बच्चों से कहना मुझे माफ कर दें - संदर्भ : डॉ.एम हैदर ( लेखक एल आर सिसौदिया उप संचालक जनसम्पर्क सीहोर )


dr haider    

स्‍व. डॉ. एम. हैदर

मसला कोई एसा नहीं जो बहुत गंभीर हो पर उससे जुड़ी डॉ.एम हैदर की सहजता और सरलता जरूर उसे याद करने योग्य बनाती है। एक दिन अचानक ही वे सबेरे-सबेरे अपने बड़े बेटे के साथ प्रकट हुए। दरवाजे पर दस्तक सुन दरवाजा खोला। सामने खड़े थे डॉ.एम हैदर। मैं उन्हें आदर सहित घर की छोटी सी बैठक में ले आया। मन में एक अकुलाहट ....... पहले कभी नहीं आए अब भी आए तो बिल्कुल अचानक। हिन्दुस्तान टाईम्स जैसे प्रतिष्ठित अखबार से जुड़े होने के कारण एक अलग आशंका। क्या पता किस खबर के बारे में आए हैं। आशंकाएं निर्मूल सिध्द होती हैं। मेरे बिना कुछ पूछे डॉ.हैदर बोले 'यार, कलेक्ट्रेट के पास से गुजर रहा था, अचानक आपका ख्याल आया, सोचा आपके घर चाय पीता चलूं।' मैंने राहत की सांस ली। चलो कहीं कुछ नहीं। उन्हें पहली बार घर आया देख मेरे बच्चे कुछ सकुचाते हुए उनसे मुखातिब हैं - नमस्ते अंकल। मैं बच्चों का परिचय कराता हूं। वे बच्चों के लिए दुआ करते हैं। मैं बच्चों को ताकीद करता हूं बेटे ये 'डाकसाब' हैं। अंकल की अंग्रेजी बहुत अच्छी है ये कहीं भी दिखें, अंकल को नमस्कार जरूर करना।
    इत्तफाकन एक दिन सुबह - सुबह बच्चे दूध लेने गए। वे हैदर साहब के घर के सामने से गुजरने वाली सड़क से गुजर रहे होंगे। वे देखते हैं डॉ.एम हैदर घर के बाहर अखबार की किसी खबर में मशगूल घूप सेंक रहे हैं। बच्चे धीरे से उन्हें नमस्ते अंकल बोलते हैं। सुनने वाली मशीन कान में नहीं लगी होगी वे शायद कुछ सुन नहीं पाते। तीनों बच्चे कुछ जोर से ..... फिर कुछ और जोर से नमस्ते अंकल का सुर मिलाते, चिल्लाते निकल जाते हैं। घर आकर बच्चे शिकायत करते हैं 'पापा आपने तो उस दिन कहा था ''अंकल जहां भी मिलें उन्हें नमस्कार जरूर करना'' पर उन्होंने तो आज हमें नमस्कार का जबाब ही नहीं दिया। बच्चों की बात सुन मैं अचकचा जाता हूं। एसा कैसे हो सकता है। तहजीब के मामले में डॉ. हैदर की अपनी अलग पहचान है। अचानक याद आता है शायद सुनने वाली मशीन कानों से नहीं लगी होगी। मैं बच्चों को समझाता हूं बेटे अंकल थोड़ा कम सुनने लगे हैं। बूढ़े जो हो गए हैं। सुनने वाली मशीन कानों में लगी नहीं होगी इसलिए आपका नमस्ते नहीं सुन पाए। कुछ दिन बाद मेरी डॉ.हैदर से मुलाकात होती है। बातों ही बातों में मैं बच्चों के नमस्कार वाला वाकया उन्हें सुनाता हूं। सुनते ही उनके चेहरे पर पछतावे के भाव आते हैं और वे कहते हैं 'यार बड़ी गलती हो गई'। अचानक वे ठहाका लगाते हैं और कहते हैं''यार मशीन कान से नहीं लगी होगी, बच्चे क्या सोचते होंगे'। बच्चों से कहना मुझे माफ करे मैं उनसे मिलने घर आऊंगा। मुझे दु:ख है कि वे मेरे बच्चों से मिलने की तमन्ना लिए कहीं दूर कूच कर गए हैं। सुनते हैं वहां से कोई लौटकर नहीं आता। डॉ.हैदर के बीमार होने पर मैं और मेरे कुछ दोस्त उन्हें देखने भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल जाते हैं। यहां उन्हें देखना भी मुनासिब नहीं। अस्पताल के अपने नियम कायदे हैं और वे थे भी आई.सी.यू. में। हम वापस आ जाते हैं। दूसरे दिन खबर मिलती है डॉ. हैदर नहीं रहे। फोन पर मिली खबर ने मुझे विचलित कर दिया है। बच्चे पूछते हैं पापा क्या हुआ ? मैं उन्हें बताता हूं बेटा हैदर अंकल नहीं रहे। बच्चे अवाक् ......... !  मैं उन्हें समझाता हूं ....... बेटे वे तुम से मिलने कभी न कभी जरूर आएंगे।
     मरा नहीं करते डॉ.हैदर जैसे लोग। वे हमेशा जिन्दा रहते हैं लोगों के जेहन में। उन्हें मेरी और मेरे पत्रकार साथियों की विनम्र श्रध्दांजली।

sisodiya ji2

 एल आर सिसौदिया
उप संचालक
जनसम्पर्क
सीहोर

4 comments:

Udan Tashtari said...

विनम्र श्रध्दांजली।

seema gupta said...

डॉ.हैदर जी को हमारी भी विनम्र श्रध्दांजली। बेहद भावुक कर गया ये वाक्या.

Unknown said...

डा. हैदर एक जिंदादिल इनसान थे, उम्र के आखिरी पड़ाव तक उन्होंने अपने आप को और अपने अंदर के पत्रकार को थकने नहीं दिया। मृत्यू के कुछ दिन पहले तक वे लगातार काम कर रहे थे। ऐसे जिंदादिल लोगों का कभी अवसान नहीं होता वे अमर हैं हमारी स्मृतियों में। विनम्र श्रद्धांजलि.....
विनीत दुबे सीहोर

Ankit said...

डॉ. एम. हैदर को श्रध्दांजली, ये एक वाकया ही हैदर साहेब के बारे में पूरी बात कह गया है, वाकई ऐसी महान शक्सियतें कभी मरती नही हैं,