मैं नहीं जानता कि मेरी जिंदगी में लता जी की आवाज़ नहीं होती तो क्या होता, मैं नहीं जानता कि अगर मैंने 'बेताब दिल की तमन्ना यही है ' और 'लग जा गले के फिर ये हंसीं रात हो न हो ' जैसे गीत न सुने होते तो मैं कवि या शाइर बना भी होता या न होता । पर इतना जानता हूं कि अगर सरस्वती के बारे में कोई मुझसे पूझे तो मैं यही कहूंगा ' लता जी को नहीं जानते क्या ' । ये मेरे लेख कादम्बिनी, दैनिक भास्कर आदि में प्रकाशित हो चुके हैं आज उन्हीं में से कुछ संपादित अंश आपको मिलते रहेंगें ।
१४ वर्ष की उम्र में लताजी ने पार्श्वगायन शुरू कर दिया था, पहले २.३ वर्षो तक उन्होंने मराठी फिल्मों में ही पार्श्वगायन किया, हिन्दी फिल्मों में उस समय नास्टेल्जिया गायिकाओं का बोल बाला था, नूरजहाँ, सुरैया, शमशाद बेगम, पार्श्व गायन में शीर्ष पर थीं। प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद किसी फिल्म का संगीत दे रहे थे, उस समय लता जी ने हिन्दी फिल्मों में पार्श्व गायन प्रारंभ ही किया था। एक सेट पर नौशाद जी ने लता जी का परिचय दिलीप कुमार से करवाया, कि ये नई लड़की लता मंगेशकर हमारी फिल्म में गा रही है, दिलीप कुमार छूटते ही बोले ''इनके गानों में तो मराठी हिन्दी मिलेगी'', बात चुभ गई, और लता ने उर्दू सीखना प्रारंभ कर दिया, और इतनी गहराई से सीखी, कि जब उनके उर्दू गीत युसुफ साहब ने सुने, तो चमत्कृत रह गये। आज तक दिलीप कुमार लता जी को अपनी छोटी बहन मानते हैं, लता जी कि उर्दू जुबान सुनना हो, तो हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत में जारी उनका कैसेट लता सिंग्स् गालिब सुनिये, आप पहचान नही पायेंगे, कि गाने वाली एक महाराष्ट्रीयन महिला है।
एक बार कहीं संगीत की महफिल सजी हुई थी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब गा रहे थे, सारी महफिल तनमय होकर सुन रही थी, अचानक कहीं से, लता जी का एक गीत बजने की आवाज आई कदर जाने ना ओ कदर जाने ना, खाँ साहब ने अपना गाना बन्द कर दिया, और आंखे बन्द कर बैठ गये, जब गीत खत्म हुआ तो बोले ''अजीब लड़की है, कमबख्त कभी बेसुरी ही नहीं होती''। लता जी ने अपने जीवन में ढेरों पुरस्कार और इनाम लिये हैं, परन्तु शायद यह उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था।
कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर पर एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने लता मंगेशकर को चित्रापट संगीत की अनभिषिक्त साम्राज्ञी घोषित किया था, उन्हीं के शब्दो में ''ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है, ऐसा कलाकार आज हम सभी के बीच है, उसे अपनी आँखो के सामने घूमता फिरता देख पा रहे हैं, कितना बड़ा है हमारा भाग्य'' फिल्म महल के गीत आयेगा आने वाला को सुनकर गंधर्व साहब ने कहा था - '' तानपुरे से निकलने वाले गांधार को, शुद्ध रूप में सुनना चाहते हो, तो लता को सुन लो''। सचमुच गांधार पर जितनी अच्छी पकड़, लता जी की रही है, कम से कम फिल्मी पार्श्व संगीत मे तो किसी की नहीं रही।
२९ जनवरी १९६३ को, लाल किले की प्राचीर पर, एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, एक घरेलू सी, सीधी सीधी नजर आने वाली गायिका, एक गीत गा रही थी, सामने देश का प्रधानमंत्राी बैठा हुआ, बच्चों की तरह सुबक कर रो रहा था, यह अपने आप में एक ही मिसाल है, जब किसी गायिका ने अपनी आवाज से देश के प्रधानमंत्री को रूला दिया। वह कार्यक्रम था, १९६२ के युद्ध में शहीद सैनिकों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम, वह गीत था ऐ मेरे वतन के लोगों वो गायिका थी लता मंगेशकर और रोने वाले प्रधानमंत्री थे पं. जवाहरलाल नेहरू। बहते हुये आंसू लता मंगेशकर के जीवन की सबसे अमूल्य निधि थे।
ख़य्याम साहब से एक दफ़ा किसी ने पूछा था, कि आपने उमराव जान में, लता जी से गाने क्यूं नहीं गवाए ? ख़य्याम साहब ने जवाब दिया था, कि उमराव जान में सभी मुजरे ही थे और फिल्म पाकिजा में भी सभी मुजरे थे, और लगभग सभी गीत लता मंगेशकर ने ही गाए थे, गुलाम मोहम्मद की बनाई हुई धुनों पर, लता मंगेशकर ने जो परफारमेंस दिया है, वह सर्वश्रेष्ठ है, इससे ऊपर कुछ भी नहीं है। यदि मैं उमराव जान में लता से गवाता, तो लोग सबसे पहले पाकिजा से उसकी तुलना करते, और लता और पाकिजा जैसा संगम-शताब्दियों में एक बार होता है। कितना सच कहा था ख़य्याम साहब ने। लेखक के मामा, जो कि चित्रापट संगीत के करोड़ों भारतीय शौकीनों में से एक हैं, का कहना है ÷÷चलते-चलते सुन लो, तो फिर एक सप्ताह तक कुछ और सुनना अच्छा नही लगता''।
१४ वर्ष की उम्र में लताजी ने पार्श्वगायन शुरू कर दिया था, पहले २.३ वर्षो तक उन्होंने मराठी फिल्मों में ही पार्श्वगायन किया, हिन्दी फिल्मों में उस समय नास्टेल्जिया गायिकाओं का बोल बाला था, नूरजहाँ, सुरैया, शमशाद बेगम, पार्श्व गायन में शीर्ष पर थीं। प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद किसी फिल्म का संगीत दे रहे थे, उस समय लता जी ने हिन्दी फिल्मों में पार्श्व गायन प्रारंभ ही किया था। एक सेट पर नौशाद जी ने लता जी का परिचय दिलीप कुमार से करवाया, कि ये नई लड़की लता मंगेशकर हमारी फिल्म में गा रही है, दिलीप कुमार छूटते ही बोले ''इनके गानों में तो मराठी हिन्दी मिलेगी'', बात चुभ गई, और लता ने उर्दू सीखना प्रारंभ कर दिया, और इतनी गहराई से सीखी, कि जब उनके उर्दू गीत युसुफ साहब ने सुने, तो चमत्कृत रह गये। आज तक दिलीप कुमार लता जी को अपनी छोटी बहन मानते हैं, लता जी कि उर्दू जुबान सुनना हो, तो हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत में जारी उनका कैसेट लता सिंग्स् गालिब सुनिये, आप पहचान नही पायेंगे, कि गाने वाली एक महाराष्ट्रीयन महिला है।
एक बार कहीं संगीत की महफिल सजी हुई थी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब गा रहे थे, सारी महफिल तनमय होकर सुन रही थी, अचानक कहीं से, लता जी का एक गीत बजने की आवाज आई कदर जाने ना ओ कदर जाने ना, खाँ साहब ने अपना गाना बन्द कर दिया, और आंखे बन्द कर बैठ गये, जब गीत खत्म हुआ तो बोले ''अजीब लड़की है, कमबख्त कभी बेसुरी ही नहीं होती''। लता जी ने अपने जीवन में ढेरों पुरस्कार और इनाम लिये हैं, परन्तु शायद यह उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था।
कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर पर एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने लता मंगेशकर को चित्रापट संगीत की अनभिषिक्त साम्राज्ञी घोषित किया था, उन्हीं के शब्दो में ''ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है, ऐसा कलाकार आज हम सभी के बीच है, उसे अपनी आँखो के सामने घूमता फिरता देख पा रहे हैं, कितना बड़ा है हमारा भाग्य'' फिल्म महल के गीत आयेगा आने वाला को सुनकर गंधर्व साहब ने कहा था - '' तानपुरे से निकलने वाले गांधार को, शुद्ध रूप में सुनना चाहते हो, तो लता को सुन लो''। सचमुच गांधार पर जितनी अच्छी पकड़, लता जी की रही है, कम से कम फिल्मी पार्श्व संगीत मे तो किसी की नहीं रही।
२९ जनवरी १९६३ को, लाल किले की प्राचीर पर, एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, एक घरेलू सी, सीधी सीधी नजर आने वाली गायिका, एक गीत गा रही थी, सामने देश का प्रधानमंत्राी बैठा हुआ, बच्चों की तरह सुबक कर रो रहा था, यह अपने आप में एक ही मिसाल है, जब किसी गायिका ने अपनी आवाज से देश के प्रधानमंत्री को रूला दिया। वह कार्यक्रम था, १९६२ के युद्ध में शहीद सैनिकों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम, वह गीत था ऐ मेरे वतन के लोगों वो गायिका थी लता मंगेशकर और रोने वाले प्रधानमंत्री थे पं. जवाहरलाल नेहरू। बहते हुये आंसू लता मंगेशकर के जीवन की सबसे अमूल्य निधि थे।
ख़य्याम साहब से एक दफ़ा किसी ने पूछा था, कि आपने उमराव जान में, लता जी से गाने क्यूं नहीं गवाए ? ख़य्याम साहब ने जवाब दिया था, कि उमराव जान में सभी मुजरे ही थे और फिल्म पाकिजा में भी सभी मुजरे थे, और लगभग सभी गीत लता मंगेशकर ने ही गाए थे, गुलाम मोहम्मद की बनाई हुई धुनों पर, लता मंगेशकर ने जो परफारमेंस दिया है, वह सर्वश्रेष्ठ है, इससे ऊपर कुछ भी नहीं है। यदि मैं उमराव जान में लता से गवाता, तो लोग सबसे पहले पाकिजा से उसकी तुलना करते, और लता और पाकिजा जैसा संगम-शताब्दियों में एक बार होता है। कितना सच कहा था ख़य्याम साहब ने। लेखक के मामा, जो कि चित्रापट संगीत के करोड़ों भारतीय शौकीनों में से एक हैं, का कहना है ÷÷चलते-चलते सुन लो, तो फिर एक सप्ताह तक कुछ और सुनना अच्छा नही लगता''।
1 comments:
पंकज जी लता जी के बारे में और भी जानकारियों का इंतज़ार रहेगा और उन ५० गानों की लिस्ट का विशेषकर
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो हिन्दी मेरी आवाज़ है.
www.sajeevsarathie.blogspot.com
www.dekhasuna.blogspot.com
www.hindyugm.com
9871123997
सस्नेह -
सजीव सारथी
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