जब ईशांत लापता हुआ तो उसके माता पिता सकते में पड़ गये । सकते में पड़ने वाली बात थी भी सही । चौदह साल के इस मासूम को भला क्यों उठाया गया है । शाम ढले तक फोन आ गया कि चालीस लाख की फिरौती की व्यवस्था कर लो । हैरान माता पिता भागे पुलिस के पास । लेकिन पुलिस को कोई जिम्मेदार अधिकारी होता तो मिलता । सारा का सारा पुलिस और प्रशासन तो लगा हुआ था सवा सौ किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह गांव में चल रही ग्रेंड राम कथा में । ग्रेंड राम कथा इसलिये कि इसके लिये पांच करोड़ का पंडाल लगाया गया था । हवाई जहाज से अतिथि आ जा रहे थे । पूरा आयोजन 10 से 15 करोंड़ का था । 5 स्टार कथा वाचक अवधेशानंद गिरी वहां कथा कर रहे थे ।
पंडाल क्या था किसी महंगी फिलम का सेट था मानो । और ये सब हो रहा था उस प्रदेश में जहां रोज तीन चार किसान आत्म हत्या कर रहे हैं । और जहां के जिम्मेदार मंत्री इसके लिये पीपली लाइव फिल्म को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । और जहां के मुख्यमंत्री किसानों की आत्महत्या रोकने के लिये अपने गृह गांव में 10 से 15 करोड़ के राम कथा करवा रहे हैं । जहां के जिम्मेदार अधिकारी आत्महत्या करने वाले किसान की विधवा से जोर जबरदस्ती कर रहे हैं ये कहलाने को कि कह दो कि तुम्हारा पति तो पागल था ।
तो हुआ ये कि रात भर ईशांत के माता पिता भागते रहे इधर उधर ताकि कहीं से कुछ मदद मिल सके । लेकिन कोई होता तो मिलता । कलेक्टर से ले जिले के सारे अधिकारी तो वहां जैत में ग्रेंड राम कथा करवा रहे थे । ईशांत के माता पिता को जो कुछ करना पड़ा वो अपने ही सोर्स से करना पड़ा । रात भर की भाग दौड़ के बाद कहीं कोई परिणाम नहीं मिला । ग्राम जैत में ग्रेंड राम कथा उसी प्रकार चल रही थी, किसान उसी प्रकार आत्महत्या कर रहे थे, और वहां हत्यारा आराम के साथ ईशांत के गरदन पर छुरी फेर रहा था । उसके सर को पत्थरों से कुचल रहा था । ग्रेंड राम कथा उसी प्रकार चल रही थी । और गणतंत्र दिवस के ठीक पांच दिन पहले 21 जनवरी को ईशांत की लाश मिल गई । 21 को ही राम कथा का समापन भी हो गया मुख्यमंत्री के गृह गांव जैत में और 21 को ही प्रदेश में 2 और किसानों ने आत्महत्या कर ली ।
कहानी खत्म होती है तालियां बजाइये और अपने अपने घर जाइये 26 जनवरी को तिरंगा फहराइये और नारा लगाइये स्वर्णिम मध्यप्रदेश की जय ।
( लेखक पंकज सुबीर - वर्ष 2010 हेतु भारतीय ज्ञानपीठ युवा पुरस्कार से सम्मानित कथाकार )
13 comments:
क्या पत्रकार और क्या प्रशासन. सब मंत्रिमंडल के दरबारी बने बैठे हैं. सबने जैसे अपने सरोकारों से मुंह फेर रक्खा है.
थोड़ी आशा बस यही है कि कुछ लोगों तक वास्तविक बात पहुँच रही है.
इससे ज्यादा निंदनीय और दुखद क्या हो सकता है ! उधर करोडो राम कथा रुपी जलसे में उडाए जा रहे हैं और इधर बेशकीमती जानें जा रही हैं जिनकी कोई चिंता नहीं क्या इनसे उनका कोई सरोकार नहीं लगता है अभी ५ साल पूरे होने में कुछ और साल बाकि हैं ! वरना फिर भिखारी कि तरह दरवाजे पे दश्तक देंगे ! गलती किसकी है और सज़ा कौन भुगत रहा ये ज्वलंत मुद्दा है !
निंदनीय कृत है नेताओं और प्रशासन का ...दुखद ...
बहुत चिन्तनीय स्थिति है देश की। वैसे तो मन्त्रिओं ,प्रशासनिक अधिकारिओं का दूर दूर तक भी धर्म से कोई रिश्ता नही होता । ये रिश्ता तो केवल कुर्सी का है। और कुछ देर को धर्म का चोला पहन कर ये लोग जनता को मूर्ख बना लेते हैं। क्या फायदा ऐसी राम कथा सुनने का जब उसे अपनी आचरण मे ही न उतारा जाये। इतने पैसे से गरीबों के लिये कुछ और भलाई का काम कर देते। आज धर्म की आड मे जो कुछ हो रहा हओ किसी से छुपा नही। और इसका खामियाज़ा किसानो और ईशांत जैसे मसूमो को अपनी जान दे कर चुकाना पड रहा है। एक वो लोग हैं जो दो नम्बर की कमाई से धार्मिक कार्य करवा कर वाह वाही लूटते हैंाउर उस पर हम जैसे अन्धे जो इन कार्यक्रमो मे जोर शोर से हिस्सा लेते हैं। काली कमाई से करवाई गयी राम कथा से राम कितने प्रसन्न होते होंगे? आपने अच्छा मुद्दा उठाया है। उस मासूम को सच्ची श्रद्धाँजली है ये। आभार।
अनावश्यक दिखावों के लिए करोड़ों बहा देने वाले संवेदनाविहीन होते समाज और उनके अगुआओं से कोई उम्मीद नहीं रह गई. कहाँ हैं राम क्या वो भी अपनी कथाओं के श्रवण में डूबे और आत्ममुग्ध थे?
मान्य डा० अमर ज्योति के शब्द याद आते हैं:-
राम के मंदिर से सारे पाप कट जायेंगे क्या
बन गये मंदिर तो चकले बन्द हो जायेंगे क्या
चीमटा,छापा,तिलक,तिरशूल,गांजे की चिलम
रहनुमा इस देश के इस भेस में आयेंगे क्या
बेहद दयनीय स्तीथी है. पढ़ कर मन भर आया...
regards
दुनिया में चारों तरफ आज कल ऐसी घटनाओं की प्रवृत्ति बढ़ ही रही है जो की सचमुच सोचने पर बाध्य करती है|
दिखावा ... बस प्रचार ही प्रचार ... स्वार्थ की हर हद से गुज़रता जा रहा है अपना समाज .... संवेदनशीलता हर कदम पे दम तोड़ रही है ... राम के नाम पे जा रहे हैं लोग पर उनके कर्मों को नहीं अपनाना चाहते ... इस प्रवृति का अंत होता नज़र नहीं आ रहा ... इशांत और अनेक गरीब किसानों की मौत आशा है एक दिन जरूर हलचल लायगी ....
हम सभी ज़िम्मेदार हैं इसके लिए, भला वो ईश्वर भी कैसे खुश होगा जब हम अपने कर्म छोड़ के यूँ ही दिखावे के आडम्बर करते रहेंगे.
दुष्यंत साहब का ये शेर याद आ रहा है,
आज ये दीवार पर्दों की तरेह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि बुनियाद हिलनी चाहिए.
Sach se roobaroo karwaane ke sahas jutana padta hai. yeh prstuti us disha mein ek aham kadam hai.
स्तब्ध हूँ ज़िम्मेदारी के पद पर बैठे लोगों की गैर-ज़िम्मेदारी से. स्वराज आ गया सुराज कब आयेगा? रामकथा हो गयी, रामराज कब आयेगा?
स्वांगिए हैं -- करने और कराने वाले -- निरे भांड | करोड़पति संत --करोड़पति भक्त | राम मिलाई जोड़ी --
और राम तो अब बेचारा है सिर्फ , जो जैसे चाहे इस्तेमाल कर ले |
अफसोस , कि इस मायावी कथा-कीर्तन ने मासूम बच्चे की आह तक न सुनी |
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