‘वैश्विक रचनाकारः कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ में मौजूद साक्षात्कार इस विधा की गरिमा को समृद्ध करते हैं -सुशील सिद्धार्थ

Copy of VAISHWIK RACHNAKAR SHIVNA PRAKASHAN

कुछ पत्रकारों और लेखकों ने साक्षात्कार लेने की कला को एक रचनात्मक हुनर बना लिया है। उन्हें पता है कि किस लेखक से बात करने का सलीका क्या है। संवाद एक सलीका ही तो है। साक्षात्कार का सौन्दर्य है संवादधर्मी होना। ...ऐसी अनेक विशेषताएँ सुधा ओम ढींगरा द्वारा लिये गये साक्षात्कारों में सहज रूप से उपलब्ध हैं। ‘वैश्विक रचनाकारः कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ में मौजूद साक्षात्कार इस विधा की गरिमा को समृद्ध करते हैं। समर्पित रचनाकार सुधा ओम ढींगरा बातचीत करने में दक्ष हैं। वैसे भी जब वे फोन करती हैं तो अपनी मधुर आवाज़ से वातावरण सरस बना देती हैं। जीवन्तता साक्षात्कार लेने वाले का सबसे बड़ा गुण है। बातचीत को किसी फाइल की तरह निपटा देने से मामला बनता नहीं। सुधा जी को इस विधा में दिलचस्पी है। उन्होंने अनुभव और अध्ययन से इसे विकसित किया है। वे ऐसी लेखक हैं, जिन्हें टेक्नोलॉजी का महत्त्व पता है। बातचीत करने के लिये आमने सामने होने के अतिरिक्त उन्होंने फोन, ऑनलाइन और स्काइप का उपयोग किया है। बल्कि आमना-सामना अत्यल्प है। इससे कई बार औपचारिक या किताबी होने का संकट रहता है जो स्वाभाविक है। ....लेकिन यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सारे साक्षात्कार जीवन्त और दिलचस्प हैं।
अमेरिका, कैनेडा, इंग्लैण्ड, आबूधाबी, शारजाह, डेनमार्क और नार्वे के साहित्यकारों से सुधा जी के प्रश्न सतर्क हैं। साहित्यकारों ने भी सटीक उत्तर दिये हैं। यह पुस्तक पाठकों की ज्ञानवृद्धि के साथ उनकी संवेदना का दायरा भी व्यापक करेगी। वैश्विक रचनाशीलता की मानसिकता को यहाँ लक्षित किया जा सकता है। ऐसी पुस्तकें हिन्दी में बहुत कम हैं। शायद न के बराबर। विश्व के अनेक देशों में सक्रिय हिन्दी रचनाकारों के विचार पाठकों तक पहुँचाने के लिए हमें सुधा ओम ढींगरा को धन्यवाद भी देना चाहिए। हिन्दी में कुछ विशेषज्ञ रहे हैं जो साक्षात्कार को रचना बना देते हैं। सुधा जी को देखकर.... उनके काम को पढ़कर और इस विधा के विषय में उनके विचार जानकर उनकी विशेषज्ञता की सराहना की जानी चाहिए।

-सुशील सिद्धार्थ

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