शवों को सम्मान पूर्वक विदा करना ही उसका शौक है

समाजसेवा की वास्तव में क्या परिभाषा है यह आज तक कोई तय नहीं कर पाया फिर भी यह बात मानी जाती है कि वह कार्य जो गहन पीड़ा के दौरान मरहम का कार्य करे उसे समाज सेवा या मानव सेवा कहा जा सकता है,जैसा इछावर के होल्कर सिंह का कार्य है । हो सकता है होल्कर सिंह को अपने जीवन पर्यंत कोई विशेष सम्मान नहीं मिले । हो सकता है उसके कार्य गुमनाम रह जाऐं ,लेकिन इससे उसे कोई मतलब नहीं है , क्योंकि वह तो अपने काम में जुटा रहता है । सत्तर वर्षीय होल्कर सिंह हम्माल है तथा ठेला चलाकर अपना जीवन यापन करता है । जब वह पन्द्रह सोलह वर्ष का था तब से ही उसने शवयात्राओं में जाना प्रारंभ कर दिया था , धीरे धीरे उसने शव को नहलाना , बाजार से सामान खरीद कर लाना ,अर्थी तैयार करना , शवयात्रा में जाना और श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था जुटाना जैसे पूरे काम करना प्रारंभ कर दिये । उसे इस काम में आत्मिक संतोष मिलने लगा ,फिर उसने कोई भी शवयात्रा नहीं छोड़ी। इछावर में कहीं भी मृत्यु हो ,किसी भी जाती में हो , होल्कर तुरंत पहुंच जाता है और सारी जिम्मेदारी संभाल लेता है , पिछले कई वषोर्ं से उसने एक भी शवयात्रा नहीं छोड़ी है। लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का काम भी वह ही संभालता है। होल्कर वैसे तो अनपढ़ है फिर भी हरेक मृत्यु को वह अपने पास लिखवा के रख लेता है । नगर पालिका के जन्म मृत्यु विभाग के पास भले जानकारी न हो पर होल्कर के पास इछावर में वर्ष भर में हुई मौतों की पूरी जानकारी रहती है ,तभी तो धुलेंडी के दिन जब इछावर में पारंपरिक रूप से गमी वाले घरों में लोग गुलाल लगाने जाते हैं तो होल्कर के साथ जाते हैं , क्योंकि उसे वर्ष भर में हुई पूरी मौतों की जानकारी रहती है । पिछले कई वषोर्ं की जानकारी होल्कर के पास सुरक्षित है । होल्कर के अनुसार उसे पूर्वाभास हो जाता है कि कहां पर उसकी जरूरत है और वह पहुंच जाता है । एक बार इछावर में चार मौतें एक दिन में हो गई थीं ,वह दिन होल्कर का भारी व्यस्तता में गुज+रा था । शव को स्नान करवाना, अर्थी बनाना , कफन की व्यवस्था, शव को अर्थी पर रखना, शव यात्रा में जाना ,श्मशान घांट पर जाकर अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करना यह काम किसी का भी शौक नहीं हो सकता पर होल्कर का है, । इसमें उसे इतना आत्मिक सुख मिलता है कि वह इसके लिए ठेले चलाने का अपना काम छोड़कर चल देता है।

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