ग़लती हालंकि देखने में तो छोटी सी है लेकिन जब बात नई दुनिया जैसे समाचार पत्र की हो तो फिर उसको बड़ा ही माना जायेगा । ऐसा इसलिये क्योंकि नईदुनिया में समाचारों में ग़लती की संभावना को शून्य माना जाता है और फिर ये भी कि नई दुनिया में हर समाचार को छापने से पहले उसको देखा और परखा जाता है । अब होने को तो ये भी हो सकता है कि नईदुनिया और नवदुनिया के बीच के अंतर को ही ग़लती का कारण मान लिया जाये और ये कह दिया जाये कि जो हुआ है वो नवदुनिया में हुआ है नई दुनिया में नहीं हुआ है । मगर मेरे जैसे खब्तियों का क्या किया जाये जो पिछले पच्चीस सालों से नईदुनिया को पढ़ ही इसलिये रहे हैं कि उसमें ग़लती को ग़लती ही माना जाता है और ये भी कि वहां मापदंडों की परंपरा अभी भी जिंदा है । तो क्या ये माना जाये कि अब नईदुनिया भी उसी राह पर चल पड़ा है जिस पर नईदुनिया के बाद आने वाले समाचार पत्र चले । खैर चलिये बात करते हैं कि ये ग़लती क्या है । दरअस्ल में आपको लगेगा कि बहुत ही छोटी सी बात का मैं बतंगड़ बना रहा हूं । ऐसी कोई घटना नहीं है कि उसको लेकर इतनी चर्चा की जाये । मगर मैं अपनी बात पर कायम हूं कि ये घटना यदि किसी दूसरे पेपर में हुई होती तो मैं उसे नजर अंदाज कर भी देता मगर नईदुनिया में हुई है इसलिये नजरअंदाज करना जरा कठिन है । समाचार बहुत छोटा सा है मध्यांचल के पृष्ठ सोलह पर एक काव्य गोष्ठी की रपट को लीड स्टोरी बना कर लगाया गया है । जैसी की नईदुनिया की स्वस्थ परंपरा रही है कि साहित्यिक समाचारों को उचित स्थान मिलता है वैसा ही किया गया है । लेकिन गोष्ठी की रपट में एक कवि जो कि स्थानीय कवि हैं उनके नाम के पीछे जो संबोधन लगाया गया है वो है अंतर्राष्ट्रीय कवि, अब अंतर्राष्ट्रीय शब्द का अर्थ या तो नवदुनिया के स्थानीय पत्रकार को पता ही नहीं है या फिर भोपाल में बैठे लोगों को भी नहीं पता है कि अंतर्राष्ट्रीय शब्द का अर्थ क्या होता है । शब्दों के चयन में गंभीरता रखने वाली नईदुनिया में ऐसी ग़लती होना खलता है । शब्दों के चयन में गंभीरता रखने से ही ये होता है कि पाठक किसी समाचार पत्र से जुड़ता है । नईदुनिया की जो इतने वर्षों की परंपरा है वो यही तो है कि यदि कहीं कोई शब्द उपयोग हो रहा है तो ये ज़रूर देखा जाये कि वो शब्द वहां उपयोग होने के योग्य है भी अथवा नहीं । मेरे गुरू श्रद्धेय डा विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि एक शब्द कभी कभी पूरी की पूरी रचना का सर्वनाश कर देता है । उनका कहना है कि शब्दों के चयन और उनकी उपयोगिता पर पूरा विमर्श करना चाहिये क्योंकि रचना में आने के बाद यदि शब्द खल रहा है तो उसका अर्थ ये है कि शब्द अवांछित है । खैर आप सब को नव वर्ष की शुभकामनायें ।
आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं मन्सूर अली हाश्मी जी के साथ, जो अपनी
दूसरी ग़ज़ल लेकर हमारे बीच उपस्थित हुए हैं
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1 week ago
2 comments:
गुरुदेव
नव वर्ष की शुभ कामनाएं.
अब नई दुनिया वालों को क्या मालूम की तीक्ष्ण दृष्टि वाले पाठक भी हैं उनके...अगर मालूम होता तो शायद ऐसी भीषण गलती ना करते...माफ़ कर दीजिये...नया साल जो है.
वैसे अगर कोई मुझे कोई अंतर्राष्ट्रीय शायर कहे तो कितनी बड़ी गलती होगी???? :))
नीरज
तालाब का पानी जब उतरता है तो चारों ओर से समान रूप से उतरता है-यह नहीं कि एक कोने में जल स्तर नीचे है और तीन कोनों में ऊपर। और फिर, अब अखबार भी अखबार कहां रह गए ? सबके सब 'उत्पाद' बन गए हैं।
प्रवाह में टिके रहने के लिए, अपने पांवों के नीचे की रेत को बनाए रखने के लिए सारे शरीर की शक्ति, अंगुलियों में लानी होती है।
मुश्किल काम है।
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