लता मंगेशकर, एक अमृतधारा की तरह, विभिन्न संगीतकारों के संगीत में समाती हुई, गुजरजाती हैं, इसे एक संयोग ही कहा जायेगा, कि जो संगीतकार लता के साथ शीर्ष पर थे, वह लता के साथ मन मुटाव होने के बाद, कुछ भी अच्छा नहीं कर पाये, और गुमनामी के अंधेरो में खो गये, इनमें सी. रामचन्द्र, शंकर-जयकिशन, कल्याण जी-आनन्दजी, प्रमुख हैं। अपवाद रहे बर्मन दादा जो लता से अपने अल्पकालिक मनमुटाव के समय भी, बेहतरीन रचनायें देते रहे, परन्तु इन दो बड़ों की जब वापस सुलह हुई, तो संगीत प्रेमियों को अभिमान, आराधना, गाइड, ज्वैलथीफ और प्रेम पुजारी जैसी श्रेष्ठतम सौगातें मिलीं, इनमें विशेषतः गाइड और अभिमान के लता जी के तीन-तीन एकल गीत तो दुर्लभ हैं। उल्लेखनीय है कि लताजी और बर्मन दादा के मनमुटाव के दौरान आर. डी. बर्मन अपनी पहली फिल्म छोटे नवाब का संगीत देने जा रहे थे, और लता जी से ही गवाना चाहते थे, अब बर्मन दादा से मन मुटाव था, सो लता जी उनके घर में तो जा नहीं सकती थीं, अतः घर की सीढ़ियों पर बैठकर ही रिहर्सल पूरी की।
कालेज के दिनों में मेरा एक मित्रा था, वो अक्सर शाम को मेरे घर आता और कहता ''वो ही गाना सुना'' जैसे ही मैं गाना लगता, वो लाइटें बन्द कर अंधेरे में वो गाना पूरा सुनता, गाना पूरा होता और मैं लाइटें जलाता, तो उसकी आंखे भरी होती, हालांकि उसके जीवन में ऐसी कोई परेशानी नहीं थी, पर वो कहता था ''यार ये आवाज+, और ये गाना, जाने क्यूं मुझे रूला देते हैं'' बाद मैं वह लड़का एक सफल धारावाहिक निर्देशक बना, परन्तु वह इस रहस्य को नहीं समझ पाया, कि फिल्म दस्तक के उस गीत माई री में कासे कहूं को सुन कर, वो रोने क्यों लगता है।
किसी भी गायक के लिये सबसे बड़ी चुनौती होता है गैर फिल्मी प्रयास क्योंकि उसमें सब कुछ उस पर ही निर्भर होता है। लता जी ने इन पचास वर्षो में, बहुत ज्यादा गैर फिल्मी एलबम नहीं निकाले, परन्तु जितने भी निकाले, वो बेहतरीन थे, ऐ मेरे वतन के लोगों से वन्देमातरम ९८ तक कई गैर फिल्मी एलबम निकाले, चाला वाही देस, मीरा के भजन, लता सिंग्स गुरूवाणी, लता सिंग्स ग़ालिब, राम श्याम गुणगान, रामरतन धन पायो, सज+दा, जगराता, अटल छत्रा सच्चा दरबार, प्रेम भक्ति मुक्ति, श्रीमद् भागवत गीत और श्रद्धांजली भाग-१ व २ आदि। सजदा में जगजीत सिंह के साथ गायी गई उनकी ग़ज+लें, दूसरी दुनिया की सैर करा देती हैं, रामरतन धन पायो को ३ प्लेटिनम डिस्क मिली थीं, जो अपने आप में रिकार्ड है। पं. भीमसेन जोशी के साथ राम श्याम गुणगान में, इन दो बड़ों का संगम अद्भुत नजर आता है। लता जी ने श्री भगवद् गीता के श्लोकों का भी एक एलबम निकाला था, अनुराधा पोडवाल ने एक बार स्वीकार किया था, कि उन्हें उसी कैसेट को सुनकर संस्कृत सीखने की प्रेरणा हुई थी। लता जी के दो कैसेट, सुपर कैसेट पर भी रिलीज हुये थे, उनमें एक प्रेम भक्ति मुक्ति तो अनूठा था, विशेषतः उसका गीत मै केवल तुम्हारे लिये गा रही हूँ परन्तु किसी वजह से इन कैसेटो को प्रचार नहीं दिया गया, आज ये बाजार में उपलब्ध भी नहीं है। श्रद्धांजली भाग एक और भाग दो में कुछ गीत, लता जी का पारस पाकर विलक्षण हो गये थे, हालांकि मूल रूप में भी ये गीत उतने ही मधुर थे, परन्तु लता जी को पंकज मलिक का गीत तेरे मन्दिर का हूँ दीपक गाते हुये सुनना एक निराला अनुभव था। लता जी की हालिया रिलीज सादगी में भी वही कहानी है ।
कालेज के दिनों में मेरा एक मित्रा था, वो अक्सर शाम को मेरे घर आता और कहता ''वो ही गाना सुना'' जैसे ही मैं गाना लगता, वो लाइटें बन्द कर अंधेरे में वो गाना पूरा सुनता, गाना पूरा होता और मैं लाइटें जलाता, तो उसकी आंखे भरी होती, हालांकि उसके जीवन में ऐसी कोई परेशानी नहीं थी, पर वो कहता था ''यार ये आवाज+, और ये गाना, जाने क्यूं मुझे रूला देते हैं'' बाद मैं वह लड़का एक सफल धारावाहिक निर्देशक बना, परन्तु वह इस रहस्य को नहीं समझ पाया, कि फिल्म दस्तक के उस गीत माई री में कासे कहूं को सुन कर, वो रोने क्यों लगता है।
किसी भी गायक के लिये सबसे बड़ी चुनौती होता है गैर फिल्मी प्रयास क्योंकि उसमें सब कुछ उस पर ही निर्भर होता है। लता जी ने इन पचास वर्षो में, बहुत ज्यादा गैर फिल्मी एलबम नहीं निकाले, परन्तु जितने भी निकाले, वो बेहतरीन थे, ऐ मेरे वतन के लोगों से वन्देमातरम ९८ तक कई गैर फिल्मी एलबम निकाले, चाला वाही देस, मीरा के भजन, लता सिंग्स गुरूवाणी, लता सिंग्स ग़ालिब, राम श्याम गुणगान, रामरतन धन पायो, सज+दा, जगराता, अटल छत्रा सच्चा दरबार, प्रेम भक्ति मुक्ति, श्रीमद् भागवत गीत और श्रद्धांजली भाग-१ व २ आदि। सजदा में जगजीत सिंह के साथ गायी गई उनकी ग़ज+लें, दूसरी दुनिया की सैर करा देती हैं, रामरतन धन पायो को ३ प्लेटिनम डिस्क मिली थीं, जो अपने आप में रिकार्ड है। पं. भीमसेन जोशी के साथ राम श्याम गुणगान में, इन दो बड़ों का संगम अद्भुत नजर आता है। लता जी ने श्री भगवद् गीता के श्लोकों का भी एक एलबम निकाला था, अनुराधा पोडवाल ने एक बार स्वीकार किया था, कि उन्हें उसी कैसेट को सुनकर संस्कृत सीखने की प्रेरणा हुई थी। लता जी के दो कैसेट, सुपर कैसेट पर भी रिलीज हुये थे, उनमें एक प्रेम भक्ति मुक्ति तो अनूठा था, विशेषतः उसका गीत मै केवल तुम्हारे लिये गा रही हूँ परन्तु किसी वजह से इन कैसेटो को प्रचार नहीं दिया गया, आज ये बाजार में उपलब्ध भी नहीं है। श्रद्धांजली भाग एक और भाग दो में कुछ गीत, लता जी का पारस पाकर विलक्षण हो गये थे, हालांकि मूल रूप में भी ये गीत उतने ही मधुर थे, परन्तु लता जी को पंकज मलिक का गीत तेरे मन्दिर का हूँ दीपक गाते हुये सुनना एक निराला अनुभव था। लता जी की हालिया रिलीज सादगी में भी वही कहानी है ।
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