जागरण जैसा समाचार पत्र और चाटुकारिता का ऐसा नमूना, मुझे आज इस बात पर शर्म आ गई कि मैं भी पत्रकार ही हूं ।

कहते हैं कि मिथक कभी न कभी टूट ही जाते हैं । जैसे मेरा बनाया हुआ एक मिथक था कि मैं समाचार पत्रों में दैनिक जागरण को थोड़ा सा अलग तरह का समाचार पत्र  मानता था । सहीं बताऊं तो भले ही लोग कहते हैं कि उनका दिन दैनिक भास्‍कर के बिना प्रारंभ नहीं होता लेकिन मैं अपनी कहूं तो मुझे रोज दो पेपर तो आवश्‍यक हैं ही एक तो नई दुनिया और दूसरा दैनिक जागरण । मगर अब लगता है कि दैनिक जागरण भी औरों की ही राह पर चल पड़ा है । आज मेरे यहां के पृष्‍ठ पर एक स्‍तंभ लगा है जिसका नाम है ''कलेक्‍टोरेट हलचल '' उसको पढ़ने  के बाद एकबारगी तो ऐसा लगा कि अपने सर के सारे बाल नोंच कर सड़क पर कूद कूद कर कहूं कि मैं पत्रकार नहीं हूं कोई भी मुझे इस नाम से बुला कर गाली मत देना । स्‍तंभ हमने काफी पढ़े हैं और जिस स्‍तंभ के नाम से ये छापा गया है कलेक्‍ट्रेट हलचल वो भी हमने काफी पढ़े हैं मगर ऐसा ... ये तो कभी नहीं पढ़ा । प्रशासनिक हलचल के नाम पर पहले जो कुछ छापा जाता था उसको पढ़कर आनंद आ जाता था । अंदर की ऐसी ऐसी खबरें निकाली जातीं थीं कि बस । मगर आज ये क्‍या हो रहा है । किस प्रकार की पत्रकारिता की जा रही है ये ।

क्‍या हम पत्रकार बस केवल प्रशासनिक अधिकारियों के चारण भाट ही रह गये हैं और हमारा बस एक ही मकसद रहा गया है कि हम शब्‍दों से अधिकारियों के चरण पखारते रहें । हम उस व्‍यवस्‍था के तलवे चाटने के काम में लग जायें जिससे संघर्ष करने के लिये हमने पत्रकारिता में प्रवेश किया था । हम क्‍यों भूल रहे हैं कि हमारी जवाबदारी तो जनता के प्रति है । हम तो उसके वकील हैं । मगर ये हमें क्‍या होता जा रहा है कि हम अदालत में खड़े होकर अपनी जनता की बात करने की बजाय प्रतिपक्ष का डंका पीटने में लग जाते हैं । हम नेताओं और अधिकारियों के तलवे केवल इसलिये चाटते हैं कि वे हमारे कुछ क्षुद्र स्‍वार्थों की पूर्ती कर देते हैं । और स्‍वार्थ भी कैसे हमें शासकीय आवास आवंटित कर देते हैं या किसी शासकीय कार्यक्रम का मंच संचालन हमसे करवा कर हमें उपकृत कर देते हैं । हम लौट कर उसी दौर में आ गये हैं जब कलम का काम केवल एक ही होता था कि वो लोगों को महान बनाने का काम किया करती थी । कलम में उस समय रीढ़ की हड्डी नहीं हुआ करती थी । उस पर सोने की मोहरें रख कर उससे चाहे जैसा लिखवाया जा सकता था । बीच में ये हुआ कि कलम ने झुकना बंद कर दिया था उसने विरदावली गाना बंद कर दिया था । मगर आज हम फिर वहीं हैं।

आइये आपको पढ़वाऊं कि किस प्रकार का लेख वहां पर प्रकाशित किया गया है । सबसे पहले तो आपको ये बता दूं कि हमारे जिले में श्री डी पी आहूजा कलेक्‍टर हैं, भावना बालिम्‍बे अतिरिक्‍त कलेक्‍टर हैं, चंद्रमोहन मिश्रा एसडीएम हैं और राजेश शाही तहसीलदार हैं । जो स्‍तंभ छापा गया है उसमें वीरगाथाकाल के कवियों की ही तरह से इन चारों की आल्‍हा ऊदल वाली स्‍टाइल में यशोगाथा गाई गई है । मेरा अनुरोध है कि आप भी पूरा पढ़ें लेख की भाषा को देखें उसके शिल्प को देखें और बतायें कि ये किस दिशा में जा रही है पत्रकारिता । इसे भड़ास पर भी देखें यहां ये लेख लगा है ।

कलेक्‍ट्रेट हलचल

विधानसभा चुनाव से छा गये आहूजा : मुख्‍यमंत्री का गृह जिला होने के नाते इस जिले में विधानसभा चुनाव निष्‍पक्षता और शांतिपूर्ण तरी‍के से करवाना तलवार की धार पर चलने के समान था । इस चुनौती को कलेक्‍टर डीपी आहूजा ने न केवल स्‍वीकारा बल्कि संपूर्ण चुनाव के दौरान निष्‍पक्षता ने जनता को हमेशा उत्‍साहित किया । शायद यही वजह रही क‍ि इस बार जिले की चारों विधानसभा क्षेत्रों में रिकार्ड मतदान देखने को मिला । सबसे अच्‍छी बात यह रही कि आदर्श आचरण संहिता के पालन में कलेक्‍टर आहूजा ने समन्वित तरीके से समस्‍त चुनाव प्रक्रिया का पालन किया । उन्‍होंने गलती किये जाने पर किसी को नहीं बख्‍शा । यही कारण था कि जिले में चुनाव ऐतिहासिक संदर्भ में यादगार बन पड़े हैं । चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्‍याशी रमेश सक्‍सेना के नामांकन के दौरान और मतगणना के दिन कांग्रेस प्रत्‍याशी महेश राजपूत के मामलों में प्रशासन ने कठोरता से कार्रवाई कर अपनी दृढ़ इच्‍छा शक्ति का परिचय दिया है ।

भावना ने की जमकर मेहनत : अतिरिक्‍त कलेक्‍टर भावना बालिम्‍बे ने विधानसभा चुनावों के दौरान उप जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में पूरा चुनाव समन्वित किया । मतदान से पहले मतदान दलों की रवानगी हो या फिर मतगणना के बाद ईवीएम मशीनों की वापसी हो । पूरा काम प्रक्रियाबद्ध तथा समय अनुसार चला । इस काम के प्रभावी निष्‍पादन में एडीएम भावना बालिम्‍बे की भूमिका सराहनीय रही । पूरा चुनाव कार्यक्रम व्‍यवस्थित तरीके से चला । सबे अच्‍छी बात यह रही कि अधिकारियों और कर्मचारियों को वरिष्‍ठ अधिकारियों का पूरा सहयोग मिला ।

एसडीएम ने बहाया पसीना : विधानसभा चुनावों के दौरान इस बार एस डी एम को रिटर्निंग आफिसर के रूप में एक नई जवाबदारी मिली । इस जवाब दारी में एसडीएम चंद्रमोहन मिश्रा ने प्रभावी भूमिका का निर्वहन किया । वाहनों की धर पकड़ में एसडीएम का कार्य प्रशासन के लिये सकारात्‍मक रहा । वहीं ईवीएम मशीन के जमा करने की प्रक्रिया को जिस तरीके से एसडीएम ने इस बार व्‍यवस्थित किया उसी के चलते मतगणना की रात्रि 12 बजे तक 90 प्रतिशत ईवीएम स्‍ट्रांग रूम में पहुंच चुकी थी । इस बार कर्मचारियों ने इस प्रक्रिया के बाद राहत की सांस ली ।

शाही पूरे समय घूमते रहे : विधानसभा चुनावों के दौरान तहसीलदार राजेश शाही चुनाव कार्य को अमलीकृत करने के लिये पूरे समय मेहनत करते देखे गये । मतगणना स्‍थल पर राजेश शाही हमेशा ही पैदल घूम घूम कर काम का निष्‍पादन करते रहे । मिडिल मेनेजमेंट का समन्‍वय इस बार तहसीलदार राजेश शाही के कंधे पर था । उन्‍होंने अपने अधीनस्‍थ अधिकारियों के साथ बेहतर तालमेल बिठाकर कार्य किया ।

8 comments:

prashant said...

जागरण वाले भी आम जन ही हैं| आप अपना बाल मत उखाडे|

संजय बेंगाणी said...

जागरण को लेकर आपको खुश फहमी थी?!!!

Unknown said...

सही कह रहे हैं आप, और बेचारे स्थानीय पत्रकार ही क्यों, राष्ट्रीय कहे जाने वाले अखबारों और न्यूज चैनलों के भी यही हाल हैं, अधिकतर या तो चारण-भाट हैं, कुछ ब्लैकमेलर हैं, और कुछ सत्ता के दलाल और कम्पनियों के एजेण्ट हैं, अब कहाँ रह गई पत्रकारिता… कलम के सिपाही अब तोंद वाले थानेदार बन चुके…

Anonymous said...

यह तो बहुत कम है महोदय मीडिया तो इससे भी ज्यादा चाटूकारिता करने लगा है।अब तक समाचार को निष्पक्ष एवं सही मान जाता थां अब समाचार की जगह सी फांड मे चाहे तो छपवा लो, उस स्थान का आपको भुगतान करना पड़गा। बस जरा सा नीचे बारीक फोंड मे लिख दिया जाएगा एडीवीटी। इसे बहुत कम लोग समझते हैं कि यह क्या है।

Anonymous said...

ये तो बिल्कुल चाटने वाली बात हो गई

नीरज गोस्वामी said...

जो जैसा वो एक दिन सामने आ ही जाता है...जागरण हो भास्कर...नाम में क्या रख्खा है...पत्रकारिता अब एक व्यापार है...सेवा नहीं...आप अपने बाल ना नोचें...जितने हैं बहुत कीमती हैं...इन बातों पर नोचने लगे तो हुजूर दो दिन बाद जब वो नहीं रहेंगे तो किसे नोचेंगे? :)
नीरज

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

जो पार्टी उत्तर प्रदेश मे सत्ता मे आई जागरण के मालिको मे से एक को राज्यसभा मे भेजा और खुद सत्ता से बाहर भेजा . अभी तक मायावती जी ने यह कदम नहीं उठाया है .

Anonymous said...

आप कहां है हुजू़र, 22 जुलाई वाले सांसदों के स्टिंग ऑपरेशन में सीएनएन-आईबीएन और आईबीएन-7 के बड़े मालिकों ने सेटिंग कर ऐतिहासिक स्टिंग की भ्रूण हत्‍या कर दी। किस पत्रकारिता की बात आप और हम कर रहे है, 22 जुलाई को तो ऐसा लगा कि हमें सीएनएन-आईबीएन के चैनल तले ज्ञाान की प्राप्ति हो गई, जो लोग पत्रकारों को दलाल और ना जाने क्‍या-क्‍या कहते हैं शयद उन्‍हें पता नहीं कि पत्रकारिता एक सर्व-सुविधा प्राप्‍त बिजनेस हो गया है। आनंद लीजिए और आनंद से जिएं।
- आलोक