गीतों के बंजारे कवि रमेश हठीला का हैदराबाद में निधन

आज साजन का संदेसा आ गया है

ये निमंत्रण मुझको भी तो भा गया है

आओ सब मिलकर बधावें गीत गाओ

और दुल्हन की तरह डोली सजाओ

                                     - श्री रमेश हठीला

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सीहोर के यशस्वी कवि तथा साहित्यकार रमेश हठीला का लम्बी बीमारी के बाद हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया । सीहोर के साहित्य जगत ने उनके निधन के साथ ही एक महत्वपूर्ण कवि को खो दिया । बंजारे गीत पुस्तक के माध्यम से राष्ट्रीय साहित्यिक परिदृश्य पर अपनी पहचान छोड़ने वाले श्री हठीला इकसठ वर्ष के थे ।
देश भर के कवि सम्मेलनों में अपने ओज के गीतों से अपनी अलग पहचान स्थापित करने वाले गीतकार तथा सीहोर की साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु रहने वाले गीतकार श्री रमेश हठीला का हैदराबाद में कल शाम दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया । वे पिछले तीन माह से वहां इलाज हेतु गये हुए थे । काल के भाल पर गीत मैंने लिखा / मौत आई अगर उसका भी मन रखा / हार मानी नहीं काल हारा स्वयं / एक पल को मुझे क्यों हुआ ये भरम / जिंदगी के लिये गीत मैं गाऊँगा / मैं हँ बंजारा बादल, भटकता हुआ / प्यासी धरती दिखी तो बरस जाऊँगा। जैसे गीतों से जाने वाले गीतकार रमेश हठीला सीहोर की सभी साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे । शिवना साहित्यिक संस्था के वे संस्थापक सदस्य थे, सीहोर में पिछले तीस बरसों से लगातार आयोजित हो रहे जनार्दन शर्मा पुण्य स्मरण संध्या तथा सम्मान समारोह से वे सक्रियता से जुड़े हुए थे  । तीन वर्ष प्रकाशित होकर आया उनका काव्य संग्रह बंजारे गीत राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चित रहा था । एक और जहां वे अपने ओज के स्वारथ के अंधों ने कैसा हश्र किया बलिदान का / लहूलुहान नजर आता है नक्शा हिन्दुस्तान का जैसे गीतों के लिये जाने जाते थे वहीं कोमल श्रंगार के सांस तुम, मधु आस तुम, श्रंगार का आधार तुम / तुम ही उद्गम, अंत तुम ही, कूल तुम मझधार तुम जैस गीतों को अपनी सुमधुर आवाज में प्रस्तुत करने में भी उनका कोई सानी नहीं था । ढलते देखा है सूरज को, चंदा देखा गलते / काल चक्र की चपल चिता में देखा सबको जलते/ अपना जीवन पूरा करके टूट गया हर तारा/ नियती के इस कड़वे सच क्यों हम आंख चुराएँ, जैसे जीवन दर्शन के गीत भी उनकी सशक्त लेखनी से जन्म लेते थे । श्री हठीला अपनी कुंडलियों के लिये भी खासे लोकप्रिय थे जो वे लगभग हर समाचार पत्र के लिये सम सामयिक घटनाओं पर आठ पंक्तियों वाली चुटीली कुंडलियां लिखा करते थे जो बहुत पसंद की जाती थीं, इस प्रकार की कुंडलियां उन्होंने लगभग दो हजार से भी अधिक लिखीं थीं । पिछले कुछ दिनों से साहित्यिक पुस्तकों  की समीक्षा लिखने से भी जुड़ गये थे, उनकी समीक्षाएं देश की सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रहीं थीं । वाशिंगटन हिंदी समिति तथा शिवना प्रकाशन द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित भारतीय मूल के पांच हिंदी लेखकों की महत्वपूर्ण पुस्तक धूप गंध चांदनी की भूमिका भी उन्होंने लिखी थी जो अंतर्राष्ट्रीय हिंदी जगत में काफी सराही गई थी । निधन से कुछ ही दिन पूर्व उन्होंने उजला आसमान नामक पुस्तक की भूमिका अस्पताल में ही लिखी थी ।  वे पत्रकारिता से भी जुड़े हुए थे तथा ऐतिहासिक तथा धार्मिक समाचार नियमित रूप से लिखा करते थे जिला पत्रकार संघ के संस्थापक सदस्यों में भी वे थे  । शहर के इतिहास की उनको अच्छी खासी जानकारी थी । होली के अवसर पर उनके द्वारा निकाले गये विशेष समाचार पत्र का पूरे शहर को इंतजार रहता था । उनकी चुटीली तथा गुदगुदाने वाली काव्यमय उपाधियां कई दिनों तक शहर में चर्चा का केन्द्रबिन्दु रहती थीं ।  होली के विशेष अंक में हास्य समाचार तथा अन्य सामग्रियां भी वे स्वयं जुटाते थे । श्री हठीला को प्रतिष्ठित जनार्दन सम्मान सहित कई सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त हो चुके थे । हिंदी कवि सम्मेलन के मंचों की प्रतिष्ठित कवयित्री मोनिका हठीला के वे पिता थे ।  उनके निधन से सीहोर के साहित्य आकाश का एक चमकीला सितारा टूट गया है । देर रात उनके निधन का समाचार मिलते ही शहर के साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ गई । श्री हठीला का अंतिम संस्कार हैदराबाद में ही किया जायेगा । तीन दिन बाद उनका अस्थि कलश हैदराबाद से सीहोर लाया जायेगा । प्यार से तेरा अभी परिचय नहीं है  ये समर्पण है कोई विनिमय नहीं है / मात्र मोहरे हैं सभी शतरंज के हम / मौत कब हो जाये ये निश्चय नहीं है / जो मिला उनमुक्त हाथों से लुटाओ / अर्थ जीवन का कभी संचय नहीं है, जैसी पंक्तियों का गीतकार सब कुछ उन्मुक्त हाथों से लुटा कर बिना कुछ संचय किये सीहोर से सैंकड़ों किलोमीटर दूर दकन के हैदराबाद में गहरी नींद सो गया । 

1 comments:

Smart Indian said...

हठीला जी को श्रद्धासुमन! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे!