन सात रुपयों की चूडि़यां पहन सकें । ये जि म्‍मा वैसे भी हमेशा से महिलाओं का ही होता है कि वे घर और परिवार की खुशहाली के लिये व्रत, तीज, त्‍योहार और समय समय पर फैलने वाले अंधविश्‍वासों के अनुसार काम करें । और उनको शायद इसको करने में प्रसन्‍नता भी ह‍ोती है । ऐसी ही एक अफवाह के कारण संपनन परिवारों की महिलाएं भी इन दिनों भीख मांग रहीं हैं फ जानकारी के अनुसार हरितालिका तीज केदिन ये प्रदेश के सीहोर जिले में ये अफवाह फैली है कि महिलाओं को अपने सुहाग की रक्षा के लिये भीख मांग कर चुडि़यां पहननीं हैं और ये भीख भी सात रुपये की मांगनी है सात घरों से । महिलाओं को एक एक करके सात घरों में जाना है और बाकायदा एक रुपये की भीख मांगनी है और जब सात रुपये हो जाएं तो उन रुपयों की हरे रंग की चूडि़यां जाकर पहननीं हैं । घर परिवार की सुरक्षा और पति की लंबी उम्र के लिये ये करना बताया गया है इसके पीछे कुछ हरितालिका तीज का दूषित होना बताया जा रहा है । अपने परिवार को बचाने के लिये ये महिलाएं या तो मर्जी से या अपनी सास के जोर देना पर घर घर जाकर जाकर भीख मांग रहीं हैं । और इसी के कारण बाज़ार में हरे कांच की चूड्रियों की कमी आ गई है । चूड़ी दुकानदारों के अनुसार उनके यहां पर केवल हरे रंग की चूडि़यों की ही मांग आ रही है । कारण चाहे जो भी हो मगर एक बार फिर ये बात तो सिद्ध हो रही है कि भारत में अफवाहें वाक काम करवा लेती हैं जो सरकारें भी नहीं करवा सकतीं।

लता मंगेशकर महोत्‍सव : और ये हैं लता जी के पसंद के गीत 1965 से लेकर 1998 तक ।

और ये है लता जी के पसंद के गीत जो उन्‍होंने 1965 से 1998 तक के गीतों में से लिये हैं । 1998 के बाद से उन्‍होंने गाना बहुत कम कर दिया है ।

1966
1दुनिया करे सवाल तो हम : बहू बेगम (रोशन)
2 रहें न रहें हम : ममता (रोशन)
3 सपनों में अगर मेरे : दुल्‍हन एक रात की ( मदन मोहन)
4 ये रात भी जा रही है : सौ साल बाद ( लक्ष्‍मीकांत प्‍यरेलाल)
5 कुछ दिल ने कहा : अनुपमा (हेमंत कुमार)
6 न छेड़ो कल के अफसाने : रात और दिन ( शंकर जयकिशन)
7 नैनों में बदरा छाए : मेरा साया ( मदन मोहन)
1967
1क्‍या जानू सनम : बहारों के सपने ( आर डी बर्मन)
2 जीवन के दौराहे परे खड़े : छोटी सी मुलाकात ( शंकर जयकिशन)
1968
1 चलो सजना जहां तक घटा चले : मेरे हमदम मेरे दोस्‍त (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
2 शर्म आती है मगर : पड़ोसन ( आरडी बर्मन)
3 निगाहें क्‍यों भटकती हैं : बहारों की मंजिल (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
1969
1 तेरे बचपन को जवानी की दुआ : मुझे जीने दो (जयदेव)
2 गीत तेरे साज का : इंतकाम (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
1970
1 माई री मैं कासे कहूं पीर : दस्‍तक ( मदनमोहन)
2 ओ मेरे बैरागी : इश्‍क पर जोर नहीं ( एसडी बर्मन)
1971
1 चलते चलते : पाकीजा ( गुलाम मोहम्‍मद)
2 जाने क्‍यों लोग : मेहबूब की मेंहदी (लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल)
1972
1 रातों के साए घने : अन्‍नदाता ( सलिल चौधरी)
2रैना बीती जाए : अमर प्रेम ( आर डी बर्मन)
1973
1 ये दिल और उनकी : प्रेम पर्वत ( जयदेव)
2 है तेरे साथ मेरी वफा : हिन्‍दुस्‍तान की कसम ( मदन माेहन)
3 आज सोचा तो आंसू भर आए : हंसते जख्‍म ( मदन मोहन)
4 बांहों मे चले आओ : अनामिका ( आर डी बर्मन)
5 रस्‍मे उल्‍फत को : दिल की राहें ( मदन मोहन)
6 तेरा मेरा साथ रहे : सौदागर ( रविन्‍द्र जैन)
1974
1चाला वाही देस : गैर फिल्‍मी मीरा भजन (ह्रदयना‍थ)
1975
1 आप यूं फासलों से : शंकर हुसैन ( खयाम)
2 अपने आप रातो में : शंकर हुसैन ( खयाम)
1976
1ये रातें नई पुरानी : जूली ( राजेश रोशन)
2 मेरे नैना सावन भादों : महबूबा ( आर डी बर्मन )
1977
1मुश्किल है जीना : साहब बहादुर ( मदन मोहन)
2 अबके ना सावन बरसे : किनारा ( आर डी बर्मन)
3 तेरे लिये पलकों की झालर बुनूं : हरजाई ( आर डी बर्मन )
1978
1सत्‍यम शिवम सुंदरम : सत्‍यम शिवम सुंदरम ( लक्ष्‍मी कांत प्‍यारे लाल)
1979
1980
1सांलह बरस की : एक दूजे के लिये ( लक्ष्‍मीकांत प्‍यारे लाल)
1981
1 दर्द की रागिनी : प्‍यास ( बप्‍पी लहरी)
2 दिखाई दिये यूं : बाजार ( खयाम)
1982
1ए दिले नादान : रजिया सुल्‍तान (खयाम)
2 तुझसे नाराज नहीं : मासूम ( आरडी बर्मन)
1983
1तुम आशा विश्‍वास हमारे : सुबह ( ह्रदयनाथ)
1984
1 श्री राम चंद्र कृपालु भजमन : गैर फिल्‍मी
1985
1सुन साहिबा सुन : राम तेरी गंगा मैली ( रिवन्‍द्र जैन)
2 श्‍याम घन घन श्‍याम : गैर फिल्‍मी
1986
1987
1988
1989
1 हो राम जी : राम लखन ( लक्ष्‍मीकांत प्‍यारे लाल)
2 दिल दीवाना : मैंने प्‍यार किया ( राम लक्ष्‍मण)
1990
1 यारा सीली सीली : लेकन ( ह्दयनाथ)
2 चिठिये दर्द : हिना ( रविन्‍द्र जैन)
1991
1 मोरनी बागां मां : लम्‍हे ( शिवहरी)
1992
1इस दिल में बस कर देखो : माया मेमसाब ( ह्रदयनाथ)
2 दिल हुम हुम करे : रुदाली ( भूपने हजारिका)
1993
1 सीली हवा छू गई : लिबास ( आर डी बर्मन)
1994
1कुछ ना कहो : 1942 ए लव स्‍टोरी ( आर डी बर्मन)
1995
1 मेरे ख्‍वाबों मे जो : दिलवाले दुल्‍हनियां ले जाऐंगें ( जतिन ललित)
1996
1 पानी पानी रे : माचिस (विशाल)
1997
1 तुम मेंरे हो : बेताबी (विशाल)
1998
1 जिया जले जां जले : दिल से ( ए आर रहमान )
2 गीला गीला पानी : सत्‍या (विशाल)

लता मंगेशकर महोत्‍सव : ये हैं लता जी की पसंद के गीत जो उनहोंने खुद ही पसंद किये हैं कि ये उनके फेवरेट हैं । ये पहली किश्‍त है अगली थोड़ी देर में

ये गीत वे गीत हैं जो लती जी ने 1949 से लेकर 1965 तक अपनी पसंद में शामिल किये हैं ये पहली कड़ी है इसके बाद मैं 1965 से अभी तक की उनकी पसंद प्रस्‍तुत करुंगा । संगीतकारों के नाम मैंने अपने स्‍वयं के ज्ञान के आधार पर दिये हैं हो सकता है एकाध नाम मैं कहीं दे न पाया हूं या कहीं भूल कर गया हूं ।

वे गाने जो लता जी ने स्‍वयं ही छांटे हैं
ये गीत उन्‍होनें वर्षों के हिसाब से लिये हैं मैं भी उसी आधार पर ले रहा हूं
1949
1आएगा आने वाला आएगा : फिल्‍म महल (खेमचंद प्रकाश)
2 तुम्‍हारे बुलाने को जी चाहता है : लाड़ली (अनिल विश्‍वास)
1950
1 दिल ही तो है तड़प गया : आधी रात
1951
1आज मेरे नसीब ने मुझको रुला दिया : हलचल (सज्‍जाद हुसैन)
2 वो दिन क‍हां गए बता : तराना (अनिल विश्‍वास)
1952
1 वो तो चले गए ए दिल : संगदिल (सज्‍जाद हुसैन)
2 ए री मैं तो प्रेम दीवानी : नौ बहार (अनिल विश्‍वास)
1953
1मुझसे मत पूछ : अनारकली ( सी रामचंद्र)
2 आ आ री निंदिया तू आजा : दो बीघा जमीन (सलिल चौधरी )
1954
1 ना मिलता ग़म तो बरबादी के : अमर (नौशाद)
1955
1 फैली हुईं हैं चाहत की बांहें : हाउस नं 44 ( एसडी बर्मन)
1956
1 रसिक बलमा हाय रे : चोरी चोरी ( शंकर जयकिशन)
2 गुजरा हूआ जमाना : शीरी फरहाद (मोहिंदर)
3 मैं पिया तेरी तू माने : बसंत बहार ( शंकर जयकिशन)
1957
1 ए मालिक तेरे बंदे हम : दो आंखें बारह हाथ ( वसंत देसाई)
1958
1आजा रे परदेसी मैं तो : मधुमती ( सलिल चौधरी)
1959
1 दिल का खिलौना हाय टूट गया : गूंज उठी शहनाई ( रामलाल)
1960
1 ओ सजना बरखा बहार : परख (सलिल चौधरी)
2 कैसे दिन बीतें कैसे बीतीं : अनुराधा (पं रविशंकर)
1961
1अल्‍लाह तेरो नाम : हम दोनों (जयदेव)
1962
1 कहीं दीप जले कहीं दिल : बीस साल बाद ( हेमंत कुमार)
2 जुर्मे उल्‍फत पे हमें लोग : ताज महल ( रोशन)
1963
1 तेरे बचपन को जवानी की दुआ : मुझे जीने दो ( जयदेव)
2 खेलो ना मेरे दिल से : हकीकत ( मदन मोहन)
3 वो चुप रहें तो मेरे : जहां आरा ( मदन मोहन)
4 ए दिलरुबा : रुस्‍तमे सोहराब ( सज्‍जाद हुसैन)
1964
1 लग जा गले : वो कौन थी ( मदन मोहन)
2 नगमा ओ शेर की : ग़ज़ल (मदन मोहन)
3 ए री जाने न दूंगी : चित्रलेखा (रोशन)
1965
1 दिल का दिया जला के : आकाशदीप ( चित्रगुप्‍त)

लता मंगेशकर महोत्‍सव : मैं नहीं जानता कि मेरा वो दोस्‍त दस्‍तक फिल्‍म के उस गाने को सुनते समय रो क्‍यों पड़ता था ।

लता मंगेशकर, एक अमृतधारा की तरह, विभिन्न संगीतकारों के संगीत में समाती हुई, गुजरजाती हैं, इसे एक संयोग ही कहा जायेगा, कि जो संगीतकार लता के साथ शीर्ष पर थे, वह लता के साथ मन मुटाव होने के बाद, कुछ भी अच्छा नहीं कर पाये, और गुमनामी के अंधेरो में खो गये, इनमें सी. रामचन्द्र, शंकर-जयकिशन, कल्याण जी-आनन्दजी, प्रमुख हैं। अपवाद रहे बर्मन दादा जो लता से अपने अल्पकालिक मनमुटाव के समय भी, बेहतरीन रचनायें देते रहे, परन्तु इन दो बड़ों की जब वापस सुलह हुई, तो संगीत प्रेमियों को अभिमान, आराधना, गाइड, ज्वैलथीफ और प्रेम पुजारी जैसी श्रेष्ठतम सौगातें मिलीं, इनमें विशेषतः गाइड और अभिमान के लता जी के तीन-तीन एकल गीत तो दुर्लभ हैं। उल्लेखनीय है कि लताजी और बर्मन दादा के मनमुटाव के दौरान आर. डी. बर्मन अपनी पहली फिल्म छोटे नवाब का संगीत देने जा रहे थे, और लता जी से ही गवाना चाहते थे, अब बर्मन दादा से मन मुटाव था, सो लता जी उनके घर में तो जा नहीं सकती थीं, अतः घर की सीढ़ियों पर बैठकर ही रिहर्सल पूरी की।
कालेज के दिनों में मेरा एक मित्रा था, वो अक्सर शाम को मेरे घर आता और कहता ''वो ही गाना सुना'' जैसे ही मैं गाना लगता, वो लाइटें बन्द कर अंधेरे में वो गाना पूरा सुनता, गाना पूरा होता और मैं लाइटें जलाता, तो उसकी आंखे भरी होती, हालांकि उसके जीवन में ऐसी कोई परेशानी नहीं थी, पर वो कहता था ''यार ये आवाज+, और ये गाना, जाने क्यूं मुझे रूला देते हैं'' बाद मैं वह लड़का एक सफल धारावाहिक निर्देशक बना, परन्तु वह इस रहस्य को नहीं समझ पाया, कि फिल्म दस्तक के उस गीत माई री में कासे कहूं को सुन कर, वो रोने क्यों लगता है।
किसी भी गायक के लिये सबसे बड़ी चुनौती होता है गैर फिल्मी प्रयास क्योंकि उसमें सब कुछ उस पर ही निर्भर होता है। लता जी ने इन पचास वर्षो में, बहुत ज्यादा गैर फिल्मी एलबम नहीं निकाले, परन्तु जितने भी निकाले, वो बेहतरीन थे, ऐ मेरे वतन के लोगों से वन्देमातरम ९८ तक कई गैर फिल्मी एलबम निकाले, चाला वाही देस, मीरा के भजन, लता सिंग्स गुरूवाणी, लता सिंग्स ग़ालिब, राम श्याम गुणगान, रामरतन धन पायो, सज+दा, जगराता, अटल छत्रा सच्चा दरबार, प्रेम भक्ति मुक्ति, श्रीमद् भागवत गीत और श्रद्धांजली भाग-१ व २ आदि। सजदा में जगजीत सिंह के साथ गायी गई उनकी ग़ज+लें, दूसरी दुनिया की सैर करा देती हैं, रामरतन धन पायो को ३ प्लेटिनम डिस्क मिली थीं, जो अपने आप में रिकार्ड है। पं. भीमसेन जोशी के साथ राम श्याम गुणगान में, इन दो बड़ों का संगम अद्भुत नजर आता है। लता जी ने श्री भगवद् गीता के श्लोकों का भी एक एलबम निकाला था, अनुराधा पोडवाल ने एक बार स्वीकार किया था, कि उन्हें उसी कैसेट को सुनकर संस्कृत सीखने की प्रेरणा हुई थी। लता जी के दो कैसेट, सुपर कैसेट पर भी रिलीज हुये थे, उनमें एक प्रेम भक्ति मुक्ति तो अनूठा था, विशेषतः उसका गीत मै केवल तुम्हारे लिये गा रही हूँ परन्तु किसी वजह से इन कैसेटो को प्रचार नहीं दिया गया, आज ये बाजार में उपलब्ध भी नहीं है। श्रद्धांजली भाग एक और भाग दो में कुछ गीत, लता जी का पारस पाकर विलक्षण हो गये थे, हालांकि मूल रूप में भी ये गीत उतने ही मधुर थे, परन्तु लता जी को पंकज मलिक का गीत तेरे मन्दिर का हूँ दीपक गाते हुये सुनना एक निराला अनुभव था। लता जी की हालिया रिलीज सादगी में भी वही कहानी है ।

लता मंगेशकर महोत्‍सव : आज दिन भर आपको मिलती रहेंगी लता जी के बारे में रोचक जानकारियां और हां वो 50गीत भी जो लता जी ने स्‍वयं छांट कर सूचीबद्ध किये हैं

मैं नहीं जानता कि मेरी जिंदगी में लता जी की आवाज़ न‍हीं होती तो क्‍या होता, मैं नहीं जानता कि अगर मैंने 'बेताब दिल की तमन्‍ना यही है ' और 'लग जा गले के फिर ये हंसीं रात हो न हो ' जैसे गीत न सुने होते तो मैं कवि या शाइर बना भी होता या न होता । पर इतना जानता हूं कि अगर सरस्‍वती के बारे में कोई मुझसे पूझे तो मैं यही कहूंगा ' लता जी को नहीं जानते क्‍या ' । ये मेरे लेख कादम्बिनी, दैनिक भास्‍कर आदि में प्रकाशित हो चुके हैं आज उन्‍हीं में से कुछ संपादित अंश आपको मिलते रहेंगें ।
१४ वर्ष की उम्र में लताजी ने पार्श्वगायन शुरू कर दिया था, पहले २.३ वर्षो तक उन्होंने मराठी फिल्मों में ही पार्श्वगायन किया, हिन्दी फिल्मों में उस समय नास्टेल्जिया गायिकाओं का बोल बाला था, नूरजहाँ, सुरैया, शमशाद बेगम, पार्श्व गायन में शीर्ष पर थीं। प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद किसी फिल्म का संगीत दे रहे थे, उस समय लता जी ने हिन्दी फिल्मों में पार्श्व गायन प्रारंभ ही किया था। एक सेट पर नौशाद जी ने लता जी का परिचय दिलीप कुमार से करवाया, कि ये नई लड़की लता मंगेशकर हमारी फिल्म में गा रही है, दिलीप कुमार छूटते ही बोले ''इनके गानों में तो मराठी हिन्दी मिलेगी'', बात चुभ गई, और लता ने उर्दू सीखना प्रारंभ कर दिया, और इतनी गहराई से सीखी, कि जब उनके उर्दू गीत युसुफ साहब ने सुने, तो चमत्कृत रह गये। आज तक दिलीप कुमार लता जी को अपनी छोटी बहन मानते हैं, लता जी कि उर्दू जुबान सुनना हो, तो हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत में जारी उनका कैसेट लता सिंग्स्‌ गालिब सुनिये, आप पहचान नही पायेंगे, कि गाने वाली एक महाराष्ट्रीयन महिला है।
एक बार कहीं संगीत की महफिल सजी हुई थी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब गा रहे थे, सारी महफिल तनमय होकर सुन रही थी, अचानक कहीं से, लता जी का एक गीत बजने की आवाज आई कदर जाने ना ओ कदर जाने ना, खाँ साहब ने अपना गाना बन्द कर दिया, और आंखे बन्द कर बैठ गये, जब गीत खत्म हुआ तो बोले ''अजीब लड़की है, कमबख्त कभी बेसुरी ही नहीं होती''। लता जी ने अपने जीवन में ढेरों पुरस्कार और इनाम लिये हैं, परन्तु शायद यह उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था।
कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर पर एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने लता मंगेशकर को चित्रापट संगीत की अनभिषिक्त साम्राज्ञी घोषित किया था, उन्हीं के शब्दो में ''ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है, ऐसा कलाकार आज हम सभी के बीच है, उसे अपनी आँखो के सामने घूमता फिरता देख पा रहे हैं, कितना बड़ा है हमारा भाग्य'' फिल्म महल के गीत आयेगा आने वाला को सुनकर गंधर्व साहब ने कहा था - '' तानपुरे से निकलने वाले गांधार को, शुद्ध रूप में सुनना चाहते हो, तो लता को सुन लो''। सचमुच गांधार पर जितनी अच्छी पकड़, लता जी की रही है, कम से कम फिल्मी पार्श्व संगीत मे तो किसी की नहीं रही।
२९ जनवरी १९६३ को, लाल किले की प्राचीर पर, एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, एक घरेलू सी, सीधी सीधी नजर आने वाली गायिका, एक गीत गा रही थी, सामने देश का प्रधानमंत्राी बैठा हुआ, बच्चों की तरह सुबक कर रो रहा था, यह अपने आप में एक ही मिसाल है, जब किसी गायिका ने अपनी आवाज से देश के प्रधानमंत्री को रूला दिया। वह कार्यक्रम था, १९६२ के युद्ध में शहीद सैनिकों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम, वह गीत था ऐ मेरे वतन के लोगों वो गायिका थी लता मंगेशकर और रोने वाले प्रधानमंत्री थे पं. जवाहरलाल नेहरू। बहते हुये आंसू लता मंगेशकर के जीवन की सबसे अमूल्य निधि थे।
ख़य्याम साहब से एक दफ़ा किसी ने पूछा था, कि आपने उमराव जान में, लता जी से गाने क्यूं नहीं गवाए ? ख़य्याम साहब ने जवाब दिया था, कि उमराव जान में सभी मुजरे ही थे और फिल्म पाकिजा में भी सभी मुजरे थे, और लगभग सभी गीत लता मंगेशकर ने ही गाए थे, गुलाम मोहम्मद की बनाई हुई धुनों पर, लता मंगेशकर ने जो परफारमेंस दिया है, वह सर्वश्रेष्ठ है, इससे ऊपर कुछ भी नहीं है। यदि मैं उमराव जान में लता से गवाता, तो लोग सबसे पहले पाकिजा से उसकी तुलना करते, और लता और पाकिजा जैसा संगम-शताब्दियों में एक बार होता है। कितना सच कहा था ख़य्याम साहब ने। लेखक के मामा, जो कि चित्रापट संगीत के करोड़ों भारतीय शौकीनों में से एक हैं, का कहना है ÷÷चलते-चलते सुन लो, तो फिर एक सप्ताह तक कुछ और सुनना अच्छा नही लगता''।

वो भारत की हॉकी टीम के लिये अपनी आधी तनख्‍वाह देना चाहता है उसका कहना है कि वो भी तो देश के लिये खेले और जीते फिर उनका सम्‍मान क्‍यों नहीं

भले ही कर्नाटक में हॉकी खिलाड़ी धमकी दे रहे हैं कि उनको मुख्‍यमंत्री के घर के सामने भूख हड़ताल करनी पड़ेगी तो वे ये भी करेंगें । मगर मध्‍यप्रदेश के शुजालपुर के रहने वाले 48 वर्षीय प्रफुल्‍ल चौबे का तो ये मानना है कि वे तो अपनी आधी तनख्‍वाह ही भारत की हॉकी टीम को पुरुस्‍कार के रूप में देने को तैयार हैं । श्री चौबे जनपद पंचायत में सब इंजीनियर हैं और वैसे वे हॉकी के खिलाड़ी भी नहीं है बल्कि वे क्रिकेट के ही खिलाड़ी रहे हैं किंतु उनका मानना है कि देश ने एशिया कप जीतने वाली हॉकी टीम के साथ दोयम व्‍यवहार करके अच्‍छा नहीं किया है । देश्‍ा और सरकार द्वारा की गई ग़लती की भरपाई वे स्‍वयं करना चाहते हैं और वे स्‍वयं ही भारत की हॉकी टीम को पुरुस्‍कार देना चाहते हैं । पर उनका कहना है कि वे चूंकि इतने समर्थ नहीं हैं कि वे लाखों रुपये दे पाएं फिर भी वे इतना तो कर ही सकते हैं कि वे अपने वेतन का आधा हिस्‍सा भारत की हॅकी टीम को पुरुस्‍कार के रूप में दे दें । वे अक्‍टूबर माह में मिलने वाली अपनी तनख्‍वाह का आधा हिस्‍सा भारत की हॉकी टीम को भेज देंगे । उनका मानना है कि इससे शायद एक मुहिम चालू हो जाए और सरकारों को भी होश आ जाए कि हॉकी की टीम ने भी देश का नाम बढ़ाया है । उनका कहना है कि अभी आस्‍ट्रेलिया की टीम आई है उससे एक दो मैच हारे कि फिर वही शुरू हो जाएगा आलोचना आलोचना । श्री चौबे के अनुसार भारत के क्रिक्रेट विश्‍व कप में खराब प्रदर्शन के बाद अन्‍य खेलों को बढ़ावा मिलना चालू हुआ था । पर अब वापस वही हो रहा है । वे एक संदेश की तरह अपनी आधी तनख्‍वाह देकर एक मुहिम को चालू करना चाहते है और चाहते हैं कि पूरा देश उन हॉकी के खिलाडि़यों के लिये पुरुस्‍कार एकत्र करे जिनकी सुध सरकारें नहीं ले रहीं हैं । वे कहते हैं कि भले ही ये एक बड़ी राशि नहीं है जो मैं भेज रहा हूं पर फिर भी ये मेरी भावना है और मेरी भावना उन हॉकी खिलाडि़यों से जुड़ी हैं जो बिना किसी प्रोत्‍साहन के भी देश के लिये कप जीत कर ला रहे हैं ।

आपने हंस का मीडिया विशेषांक तो पढ़ा ही होगा, कई सारी बातें भी उस पर हो चुकी हैं, अब उसी तरह का एक और प्रयोग हो रह है आप वहां अपनी रचना भेज सकते हैं ।

हंस का ख़बरिया चैनलों की कहानियां काफी चर्चित रहा है और उसको लेकर काफी बहस की जा चुकी हैं । अब उसी तरह का एक प्रयोग साहित्‍य की एक और प्रतिष्ठित पत्रिका 'कथादेश' द्वारा भी किया जा रहा है । दिल्‍ली से श्री हरिनारायण जी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका कथादेश का साहित्‍य के क्षेत्र में अपना एक स्‍थान है । सहयात्रा प्रकाशन के बैनर तले निकलने वाली पत्रिका कथादेश 28 वर्षों से अनवरत प्रकाशित हो रही है । कथादेश ने अब कथादेश का मीडिया विशेषांक निकालने का निर्णय लिया है। इस के लिये कथादेश ने मीडिया से जुड़े लोगों से अपने अनुभव टिप्‍पणी या किसी भी रूप मे आमंत्रित किये हैं । साथ में समाचार पत्रों के पाठकों, रेडियों के श्रोताओं और टेलीविज़न के दर्शकों से भी आलेख मांगें हैं । अधिकतम 500 शब्‍दों के ये आलेख आमंत्रित किये गए हैं । साथ ही मीडिया के सच को दिखाने वाली कहानियां, कविताएं संस्‍मरण भी प्रकाशन के लिये आमंत्रित किये गए हैं । कथादेश के अनुसार इस अंक में मीडिया के सभी पहलुओं पर ध्‍यान देन की कोशिश की जाएगी । अगर आप भी मीडिया से जुड़े हैं और आपके पास भी कोई कहानी या कविता या संस्‍मरण है तो आप भी वहां भेज सकते हैं । जिन सवालों को कथादेश के इस विशेषांक के माध्‍यम से उठाया जा रहा है वो इस प्रकार होंगे
1:- मीडिया क्‍या लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ रह गया है ।
2:- जिसे राष्‍ट्रवादी कहा गया वह मीडिया बाज़ार का हथियार कैसे बना ।
3:- पत्रकारिता संस्‍थान समाज के लिये पत्रकार निर्मित कर रहे हैं या फिर बाजार के बिचौलिये।
4:- राष्‍ट्रीय भाषाओं के साथ गांव ज्‍वार की कमजोर लुगाई की तरह व्‍यवहार किया जा रहा है ।
5:- सचुमच क्‍या युवाओं के लिये मीडिया में नौकरी की अपार संभावनाएं हैं या फिर सस्‍ते श्रमिक पैदा करने की योजना का हिस्‍सा है ये ।
6:- अपवाद को आम बताने जैसी मीडिया की कलाबाजी का रहस्‍य क्‍या है ।
इन सारी बातों को लेकर ही एक विशेषांक की योजना बनी है और इस में शामिल होंगें पत्रकार भी और वे भी जो समाचार चॅनलों या अखबारों के पाठक अथवा श्रोता हैं । उनमें से आप भी हो सकते हैं अगर आप भी पत्रकार हैं और आपके पास भी कहानी या संस्‍मरण हैं ( कहानी के लिये 500 शब्‍दों की बाध्‍यता नहीं हैं ) तो आप उन्‍हें कलम बद्ध करके कथादेश को भेज दें । अगर श्रोता हैं दर्शक हैं और कुछ कहना चाहते हैं तो अपनी बात कथादेश तक पहुंचाएं ।
बात केवल इसलिये क्‍योंकि हंस का विशेषांक आने के बाद कई लोगों को लगा कि अरे हमारे पास भी तो कुछ था हम तो चूक ही गए । अगर आप को कथादेश में कुछ भेजना है तो कृपया ब्‍लाग पर दिये गए मेरे ई मेल पते पर मुझे ई पत्र लिख दें मैं आपको कथादेश का पता रचना भेजने की अंतिम तिथी आदि के बारे में जानकारी प्रेषित कर दूंगा पर जल्‍दी करें क्‍योंकि विशेषांक को लेकर कार्य प्रारंभ हो चुका है । subeerin@gmail.com ये मेरा ई मेल पता है आप मुझे और जानकारी प्राप्‍त करने के लिये मेल कर सकते हैं ।

और उन बातों के बीच ये बातें भी थीं जो चुभ जाती थीं रह रह कर, हम कब मुसलमानों को इस देश का नागरिक मानेंगें आखिर

क्रिकेट अपने रोमांच पर था और चारों तरफ सन्‍नाटा छाया हुआ था । ऐसे समय में कुद बातें ऐसीं भी चल रहीं थीं जो रह रह कर दिल में चुभ जा रहीं थीं बानगी आप भी देखिये
'' सराय ( मेरे शहर का मुस्लिम बहुल इलाका ) में तो आज मातम हो रहा होगा, आखिरकार उनकी टीम हार जो गई है । ''
'' क़स्‍बे (मेरे शहर का एक और मुस्लिम बहुल इलाका ) में तो टी वी फोड़ दिये होंगें लोगों ने । अभी जाओं तो कोई भी बाहर नहीं दिखेगा । ''
'' रमज़ान है पाकिस्‍तान की जीत के लिये दुआ मांगने में जुटे होंगें। लेकिन हमारे भी गणपति चल रहे हैं ''
और भी इस तरह की बातें जो मुझे इस कारण सुननी पड़ रहीं थीं कि मैं एक सार्वजनिक स्‍थान पर खड़े होकर मैच देख रहा था ।बातें चुभ रहीं थीं और मन कर रहा था कि कोई जवाब दूं मगर भीड़ और भेड़ कब किसीकी सुनती है । खैर खरामा खरामा मैच चलता रहा और बातें होतीं रहीं । मैं नहीं जानता कि उस भीड़ में क्‍या कोई मुसलमान भी खड़ा था या नहीं और यदि था तो उसके मन में क्‍या चल रहा होगा । मेरे मन में घूम रहे थे मेरे दोस्‍त डॉ मोहम्‍मद आज़म और मेरे प्रिय छात्र अब्‍दुल कादिर के चेहरे जो हर बार एक ही प्रश्‍न पूछते हैं हमें ये देश कब अपना मानेगा । हमारे पूर्वजों ने इस्‍लामिक देश की जगह पर भारत को स्‍वीकार कर कौनसा अपराध किया था जिसकी सजा हमें मिल रही है । इन सवालों को मेरे पास कोई जवाब नहीं होता है । मैं उस भीड़ को भी कोई जवाब नहीं दे पा रहा था और मानता हूं क‍ि मैं इस कारण अपराधी की श्रेणी में ही गिना जाऊंगा
समर क्षेत्र है नहीं पाप का भागी केवल व्‍याध
जो तटस्‍थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
तो उन्‍हीं कड़वी बातों के बीच में मैंने वो मैच देखा । यक़ीन जानिये मन बिल्‍कुल नहीं लग रहा था । मगर कमबख्‍़त मैच इतना दिलचस्‍प था किछोड़ा भी नहीं जा सकता था । सो खड़ा रहा वहां पर उसी तरह की और भी अनर्गल बातों को सुनता हुआ ।
मैच ख़त्‍म हुआ और मन में उत्‍सुकता जागी कि क्‍या सचमुच कस्‍बे में या सराय में मातम मन रहा होगा । मन में एक सवाल लिये अपनी मोटर बाइक को उस ओर मोड़ दिया । मित्रों ये पंक्तियां लिखते समय मेरी आंख में सचमुच आंसू हैं मैं झूठ नहीं बोल रहा । मेरी बाइक धीरे धीरे सराय की ओर बढ़ रही थी । मन में कुछ अजीब सा लग रहा था कि मैं भी उनको परख रहा हूं । बाइक सराय के जोड़ पर पहुंची और रोकनी पड़ गई ( मेरी आंखों में तब भी आंसू थे और आज भी हैं ) रोकने का कारण, दरअस्‍ल में एक विशाल विजय जुलूस वहां से चला आ रहा था, मैं समझ गया कि ये जानबूझकर उस इलाके में निकाला जा रहा जुलूस है । बाइक खड़ी कर के मैं एक तरफ हो गया । जुलूस में सबके हाथों में तिरंगे थे । और जोर शोर से हिंदुस्‍तान जिंदाबाद के नारे लग रहे थे । जुलूस पास आया ( उफ ये कम्‍बख्‍़त आंसू ) सैंकड़ों मुसलमानों का जुलूस था वो सबके हाथों में तिरंगें थे और लबों पर हिंदुस्‍तान जिंदाबाद के नारे । मन किया चीख चीख कर कहूं सबसे कि देखो ये देखों ये है तुम्‍हारे सवालों का जवाब । सबसे बड़ी बात ये थी कि पूरे जुलूस में बीस से पच्‍चीस साल के बीच के लड़के ही थे, मैं समझ गया कि अब युवा पीढ़ी ने सांप्रदायिकता को जवाब देने का अपना तरीका ढूंढ लिया है ।कुछ देर तक बाइक रोक कर मैं भी उस जुलूस में चला फिर घर आ गया । आकर देखा तो इरफान पठान को मैन आफ मैच घो‍षित किया गया था । और शाहरुख खान क्रिक्रटरों के बीच थे । मन कुछ हल्‍का हुआ मगर वो प्रश्‍न तो अब भी वहीं खड़ा है कि हम कब मुसलमानों को भारतीय मानने के लिये दिल से तैयार होगें ।
फिर भी मुझ जैसे नपुंसक भीष्‍म पितामह का सलाम मेरे शहर के सराय और कस्‍बे में रहने वाले मुसलमानों को, इरफान पठान को और शाहरुख खान को भी ।

मुर्दे ने कहा सरकार मुझे आय, जाति और मूल निवासी प्रमाण पत्र चाहिये

सीहोर मध्‍य प्रदेश के सीहोर जिले की इछावर तहसील का कार्यालय इन दिनों एक बड़ी ही विचित्र परेशानी में उलझ गया है और ये परेशानी है एक मुर्दे द्वारा प्रमाण पत्र मांगा जाना। पिछले साल मर चुके एक व्‍यक्ति ने बाकयदा आवेदन पत्र देकर तहसील कार्यालय से अनुरोध किया है कि उसको आय जाति और मूल निवासी का प्रमाण पत्र चाहिये । अब जाति तक तो ठीक है पर तहसील कार्यालय के लोग परेशान हैं कि उस मुर्दे को कहां का मूल निवासी बताएं स्‍वर्ग का या फिर नर्क को और उसकी आय क्‍या बताई जाए क्‍योंकि स्‍वर्ग या नर्क में वो क्‍या कर रहा है ये तो तहसील वालों को पता ही नहीं है ।इछावर के नायब तहसीलदार को ग्राम उमरखाल के दतार सिंह पुत्र कन्‍हैयालाल के नाम से उनके पुत्र सीरेन ने आय, जाति तथा मूल निवासी प्रमाण पत्र बनाने का आवेदन मिला है । इस आवेदन के साथ ही दतार सिंह का हस्‍ताक्षर युक्‍त शपथ पत्र भी लगा है । इसके अलावा पटवारी गोविंद सिंह और ग्राम पंचायत का प्रमाण पत्र भी आवेदन के साथ लगा हुआ है । अब हकीकत ये है कि दतार सिंह की मौत दो साल पहले ही हो चुकी है । ग्राम के पंचायत सचिव अजब सिंह के अनुसार तो दतार सिंह दो साल पहले ही मर चुका है ।उधर दतार सिंह के पुत्र सीरेन ने बताया कि उसने लखन सिंह निवासी गोयलखेड़ी को प्रमाण पत्र संबंधी सभी कागज तैयार करने के दौ सौ रुपये दिये हैं और उसने लखन सिंह को पहले ही बता दिया था कि दतार सिंह की मौत दो साल पहले ही हो चुकी है । जिस पर लखन सिंह ने कहा था कि उससे कुछ नहीं होता मैं सब करवा दूंगा । और उसीने ही सारे कागज जिसमें दो साल पहले मर चुके दतार सिंह का नोटरी का शपथ पत्र भी शामिल है तैयार करवा के आवेदन नायब तहसीलदार को दिया है ।उध आवेदन तैयार करवानें वाले लखन सिंह का कहना है कि उसे नहीं पता था कि दतार सिंह की मौत हो चुकी है । तथा सीरेंन ने ख़ुद ही अपने पिता के स्‍थान पर हस्‍ताक्षर कर दिये थे शपथ पत्र पर । उसका इसमें कोई कसूर नहीं है ।कुल मिलाकर बात वही आ रही हे कि बाकायदा एक मरे हुए व्‍यक्ति के नाम से न केवल आवेदन दिया गया हे बल्कि उसके साथ में शपथ पत्र भी दिया गया है और ये सभी को मालूम है कि शपथ पत्र के लिये नोटरी के सामने उपस्थित होना पड़ता है । खैर बात चाहे जो भी हो पर फिलहाल तो तहसील के कर्मचारी इस अलग तरह की परेशानी में पड़ ही गए हैं कि उस मरे हुए व्‍यक्ति को कहां का मूल निवासी बताएं और उसकी आय क्‍या बताई जाए । उधर मुर्दा भी इंतेजार में है कि देखें उसको कहां का मूल निवासी घोषित किया जाता है स्‍वर्ग का या फिर नर्क का । सुबीर संवाद सेवा के लिये पंकज सुबीर

शवों को सम्मान पूर्वक विदा करना ही उसका शौक है

समाजसेवा की वास्तव में क्या परिभाषा है यह आज तक कोई तय नहीं कर पाया फिर भी यह बात मानी जाती है कि वह कार्य जो गहन पीड़ा के दौरान मरहम का कार्य करे उसे समाज सेवा या मानव सेवा कहा जा सकता है,जैसा इछावर के होल्कर सिंह का कार्य है । हो सकता है होल्कर सिंह को अपने जीवन पर्यंत कोई विशेष सम्मान नहीं मिले । हो सकता है उसके कार्य गुमनाम रह जाऐं ,लेकिन इससे उसे कोई मतलब नहीं है , क्योंकि वह तो अपने काम में जुटा रहता है । सत्तर वर्षीय होल्कर सिंह हम्माल है तथा ठेला चलाकर अपना जीवन यापन करता है । जब वह पन्द्रह सोलह वर्ष का था तब से ही उसने शवयात्राओं में जाना प्रारंभ कर दिया था , धीरे धीरे उसने शव को नहलाना , बाजार से सामान खरीद कर लाना ,अर्थी तैयार करना , शवयात्रा में जाना और श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था जुटाना जैसे पूरे काम करना प्रारंभ कर दिये । उसे इस काम में आत्मिक संतोष मिलने लगा ,फिर उसने कोई भी शवयात्रा नहीं छोड़ी। इछावर में कहीं भी मृत्यु हो ,किसी भी जाती में हो , होल्कर तुरंत पहुंच जाता है और सारी जिम्मेदारी संभाल लेता है , पिछले कई वषोर्ं से उसने एक भी शवयात्रा नहीं छोड़ी है। लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का काम भी वह ही संभालता है। होल्कर वैसे तो अनपढ़ है फिर भी हरेक मृत्यु को वह अपने पास लिखवा के रख लेता है । नगर पालिका के जन्म मृत्यु विभाग के पास भले जानकारी न हो पर होल्कर के पास इछावर में वर्ष भर में हुई मौतों की पूरी जानकारी रहती है ,तभी तो धुलेंडी के दिन जब इछावर में पारंपरिक रूप से गमी वाले घरों में लोग गुलाल लगाने जाते हैं तो होल्कर के साथ जाते हैं , क्योंकि उसे वर्ष भर में हुई पूरी मौतों की जानकारी रहती है । पिछले कई वषोर्ं की जानकारी होल्कर के पास सुरक्षित है । होल्कर के अनुसार उसे पूर्वाभास हो जाता है कि कहां पर उसकी जरूरत है और वह पहुंच जाता है । एक बार इछावर में चार मौतें एक दिन में हो गई थीं ,वह दिन होल्कर का भारी व्यस्तता में गुज+रा था । शव को स्नान करवाना, अर्थी बनाना , कफन की व्यवस्था, शव को अर्थी पर रखना, शव यात्रा में जाना ,श्मशान घांट पर जाकर अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करना यह काम किसी का भी शौक नहीं हो सकता पर होल्कर का है, । इसमें उसे इतना आत्मिक सुख मिलता है कि वह इसके लिए ठेले चलाने का अपना काम छोड़कर चल देता है।