और यूं ही कोई नहीं बन जाता है कुमार विश्‍वास, ये बात पता चली सिद्धार्थनगर में जाकर मुझे भी और बहुत सारे अन्‍य लोगों को भी । आज मिलाना चाहता हूं अपने बहुत अच्‍छे मित्र कुमार विश्‍वास के बहुत से रूपों से ।

dr.kumarvishwas_01 dr.kumar-vishwas_07

तरही मुशायरे को केवल दो पोस्‍टों के लिये लंबित कर रहा हूं । और वो भी केवल इसलिये कि जो मुझे कहना है वो यदि नहीं कहा तो मेरा मन मुझे हमेशा ही खुदगर्ज कह कर बुलायेगा । तो आज मेरे मन की सुन लीजिये या यूं कह दीजिये कि ये मेरा आभार है जो मैं उस व्‍यक्ति को सीधे इसलिये नहीं दे सकता कि वो मेरा मित्र है और मित्र को आभार देना मित्रता का अपमान होता है । मगर फिर भी आभार शब्‍द को एक अलग रूप में प्रस्‍तुत कर रहा हूं । वैसे मुझे दो लोगों की बात करनी है एक डॉ कुमार विश्‍वास की और फिर मेरी बड़ी बहन मध्‍यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत दीदी की । आज बात करूंगा डॉ कुमार विश्‍वास की और अगले अंक में दीदी की ।

canon 264विजित और डॉ कुमार विश्‍वास

कंचन ने जब मुझे कहा कि उसे गोरखपुर के पास सिद्धार्थ नगर में अपने भानजे विजित की संस्‍था नवोन्‍मेष के लिये एक कवि सम्‍मेलन करना है तब मुझे लगा कि इतनी दूर कवि सम्‍मेलन के लिये मुझे केवल अपनों पर ही भरोसा करना होगा । और अपनों की सूचि लेकर बैठा तो सबसे पहले तीन नाम आये डा कुमार विश्‍वास, बड़ी बहन नुसरत दीदी और छोटी बहन मोनिका हठीला । तीनों ही मंचों के स्‍थापित नाम हैं सो मुझे लगा कि मेरा काम इन तीनों से ही हो जायेगा । और तीनों ने ही आमंत्रण को उदारता पूर्वक स्‍वीकार करके मेरा बोझ हल्‍का भी कर दिया । बीच में काफी कुछ संस्‍मरण हैं लेकिन उनकी चर्चा बाद में पहले केवल अपने मित्र के बारे में ।

canon 250

डॉ कुमार विश्‍वास : लोग इस नाम को सामान्‍यत: बस इसलिये जानते हैं कि ये एक कवि है जो आज की तारीख में हिंदी मंचों को सबसे बड़ा नाम है । जिसके दो मुक्‍तक कोई दीवाना कहता है,  और  मुहब्‍बत एक एहसासों की आज की तारीख में किसी भी कवि द्वारा लिखी गई सबसे लोकप्रिय पंक्तियां हैं । इतनी की युवा पीढ़ी भी उनको रिंगटोन बना कर अपने मोबाइल में डलवाती है और जिस मोबाइल में कोई दीवाना कहता है का वीडियो न हो वो युवा वर्ग का मोबाइल नहीं हो सकता । ये कुमार विश्‍वास का एक बहुत ही सामान्‍य सा परिचय है । सामान्‍य इसलिये कि कुमार विश्‍वास का ये परिचय देना बहुत बड़ा अन्‍याय होगा । क्‍योंकि गोरखपुर में कार्यक्रम के दौरान और कार्यक्रम के बाद के दो घंटों में जो कुछ लोगों ने देखा वो इस परिचय से एक हजार गुना कुछ था । नई पीढ़ी के लोगों को शायद वहीं पता लगा होगा कि डॉ कुमार विश्‍वास बनने का मतलब केवल बहरे हजज पर चार पांच मुक्‍तक लिखना नहीं होता बल्कि अध्‍ययन की उस लम्‍बी प्रक्रिया से गुजरना होता है जो किसी व्‍यक्ति को कुमार विश्‍वास बनाती है । अध्‍ययन इतना कि हर बात के पीछे आप तर्क दे सकें तथा उन तर्कों को संदर्भों का जामा पहना कर सिद्ध भी कर सकें ।

canon 244 

मंच पर डॉ कुमार विश्‍वास :  मंच पर डॉ कुमार विश्‍वास का जो रूप होता है उससे बहुत ही अलग रूप था सिद्धार्थ नगर के उस लोहिया प्रेक्षागृह के सभागार में । घड़ी से पूरे दो घंटे का प्रस्‍तुतिकरण । दो घंटे का मतलब पूरे दो घंटे । और प्रस्‍तुतिकरण जिसमें केवल कविताएं थीं । स्‍वयं डॉ कुमार विश्‍वास का कहना था कि वर्ष में एक मंच कहीं कोई ऐसा मिलता है जो उनसे जी भर के कविताएं पढ़वा लेता है और ये मंच वहीं मंच है । धाराप्रवाह कविताएं । अपनी सारी प्रसिद्ध कविताएं उन्‍होंने वहां सुनाईं । और बीच बीच में उनके वो सभ्‍य और शालीन हास्‍य के प्रहसन जिनको सुनकर न केवल हाल के श्रोता बल्कि मंच पर बैठे डॉ आजम, नुसरत दीदी, मोनिका भी हंस हंस कर लोट पोट हुए जा रहे थे । इतने कि एक बार तो हंसी के मारे डॉ आज़म मंच पर ही लुढ़क गये और उनके दोनों पैर ऊपर हो गये । मेरा भी वही हाल था । मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि हंसी को किस प्रकार रोकूं ताकि संचालन कर सकूं । जबकि मैं तथा मोना दोनों ही डॉ कुमार विश्‍वास को कई कई बार मंच पर भी और सामने भी सुन चुके हैं ।

IMG_2349

दो घंटे तक लोहिया प्रेक्षागृह में केवल एक ही व्‍यक्ति था डॉ कुमार विश्‍वास । नुसरत दीदी ने लौटते समय ट्रेन में मुझसे कहा ' पंकज मुझे याद नहीं आ रहा कि इससे पहले मैं कब इतना हंसी थी '' । पूरे दो घंटे के प्रस्‍तुतिकरण में डेढ़ घंटे केवल कविता पढ़ी उन्‍होंने और आधे घंटे  हास्‍य की चुटीली घटनाएं उन्‍होंने सुनाईं । मुझे तब मेहसूस हुआ कि आधे घंटे तक पढ़ने के लिये जब हिम्‍मत जुटानी होती है तब दो घंटे तक माइक पर न केवल रहना बल्कि इस प्रकार दो घंटे बाद जब आप बैठ रहे हों तब भी लोग और और का शोर मचा रहे हों तथा आपको फिर माइक पर आकर पगली लड़की वाला गीत सुनाना पड़े, ये सब कुमार विश्‍वास के ही बूते की बात है । मित्र कुमार मेरा सलाम तुम्‍हें ।

canon 252गुरुकुल के प्रकाश अर्श, गौतम राजरिशी, कंचन चौहान के साथ मोनिका और डॉ कुमार विश्‍वास

IMG_2350

डॉ कुमार विश्‍वास की तिरंगा कविता :  ये कविता वही कविता है जो कुछ दिनों पूर्व चर्चित रही । क्‍यों रही उसकी चर्चा तो मैं बाकायदा करने वाला हूं उस पर एक आलेख तैयार कर रहा हूं तथा उस पर होने वाली चर्चा में आप सब को भी शामिल करूंगा। लेकिन ये कविता और उसकी प्रस्‍तुति के पहले की भूमिका के बारे में कुछ शब्‍द जो मैंने शब्‍द कोश से छांटे हैं वो हैं अद्भुत, अविस्‍मरणीय, अनूठी, अतुलनीय आदि आदि ।  कविता क्‍या है सांप्रदायिक सौहार्दं का एक अध्‍याय है । हैरत होती है कि इस कविता पर कोई विवाद करके क्‍या साबित करना चाहता है । कविता की भूमिका अपने आप में एक पूरी सदभावना की कविता है । जियो मित्र कुमार और लिखते रहो ऐसा, बिना ये सोचे कि सौहार्द फैलाने वालों को हर युग में नफरत फैलाने वालों के पत्‍थर झेलने ही होते हैं ।  

canon 261

सिक्‍के का दूसरा पहलू : बात वहीं तक रहती तो भी ठीक था लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ वही वो है जिसकी चर्चा करना मुझे बहुत ज़ुरूरी लगा  । इसलिये कि वहीं से पता चलता है कि दो घंटे तक माइक पर रहने के लिये ऊर्जा कहां से मिलती है । कार्यक्रम लगभग ढाई बजे समाप्‍त हुआ और उसके बाद कंचन की दीदी के घर पर ही सबका भोजन था । सारे कवि और कार्यकर्ता दीदी के घर पहुंचे और वहां पर एक अत्‍यंत स्‍वादिष्‍ट भोजन ( जो जीवन भर याद रहेगा ) का आनंद हमने लिया । तीन सवा तीन बजे घर के बाहर आंगन में फिर से महफिल जमी । ये महफिल सुब्‍ह पांच बजे उजाला होने तक चलती ही रही । इस महफिल में डा कुमार विश्‍वास का दूसरा रूप सामने आया  दूसरा रूप जो कि कई लोगों के लिये बिल्‍कुल ही चौंका देने वाला था । वो रूप जिसने बताया कि कितना अध्‍ययन आवश्‍यक होता है कुमार विश्‍वास बनने के लिये । करीब दो घंटे तक साहित्यिक चर्चा चलती रही और दो घंटे तक एक बार फिर सब लोग डॉ कुमार विश्‍वास को सुनते रहे  । इस बीच करीब सौ डेढ़ सौ शेर या कविताओं की पंक्तियां उन्‍होंने सुनाई । लेकिन सबसे बड़ी बात ये कि हर शेर के लिखने वाले का नाम और उसके बारे में जानकारी देते हुए । कई सारी पुस्‍तकों का संदर्भ देते हुए उनमें से पृष्‍ठ के पृष्‍ठ सुना दिये । उफ । उस पर एक बार फिर से बीच बीच में वही हास्‍य के प्रहसन । एक साइकिल और लड़की वाला प्रहसन तो ऐसा कि नुसरत दीदी गोरखपुर से भोपाल की यात्रा में उस प्रहसन को याद कर कर के हंसती रहीं । अपने मित्र का ये रूप मेरे लिये भी नया ही था । इससे पूर्व मेरे लिये कवि सम्‍मेलन के मंचों वाला ही रूप परिचित था । मित्र डाक्‍टर यूं ही बने रहो और ऊपर वाला स्‍मरण शक्ति को बलाओं से बचा कर रखे ।

canon 251

उपसंहार - कुल मिलाकर बात ये कि डॉ कुमार विश्‍वास का वो चार घंटे का परफार्मेंस हम सबके दिमाग़ों में सुरक्षित हो गया है । चार घंटे में भी मंच के दो घंटों से ज्‍यादा प्रभावी रहे वो दो घंटे जो हमने कंचन की दीदी के आंगन में बात करते हुए बिताये । कई बारे कई यात्राएं किसी एक के कारण अविस्‍मरणीय हो जाती हैं । इस बार की सिद्धार्थ नगर की यात्रा अपने दोस्‍त कुमार विश्‍वास के नाम इन पंक्तियों के साथ

नफ़स नफ़स में बिखरना कमाल होता है

नज़र नज़र में उतरना कमाल होता है

बुलंदियों पे पहुंचना कोई कमाल नहीं

बुलंदियों पे ठहरना कमाल होता है ।

canon 257

6 comments:

आचार्य उदय said...

सुन्दर लेखन।

Udan Tashtari said...

डॉ कुमार विश्वास मेरे भी मित्र हैं मगर इस तरह अंतरगता से जानना बहुत अच्छा लगा. उनकी उर्जा और अध्ययन निश्चित ही कमाल की है. अनेक शुभकामनायें उन्हें.

Asha Joglekar said...

कुमार विश्वास जी का परिचय पाना अच्छा लगा काश कि उनकी कोई रचना भी आप प्रसतुत करते.............

दिगम्बर नासवा said...

आप ने तो डा. कुमार के माध्यम से भी हमारे जैसे स्टूडेंट्स को बहुत कुछ सिखा दिया अपनी इस महत्वपूर्ण पोस्ट से ... डा. साहब को जानना बहुत ही अच्छा लगा ...

निर्मला कपिला said...

ये आलेख दूसरे ब्लाग पर पढा है बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद ये महफिलें इसी तरह चलती रहें।

Dr.Kumar Vishvas said...

आप सब का स्नेह पाथेय है ...बना रहे ऐसे माँ वाणी से प्रार्थना है .