समाचार पत्रों के लिये ये एक ऐसा समय है जब कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के चलते पाठकों के लिये हर तरह का ललचाऊ प्रलोभन दिया जा रहा है । दरअसल में एकाधिकार एक ऐसा शब्द है जिसको तोड़ने के लिये समय समय पर प्रयास होते हैं और एकाधिकार भले ही किसी भी क्षेत्र का हो वो लोगों को भाता नहीं है । लेकिन एकाधिकार को तोड़ने के लिये आवश्यक है कि एकाधिकार करने वाले से भी जोरदार प्रयास हो । अब जैसे भोपाल या यूं कहें कि मध्यप्रदेश में एकाधिकार दैनिक भास्कर का है और उस पर तुर्रा ये कि भास्कर ने अपना प्रदेश छोड़कर उन प्रदेशों में भी हाथ मारा जहां कोई और छत्रप था । बस फिर क्या था बात की बात में दूसरे छत्रप मध्य प्रदेश में लड़ाइ लड़ने आ गए । कहा जाता है कि प्रतिस्पर्धा का लाभ ही होता है प्रतिस्पर्धा हमेशा ही गुणवत्ता बढ़ाने का काम करती है । और ऐसा ही कुछ हुआ है समाचार पत्रों की इस प्रतिस्पर्धा के चलते भी । पाठकों को बेहतर समाचार मिल रहे हैं और साथ ही बेहतर गुणवत्ता का समाचार पत्र भी । अब जैसे पत्रिका को ही कहें तो पत्रिका के आने के बाद भास्कर को भी अपनी रणनीति को पुन: बनाना पड़ा क्योंकि पत्रिका ने वो सब कुछ किया जो कि पाठकों को चाहिये । भास्कर का जब तक एकाधिकार था तब तक उसने पाठाकों के बारे में कभी भी नहीं सोचा कि पाठक को भी कुछ चाहिये उसने तो केवल विज्ञापनों के बारे में ही सोचा हालत ये हो गई थी कि पूरे पूरे पेज के विज्ञापनों के अलावा भास्कर में कुछ भी नहीं होता था । पर अब हालात बदल रहे हैं । आज पत्रिका में मुखपृष्ठ पर लगे भुवनेश जैन के लेख ने भास्कर के उस दौर की याद ताजा कर दी जब प्रदेश के श्रेष्ठ संपादक श्री महेश श्रीवास्तव के अग्रलेख दिन में कई कई बार पढ़े जाते थे । किन्तु बाद में ना काहू से दोस्ती नो काहू से बैर की तर्ज पर भास्कर ने ये सब बंद कर दिया और जनता की आवाज उठाने वाला कोई भी नहीं रहा । अब लगता है पाठकों के पुराने दिन वापस आ रहे हैं ।
लगता है कि इन दिनों समचारों को लेकर कुछ टोटा चल रहा है तभी तो आज भास्कर में एक भी समाचार नहीं है । खेलकूद प्रशिक्षण का समापन, को लीड स्टोरी बना कर कुछ प्रेस विज्ञप्तियों से पेज बना दिया गया है जिसमें पठनीय कुछ भी नहीं है । दरअसल में भास्कर की ये ही तो वो कमी है जिसपर पत्रिका वार करना चाह रही है । भास्कर ने अपने पत्रकारों को पत्रकार से ज्यादा कर्मचारी बना कर रखा है । और उस पर भी जनहित का कोई समाचार जिसमें किसी के विरुद्ध कुछ हो उसे स्थान नहीं मिलता है । ये सब बातें ही तो पत्रिका को देखनी हैं ।
पत्रिका की अगर बात करें तो ये तो तय है कि स्थानीय पृष्ठ को छोड़कर बाकी का पूरा पत्रिका पठनीय आ रहा है जैसे आज ही भुवनेश जैन का आलेख पठनीय है । सीहोर पृष्ठ पर आज बरसात होने की लीड स्टोरी है । खली के भतीजे का समाचार आज पत्रिका ने लगाया है जो कि कल के समाचार पत्रों में भास्कर और नवदुनिया पहले ही लगा चुके हैं । बस यही मात खा रही है पत्रिका एक दिन छोड़कर समाचार लगाना या दूसरे पत्रों के समाचार लगाना ये ही वो बात है जो कि पाठक पसंद नहीं करते । रिपोर्टर सूर्यमणी शुक्ला ने आज फिर किसी गांव की कहानी को दिया है । ऐसे समय में जब कि पत्रिका सीहोर में जमने के प्रयास में लगी है उस समय ग्रामों की कहानियां सीहोर पृष्ठ पर लगाना पत्रिका के लिये घातक सिद्ध हो सकता है । सीहोर के संस्करण पर पाठक सीहोर की ही खबरें चाहता है कोई बड़ी घटना हो गई हो तो और बात है ।
नवदुनिया की अगर बात करें तो इसके मामले में उल्टा हो रहा है । इसका सीहोर पृष्ठ पठनीय आ रहा है मगर बाकी के पृष्ठ जो भोपाल से आ रहे हैं उनमें कुछ भी नहीं होता । अगर पत्रिका के भोपाल से आ रहे पृष्ठों में सीहोर के नव दुनिया के चार पेज लगा दिये जाएं तो एक ऐसा समाचार पत्र बनेगा जिसको भास्कर छू भी नहीं पाएगा मगर बात वही है कि पत्रिका का ये अच्छा है तो नवदुनिया का वो । आज नवदुनिया ने परिसीमन में स्थानांतरित हुए मतदाताओं का समचार प्रकाशित किया है ये मुख्यमंत्री के क्षेत्र के वे मतदाता हैं जो कि अब दूसरे क्षेत्र में नदी के कारण स्थानांतरित कर दिये गए हैं । हालंकि आज नवदुनिया का मुंबई न बन जाए समाचार ठीक नहीं बन पड़ा है । पहले तो शीर्षक ही गलत लग गया है । स्थानीय पृष्ठ पर कैसे शीर्षक लगने हैं उसमें अगर नवदुनिया ही ग़लती करेगा तो लोग किसे देखेंगें । आंकड़ों में भी गलतियां हैं सीहोर में भारी वर्षा 2006 में हुई थी जिसको 2007 में लिखा गया है और दो बार लिखा गया है । हंसी की बात ये है कि शुरुआत में ही लिखा गया है कि नगर पालिकाओं ने गंभीरता के साथ अभियान नहीं छेड़ा । शायद समाचार लिखने वाले को पता नहीं है कि शहर में एक ही नगर पालिका होती है और वो इसलिये क्योंकि नीचे पूरा का पूरा समाचार सीहोर का ही है । मजे की बात ये है कि लिखा गया है कि प्री मानसून की पहली ही बारिश में नाले जाम हो गए और पानी सड़कों से होता हुआ घरों में घुस गया ये बात कहां की है ये तो लिखने वाला ही बात सकता है क्योंकि सीहोर में तो ऐसा नहीं हुआ जहां का ये समाचार बताया जा रहा है । आज की गलतियां नवदुनिया के लिये सरदर्द हो सकती हैं ।
राज एक्सप्रेस ने आज नागरिक बैंक के चुनाव होने का समाचार लगाकर बाजी मार ली है क्योंकि जनरुचि का ये समाचार किसी भी समाचार पत्र में नहीं लगा है । उललेखनीय है कि नागरिक बैंक में 2001 के बाद चुनाव नहीं हुए हैं और ये समाचार आम जनता के लिये रोचक है । रिपोर्टर श्रवण मावई ने थानेदार से हवलदार तक बनेंगें वैज्ञानिक शीर्षक से अच्छा समाचार बनाया है ये समाचार भी दूसरे चूक गए हैं ।
कुल मिलाकर बात वही है कि नवदुनिया और पत्रिका के पृष्ठों को मिलाकर तो एक सम्पूर्ण समाचार पत्र बन रहा है लेकिन अलग अलग में दोनों ही भास्कर से पीछे रहेंगें ।
2 comments:
सही विश्लेषण चल रहा है, जारी रहिये.
pankaj ji, aapne jo vishleshan kiya hai sateek hai,saare akhbaar ek hi tarj pe hain pathak kyaa padhna chahta hai kisi ko koi sarokaar nahi,bhaskar ne to apna wakai ajeeb haal bana liya hai,kal ka times of india dekhen first page par goodday biscut kaa advertisment hai second page se news samajik sarokaar wali khbren lagbhag har news paper se gayab hain thanks, vidhulata
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