दीपक चौरसिया मशाल का काव्य संग्रह अनुभूतियां : मूल्य 250 रुपये, 104 पृष्ठ, हार्ड बाइन्डिंग, आइएसबीएन978-81-909734-0-3, प्रथम संस्करण 2010, प्रकाशक शिवना प्रकाशन
बुन्देलखण्ड टुडे से डॉ. कुमारेंद्र सिंह सेंगर की रपट साभार ।
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"जीवन मूल्य सास्वत होते हैं। इनमें परिवर्तन यदि होते हैं तो हमारे पहनावे, विचारों और रहन सहन के कारण होते हैं। समाज में जीवन मूल्यों का निर्धारण व्यक्ति के आचार विचार और पठन पाठन से होता है। इस प्रक्रिया में पुस्तकें अपना योगदान देतीं हैं।" उक्त विचार सामाजिक संस्था दीपशिखा द्वारा सिटी सेन्टर उरई में आज दिनांक 05 जनवरी 2010 को आयोजित विचार गोष्ठी, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया ने व्यक्त किये।
(मुख्य अतिथि - नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया)
बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर आयोजित गोष्ठी तथा काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ के विमोचन कार्यक्रम में जे0 पी0 चौरसिया ने आगे कहा कि "समाज के बदलते परिवेश में साहित्य में भी बदलाव आते रहे और साहित्य के इसी बदलते स्वरूप से विभिन्न कालों और धाराओं का प्रतिपादन होता रहा है। वर्तमान काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ नई पीढ़ी को एक दिशा प्रदान करेगी।"
(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ का विमोचन कार्यक्रम)
काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ जनपद के कोंच के युवा साहित्यकार दीपक ‘मशाल’ की प्रथम कृति है। युवा साहित्यकार वर्तमान में ग्रेट-ब्रिटेन में जैव-प्रौद्योगिकी विषय में अपने शोध कार्य को पूरा करने में लगे हैं। विज्ञान पृष्ठभूमि और बिलायती परिवेश के बाद भी दीपक का हिन्दी साहित्य प्रेम कम नहीं हुआ। वर्तमान में वे इण्टरनेट पर ब्लाग के माध्यम से लेखन कार्य में रत हैं।
(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते डॉ0 आदित्य कुमार)
काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते हुये दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ0 आदित्य कुमार ने कहा कि "दीपक की कवितायें समाज को दिशा प्रदान करने वालीं दिखाई देतीं हैं। इनकी कविताओं में आम जीवन में घटित हाने वाली घटनाओं की जो अनुभूति है उसे प्रत्येक मनुष्य एहसास तो करता है किन्तु उसे शब्द देने का कार्य बखूबी किया गया है। कविताओं को पढ़ते हुये आम जीवन के चित्र आँखों के सामने बनते दिखाई पड़ते हैं। विषय की गहराई बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग भाव बोध तथा तत्व विधान आदि दीपक को तथा उनकी कविताओं को प्रौढता प्रदान करते हैं जो जनपद के युवा साहित्यकारों के लिये सुखद सन्देश है।"
(काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’)
काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’ ने अपनी काव्य यात्रा और इस काव्य संग्रह के बारे में बताते हुये कहा कि "मेरी कवितायें जीवन की परिस्थितियों और पीडा से उपजी हैं। मेरा प्रयास है कि जीवन की सत्यता को सरल और भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त करता रहूँ।"
संस्था दीपशिखा द्वारा इस वर्ष से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों को सम्मानित करने की दृष्टि से दो सम्मानों-धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान तथा महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान- को प्रारम्भ किया है। धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान 2009 जागेश्वर दयाल 1 विकल को देने का निर्णय लिया गया है। इस अवसर पर कोंच के श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत किया गया।
(श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत)
श्री चौरसिया जनपद में स्टिल फोटोग्राफी को स्थापित करने वालों में हैं। ज्ञात जानकारी के अनुसार जनपद का पहला तथा झाँसी मण्डल का दूसरा फोटो स्टूडियो नटराज स्टूडियो के नाम से उन्हीं ने खोला था। एस0 आर0 पी0 इण्टर कालेज कोंच में प्रवक्ता पद पर अपनी सेवायें देने के बाद वर्तमान में भी वे फोटोग्राफी से सम्बन्धित तकनीकी ज्ञान देते रहते हैं।
इससे पूर्व बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत तीतरा खलीलपुर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 डी0 सी0 द्विवेदी के वक्तव्य से हुई। डॉ0 द्विवेदी ने कहा "सत्य घटनाओं से नहीं वरन स्थितियों से निर्मित होता है। यही सत्य जब साहित्य में प्रदर्शित होता है तो मूल्यों के रूप में मनुष्य के जीवन में दिखाई देता है। जीवन मूल्य साहित्य को विशेष गरिमा प्रदान करते हैं। वर्तमान भोगवादी संस्कृति में सत्य का निष्पादन कठिन होता प्रतीत हो रहा है। इससे मूल्यों की शाश्वतता भी परिवर्तन आने शुरू हुये हैं। इन्हीं बदलावों के कारण जिस साहित्य को समाज का दर्पण अथवा समाज का निर्माता कहा जाता रहा है उसमें भटकाव आना शुरू हुआ।"
(वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी)
गोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी ने जीवन मूल्यों को मनुष्य के विकास से जोड़ते हुये कहा कि "आधुनिक विकासवादी प्रवृति मनुष्य को जीवन मूल्यों से परे ले जा रही है। भौतिकवादी संस्कृति और भौतिकतावादी सोच ने सबसे उच्च शिखर पर बैठे मनुष्य को रसातल की ओर ले जाने का कार्य किया है। संसार के समस्त जीवों मे श्रेष्ठ जीवधारी मनुष्य अपने कृत्यों से समाज और साहित्य दोनों से दूर होता जा रहा है इस कारण से जीवन मूल्यों में बदलाव देखने को मिलते हैं।"
(लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद)
लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद ने जीवन मूल्यों को लोक संस्कृति से सम्बद्ध करते हुये कहा कि "अपनी संस्कृति से विमुख होने के कारण व्यक्ति जीवन मूल्यों को विस्मृत कर रहा है। साहित्य के द्वारा समाज को दिशा देने का कार्य साहित्यकारों द्वारा किया जाता रहा है परन्तु वर्तमान साहित्य से लोक संस्कृति का लोप होना जीवन मूल्यों को स्वतः ही विघटित कर रहा है। परिवार में आपसी सामन्जस्य और मूल्यों की स्थापना को लेकर भी आज नये नये स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। जीवन मूल्यों के शाश्वत स्वरूप में इन विघटन और बदलाव का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।"
(डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी)
गांधी महाविद्यालय उरई के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी ने जीवन के क्रिया कलापों और व्यक्ति की सक्रियता को जीवन मूल्य की परिभाषा दी उनका कहना था कि "वर्तमान में साहित्य के द्वारा जो भी रचनात्मक कार्य किये जा रहे हैं वे किसी न किसी तरह के मूल्यों का निर्माण करते हैं। उन मूल्यों को किसी भी स्थिति में जीवन मूल्य नहीं कहा जा सकता जो व्यक्ति और समाज को दिशा प्रदान न कर सकें।"
(डॉ0 हरिमोहन पुरवार)
दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई की प्रबन्धकारिणी कमेठी के उपाध्यक्ष डॉ0 हरिमोहन पुरवार ने कहा कि "जीवन मूल्य व्यक्ति से जुडी शब्दावली है केवल साहित्य की नहीं। साहित्य से इतर व्यक्ति भी अपने क्रिया कलापों से मूल्यों का निर्माण करता है। सकारात्मक मूल्य समाज को दिशा देते हुये अपने आप में जीवन मूल्य के रूप में परिभाषित होते हैं।"
(डॉ0 आर0 के0 गुप्ता)
दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के वनस्पति विभाग के डॉ0 आर0 के0 गुप्ता ने कहा कि "व्यक्ति के कार्य और आचरण में निरन्तर बदलाव आ रहे हैं। जीवन मूल्यों को व्यक्ति के आचरण की पवित्रता से जोड कर देखा जाना चाहिये। आचरण और कार्य की पवित्रता का विरोधाभास अपने आप ही जीवन मूल्यों का क्षरण है। जीवन मूल्यों की स्थापना के लिये व्यक्ति को अपने कार्य और आचरण में सामन्जस्य स्थापित करना चाहिये।"
इसके साथ ही गोष्ठी में डॉ0 रामप्रताप सिंह, डॉ0 सुरेन्द्र नायक, डॉ0 भास्कर अवस्थी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में गोष्ठी का संचालन डॉ0 अनुज भदौरिया, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का संचालन डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ0 राजेश पालीवाल ने किया। समारोह में संस्था के संरक्षक डॉ0 अशोक कुमार अग्रवाल, संस्था उपाध्यक्ष अलका अग्रवाल, डॉ0 सतीश चन्द्र शर्मा, डॉ0 अभयकरन सक्सेना, डॉ0 अलका रानी पुरवार, डॉ0 नीता गुप्ता, डॉ0 बबिता गुप्ता, डॉ0 नीलरतन, डॉ0 सुनीता गुप्ता, डॉ0 ममता अग्रवाल, डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव, प्रकाशवीर तिवारी, डॉ0 प्रवीण सिंह जादौन, धर्मेन्द्र सिंह, सलिल तिवारी, आशीष मिश्रा, सन्त शिरोमणि, डॉ0 राजवीर, डॉ0 के0 के0 निगम, सुभाष चन्द्रा, डॉ0 मनोज श्रीवास्तव, के साथ साथ कोंच से लोकेश चौरसिया, लक्ष्मण चौरसिया, आगरा से स्वामी चौधरी सहित जनपद के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
7 comments:
डा. सेंगर जी की विस्त्रित रिपोर्ट पढ कर बहुत अच्छा लगा। दीपक को इस पुस्तक विमोचन की बहुत बहुत बधाई और साथ ही शिवना प्रकाशन को भी बधाई और धन्यवाद। दीपक जब मेरे पास आया था तो मैं उसकी पुरानी डायरियाँ पढ कर हैरान रह गयी थी 1996 मे मे भी उसने इतनी उम्दा कहानियाँ और कवितायें लिखी थी अगर उसकी लिखाई न होती तो शायद मुझे विश्वास ही न होता। ये लडका बहुत आगे जायेगा ये बात मैं दावे से कह सकती हूँ। दीपक को एक बाक़्र फिर से बधाई और आशीर्वाद सामाजिक संस्था दीपशिखा का भी धन्यवाद बकी प्रतिभागियों व आयोजन करताओं को भी बधाई और धन्यवाद। और शिवना प्रकाशन को भी बधाई और शुभकामनायें
अच्छा लगा समारोह की विस्तृत रपट पढ़ कर. डॉ सेंगर एवं आपका आभार.
श्री दीपक मशाल जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
इस विस्तृत जानकारी के लिए आभार !!
दीपक जी को बहुत बहुत बधाई !!
शिवना प्रकाश सहित पुस्तक विमोचन पर दीपक मशाल जी को बहुत बहुत बधाई
regards
बढ़िया रपट सेंगर साब।
Aapne bahut achchha kiya is khabar ko yahan lagaa kar, isase Deepak ki roshni aur door tak pahunchegi.
aabhar
Hardik badhaiyan
ab mere baree hai shivana prakashan ke
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