हिंदी भाषा से अरबपति बनने वाले श्री अमिताभ बच्‍चन जब अंग्रेजी में अपना ब्‍लाग लिखते हैं तो क्‍या आपको शर्म नहीं आती कि हमने किस दोहरे चरित्र वाले को सर पर बैठा रखा है

हिंदी इन दिनों अपने सबसे संकट के दौर गुजंर रही है और शायद ये ही वो दौर होता है जिसको किसी भी भाषा के लिये क्रांतिक काल कहा जाता है । वो समय जब ये तय होता है कि कोई भाषा अपने आप को बचा कर रख पाएगी अथवा नहीं । और अगर भारत का इतिहास देखा जाए तो यहां पर तो युगों से होता आ रहा है आक्रमणकारियों की भाषा ने शनै: शनै : यहां की मूल भाषा को खत्‍म करने का काम किया है । संस्‍कृत गई खड़ी बोली गई और अब हिंदी की बारी है । शर्म तो तब आती है जब श्री अमिताभ बच्‍चन जिन्‍होंने हिंदी भाषियों का ही खून चूस चूस कर अरबों कमाए हैं वे भी अवसर आने पर अंग्रेजी में ही अपना ब्‍लाग प्रारंभ करते हैं । मेरे मित्र और पुलिस महानिरीक्षक श्री पवन जैन इन सारे लोगों को काले अंग्रेज कहते हैं । खैर ये तो बात हुई हिंदी की, हिंदी जिसको बचाने के लिये हर तौर पर प्रयास किये जा रहे हैं । मगर हिंदी फिल्‍मों से करोंड़ों की कमाई करने वाले शाहरुख खान और सैफ अली जब मंच पर हिंदी की हंसी उड़ाते हैं तो क्‍या आपको रोना नहीं आता । मातृभाषा की हंसी उड़ाने और मां की हंसी उड़ाने में बहुत ज्‍यादा फर्क नहीं होता ।

खैर ये तो विचार मैंने छोड़ दिये अब चले 6 जून के समाचार पत्रों की समीक्षा पर । भास्‍कर आज से अपने पूरे पेज रंगीन कर तो दिये हैं पर ये रंगीन कुछ समझ से परे की बात है क्‍योंकि रंगीन करने के नाम पर एक रंगीन पट्टी कुछ पेजों पर दे दी है । आज के पेज पर ट्रांस्‍फार्मर पर इनर्जी मीटर लगने का एक समाचार लगा है और साथ ही बरसात का समाचार और फोटो लीड में लगा है । राज एक्‍स्प्रेस ने आज न मैं कहूं तेरी न तू कहे मेरी शीर्षक से एक रोचक परिचर्चा लगाई है जिसमें सीहोर में राजनैतिक दलों द्वारा जन हित के मुद्दों पर चुप्‍पी साधे रहने पर जनता की प्रतिक्रियाएं लगाई हैं । साथ ही जल समस्‍या का एक फोटो आज लीड में लगा है । निर्मल ग्राम सरकारी योजना की जानकारी का समाचार रिपोर्टर श्रवण मावई के नाम से लगा है नाम से क्‍यों लगा है ये समझ से परे बात है । पत्रिका  का टैम्‍पो अभी भी नहीं बन पा रहा है और ये समाचार पत्र अब ये जानने के बाद कि पाठक उसकी ओर रुख नहीं कर रहे हैं हॉकरों को सेट करने की स्‍कीम लाने में लग गया है जिसके अंतर्गत छ: माह तक पेपर की वसूली का पूरा पैसा 45 रुपये एजेंट और हॉकर ही रखेंगें की योजना आई है । आज निकटस्‍थ ग्राम थूनाकलां में जल संकट का समाचार आधे पेज में लगा है पत्रिका को ये समझना होगा कि पाठक लीड पेज पर अपने ही शहर का समाचार चाहता है ना कि ग्रामीण अंचल का । नवदुनिया  ने आज लाइन मार गई शीर्षक से रोचक समाचार लगाया है जिसमें पानी की लाइन, बेराजगारों की लाइन, बैंके में चालान की लाइन, और घांसलेट की लाइन को लगकर अच्‍छी फोटो स्‍टोरी डवलप की है । वहीं एक और अन्‍य समचार में किराए पर चल रहे सरकारी भवनों का आंकडों से भरपूर समाचार लगा है ।

कुल मिलाकर समाचार पत्रों के इस महासंग्राम में चारों समाचार पत्र अपने अपने हिसाब से युद्ध को जीतनें का प्रयास कर रहे हैं । ग्राफिक्‍स और डिजाइनिंग में पत्रिका और नवदुनिया में कांटे की टक्‍कर है तो समाचारों के मामले में नवदुनिया और भास्‍कर में टक्‍कर है । पत्रिका को यदि भास्‍कर से टक्‍कर लेनी है तो उसको समाचारों का स्‍तर सुधारना होगा ।

8 comments:

Arun Arora said...

ये मेरा देश महान वाले लोग है,फ़िल्म के डायलाग तक जो लोग रोमन मे पढकर बोलते है, वैसे चाहे सोनिया हो मनमोहन हो या ये लोग सभी रोमन के पुजारी है, पैसे के लिये ही ये हिंदी बोलते है जी,वरना अग्रेजी है ना :)

सचिन्द्र राव said...

मै आपसे आंशिक सहमत हूँ कि हिंदी भाषा बोलकर आज जो लोग सफलता के आसमान मे उड रहे है वे अपने कार्यक्षेत्र मे हिंदी तो बिलकुल ही नही बोलते और न इसे सम्मान की नज़र से देखते है वे उन्ही जगह टूटी फूटी इंग्लिश मिश्रित हिंदी बोलने की कोशिश करने का अभिनय करते हैं जहाँ लोग इंग्लिश नही जानते और ये लोग उनसे ये भी बड़े गर्व से स्वीकारते है कि उनकी हिंदी कमजोर है भले ही उन्हे अच्छी हिंदी आती हो. (कमोबेश यही हालत दीगर क्षेत्रो मे भी है) पर जहाँ तक फिल्मी सितारो द्वारा ब्लॉग लिखने की बात है आजकल सभी लोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखे और सुने जा रहे है इनका दायरा काफी बड़ा है इसलिये भाषा इंग्लिश रखने मे कोई हैरानी नही होना चाहिये पर इन लोगो को हिंदी के प्रति सम्मान देते हुए अपने कुछ विचार हिंदी मे भी देना चाहिये. रही बात इन जैसो के ब्लॉग पढ़ने की तो क्या हमे अपने समतुल्य लोगो के ब्लॉग्स को प्रोत्साहन देने के लिऐ आगे नही आना चाहिये.

Kirtish Bhatt said...

पैसा मिलता है इसलिए ये लोग बोल लेते हैं.... जिसदिन हिन्दी लिखने के लिए पैसा मिलने लगेगा ये लिखने भी लगेंगे...

Suresh Gupta said...

भाई हमने तो ऐसे लोगों को अपने सर पर नहीं बैठा रखा. हम क्यों शर्मिंदा हों? शर्मिंदा हों अमिताभ, मनमोहन और सोनिया जैसे लोग. और शर्मिंदा हों वह लोग जो इनके रास्ते में पलकें विछाते हैं.

Prabhakar Pandey said...

शर्म आती है....
ऐसे हिन्दी रचनाकारों, अभिनेताओं एवं ऐसे उन तमाम महानुभाओं पर जो
किसी सभा,साक्षात्कार आदि में अंग्रेजी ही बोलते हैं और हिन्दी बोलना अपना अपमान
समझते हैं. वे ये भूल जाते हैं कि वे आज जो कुछ भी हैं हिन्दी की कृपा से ही हैं ।
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पर जब बात विश्व स्तर की हो तो वहाँ कोई भी अंग्रेजी को ही प्राथमिकता देगा।
कुछ भी हो आपके विचार बहुत ही उच्च हैंऔर हिंदी एवं देश हित में हैं।

Admin said...

आपकी बात हज़म नही हुई, जिसकी जो मर्जी वो करे, हाँ हम हिन्दी में लिखते हैं हमें फक्र है, उन्हें पैसे मिलते हैं तो लिखते हैं, आप देंगे तो हिन्दी तो क्या भोजपुरी में भी लिखेंगे

आपके लेख के शीर्षक को देख कर ही पता चलता है की सनसनी की कोशिश है.. मौलिक रहिये

Anonymous said...
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अनुनाद सिंह said...

इनके ब्लाग अन्तर्राष्त्रीय स्तर पर कितने लोग पढ़ते हैँ? कोई आँकड़ा है? मिझे नहीं लगता कि कोई इन्हें चारा डालेगा।


किन्तु मेरा विचार है कि इनकी उपेक्षा की जानी चाहिये; इनका बहिष्कार किया जाना चाहिये। इनको महान मानने वाले अपना दिमाग ठीक करें। कोई बताये कि इनके स्थान पर यदि इस एक सौ दस करोड़ के देश में कोई दूसरा होता तो क्या वह भी इनके द्वारा किये गये कार्य को ज्यादा अच्छे ढ़ंग से नहीं कर देता? फिर किस बात के लिये इनको सिर पर बैठाया है लोगों ने?


मेरी बात शाहरूख, आमिर, सैफ़ आदि सब पर लागू है ; बल्कि अमिताभ पर कम लागू होती है। वे अकसर हिन्दी बोलते हुए दिख जाते हैं।