वो एक व्‍यक्ति जो कि संपादक कहलाता था उसे प्रबंधक में बदल दिया गया है ऐसे में उम्‍मीद न रखें समाचारों की

संपादक एक एसा व्‍यक्ति जो कि अपने समाचार पत्र या पत्रिका की धुरी होता था । मालिक भी उसके सामने बौना होता था । समाचारों के चयन में मालिक से ज्‍यादा चलती थी संपादक की । मालिक को भी अनुरोध करना होता था संपादक से किसी समाचार को लेकर । संपादक का अर्थ होता था अपनी ही धुन में रमा रहने वाला एक आदमी जो कि कब उखड़ पड़े मालूम नहीं । जब मौज में आकर कोई अग्रलेख लिख दे तो ऐसा कि दिन भर चर्चाओं में वो लेख बना रहे । इन्‍हीं संपादकों में से निकलते थे संपादकाचार्य ( एक विलुप्‍त प्रजाति ) । किन्‍तु आज संपादक कहीं नहीं है आज हर जगह पर प्रबंधक हैं जिनसे कहा जा रहा है कि आप प्रबंधन करो कलम वलम से हाथ लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है । अपनी इस नई भूमिका में ये संपादक भी प्रसन्‍न हैं । मध्‍य प्रदेश में पांच छ: साल पहले प्रारंभ हुए एक समाचार पत्र ने कलम का जितना नुकसान किया है वो किसी ने नहीं किया । अब कहीं कोई संपादक के अग्रलेख नहीं होते और अगर होते भी हैं तो वे उस तरह के तेवर लिये हुए नहीं होते जैसे लोग चाह रहे हैं । मेर गुरू वरिष्‍ठ आलोचक श्रद्धेय डॉ विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि राजनीति में कोई सत्‍ता पक्ष या विपक्ष नहीं होता है जो भी राजनीति में है वो वास्‍तव में सत्‍ता पक्ष ही है, क्‍योंकि वो उसी का हिस्‍सा है । ऐसे में जो भी जनता के पक्ष में होगा वो ही होगा विपक्ष जो जनता की बात करेगा वो ही होगा विपक्ष और जनता की बात करती है कलम जनता की बात करते हैं शब्‍द अत: वास्‍तव में कलम ही हर दौर में विपक्ष में होती है । डॉ विजय बहादुर सिंह की बात के अनुसार तो देश भर में फैले हजारों पत्रकार वास्‍तव में विपक्ष हैं । और इसी विपक्ष की धार को कुंद करने का काम कर रहे हैं मालिक, मालिक जो कि सत्‍ता पक्ष का ही हिस्‍सा हैं । खैर हर अंधेरी रात के बाद सुबह होती है और दुनिया इसी उम्‍मीद में जीती है ।

दैनिक भास्‍कर  को जितना भय नए समाचार पत्रों से है उतना किसी दूसरे को नहीं है तभी तो ये भी खरबूजे को देख कर रंग बदल रहा है । भास्‍कर में भी वही तरीका अपनाया जा रहा है जोकि दूसरे कर रहे हैं । मगर भास्‍कर को फिर भी एक शेर हमेशा जेहन में रखना चाहिये जिन में हो जाते हैं अंदाज़े ख़ुदाई पैदा हमने देखा है वो बुत तोड़ दिये जाते हैं । आज भास्‍कर ने बस हड़ताल का समाचार लीड किया है तो वहीं पैसे मांग रहे पटवारी को निलम्‍बित करने का समाचार सेकैंड लीड है मगर ये समाचार रेहटी का है । रिपोर्टर बलजीत ठाकुर ने शिक्षा विभाग का रोचक समाचार निकाला है कि अब छात्राओं को दो सौ रुपये की यूनीफार्म मिलेगी और साथ में चप्‍पलें भी दी जाएंगीं । सड़कों पर हो रहे कीचड़ का समाचार आज नीचे लगा है । कुल मिलाकर आज का भास्‍कर पठनीय है ।

नवदुनिया की अगर बात करें तो यहां भी बसों की हड़ताल लीड है मगर आज छपाई की त्रुटी के कारण फोटो खराब हो गए हैं । नवदुनिया ने एक काम जो अच्‍छा किया है वो ये कि एक दो दिन छोड़कर मौसम का समाचार दिया जा रहा है । ये वो समाचार है जिसे लगाना समाचारपत्रों ने छोड़ दिया है । आज भी मौसम वैज्ञानिक के हवाले से अच्‍छा समाचार लगा है । पेयजल संकट को लेकर भी एक समाचार लगा है । एक और बात जो नवदुनिया ने  की है वो है फालोअप । आजकल समाचारपत्र समाचार तो लगा देते हैं पर दूसरे दिन जब पाठक ये जानने के लिये पेपर देखता है कि कल के बाद आज क्‍या है तो कुछ नहीं मिलता । आज नवदुनिया ने कल के हत्‍याकांड का फालोअप लगाया है । वहीं शहर के खेल मैदानों की दुर्दशा और एक खेल मैदान पर होस्‍टल बनने का समाचार भी लगा है ।

पत्रिका  ने आज देर से जागते हुए पेट्रोल पम्‍पों से सादा पैट्रोल डीजल गायब होने का समाचार लीड किया है जिसको कि दूसरे समाचार पत्र पूर्व में लगा चुके हैं । समाचार की एक कमजोरी ये है कि इसमें समाचार कम है  और पैट्रोल पम्‍प के मालिकों के बयान ज्‍यादा हैं । इसके अलावा एक समाचार खरीफ फसलों का रकबा बढ़ने का भी लगा है । पत्रिका ने अब ये मान लिया है कि उसको दूसरे स्‍थान के लिये ही संघर्ष करना है पहले स्‍थान के लिये उसका दावा उसने खुद ही कमजोर कर लिया है । कोई भी समचार पत्र जब लांच होता है तो उसको नशा बेचने वालों की तर्ज पर काम करना होता है । जिस प्रकार नशा बेचने वाले पहले किसी व्‍यक्ति को मुफ्त में नशा देते हैं ताकि उसको लत लग जाए और बाद में वो ही पैसे से खरीद कर नशा करे । समाचारपत्र जब लांच होता है तब वो भी मुफ्त में बांटा जाता है ताकि लोगों को उसकी आदत हो जाए और बाद में वो ही लोग उसको खरीद कर भी पढ़ें । मगर पत्रिका ये भूल रही है कि आदत डालने के लिये आपके उत्‍पाद में जान होना चाहिये लत तभी लगती है जब स्‍वाद आता है आनंद आता है रस आता है । नीरस चीजों की लत नहीं लगती ये प्रकृति का सिद्धांत है । पत्रिका मुफ्त में बंट रही है तो उसमें रस होना ही चाहिये नहीं तो कुछ नहीं होने का ।

राज एक्‍सप्रेस  के बारे में ये तो कहना होगा कि भले ही महासंग्राम को देखकर भास्‍कर ने अपने हथियारों पर धार नहीं की है पर राज ने तो की है और उसमें एक परिवर्तन दिख रहा है । लेकिन राज के साथ समस्‍या ये है कि वहां पर समाचारों को लेकर कहा जाता है कि कोई जरूरत नहीं है समाचारों को लाने की जितनी देर में आप एक समाचार को तैयार करेंगें उतने में आप चार विज्ञापन ला सकते हैं । दरअसल में पत्रकारों को विज्ञापन लाने की जिम्‍मेदारी देकर समाचार पत्रों ने कलम को बंधक बना दिया है । फिर भी आज का राज सबसे पठनीय है बसों की हड़ताल लीड है तो पुराने गोली कांड को लेकर रोचक समाचार लगा है कि जो कट्टा पुलिस ने उस गोली कांड में जब्‍त किया था उससे गोली नहीं चली थी । पुलिस द्वारा 70 हजार का एल्‍युमीनियम तार एक कार से बरामद होने का एक समाचार भी लगा है । वहीं नगर पालिका में एक करोड़ के घोटाले का समाचार भी लगा है जो कि पार्षद द्वारा  लोकायुक्‍त को दिये गए शपथ पत्र को आधार मान कर लगा है ।

कुलमिलाकर आज के समाचार पत्रों में राजएक्‍सप्रेस  का पेज सबसे पठनीय है । पत्रिका चारों समाचार पत्रों में अभी भी सबसे पीछे खड़ी है और उसे शायद अपनी स्थिति से संतोष भी हो गया है । भास्‍कर, नवदुनिया और अब राज एक्‍सप्रेस ये तीनों समाचारों के मामले में कांटे की टक्‍कर में हैं पत्रिका मैदान से बाहर बैठकर देख रही है ।

1 comments:

Udan Tashtari said...

पूर्व में संपादकीय वाकई पठनीय होता था.