'' किंगकोबरा हनुमान जी की अदालत में हाजिर हो .........! '' ऐसी कोई आवाज़ सीहोर से आठ किलोमीटर दूर स्थित लसुड़िया परिहार के मंदिर में लगती तो नहीं है ,लेकिन फिर भी यहाँ उस रोज़ हनुमान जी की अदालत में साँपों की पेशी होती है । दीपावली की पड़वाँ ( अगले दिन ) के दिन लसुड़िया परिहार के मंदिर में उन लोगों की भीड़ जुटती है जिन्हें पिछले दिनों में साँप ने काटा था तथा जिन्होनें इस मंदिर में आकर ज़हर उतरवाया था । पूर्व में यहाँ छोटा सा मंदिर था लेकिन अब यहाँ भव्य मंदिर है , साँप के काटने पर ग्रामीण लोग पीड़ित व्यक्ति को लेकर यहाँ आते हैं । यहाँ साँप का ज़हर उतर जाने के बाद एक धागा बाँध दिया जाता है , जिसे आने वाली दीपावली की पड़वां पर यहाँ आकर खोलना होता है ।
जब यहाँ सर्पदंश से पीड़ित लोग धागा खोलने आते हैं तो उनके शरीर में साँपों की पेशी भी होती है । ये साँप पीड़ित व्यक्ति के शरीर में आकर स्वयं बताते हैं कि उन्होंने इस व्यक्ति को क्यों काटा था। एक दिलचस्प बात ये होती है कि पीडि़त व्यक्ति का व्यवहार भी उस दौरान सांप की तरह का ही हो जाता है वो बाकयदा सांप की तरह लहरा कर चलता है जबान निकालता है और वैसा ही करता है जैसा कोई सापं करता है । कई दिलचस्प बातें भी होती हैं जैसे कोई बताता है कि मैं इनका पूर्वज हूँ इन्होंने मेरा ध्यान नहीं रखा इसलिये मैने काटा । कोई कहता है कि इन्होंने मेरे स्थान पर लघुशंका कर दी थी इसलिये काटा ,कोई पूँछ पर पाँव रख देने का सामान्य कारण बताता है । उस दौरान उस व्यक्ति का व्यवहार भी साँप की तरह ही हो जाता है । पीड़ित व्यक्ति के परिजन गलती की क्षमा माँगते हैं और साँप जी चले जाते हैं । पृथम दृष्टया ये बात कोरा अंधविश्वास लगती है लेकिन प्रत्यक्षदर्शी एसा नहीं मानते । दो सालों से यहाँ समाचार पत्रों तथा टी वी समाचार चैनलों के संवाददाताओं की भीड़ भी जुटने लगी है ।
आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं मन्सूर अली हाश्मी जी के साथ, जो अपनी
दूसरी ग़ज़ल लेकर हमारे बीच उपस्थित हुए हैं
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*बस अब दीपावली का पर्व बीत रहा है। कल देव प्रबोधिनी एकादशी है जिसके साथ ही
आंशिक रूप से दीपावली का पर्व समाप्त हो जाता है। कहीं-कहीं यह कार्तिक
पूर्णिमा त...
1 week ago
1 comments:
गजब गजब की कहानियाँ हैं..मानो तो मैं गंगा माँ हूं, न मानो तो बहता पानी वाली बात है. हमें तो मान्यता देने में ही भलाई नजर आती है और अपना क्या जाता है इसमें.
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