क्‍या आपने दूध की नदी बहते देखी है , नहीं देखी तो आइये सीहोर जिले के बार‍हखंभा में जहां दीवाली के दूसरे दिन बहती है सचमुच दूध की नदी

आज के इस युग में जहाँ पानी की नदी ही मुश्किल से बह पा रही हो वहाँ इस बात पर विश्वास करना जरा मुश्किल लगता है कि कभी दूध की नदियाँ भी बहती थीं । लेकिन सीहोर के बारह खंबा में यह दृष्य साल में एक बार दीपावली के दूसरे दिन साकार हो उठता है ।
सीहोर से लगभग पैंतीस किलोमीटर दूर स्थित दस पंद्रह मकानों का छोटा सा गाँव देवपुरा दीपावली के दूसरे दिन जीवंत हो उठता है । कितने लोग यहाँ पहुंचते हैं  यह अनुमान लगाना तो मुश्किल है लेकिन चारों तरफ नज़र डालने पर एक जन समुद्र लहराता नज़र आता है । यहाँ पर स्थित बारह खंबा देव स्थल पर इस दिन विशाल मेला भरता है । यह मेला वास्तव में किसानों का मेला है । आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में किसान यहाँ पहुंचते हैं । यह मेला दुधारू पशुओं से जुड़ी मान्यताओं का मेला है । न केवल सीहोर जिले बल्कि आसपास के जिलों के किसान भी अपने दुधारू पशुओं के बीमार होने पर मनौती मानते हैं कि यदि पशु स्वस्थ हो गया तो वे बारह खंभा मेला में दूध तथा नारियल चढ़ाऐंगें । वे किसान वर्ष में एक बार यहाँ दीपावली के दूसरे दिन दूध तथा नारियल चढ़ाने आते हैं । कुछ किसान यहाँ दूध तथा नारियल केवल इसलिये चढ़ाने आते हैं कि उनके पशु साल भर स्वस्थ रहें । हजारों की संख्‍या में आए ये ग्रामीण उस दिन का अपने दुधारू पशुओं का पूरा दूध यहां पर चढ़ाते हैं अब आप सोच ही सकते हैं कि दूध कितना हो जाता होगा । 
मंदिर में स्थित अनगढ़ पत्थर की प्रतिमा पर जब हजारों ग्रामीण दूध तथा नारियल चढ़ाते हैं तो मंदिर के पीछे बहने वाले नाले में दूध की बाढ़ आ जाती है ये नाला ऐसा लगता है जैसे कि दूध की नदी बह रही हो और पुरानी कहावत याद आ जाती है कि भारत में दूध की नदियां बहा करती थीं । कितने लीटर दूध यहां बह जाता है ये तो कोई भी नहीं बता सकता है पर नाले में उफान मारता दूध देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और ये ही लगता है कि उस देश में जहां पर कई बच्‍चे भूख के कारण मर रहे हों वहां पर ये होना कितना ठीक हे ।  और मंदिर में लग जाता है फूटे हुए नारियलों का पर्वताकार ढेर । दीपावली के दूसरे दिन आस पास के सारे गांव के ग्रामीण केवल एक ही दिशा में यात्रा करते हैं बारह खंभा की दिशा में ।  इस देव स्थल से जुड़ी कई जनश्रुतियां भी हैं। बारह खंबा के इस मेले में नज़र आता है एक विशाल जन समुद्र और दूध की उफनती हुई नदी जो इस कल्पना को साकार करती है कि कैसे प्राचीन भारत में दूध की नदियाँ बहतीं थीं ।

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