फोटो पत्रकारिता का स्‍वर्णिम युग क्‍या बीते ज़माने की बात हो गया है ।

एक ज़माना था जब फोटो को लेकर भी समाचार पत्रों में विश्‍ोष रूप से लोगों को नियुक्‍त किया जाता था और फोटो को लेकर एक विशेष प्रभाग होता था । फोटो का चयन करना और उसके नीचे की पंक्तियां लिखना फोटो का शीर्षक लगाना ये भी एक कला हुआ करती थी । दरअसल में फोटो अपने आप में ही पूरा समाचार होता है जो शब्‍दों के बिना ही मूक भाषा में अपनी बात कह जाता है । फोटो को लेकर अब कोई समाचार गंभीर है ऐसा लगता नहीं है । किन्‍तु कुछ दिनों से नवदुनिया और पत्रिका ने फोटो पत्रकारिता के स्‍वर्णिम युग की याद दिला दी है । दरअलस में ये दोनों ही समाचार पत्र तस्‍वीरों का इतनी खूबी के साथ उपयोग कर रहे हैं कि आनंद ही आ जाता है । तस्‍वीरें अपनी ही एक ज़ुबान रखती हैं जो कि शब्‍दों की मोहताज नहीं होती है । कहते हैं कि पृथ्‍वी गोल है इसलिये घूम फिर कर सब कुछ वापस आता है । हो सकता है शब्‍द की शक्ति के सुनहरे दिनों की वापसी के साथ छायाचित्रों की भी वापसी हो । आज की बात इसलिये क्‍योंकि परीक्षा परिणाम आने पर समाचार पत्रों के संपादक छायाचित्रों को लेकर बहुत मेहनत करते थे कि कैसे करके आज एक छायाचित्र ऐसा लगे जो कि बस आनंद आ गया कहलवा दे । और आज ये हालत है कि पत्रिका, नवदुनिया और भास्‍कर तीनों के मुखपृष्‍ठ पर लगे फोटो समान हैं बल्कि वे बच्‍चे भी वही हैं । इसका ही अर्थ है कि अब समाचार पत्रों में छायाचित्रों को लेकर कितनी संवेदनशीलता रही है । कोई भी छायाचित्र ऐसा नहीं है जिसको देखकर आनंद आ जाए ।

बात सीहोर की भास्‍कर  आज बड़ी चूक कर गया है ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है क्‍योंकि घटना ऐसी नहीं है जो चूक कही जाए पूरे शहर को जो घटना मालूम थी वो भास्‍कर को नहीं मालूम थी ऐसा नहीं माना जा सकता है । मगर हुआ यही है नजदीकी गांव कचनारिया में गोली चलने और एक की मौत होने साथ ही कई घायल होने का समाचार भास्‍कर में नहीं लगा है हैरत की बात है कि जिस समाचार को सभी ने लीड बनाया है उसको भस्‍कर ने लगाना भी उचित नहीं समझा है । और उसके पीछे भी कारण है भास्‍कर की विज्ञापन की मानसिकता । भस्‍कर में आज विज्ञापन ही विज्ञापना लगे हैं और इन विज्ञपनों के चक्‍कर में ही भास्‍कर भूल गया कि कल के अंक में पाठक को समाचार भी देना हैं । आज भास्‍कर ने दसवीं के परिणामों पर समाचार लीड लगाया है शेष विज्ञापन हैं । एक पाठक की ये टिप्‍पणी बहुत सामयिक है अगले महीने से हॉकर से कह दूंगा क‍ि भास्‍कर की जगह नवदुनिया या पत्रिका डाल दे ।  पाठक को मूर्ख बनाने का गणित अब नहीं चलने का ।

पत्रिका  ने आज एक ऐसी मूर्खता की है जिसे पत्रकारिता की दृष्टि से भी और पाठकों के नजरिये से भी क्षम्‍य नहीं किया जा सकता है । पहला तो ये कि दसवीं के परिणाम को लेकर कोई मेहनत नहीं की है जहां भास्‍कर, नवदुनिया  ने जिले में अव्‍वल आने वाले विद्यार्थियों के फोटो लगाए हैं और उनका परिचय दिया है वहीं पत्रिका  ने केवल एक औपचारिक सा समाचार लगा कर कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली है । अब बात मूर्खता की, जहां दूसरे समाचार  पत्रों ने बाकायदा सफल होने पर प्रसन्‍न हो रहे विद्यार्थियों के चित्र लगाए हैं मेरिट में आने वालों के पासपोर्ट फोटो लगाए हैं वहीं पत्रिका ने कलेक्‍टर का फोटो लगाया है अब इस मानसिक दीवालियेपन की उम्‍मीद राजस्‍थान के नंबर वन पेपर से तो नहीं की जा सकती । उन बच्‍चों का हक बनता है जिन्‍होंने मेहनत करके मेरिट में स्‍थान बनाया है कि कल लोग उनको जाने, कलेक्‍टर का फोटो छापने के लिये तो और भी मौके होते हैं । जहां दूसरे पेपरों ने मेहनत करके ना केवल जिले की प्रावीण्‍य सूची बल्कि विद्यार्थियों के फोटो और परिचय भी छाप दिया है वहीं पत्रिका केवल शासकीय विज्ञप्ति को लगाकर अपने कर्तव्‍य को पूरा कर गया है और करेला नीम चढ़ा की स्थिति बनी है शासकीय विज्ञप्ति में कलेक्‍टर का फोटो लगाने से । पत्रिका जोर शोर से ये नगाड़ा पीटते हुए आई है कि वो चाटुकारिता वाली पत्रकारिता को खत्‍म कर जनता की बात करेगी, मगर ये क्‍या है । इस पत्रकारिता की उम्‍मीद पत्रिका से पाठकों को नहीं है ।

 नवदुनिया  ने फोटो के मामले में और दसवीं के समाचारों के मामले में बाजी फिर मारी है । जीतेंगें हम बाजी हर .....  शीर्षक से एक ऐसा समाचार लगा है जो परिणाम आने के दूसरे दिन हर पाठक पढ़ना चाहता है । उस पर रिजल्‍ट देखते उत्‍सुक विद्यार्थियों और जश्‍न मनाते सफल विद्यार्थियों का अच्‍छा चित्र लगा है । साथ ही मेरिट में आए बच्‍चों के पासपोर्ट फोटो भी लगे हैं जिससे पता चलता है कि समाचार में मेहनत की गई है । युवक की हत्‍या के बाद तनाव का समाचार यहां पर लीड लगा है ।

 राज एक्‍सप्रेस  की अगर बात की जाए तो यहां पर आज जमीन विवाद का समाचार लीड है और दसवीं के परिणाम नीचे लगे हैं । दोनों ही समाचार जो आज के मुख्‍य समाचार हैं उनको पत्र ने ठीक तरीके से लगाया है हां जितनी मेहनत क्राइम के समाचार पर की गई है उतनी मेहनत दसवीं के बच्‍चों के समाचार नहीं की गई है । ये आज के समाचार पत्रों की दशा और दिशा को बताता है ।

कुल मिलाकर आज का दिन मिला जुला रहा है भास्‍कर ने जहां दसवीं के परिणाम को ठीक तरीके से उठा लिया तो वो जमीन विवाद में पिट गया । पत्रिका ने जमीन विवाद को लगा लिया तो दसवीं के परिणाम में वो बुरी तरह से पिटा । नव दुनिया और राज एक्‍सप्रेस दोनों ही दोनो समाचारों में सफल रहे हैं ।

4 comments:

मीनाक्षी said...

"हो सकता है शब्‍द की शक्ति के सुनहरे दिनों की वापसी के साथ छायाचित्रों की भी वापसी हो ।" --
हम भी यही दुआ करते हैं . पिछले दिनों बेटे द्वारा खींची एक तस्वीर को दुबई के एक अखबार के फोटो सेक्शन के लिए सेलेक्ट किया गया था....

Udan Tashtari said...

जारी रखिये समीक्षा. आपका पत्रकारिता से जुड़ा अनुभव बोलता है.

sanjay patel said...

फ़ोटो पत्रकारिता का समय चला गया पंकज भाई.जान पर खेल कर कई वरिष्ठ छायाकारों ने कर्फ़्यू,युध्द और सांप्रदायिक दंगों में कुछ ऐसी रोमांचक फ़ोटोग्राफ़ी की है जिसका जवाब नहीं.कुछ मुट्ठीभर अख़बारों को छोड़ दें तो ज़्यादातर छायाकार और उसके रोल को बहुत गंभीरता से नहीं लेते.यह बात अकाट्य है कि चार कॉलम की ख़बर पर दो कॉलम का फ़ोटो भारी पड़ता है.

lunaram said...

iski sabse badi vajah ye hai bhaio ki bechare fotografro ko jo payment milta hai vo 20 se 40 bhartiya rupaye hai jis se ek waqt chaya bhi nahi milti. rahi baat prasansha se pet nahi bharta bhai