हमको मालूम है ख़बरों की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्‍छा है

मैंने पिछले ही पोस्‍ट में लिखा था कि आजकल आलोचना को सहना एक मुश्किल काम है । हम जिस दौर में हैं उस दौर में आलोचना को निंदा माना जाता है और हम ये मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि हम भी कुछ ग़लती कर सकते हैं । कुछ दिनों पहले मैंने फोटो को लेकर एक कालम लिखा था कि क्‍या फोटो पत्रकारिता का अंत हो गया है । और अभी दो दिन पहले ही एक कालम लिखा था जिसमें एक ही पेज पर कई कई फोटो लगाये जाने को लेकर आपत्‍ती दर्ज की थी । बात इसलिये कर रहा हूं कि उस पोस्‍ट पर जहां एक और नईदुनिया पत्र समूह के मालिक श्री विनय छजलानी जी का सकारात्‍मक पत्र मिला वहीं पत्र समूह के किसी श्री हर्ष जी ने मुझे ये समझाने का प्रयास किया है कि मुझे पत्रकारिता के बारे में कोई ज्ञान नहीं है । उनका कहना है कि मैं नई पत्रकारिता से परिचित नहीं हूं आदि आदि । हो सकता है कि उनका कहना सही हो । लेकिन ये ज़रूर कहना चाहूंगा कि फोटो पत्रकारिता से मैं बहुत अच्‍छी तरह से परिचित हूं । और आपको ये ही बताना चाहता हूं कि फोटो पत्रकारिता का अर्थ ये नहीं है कि आंवले के पेड़ का आधे पेज का फोटो लगा दिया जाये कि देखिये आंवले के पेड़ में आंवले लग रहे हैं (सीहोर में दो तीन दिन पहले आपकी ही नवदुनिया में ) या फिर किसी समाचार में जो कि ढाबे पर शराब बेचने से संबंधित था आप चार कालम में एक शराब की बोतल का फोटो लगा दो (सीहोर में एक डेढ़ माह पूर्व नवदंनिया में ) या कि ये कि एक झूठी डेस्‍क न्‍यूज बनाई जाये कि सीहोर में आतंकवाद का खतरा है और उसमें सीहोर के कालेज का फोटो लगा दिया जाये । फोटो पत्रकारिता का अर्थ मैं जानता हूं और ये भी जानता हूं कि फोटो पत्रकारिता का अर्थ है कि कोई ऐसा फोटो जो कि समाचार की कमी को पूरा कर दे । मगर आप यदि चार कालम आधा पेज में आंवले का पेड़ लगा कर लोगों को ये बताना चाह रहे हैं कि देखिये आंवले के पेड़ में आंवले लग रहे हैं तो वो कहां कि फोटो पत्रकारिता है ये मैं ज़रूर जानना चाहूंगा । एक बात और बताना चाहूंगा कि मैं स्‍वयं फोटोग्राफी का शौकीन हूं और हमेशा अपने पास कैमरा रखता हूं कि कोई दृष्‍य मिले तो कैमरे में कैद कर सकूं । मगर इसका मतलब ये नहीं है कि अपने समाचार पत्र के मुख्‍य पृष्‍ठ पर मैं किसी समाचार में एक चार कालम की शराब की बोतल का चित्र लगा दूं । ये कौनसी फोटो पत्रकारिता है कम से कम नई दुनिया इंदौर जिसको मैं जानता हूं और पिछले तीस सालों से जिसका पाठक हूं और जिसके द्वारा निकाले गये सरगम का सफर और परदे की परियां जैसे अंक आज मेरे संग्रह के सबसे मूल्‍यवान ग्रंथ हैं, अजातशत्रु, देवेंद्र जी, श्री चिंचालकर जी, निर्मला भुराडि़या जी, श्रीराम ताम्रकार जी जैसे लेखकों के देश भर में फैले दीवानों में मैं भी हूं , उस नईदुनिया में अगर फोटो पत्रकारिता के नाम पर एक शराब की लम्‍बी सी बोतल देखता हूं तो कष्‍ट तो होता है हर्ष जी । खैर आपके लिये आज के ही एक समाचार पत्र का एक फोटो यहां दे रहा हूं जिसमें बताने की कोशिश की गई है कि लड़कियां पढ़ रही हैं ।

sehore

फोटो दैनिक भास्‍कर का है और फोटो में लड़कियों ने जिस प्रकार किताबें पकड़ी हैं और जिस प्रकार वे दिखाई दे रहीं हैं उससे क्‍या आप को लगता है कि ये फोटो अपने कैप्‍शन के साथ न्‍याय कर रहा है । फोटो पत्रकारिता मेरा प्रिय विषय है अत- उस पर मैं लम्‍बी बहस कर सकता हूं मगर चूंकि बात बढ़ाने से विषय उलझता है अत: मैं अपनी बात को ग़ालिब के साथ विराम देता हूं ।

हमको मालूम है फोटो (खबरों ) की हक़ीक़त लेकिन

दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्‍छा है

2 comments:

drdhabhai said...

बहुत ही सटीक...आजकल ऐसा बहुत बार देखने को आता है जब लगता है कि फोटो पत्रकार की मर्जी से सैट किया गया है और वास्तविकता से दूर होता है

Amit said...

This is something i ever feel whenever i read the newspaper. Now i prefer to read headlines on my mobile due to new look of media and their presentation way...