भोपाल क्षेत्र के पाठक इन दिनों ले रहे हैं समाचार पत्रों के महा संग्राम का मज़ा और इस मज़े के उनको कई लाभ भी मिल रहे हैं । हालंकि ये बात तो अभी भी तय नहीं हो पाई है कि पाठकों को समाचार मिल पा रहे हैं या नहीं । नवदुनिया, भास्कर, राज एक्सप्रेस और पत्रिका में घोषित रूप से महासंग्राम चल रहा है । कल राजधानी से सटे जिला मुख्यालय सीहोर में इस महासंग्राम का असर सुबह दिखाई दिया जब कल पत्रिका की लांचिंग तो हुई पर उसके साथ एक बात और भी हुई और वो ये हुई कि सुबह सुबह चार बजे दैनिक भास्कर के बंडल गायब हो गए और हाकरों में हड़कंप मच गया । अब ये क्या मामला है ये तो समाचार पत्र वाले ही जानें लेकिन हुआ ये ही कि कल जब पत्रिका बंट रहा था तो सीहोर में भास्कर के काफी पाठकों को भास्कर नहीं मिल पाया । खैर ये तो हुई अंदर की बात अब बात करते हैं समाचार पत्रों के सीहोर के पृष्ठ की । नवदुनिया ने आज जहां नौतपे को लकर एक आकर्षक डिजायनिंग का समाचार दिया है जिसमें नौतपे को लेकर पूरे नौ दिनों की स्थिति को बताया है और साथ में शिलान्यास के पूर्व पानी की टंकी ढहने के कारण हुई मौत और उसमें ठेकेदार पर मामला दर्ज होने का मामला भी प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है ये समाचार आज किसी अन्य समाचार पत्र ने प्रकाशित नहीं किया है । उधर दैनिक भास्कर ने अपने रिपोर्टर हरि विश्वकर्मा का समाचार गेंहू खरीदी से गोदाम फुल को प्रमुखता से लगाया है जिसके साथ एक फोटो और कैप्शन भी लगा है । समाचार रोचक नहीं है और केवल आंकड़ों से ही भरा है इसके अलावा भास्कर ने कोई और समाचार नहीं लगाया है बाकी विज्ञप्तियां ही हैं । हालंकि अंदर के पृष्ठ पर कृषि विसतार अधिकारी कार्यालय का इछावर से लगा समाचार रोचक है और चित्र के साथ होने के कारण प्रभावी है । फिर भी दैनिक भास्कर के साथ जो शिकायत पाठको को है कि इसमें समाचार नहीं होते वो आज के पत्र से ही पता चल रहा है । गेंहू खरीदी का समाचार मुख्य समाचार बन गया है जो कि उबाऊ है । पत्रिका ने आज ग्राफिक्स का खेल दिखाने का प्रयास तो किया है पर उसमें भी समाचार कम चित्र ज्यादा हो गए हैं छ: कालम में लीड स्टोरी लगी है जिसमें कुल मिलाकर बीस लाइनें हैं अब इसी से समझा जा सकता है कि क्या स्थिति है छ: कालम में लगभग पचास साइज में हेडिंग और दो स्टाक के फोटो के साथ केवल बीस लाइन का समाचार है जो रिपोर्टर शैलेष तिवारी के नाम से लगा है । उसमें भी दिक्कत है कि समाचार सप्ताह भर पहले हिन्दुस्तान टाइम्स के रिपोर्टर एम हैदर के नाम से एचटी में लग चुका है । पत्रिका को अब ये समझना होगा कि समाचार दूसरे पेपरों से लेने से काम नहीं चलेगा । नीचे क्रासर में फिर पांच कालम का एक फोटो है जिसके साथ में फिर केवल बीस लाइनों का समाचार है दीवरों पर बच्चों द्वारा बनाई गई पेंटिगों का । बड़े फोटो लगा कर छोटे समाचार लगाने की ये टेक्नीक पाठकों को कब तक बहला सकेगी ये समय बताएगा । दौड़ में पीछे चल रहा नव भारत आज शनि जयंती का रोचक समाचार लगा कर कुछ बाजी मार गया है जिसमें सीहोर के शनि मंदिर के चित्र के साथ तीन कालम का समाचार लीड बना है ये समाचार अन्य किसी समाचार पत्र में नहीं है । वहीं राज एक्सप्रेस की यदि बात करें तो राज में भी अब रोचकता की कमी हो गई है किन्तु आज टाउन हाल की जमीन को लेकर एक रोचक समाचार वहां पर लगा है जिसमें रवीन्द्र भवन की जमीन के दान पत्रों का उल्लंघन करने और वो जमीन छीने जाने का जिक्र है । बाकी समाचार ना होकर विज्ञप्तियां ही हैं । तो ये था आज का दिन, पत्रिका को लेकर उठा झाग बैठ गया है । ऐसा लग रहा है कि अब पत्रिका को भास्कर से नहीं बल्कि राज नव भारत और जागरण के साथ मुकाबला करना है । ऊपर के लिये नवदुनिया और भास्कर में ही संग्राम होगा ।
आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं मन्सूर अली हाश्मी जी के साथ, जो अपनी
दूसरी ग़ज़ल लेकर हमारे बीच उपस्थित हुए हैं
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आंशिक रूप से दीपावली का पर्व समाप्त हो जाता है। कहीं-कहीं यह कार्तिक
पूर्णिमा त...
1 week ago
4 comments:
इन सारे हालात की शुरूआत अस्सी के दशक में इन्दौर से हुई थी.समाचार पत्रों में सैलरी पैकेज तो बढ़ गए हैं लेकिन काम करने का पैशन ख़त्म होता जा रहा है.पाठक ने भी इंटरनेट के रूप में एक नया और तत्पर विकल्प तलाश लिया है. अख़बारों के लिये ये संक्रमणकाल बड़ा चुनौती भरा है सुबीर भाई.
आ दा ब.
सुबीर जी
जयपुर वालों ने जिस लड़ाई का आनंद कुछ वर्ष पहले लिया था उसे सिहोर वाले अब ले रहे हैं...पाठकों को फुसलाने के लिए देखिये अभी साल भर के लिए सदस्य बनाये जायेंगे और प्लास्टिक की बाल्टी लोटा थाली जैसी चीजें भी वितरित की जाएँगी....अख़बारों की लडाई में अन्तिम फायदा नुकसान पाठक को ही उठाना होता है.
आप का अखबारी ज्ञान देख कर मैं दांतों तले उंगली दबा रहा हूँ....( चाहे तो आ के देख लें)
नीरज
सुबीर जी कुल मिलाकर मुझे ये समझ आ रहा है की हर कोई मजे ले रहा है... आप अख़बारों की दंगल का मज़ा ले रहे हैं, पाठक बाल्टियों और ट्रे और उपहारों का मज़ा ले रहे हैं, पत्रकार सेलरी के मेज़ ले रहे हैं..... :D
सुबीर जी
अख़बार वाले अख़बार क्यों चला रहे ?
अख़बारों की आड़ में वे अपना कौन सा उल्लू सीधा कर रहे ?
क्या अख़बारों के जरिए सरकार ब्लेक मेलिंग का धंधा फलफूल नहीं ?
क्या अख़बार के धंधे में लोग अपनी काली कमाई को सफेद नहीं कर ?
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