वैसे भले ही सब ये कहते हैं कि सिनेमा एक दोयम दर्जे की चीज है पर हकीकत ये है कि उसका सहारा सभी को लेना ही पड़ता है अब मध्य प्रदेश की सरकार को ही ले लें जब उसको अपनी योजनाओं के प्रचार की ज़रूरत पड़ी ( चुनाव जो आ गए हैं ) तो उसको भी सबसे पहले याद आई मुन्ना भाई की ही । सरकार ने अपनी योजनाओं के प्रचार के लिये विकास रथ बनाएं हैं जों कि गांव गांव में घूम कर सरकार की योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं । अब इसमें भी ख़ास बात ये है कि योजनाओं की जानकारी तो बाद में दी जाती है पहले तो गांव वालों को एकत्र करने के लिये प्रोजेक्टर पर मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई जैसी फिल्में दिखाई जाती हैं । और ऐसा भी नहीं है कि ये योजना में शामिल नहीं है ये भी बाकायदा योजना में शामिल है कि गांव वालों को पहले ये फिल्में दिखाई जाएंगीं और बीच बीच में विज्ञापन के ब्रेक की तरह योजनाओं का प्रचार किया जाता है । मतलब ये कि अब सरकारें भी टीवी वालों की तरह हो गईं हैं । प्रचार करना है तो फिल्में दिखाओ और बीच बीच में अपना विज्ञापन कर लो । मजे की बात ये है कि फिल्में दिखाई जाएंगी ऐसा कहा गया है सरकार के प्रचार तंत्र जिला जनसंपर्क द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में कि सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिये जो योजना विकास रथ गांव गांव में जा रहा है उसमें मुन्ना भाई सीरिज की फिल्में दिखाई जाएंगीं । सही बात भी है अगर आपकी योजनाओं में दम है तो प्रचार खुद ही हो जाता है पर अगर दम ना हो तो फिर तो मुन्ना भाई का सहारा लेना ही पड़ता है ।
आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं मन्सूर अली हाश्मी जी के साथ, जो अपनी
दूसरी ग़ज़ल लेकर हमारे बीच उपस्थित हुए हैं
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*बस अब दीपावली का पर्व बीत रहा है। कल देव प्रबोधिनी एकादशी है जिसके साथ ही
आंशिक रूप से दीपावली का पर्व समाप्त हो जाता है। कहीं-कहीं यह कार्तिक
पूर्णिमा त...
1 week ago
3 comments:
dekhiye subeer bhai ye sarkar jo nakare kam hain, iske kale dhandho se sabhi log paricheet hain ,andher nagri chopat raaj chal raha hai upar se lekar niche tak manmani hai janta main dam hoga to badal degi sara raaj paat
thanks
पंकज भाई
सबसे पहले तो लंबे अंतराल के बाद ब्लॉग जगत में आप का स्वागत. आप की अनुपस्तिथि क्या मायने रखती है शायद आप नहीं जानते लेकिन कोई जानबूझ के थोड़े ही लेखन से दूर होता है. इश्वर से प्रार्थना है की वो आप को हमेशा खुश और हम लोगों के पास बनाये रखे.
जहाँ तक सिनेमा के सहारे की बात है तो ये कोई नई चीज नहीं है. मेरे बचपन में भी चुनाव में फिल्मों या फिल्मी गीतों का सहारा लिया जाता रहा है.ये जन साधारण को आकर्षित करने का सबसे सुगम तरीका है.
नीरज
बी जे पी के इस कार्यकाल की सारी उपलब्धियाँ गिनाने के लिये मात्र साढ़े सात मिनट ही तो चाहिये तब फिर तीन घंटे सिनेमा न दिखायें तो करें क्या??
-एक कांग्रसी सिपाही :)
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