ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्राप्त सीहोर के इतिहास पर आधारित पंकज सुबीर का उपन्यास 'ये वो सहर तो नहीं' प्रकाशित

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वर्ष 2010 के लिये भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत सीहोर के युवा साहित्यकार पंकज सुबीर का उपन्यास 'ये वो सहर तो नहीं' भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित होकर आ गया है । देश भर के साहित्यिक क्षेत्रों में इस उपन्यास को व्यापक सराहना मिल रही है । पंकज सुबीर की लगातार दो वर्षों में दो पुस्तकें भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित तथा सम्मानित की हैं । यहां ये भी उल्लेखनीय है कि कहानी के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को पहली बार ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार मिला है, इससे पहले दो पुरस्कार कविता के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को मिले हैं ।
जिले की अग्रणी साहित्यिक संस्था शिवना द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए गीतकार रमेश हठीला ने बताया कि सीहोर के युवा कहानीकार को पंकज सुबीर को उनके उपन्यास के लिये इस वर्ष का ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार दिया गया है। भारतीय ज्ञानपीठ ने 2009 को उपन्यास वर्ष मनाते हुए नवलेखन पुरस्कार को उपन्यास के लिये दिये जाने की घोषणा की थी । इसके लिये एक चयन समिति शीर्ष आलोचक डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता में बनाई गई थी । जिसमें डॉ. गंगा प्रसाद विमल, शीर्ष कथाकार, नया ज्ञानोदय के संपादक तथा  भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक  रवीन्द्र कालिया, आलोचक डॉ. विजय मोहन सिंह, कथाकार चित्रा मुद्गल, कथाकार अखिलेश सम्मिलित थे । देश भर ये प्राप्त पांडुलिपियों में से चयन करके ये पुरस्कार प्रदान किया जाना था । भारतीय ज्ञानपीठ ने इस नवलेखन के देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिये इकसठ हजार रुपये की पुरस्कार राशि प्रदान किये जाने का निर्णय लिया था । तथा चयनित पांडुलिपि को भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित करके का भी फैसला लिया गया था । गत दिवस चयन समिति की बैठक में वर्ष 2010 के ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार के लिये सीहोर के युवा कथाकार पंकज सुबीर तथा दिल्ली के कथाकार कुणाल सिंह को संयुक्त रूप से ये पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया गया । । भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा शीघ्र ही नई दिल्ली में एक भव्य आयोजन में ये पुरस्कार प्रदान किया जायेगा । दोनों संयुक्त विजेताओं को पुरस्कार की राशि का आधा आधा प्रदान किया जायेगा । उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भी पंकज सुबीर का एक कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार योजना के अंतर्गत प्रकाशित होकर आया था, जो साहित्यिक हलकों में काफी चर्चित रहा था । मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय सीहोर के युवा कथाकार पंकज सुबीर की पचास से भी अधिक कहानियां देश भर की साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं । पेशे से स्वतंत्र पत्रकार पंकज सुबीर अपनी विशिष्ट शैली तथा शिल्प के लिये जाने जाते हैं । युवा पीढी क़े नये कथाकारों में अपनी व्यंग्य निहित भाषा से वे अपनी अलग ही पहचान बन चुके हैं । उनको जिस उपन्यास ये वो सहर तो नहीं के लिये ये पुरस्कार दिया जा रहा है उसमें उन्होंने 1857 से लेकर 2008 तक की कथा को व्यंग्य निहित भाषा में समेटा है ।  इस उपन्यास में दो समानांतर कथाओं को समेटने की कोशिश की गई है । पहली कथा में 1857 के दौरान सीहोर में हुए सिपाही विद्रोह तथा सिपाही बहादुर सरकार की कथा के माध्यम से उस पूरे कालखंड की व्यापक पड़ताल की की गई है । उसके बाद उसी कथा को देश की वर्तमान व्यवस्था से तालमेल बिठाने का प्रयास किया गया है जिसमें पत्रकारिता, प्रशासन तथा राजनीति का घालमेल दिखाया गया है ।  श्री हठीला ने बताया कि उपन्यास के माध्यम से सीहोर का इतिहास भी पहली बार पुस्तक रूप में सामने आ रहा है । उन्होंने बताया कि दिल्ली के विमोचन के पश्चात सीहोर में भी उपन्यास का भव्य विमोचन किया जायेगा ।

1 comments:

Anonymous said...

acha laga aapke blog par aakar...

Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..

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